रविश जी जब सड़क पूल नहीं बना था तो यहाँ एह लचका पूल हुआ करता था जो गर्मिओं में छपरा वालों को बलिया और बलिया वालों को छपरा लाया करता था.बचपन का वो अद्भुत आनंद अभी भी जेहन में कायम है.
रवीश जी आजकल आपके प्राइम टाइम शो में युवा पत्रकार भी दौरे में है.. पर उनकी व्यथा को देख कर लगता है की उनका काम सिर्फ माइक पकड़ने भर है .. या तो आप उन्हें रिपोर्टिंग का मौका देना नहीं चाहते है या वो युवा पत्रकार आपसे रिपोर्टिंग का मौका झपटना नहीं चाहते है.. अगर इन युवा पत्रकारों से अनुभव के नाम पर सिर्फ माइक पकड़वाना भर था तो फिर उसके लिए कोई असिस्टेंट ही काफी था ... हमारी राजनीती में ही नहीं बल्कि मीडिया में भी कुछ ऐसा है की उम्रदराज पत्रकार युवा के लिए रास्ता देना ही नहीं चाहते.. उनका मानना ये रहता की इस देश में जिसके भी बाल सफ़ेद है वो युवा से ज्यादा योग्य है.. यही हाल है की हमारे देश में ज्ञान की कीमत कुछ भी नहीं भले ही आपने पीएचडी जनसंचार में क्यों न कर राखी हो आपका रिज्यूम तुरंत कूड़े दान में फेक दिया जाता है क्योंकि आपने इनके चल रहे स्कूल से डिप्लोमा जो नहीं लिया है और तो और इस स्कूल का डिप्लोमा भी यूजीसी से प्रमाणित नहीं होता .. मीडिया को ना तो नेट एग्जाम से मतलब होता है ना ही सेट एग्जाम से.. माफ़ कीजियेगा अगर अनुभव का अर्थ बाल का सफ़ेद होना और उम्रदराज ही इस देश में योग्ता की निशानी होती तो आज जिले की कमान कोई युवा आईएएस न सभल रहा होता.. पत्रकारिता तो बहुत छोटी चुनौती है.. संघ लोक सेवा आयोग आईएएस बनने के लिए आपके अनदर सिर्फ ज्ञान को तराशता है न की कोई उम्र को और अनुभव को .. क्या शानदार परखता है आयोग की आप क्षमतावान है और युवा रूप में जिले की चुनौतियों का सामना कर सकते है.. अगर मैं अपनी बात में गलत हूँ तो एनडी टीवी पत्र्कारिता की नौकरी के लिए मेरा लिखित एग्जाम और इंटरव्यू ले ना ताकि उचित कारण बताते हुए मुझे नकारे .. क्यों आपके चैनल की जॉब प्रक्रिया गुप्त राखी जाती है ? धन्यवाद. राहुल वैश्य ( रैंक अवार्ड विजेता), एम. ए. जनसंचार (राज्य पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण, हिमाचल लोक सेवा आयोग) एवम भारतीय सिविल सेवा के लिए प्रयासरत फेसबुक पर मुझे शामिल करे- vaishr_rahul@yahoo.com और Rahul Vaish Moradabad
Aei bhai tum naukari mang rahe ho ya dhamka rahe ho.yadi itni yogyata hai to ndtv hi kyu ...koi aur chainal v dekh lo.is tarah girgirane se naukari na Milne wali.
