उत्तर प्रदेश में अगर मोदी को पचास सीटें आ गईं तो इसका सीधा मतलब है कि बसपा सपा का समापन । आख़िर ऐसा क्या हो गया है यूपी में कि ये दोनों पार्टियाँ समाप्त हो जाएँगी । अगर अस्सी में से तीस सीटों पर बसपा, सपा, कांग्रेस, आर एल डी सिमट गईं तो समझिये कि यूपी की राजनीति में ज़लज़ला आ गया है । अगर ऐसा नहीं हुआ तो इतना याद रखियेगा कि यूपी के हर चुनाव में मीडिया और विज्ञापनों की हल्ला गाड़ी कभी बीजेपी तो कभी कांग्रेस के उभार का नारा जपने लगती है । जब नतीजा आता है तो सारे होर्डिंग,पर्चे और नारे कबाड़ में बदल जाते हैं और सत्ता सपा या बसपा में से किसी के पास होती है ।
लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने ऐसा क्या सोशल इंजीनियरिंग कर लिया है जो उसे अटल के अंठानबे युग की तरफ़ ले जायेगा जब बीजेपी को साठ कम दो सीटें मिली थीं । याद रखियेगा तब समाजवादी और बसपा का आधार उस तरह मज़बूत नहीं हुआ था जैसा आज है । इन वर्षों में बीजेपी अंठावन सीटों से कम होकर दस पर आ गई और सपा और बसपा ने अलग अलग इक्कीस से अट्ठाईस सीटें जीतीं । आज बसपा और सपा दोनों यूपी की मज़बूत और मुख्य सत्तारूढ़ व विपक्षी दल हैं ।
दो साल पहले हुए विधानसभा चुनावों में यूपी की जनता ने कांग्रेस बीजेपी की तरफ़ देखा तक नहीं । दो साल बाद अगर बीजेपी पचास सीटों पर जीत रही है तो प्रति लोक सभा पाँच सीटों के हिसाब बीजेपी को विधान सभा की ढाई सौ सीटें मिलने वाली हैं । बीजेपी को खुद भी इस नंबर पर यक़ीन नहीं होगा । यह तभी हो सकता है कि जब मुसलमान, जाटव, यादव अति पिछड़ी और ग़ैर जाटव दलित जातियाँ एकमुश्त बीजेपी को वोट दे दें । लेकिन ज़मीन पर संख्या के आधार पर प्रमुख बड़ी जातियों में बिखराव इस तरह का नहीं दिखता जो सर्वे में दिखाया जा रहा है ।
मायावती और अखिलेश मुलायम की सभाओं में आ रही भीड़ किसी मायने में नरेंद्र मोदी की रैलियों सभाओं से कम नहीं है । बीजेपी इस उम्मीद में आगे बढ़ने का ख़्वाब देख रही है कि ज़्यादा से ज़्यादा ध्रुवीकरण के बयानों से दलित और पिछड़ी जातियाँ हिन्दुत्व के पाले में आ जायेंगी । मगर ऐसा तो बाबरी मस्जिद ध्वस्त करने के बाद नहीं हुआ था तो मोदी और मुज़फ़्फ़रनगर के सहारे कैसे हो जायेगा । कोई दावा नहीं कर सकता कि नहीं होगा मगर किसी को यह भी दावा नहीं करना चाहिए कि यही होगा ।
मुज़फ़्फ़रनगर और बनारस उत्तर प्रदेश के दो ज़िले हैं । उत्तर प्रदेश नहीं है । पिंडदान के लिए पूरे भारत से लोग गया भी जाते हैं । क्या गया से बिहार की राजनीति संचालित हो सकती है । वैसे ही मुज़फ़्फ़रनगर के ही आस पास के ज़िलों पर दंगों की राजनीति का असर नहीं है । एक ज़िला से दूसरे ज़िला में जाते ही समीकरण और उम्मीदवार की कहानी बदल जाती है । बसपा में उन्नीस मुसलमान और इक्कीस ब्राह्मण और सत्रह पिछड़ी जातियों के उम्मीदवारों को टिकट दिये हैं । इनमें से कई ग़ैर यादव पिछड़ी जातियों के हैं जो अपने क्षेत्र में प्रभाव रखते हैं । बीजेपी को इन्हीं ग़ैर यादव और ग़ैर दलित जातियों से उम्मीद है । मगर इनमें बीजेपी की तरफ़ व्यापक पलायन होता नहीं दिख रहा । मोदी बसपा को लेकर जितना आक्रामक हो रहे हैं बसपा की समर्थक जातियाँ उतना ही सतर्क हो रही हैं । उन्हें पता है कि गाँव क़स्बों के चौराहे पर उनका अस्तित्व बसपा या सपा के कारण है ।