रवीश जी को सादर प्रणाम; सर NDTV पर आपका प्रोगाम (प्राइम टाइम, मुकाबला, और हम लोग) बहुत रोचक होता है। सामाजिक सरोकार से जुड़े अनछुए मुद्दों को रवीश की रिपोर्ट में देखकर सुखद अनुभुति होती है, आपकी भाषा-शैली, शब्दों का चयन सरल और उत्कृष्ट होता है। आप से अनुरोध है एक बार हिंदी समालोचक आचार्य रामचंद्र शुक्ल की जन्मस्थली अगौना, वाया कलवारी जनपद बस्ती, उत्तर प्रदेश पधारें।
राहुल भाई, जहा तक आपकी व्यथा का सवाल है में समझ सकता हूँ पर अगर बात उस युवा पत्रकार(Mrs. सांगवान) की करें तो जहा तक मेरी समझ कहती है वो दो कारणों से रविश के साथ भेजी गयी है पहली बात की उनको बडिंग करवाई जा रही हो या फिर इसलिए की वो एक महिला हैं और चुकी गाँवों का दौरा है तो एक पुरुष के लिए बड़ी मुश्किल होती है उनसे संवाद स्थापित करना और ऐसी जगहों पर उनको अवसर दिया गया है पर वो उसको भुना नहीं पाती वो अलग बात है। वैसे जितना मैंने रवीश को देखा है आप उम्मीद कर सकते है आने वाले एपिसोड्स में उनको 'मौका' देते हुए। उम्मीद करता हूँ अन्यथा नहीं लेंगे, मन में आया सो लिख दिया।:-)
देश के महाभ्रष्ट इलेक्ट्रॉनिक मीडिया (महाभ्रष्ट इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इसलिए क्यों की उसका उल्लेख मैं अपने पूर्व के ब्लॉग में विस्तारपूर्वक कर चूका हूँ अत: मेरे पूर्व के ब्लॉग का अध्यन जागरणजंक्शन.कॉम पर करे ) के उन न्यूज़ चैनलों को अपने गिरेबान में झाँक कर देखना चाहिए जो न्यूज़ चैनल के नाम के आगे ”इंडिया” या देश का नॉ.१ इत्यादि शब्दों का प्रयोग करते है. क्यों की इन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के कुँए के मेढक न्यूज़ चैनलों का राडार या तो एन.सी.आर. या फिर बीमारू राज्य तक सीमित रहता है. कुए के मेढ़क बने इन न्यूज़ चैनलों को दिल्ली का “दामिनी” केस तो दिख जाता है लेकिन जब नागालैंड में कोई लड़की दिल्ली के “दामनी” जैसी शिकार बनती है तो वह घटना इन न्यूज़ चैनलों को तो दूर, इनके आकाओं को भी नहीं मालूम पड़ पाती. आई.ए.एस. दुर्गा नागपाल की के निलंबन की खबर इनके राडार पड़ इसलिए चढ़ जाती हैं क्यों की वो घटना नोएडा में घटित हो रही है जहाँ इन कुँए के मेढक न्यूज़ चैनलों के दफ्तर है जबकि दुर्गा जैसी किसी महिला अफसर के साथ यदि मणिपुर में नाइंसाफी होती है तो वह बात इनको दूर-दूर तक मालूम नहीं पड़ पाती है कारण साफ़ है की खुद को देश का चैनल बताने वाले इन कुँए का मेढ़क न्यूज़ चैनलों का कोई संबाददाता आज देश उत्तर-पूर्व इलाकों में मौजूद नहीं है. देश का इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जिस तरह से न्यूज़ की रिपोर्टिंग करता है उससे तो मालूम पड़ता है की देश के उत्तर-पूर्व राज्यों में कोई घटना ही नहीं होती है. बड़े शर्म की बात है कि जब देश के सिक्किम राज्य में कुछ बर्ष पहले भूकंप आया था तो देश का न्यूज़ चैनल बताने वाले इन कुँए का मेढ़क न्यूज़ चैनलों के संबाददाताओं को सिक्किम पहुचने में २ दिन लग गए. यहाँ तक की गुवहाटी में जब कुछ बर्ष पहले एक लड़की से सरेआम घटना हुई थी तो इन कुँए के मेढक न्यूज़ चैनलों को उस घटना की वाइट के लिए एक लोकल न्यूज़ चैनल के ऊपर निर्भर रहना पड़ा था. इन न्यूज़ चैनलों की दिन भर की ख़बरों में ना तो देश दक्षिण राज्य केरल, तमिलनाडु, लक्ष्यद्वीप और अंडमान की ख़बरें होती है और ना ही उत्तर-पूर्व के राज्यों की. हाँ अगर एन.सी.आर. या बीमारू राज्यों में कोई घटना घटित हो जाती है तो इनका न्यूज़ राडार अवश्य उधर घूमता है. जब देश के उत्तर-पूर्व या दक्षिण राज्यों के भारतीय लोग इनके न्यूज़ चैनलों को देखते होंगे तो इन न्यूज़ चैनलों के द्वारा देश या इंडिया नाम के इस्तेमाल किये जा रहे शब्द पर जरुर दुःख प्रकट करते होंगे. क्यों की देश में कुँए का मेढ़क बने इन न्यूज़ चैनलों को हमारे देश की भौगोलिक सीमायें ही ज्ञात नहीं है तो फिर ये न्यूज़ चैनल क्यों देश या इंडिया जैसे शब्दों का प्रयोग करते है क्यों नहीं खुद को कुँए का मेढक न्यूज़ चैनल घोषित कर लेते आखिर जब ये आलसी बन कर देश बिभिन्न भागों में घटित हो रही घटनाओं को दिखने की जहमत ही नहीं उठाना चाहते. धन्यवाद. राहुल वैश्य ( रैंक अवार्ड विजेता), एम. ए. जनसंचार एवम भारतीय सिविल सेवा के लिए प्रयासरत फेसबुक पर मुझे शामिल करे- vaishr_rahul@yahoo.कॉम और Rahul Vaish Moradabad
वाह खूब ! सुंदर । अच्छा है तस्वीर में कई शोर गायब हो जाते हैं । जो आवाज़े बची रहती है, उन्हें देखकर भी सुना जा सकता है।
ReplyDeleteBahut hi khoobsurat nazara hai sir ji.
ReplyDeleteSIR JI bahut shanti milti hai inhe dekh kar.
ReplyDeleteरविश जी जब सड़क पूल नहीं बना था तो यहाँ एह लचका पूल हुआ करता था जो गर्मिओं में छपरा वालों को बलिया और बलिया वालों को छपरा लाया करता था.बचपन का वो अद्भुत आनंद अभी भी जेहन में कायम है.
ReplyDeleteरवीश जी आजकल आपके प्राइम टाइम शो में युवा पत्रकार भी दौरे में है.. पर उनकी व्यथा को देख कर लगता है की उनका काम सिर्फ माइक पकड़ने भर है .. या तो आप उन्हें रिपोर्टिंग का मौका देना नहीं चाहते है या वो युवा पत्रकार आपसे रिपोर्टिंग का मौका झपटना नहीं चाहते है.. अगर इन युवा पत्रकारों से अनुभव के नाम पर सिर्फ माइक पकड़वाना भर था तो फिर उसके लिए कोई असिस्टेंट ही काफी था ... हमारी राजनीती में ही नहीं बल्कि मीडिया में भी कुछ ऐसा है की उम्रदराज पत्रकार युवा के लिए रास्ता देना ही नहीं चाहते.. उनका मानना ये रहता की इस देश में जिसके भी बाल सफ़ेद है वो युवा से ज्यादा योग्य है.. यही हाल है की हमारे देश में ज्ञान की कीमत कुछ भी नहीं भले ही आपने पीएचडी जनसंचार में क्यों न कर राखी हो आपका रिज्यूम तुरंत कूड़े दान में फेक दिया जाता है क्योंकि आपने इनके चल रहे स्कूल से डिप्लोमा जो नहीं लिया है और तो और इस स्कूल का डिप्लोमा भी यूजीसी से प्रमाणित नहीं होता .. मीडिया को ना तो नेट एग्जाम से मतलब होता है ना ही सेट एग्जाम से.. माफ़ कीजियेगा अगर अनुभव का अर्थ बाल का सफ़ेद होना और उम्रदराज ही इस देश में योग्ता की निशानी होती तो आज जिले की कमान कोई युवा आईएएस न सभल रहा होता.. पत्रकारिता तो बहुत छोटी चुनौती है.. संघ लोक सेवा आयोग आईएएस बनने के लिए आपके अनदर सिर्फ ज्ञान को तराशता है न की कोई उम्र को और अनुभव को .. क्या शानदार परखता है आयोग की आप क्षमतावान है और युवा रूप में जिले की चुनौतियों का सामना कर सकते है.. अगर मैं अपनी बात में गलत हूँ तो एनडी टीवी पत्र्कारिता की नौकरी के लिए मेरा लिखित एग्जाम और इंटरव्यू ले ना ताकि उचित कारण बताते हुए मुझे नकारे .. क्यों आपके चैनल की जॉब प्रक्रिया गुप्त राखी जाती है ? धन्यवाद.