इसलिए उत्तर प्रदेश में बीजेपी के शानदार प्रदर्शन की बात करने से पहले खुद को चिकोटी काटना ज़रूरी है । यह सोचना ज़रूरी है कि क्या सचमुच में हिन्दुत्व के दायरे से बाहर की समाजवादी पिछड़ी चेतना समाप्त हो रही है, दलित चेतना नष्ट हो चुकी है । क्या कांशीराम की तैयार फ़सल अतीत का हिस्सा बनने जा रही है । धीरे धीरे मामूली रूप से कमज़ोर हो रहीं मायावती का असर समाप्त हो रहा है ? क्या मुलायम वापस नब्बे के दशक की स्थिति में पहुँच जायेंगे । ज़मीन पर ऐसी बग़ावत तो मुझे नहीं दिखी । यह तभी हो सकता है जब किन्हीं अदृश्य पूँजीपतियों के दबाव में ये दोनों नेता अपने अस्त्वित्व का सरेंडर कर दें ।
मोदी अगर यह समझते हैं कि खुद को पिछड़ा बता कर हिन्दुत्व का वैसा विस्तार कर लेंगे जैसा कभी लोध जाति में प्रभाव रखने वाले कल्याण सिंह ने किया था तो इसमें कुछ तो दम है । मगर बहुत नहीं । अगर विकास के सवाल पर बीजेपी आगे बढ़ चुकी है तो अंत समय में माँस निर्यात और अमित शाह के बहाने एक सम्प्रदाय को टारगेट क्यों करने लगी है । क्या बीजेपी भी समझ रही है कि यूपी में जीत के लिए अगर जातियों का व्यापक गठबंधन बनाना है तो विकास से नहीं ऐसे बयानों से बनेगा जो हिन्दू बनाम मुस्लिम का भेद गहरा करें ।
इससे बीजेपी आक्रामक तो लगेगी मगर इस रणनीति का एक ख़तरा है । पचास सीटों पर असर रखने वाले मुसलमानों के साथ साथ साम्प्रदायिकता विरोधी हिन्दू जमात की गोलबंदी बीजेपी के ख़िलाफ़ हो सकती है । बीजेपी को समझना चाहिए कि उसे मिलने जा रहा कांग्रेस विरोधी मत हिन्दुत्व के लिए नहीं है । अगर दंगों की राजनीति से सरकारें बनतीं तो इस देश का इतिहास दूसरा होता । जिन्होंने सरकारें बनाई हैं वो भी दंगों के इतिहास से परेशान है । जो लोग मुस्लिम मतों के बिखराव की बात कर रहे हैं वो जल्दी कर रहे हैं । बिखराव बहुत कम है ।
उत्तर प्रदेश में नतीजों के आने तक भविष्यवाणी से बचिये । अगर बीजेपी बीएसपी और एसपी को कुचलते हुए पचास सीटों से आगे निकल जाती है तो जरूर अमित शाह को माला पहना आइयेगा लेकिन तब तक के लिए माले को बाहर मत निकालिये । चुनाव देखिये । जिस यूपी में मुस्लिम वोट से कांग्रेस बीस सीट पाकर हैरान हो सकती है और यूपी की इतनी ही सीटों के बावजूद सरकार बना सकती है उस यूपी में कुछ भी हो सकता है । इतनी जल्दी क्या है मायावती और मायावती की श्रद्धांजली लिखने की । लड़ाई का मज़ा लीजिये । मैच अभी शुरू हुआ है ।
( यह लेख आज के प्रभात ख़बर में छप चुका है )
jo ho riya hai..achche ke liye ho riya hai
ReplyDeletejo hoenga..u bhi achche ke liye hi hoenga
UP me krishna Yadav OBC wale ne kaha tha..arjun (jaati unknown) ko
Shree Ramji (jaati Rajput) ke happy bday ki shubhkamnaye..