ReplyDeleteराहुल वैश्य ( रैंक अवार्ड विजेता),
एम. ए. जनसंचार (राज्य पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण, हिमाचल लोक सेवा आयोग)
एवम
भारतीय सिविल सेवा के लिए प्रयासरत
फेसबुक पर मुझे शामिल करे- vaishr_rahul@yahoo.com और Rahul Vaish Moradabad
Aei bhai tum naukari mang rahe ho ya dhamka rahe ho.yadi itni yogyata hai to ndtv hi kyu ...koi aur chainal v dekh lo.is tarah girgirane se naukari na Milne wali.
DeleteSir ji ye to ayodhya ke photos lag rhe hai lekin aap ka koi show faizabad par based tha hi nahi .
ReplyDeleteरवीश जी को सादर प्रणाम;
ReplyDeleteसर NDTV पर आपका प्रोगाम (प्राइम टाइम, मुकाबला, और हम लोग) बहुत रोचक होता है। सामाजिक सरोकार से जुड़े अनछुए मुद्दों को रवीश की रिपोर्ट में देखकर सुखद अनुभुति होती है, आपकी भाषा-शैली, शब्दों का चयन सरल और उत्कृष्ट होता है। आप से अनुरोध है एक बार हिंदी समालोचक आचार्य रामचंद्र शुक्ल की जन्मस्थली अगौना, वाया कलवारी जनपद बस्ती, उत्तर प्रदेश पधारें।
सादर धन्यवाद।
tripathiempi@gmail.com
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteराहुल भाई, जहा तक आपकी व्यथा का सवाल है में समझ सकता हूँ पर अगर बात उस युवा पत्रकार(Mrs. सांगवान) की करें तो जहा तक मेरी समझ कहती है वो दो कारणों से रविश के साथ भेजी गयी है पहली बात की उनको बडिंग करवाई जा रही हो या फिर इसलिए की वो एक महिला हैं और चुकी गाँवों का दौरा है तो एक पुरुष के लिए बड़ी मुश्किल होती है उनसे संवाद स्थापित करना और ऐसी जगहों पर उनको अवसर दिया गया है पर वो उसको भुना नहीं पाती वो अलग बात है।
ReplyDeleteवैसे जितना मैंने रवीश को देखा है आप उम्मीद कर सकते है आने वाले एपिसोड्स में उनको 'मौका' देते हुए।
उम्मीद करता हूँ अन्यथा नहीं लेंगे, मन में आया सो लिख दिया।:-)
देश के महाभ्रष्ट इलेक्ट्रॉनिक मीडिया (महाभ्रष्ट इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इसलिए क्यों की उसका उल्लेख मैं अपने पूर्व के ब्लॉग में विस्तारपूर्वक कर चूका हूँ अत: मेरे पूर्व के ब्लॉग का अध्यन जागरणजंक्शन.कॉम पर करे ) के उन न्यूज़ चैनलों को अपने गिरेबान में झाँक कर देखना चाहिए जो न्यूज़ चैनल के नाम के आगे ”इंडिया” या देश का नॉ.१ इत्यादि शब्दों का प्रयोग करते है. क्यों की इन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के कुँए के मेढक न्यूज़ चैनलों का राडार या तो एन.सी.आर. या फिर बीमारू राज्य तक सीमित रहता है. कुए के मेढ़क बने इन न्यूज़ चैनलों को दिल्ली का “दामिनी” केस तो दिख जाता है लेकिन जब नागालैंड में कोई लड़की दिल्ली के “दामनी” जैसी शिकार बनती है तो वह घटना इन न्यूज़ चैनलों को तो दूर, इनके आकाओं को भी नहीं मालूम पड़ पाती. आई.ए.एस. दुर्गा नागपाल की के निलंबन की खबर इनके राडार पड़ इसलिए चढ़ जाती हैं क्यों की वो घटना नोएडा में घटित हो रही है जहाँ इन कुँए के मेढक न्यूज़ चैनलों के दफ्तर है जबकि दुर्गा जैसी किसी महिला अफसर के साथ यदि मणिपुर में नाइंसाफी होती है तो वह बात इनको दूर-दूर तक मालूम नहीं पड़ पाती है कारण साफ़ है की खुद को देश का चैनल बताने वाले इन कुँए का मेढ़क न्यूज़ चैनलों का कोई संबाददाता आज देश उत्तर-पूर्व इलाकों में मौजूद नहीं है. देश का इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जिस तरह से न्यूज़ की रिपोर्टिंग करता है उससे तो मालूम पड़ता है की देश के उत्तर-पूर्व राज्यों में कोई घटना ही नहीं होती है. बड़े शर्म की बात है कि जब देश के सिक्किम राज्य में कुछ बर्ष पहले भूकंप आया था तो देश का न्यूज़ चैनल बताने वाले इन कुँए का मेढ़क न्यूज़ चैनलों के संबाददाताओं को सिक्किम पहुचने में २ दिन लग गए. यहाँ तक की गुवहाटी में जब कुछ बर्ष पहले एक लड़की से सरेआम घटना हुई थी तो इन कुँए के मेढक न्यूज़ चैनलों को उस घटना की वाइट के लिए एक लोकल न्यूज़ चैनल के ऊपर निर्भर रहना पड़ा था. इन न्यूज़ चैनलों की दिन भर की ख़बरों में ना तो देश दक्षिण राज्य केरल, तमिलनाडु, लक्ष्यद्वीप और अंडमान की ख़बरें होती है और ना ही उत्तर-पूर्व के राज्यों की. हाँ अगर एन.सी.आर. या बीमारू राज्यों में कोई घटना घटित हो जाती है तो इनका न्यूज़ राडार अवश्य उधर घूमता है. जब देश के उत्तर-पूर्व या दक्षिण राज्यों के भारतीय लोग इनके न्यूज़ चैनलों को देखते होंगे तो इन न्यूज़ चैनलों के द्वारा देश या इंडिया नाम के इस्तेमाल किये जा रहे शब्द पर जरुर दुःख प्रकट करते होंगे. क्यों की देश में कुँए का मेढ़क बने इन न्यूज़ चैनलों को हमारे देश की भौगोलिक सीमायें ही ज्ञात नहीं है तो फिर ये न्यूज़ चैनल क्यों देश या इंडिया जैसे शब्दों का प्रयोग करते है क्यों नहीं खुद को कुँए का मेढक न्यूज़ चैनल घोषित कर लेते आखिर जब ये आलसी बन कर देश बिभिन्न भागों में घटित हो रही घटनाओं को दिखने की जहमत ही नहीं उठाना चाहते. धन्यवाद. राहुल वैश्य ( रैंक अवार्ड विजेता), एम. ए. जनसंचार एवम भारतीय सिविल सेवा के लिए प्रयासरत फेसबुक पर मुझे शामिल करे- vaishr_rahul@yahoo.कॉम और Rahul Vaish Moradabad
ReplyDeleteganga apni jagah se simti ja rahi hai ye dekh kar dukh hua
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