ReplyDeleteRavish Sir..Aap ko dekh dekh ke maine bhi kuch likh diya..mai kisi party ka samarthak nahi ho..Bas likh Diya..Kuch Chunavi Media par bhi ek BLOG likh dijiye...
ReplyDeleteपिछले कुछ दिनो से अरविंद को थप्पड़ मारने की बहुत सी ख़बरे है, प्रतिक्रिया भी बहुत है| ज़रा गूगल करिए कोई भगोड़ा, कोई CIA और जाने क्या क्या... चलिए ये उनका मत हो सकता है| लोकतत्र है तो विचारो की आज़ादी भी है| कुछ लोग कहते है, दिल्ली की जनता उनसे नाराज़ है, इसलिए ऐसी घटनाए हो रही है|
५० दिन की सरकार से अगर कोई इतना नाराज़ हो सकता है, तो ६५ साल की नाराज़गी का परिणाम क्या होना चाहिए| ये मैं आप पे छोड़ता हू| अगर ये लोकतत्र है, तो आज तक किसी ने राहुल, नमो, मुलायम, मायावती या और किसी और पार्टी के नेता को थप्पड़ क्यो नही मारा| मारना तो दूर, काला झंडा भी नही दिखाएगे| क्योकि उसका परिणाम क्या होगा ये आप भी समझ सकते हो|
आरोप किस पर नही है| अगर नाराज़गी बताने का यही तरीका है तब तो राहुल और कॉंग्रेस नेताओ को किसी ने ८४ के दंगो और भ्रास्तचार के लिए किसी ने थप्पड़ क्यो नही मारा| इनका इतिहास लिखने जाएगे तो साल गुजर जाएगे|बीजेपी नेताओ के गुजरात दंगो, बेल्लारी माइनिंग, कारगिल कॉफिन.....| इनकी भी लिस्ट छोटी नही है|
और हमारी मीडीया का तो कोई जबाब नही| कहते है ये लोकतत्र का एक स्तंभ होता है| ये कैसा स्तंभ है जो २ महीने पहले तक इसे(केजरीवाल और आप) एक नयी सोच बता रहा था और जैसे ही लोकसभा चुनाव नज़दीक आए, वो CIA एजेंट और जाने क्या क्या हो गये| कोई अचरज नही होगा, अगर चुनाव के दिन तक ये उनकी अमेरिकी नागरिकता भी साबित कर दे तो| चुनाव आते ही ये पत्रकारिता कम, और विग्यापन की दुकान ज़्यादा बन जाते है|अगर पिछले एक दसक के इन सबके चुनावी विग्यापनो को देखे तो अब तक इस देश मे सब कुछ हो जाना चाहिए था| चलिए कुछ दिन की बात और है, १६ मई तक|
रवीश जी,
ReplyDeleteएनडीटीवी पर उत्तर प्रदेश में भाजपा को ५३ सीटें और बसपा को मात्र ७ सीटें मिलने की भविष्यवाणी देखकर मैं भौंचक रह गया था। लगा कि इन न्यूज चैनलों की भीड़ में एक जो संजीदा चैनल है वह क्या कर रहा है। आपका यह लेख पढ़कर अच्छा लगा। मेरा शुरू से मानना रहा है कि सपा को १५ सीटें तो कम से कम मिलेंगी ही और बसपा तीस से कम नहीं आएगी। मुझे लगता है कि कांग्रेस को रालोद समेत दस सीटें मिल सकती हैं। अब बाकी बची २५ बस इसी के बीच भाजपा सिमटेगी।
धन्यवाद,
शंभूनाथ शुक्ल
रवीश जी,
ReplyDeleteएनडीटीवी पर उत्तर प्रदेश में भाजपा को ५३ सीटें और बसपा को मात्र ७ सीटें मिलने की भविष्यवाणी देखकर मैं भौंचक रह गया था। लगा कि इन न्यूज चैनलों की भीड़ में एक जो संजीदा चैनल है वह क्या कर रहा है। आपका यह लेख पढ़कर अच्छा लगा। मेरा शुरू से मानना रहा है कि सपा को १५ सीटें तो कम से कम मिलेंगी ही और बसपा तीस से कम नहीं आएगी। मुझे लगता है कि कांग्रेस को रालोद समेत दस सीटें मिल सकती हैं। अब बाकी बची २५ बस इसी के बीच भाजपा सिमटेगी।
धन्यवाद,
शंभूनाथ शुक्ल
रवीश जी नमस्कार,
ReplyDeleteमैं टीवी नहीं देखता.
Sabhi rajnitik partiyon ko meri shubhkamnaye.
ReplyDeleteJo ho rha hai accha hai aur jo hone wala hai wo bhi accha hi hoga aisi kamna karta hoon.
Jai chunav jai voter aur jai mere mahan netao ki. Band baja chunav. .....
Anas ji kee TV na dekhne kee baat samajh me nahi aayee.Sambhunath ji ne BSP 10 seats jyada de di hai. Baqi to theek hai +_ 3 ka tolerance ke sath.
ReplyDeleteRavish ji, Jabse thoda bahut politics samjhne laga hoon, Media reporting se bahut dukhi rahata tha. Aap ka andaz thoda alag laga. sare reporters ko chhodkar keval aap ko cover karta tha. par aapse bhi wahi ek shikayat thi, field par koi kaam nahi, halanki aapne apni ghutan kabhi nahi chhupai. Lekin aapne jo kaam abhi shuru kiya hai wo lajawab hai. ab lagata hai ki media ko aap sahi raste par le aayenge. mai aapke kaam se abhibhoot hoon. mai tareef nahi kar pa raha hoon kyoki ye meri aadat nahi rahi hai. Chunav ke bad bhi is programme ko band nahi kariega, yahi asli reporting hai.
ReplyDeleteek aur baat AAP par mujhe aapke vichar janane hai, patrakar ke nate nahi vyakti ke nate.
Ravishji BJP ya kisi aur ki seats ka ganit samfhane ki bajay vote percentage kka ganit samjhaeye apne readers ko. Psephology aapki samajh me aati hogi, mujhe doubt hai. 18 % vote pe pichli baar Congress 20 le aayi thi aur BJP 10. Isliye seat na dekhiye. BJP ka vote % badh raha hai ye saaph dikhta hai jagah jagah ghoom kar. 32 se oopar gaya to apratyashit parinaam dekhne ko mil sakte hain. Khair ye ganit hai bhavnayein sabhi apne apne paas rakhein.
ReplyDeleteYe awaited lekh hai mere liye ..bahut intjaar tha ki aap aajkl k survey par likhenge...nhi to mera to viswas hi uth gya tha tv news walo se ..jabse ye log BJP ko 50 seat de rhe the UP me ...dhnyawad ye likhne k liye
ReplyDeleteरवीश भाई,
ReplyDeleteइस चुनाव मे, बाकी लोगो के साथ-साथ मीडिया भी अगिआ बैताल हुए जा रही है।
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ReplyDeleteमोदी जी की सभाओं के चित्र देखकर अच्छे-अच्छों के दिमाग हिले हुए हैं, स्वाभाविक है कि कलपना-तड़पना-बडबडाना जैसे पागलपन के लक्षण तो दिखाई देंगे ही...
ReplyDeleteइसलिए मित्रों... कांग्रेसियों-सेकुलरों-वामपंथियों-दल्ले पत्रकारों-बुद्धिजीवियों की मानसिक हालत पर तरस खाईये... थोड़ा संभाल-संभालकर पुचकार-पुचकार कर मारिये...
कांग्रेस, सपा, बसपा, एनसीपी. आ.आ.पा. आदि सब पार्टिया सिर्फ मुसलमान ..मुसलमान का रट लगाये जा रही है .. इन्हें हिन्दुओ का वोट नही चाहिए क्या ??
ReplyDeleteफिर भी इतने अपमान के बाद भी हिन्दू न जाने क्यों इन पार्टियों को वोट देते है
umdaaaa.....
ReplyDeleteरविश जी, आपका विश्लेषण ठीक है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जहाँ मुस्लिम आबादी २५-३० प्रतिशत है वहां बीजेपी सीधे-सीधे हिन्दू के नाम पर वोट मांग रही है. हकीकतन हिन्दुओं को डरा रही है.RSS के सखा से छूटकर सीधे घर-घर कुप्रचार हो रहा है. यहाँ तक की निकर भी नहीं बदल रहे.
ReplyDeleteबिहार की स्थिति कुछ अलग है. वहां एक बात तय है -अगर मतदान का प्रतिशत 60% से उप्पर गया तो नितीश कुमार बजी मार लेंगे. यादवों और स्वर्ण जातिओं के अलावां वहां नितीश की आलोचना बहुत कम ही लोग करते हैं. अधिकांश दलित, मुस्लिम, अति पिछड़े और कुर्मी नितीश के साथ हैं और होना भी चाहिए.नितीश के वोटर मुखर नहीं हैं. सुशिल और नरेन्द्र (मोदी) मिलकर वहां दूसरी रणनीति पे काम कर रहे हैं. स्वर्ण जातियां सुशिल मोदी से काफी नाराज हैं. हालाँकि उनके पास कोई विकल्प नहीं बचा है बीजेपी के अलावां. इसके दो कारन है- 1. उन्हें पता है कि corporatization से सरकारी रोजगार में कमी होगी और निजी क्षेत्र से सीधे उन्हें फायदा होगा.
2. अन्य पार्टिओं की तुलना में बीजेपी में अभी उनके लिए स्पेस है.
Ravish Ji I think this time BJP will get 40-45 seats in U.P. Because still the caste factor is coming strongly in the way. Still Dalit are with Mayawati and OBC are with Mulayam singh and the muslim vote is divided in these three parties.
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ReplyDeleteChunaavi mausam mai Ravish ji aapko Gaon aur Dehato mai ghoomte dekh kar achaa lagta hai.Ye wo mausam hai jab aap apne delhi wale studio ko bye bye karke gande nale,tute makaan,aviksit basti dalit aur alpasankhyak tole aur kasqe mai vicharan karna shuru kar dete hai.Achaa lagta hai...kyuki aap bhi 'Primetime'karte karte bore ho gaye hai.Aap samasya to ginate hai par Solution kyu nahi batate.Journalist ki job job kitni pyari hoti hai:Innova Gadi,Cameraman,heavy Make-up,do char sawaal,thoda Pravachan aur gyan diya fir conclude karke camera samet wapis Delhi.Waise mai aapke hindi lekhan ka kayal hoo.Par aap aashawadi nahi nirashawaadi jyada prateet hote hai.JNU se padhe hone ke karan aapke ideology mai communist wala effect koi bhi turant samajh sakta hai.Aapki TRP to adhik hai pad sirf karne ke liye programme karna ab boring lagta hai.waise aajkal aap bahut pareshan lagte hai ki BJP UP mai kaise jeet sakti hai,wo 16 may ko pata chal jayegaa....baaki jo hai u ta haiye hai...:)
ReplyDeleteSIR JI aapne kafi had tak Uttar Pradesh ke logo ki taklif samne rakh di hai ,par abhi bhi "SIR JI picture to abhi baki hai".
ReplyDeleteतर्कसंगत विश्लेषण के साथ आपने जो कुछ लिखा है उससे आपकी वस्तुपरक दृष्टि का पता चलता है । आपके चैनल के आकलन से बिल्कुल भिन्न आपका नज़रिया हैरतअंगेज़ है ।
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ReplyDeleteअगर मीडिया के अनुसार देखें तो बहुजन समाज पार्टी सबसे पिछड़ी नजर आ रही है। लेकिन इस समय बहुजन समाज पार्टी की जमीनी हकीकत, जो मैने देखी है वो सबसे मजबूत है। मायावती ने इस बार अपनी बेजोड़ सोसल इंजीनियरिंग से एक नया प्रयोग किया है। अपने दलित+ब्राम्हण(30%) वोटबैंक के बजाय वो इस बार दलित+मुस्लिम(40%) गठजोड़ बनाने पर लगी हैं। इसमें उनको बहुत हद तक सफलता भी मिल चुकी है। मायावती को आज ही बरेली के मुस्लिम धर्म गुरु तौकीर रजा का समर्थन मिल गया है। जिनका केजरीवाल से सम्बंध रहा है। उन्होंने इस बार मोदी के रथ को रोकने का सबसे बड़ा हथियार हाथी को ही बनाया है। इसके पहले बसपा को दिल्ली की जामा मस्जिद के साही इमाम बुखारी, जमियत-ए-उलेमा हिन्द के मुखिया महमूद मदनी और अन्य मुस्लिम संगठनो का साथ मिल चुका है। सभी ने मोदी को रोंकने के लिए बसपा को वोट देने की बात कह दी है। बसपा को सफलता के लिए दो-तीन बातों को संभालना होगा। जैसे अपने को भाजपा का नंबर एक दुश्मन बताना, जो 15 जनवरी की रैली में मायावती ने कहा भी था। और भाजपा से पिछले रिश्तों को याद ना आने देना। दूसरी बात अपने जागरूक दलित वोट को उदिटराज जैसे लोगों के झांसे में ना आने देना। तीसरी और महत्वपूर्ण बात उसे मुलायम पर छोड़ देनी है। मतलब मुलायम मोदी को मुसलमानों का कट्टर दुश्मन बताते रहें और खुद कांग्रेस और सपा की पिछली नाकामियों को गिनाती रहें। हालांकि इसमें कुछ रिस्क भी है। जैसे हिन्दुत्व का हावी होना भाजपा को फायदा पहुँचा सकता है। या इस दौर में मुस्लिम कांग्रेस को अपना साथी ना मान बैठे। वहीं अगर बसपा के पुराने गणित दलित+ब्राम्हण की बात की जाए, तो वो इस बार नहीं चलेगा।
ReplyDeleteइस बात का अहसास बसपा को भी है। क्योंकि ब्राम्हण वोट इसबार मोदी की लहर में आ गया है। इसीलिए बसपा ने टिकट बंटवारे में सबसे सफल प्रयोग कर दिया है। 18-18 मुस्लिम और ब्राम्हण उम्मीदवार उतार दिए हैं। इस सोसल इंजीनियरिंग में अगर बसपा को उसके प्रत्याशी के नाम पर कुछ ब्राम्हण वोट मिल गए तो यह उसके लिए बोनस जैसा होगा। उसने इसी को ध्यान में रखते हुए अति-पिछड़ा वर्ग के कांशीराम के पुराने साथियों रामसमुझ पासी और किशनपाल को अपने साथ लाने का प्रयास भी कर लिया है। उसका कैडर और कार्यकर्ता पूरी तरह से तैयार हैं। कमलेश दिवाकर और रामप्रकाश कुशवाहा जैसे पूर्व विधायकों ने पूरी तरह से तैयारी शुरु कर दी है। अगर बहन जी के दांव पूरी तरह से सही बैठ गए तो तहलका की उस स्टोरी को मैं भी जमीन पर महसूस कर रहा हूँ, कि मोदी के सपनों पर बसपा ही पानी फेर देगी।
अब अगर मैं मोदी या भाजपा की बात करूं तो यह निश्चित तौर पर कह सकता हूँ कि भाजपा इसबार अपने पिछले प्रदर्शन के मुकाबले बहुत सुधार करने जा रही है। अमित शाह के आने केबाद से भाजपा में एक नई जान आ गई है। लेकिन मोदी लहर को अभी पिछले हफ्ते ही तब एक बड़ा झटका लगा जब टिकट बंटवारा हुआ। यूपी में टिकट बंटवारे में कलराज मिश्र, जोशी और लालजी टंडन सरीखे नेता झंखार की तरह उलझे हैं। हर सीट पर कई दावेदार होने की वजह से भाजपा ने कुछ को असंतुष्ट तो किया ही है। सब अपने-अपने लिए सुरक्षित सीट भी मांग रहे थे। कानपुर में ही जोशी को श्रीप्रकाश जायसवाल से ज्यादा सतीश महाना से लड़ना पड़ेगा। राजनाथ को लालजी से, भोले(अकबरपुर, कानपुर देहात) को अरुण तिवारी बाबा से। इसी तरह भाजपा को बाहर से लाए हुए नेताओं पर की गई मेहरबानी महगी पड़ेगी। जमीनी स्तर पर भाजपा अब पहले के मुकाबले कमजोर पड रही है। इस तरह से देखा जाए तो इस बार यूपी के चुनाव सबसे मजेदार और दिलचस्प होने वाले हैं। हर दल और नेता अपनी ताकत झोंके हुए हैं, लेकिन जनता अपना वोट किसे देगी? यह तो भविष्य के गर्भ में छुपा है। लेकिन इसबार यूपी पर होने वाला हर सर्वे गलत साबित होगा। भाजपा और बसपा में टक्कर हो रही है। लेकिन मीडिया इसे स्वीकारने को तैयार नहीं हैं। वो कहीं और ही अपनी नजर लगाए बैठा है।
ये मीडिया हाउस में बैठे लोग चाय का प्याला पीते पीते भाजपा को ४० से ५० सीट दिला देते हैं और कह देते हैं मोदी की लहर है इनको यूपी की राजनीति की सच्चाई नहीं पता यहाँ की राजनीति को समझने के लिए जाति की जडो में। घुसना पडता है , भाजपा जिस मोदी हवा की बात कर रही है वो बड़े शहरों तक में भाजपा को सीट निकालने में पसीने छूट रहे हैं, राजनाथ को ही ले लो लखनऊ में ब्रहम्ण बटा है वो भाजपा के नाम पर राजनाथ को वोट नहीं देना चाहता वो सजातीय उम्मीदवार पर दांव लगाना चाहता है, मिश्रा को लालजी टंडन अन्दर से समर्थन कर रहे हैं और राजनाथ अगर हार जाएं तो कोई बड़ी बात नहीं। ठीक ऐसा ही बाकी जगह है
ReplyDeleteअब बात कर ले सपा ओर बसपा की, बसपा का वोट क्या है सबको पता है, दलित में जाटव है वो बसपा का है लेकिन दलितों में जो ओर जातियाँ हैं वो इधर उधर है वो बसपा का स्थाई वोट नहीं वो कभी सपा कभी भाजपा कभी कोंग्रेस, अगर वो वोट भाजपा को जाता है तो बसपा लडाई से। बाहर फिर लड़ाई सपा ओर भाजपा में होगी मगर मोदी की कथित मीडिया वहर का आलम ये है कि भाजपा का इनकी ओर कोई ध्यान नहीं है एसे में इन वोटों को सपा अपनी ओर करने में लगी हैं चूंकि प्रदेश में सरकार भी है तो उसका असर है कि लोग सत्ता पक्ष में अपना फायदा देख रहें हैं, की अभी ३ साल ओर है तो सपा में जाने से काम सही बनेगा अगर ऐसा हुआ तो मुलायम सिंह ३० सीट तक पहुंच जाओगे ओर बसपा को भारी नुकसान होगा, यहाँ में गैर जाटव दलित की बात कर रहा हूँ, अफ बात करते हैं मुस्लिम समुदाय के वोटों की जो ३६ सीट पर जीत की निर्णायक भूमिका निभाता है, एर प्रदेश की ५० सीट पर सीधा प्रभाव डालता है, मुस्लिम समुदाय सपा से नाराज जरूर था वो भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश का मुजफ्फरपुर, शामली, बागपत, किराना, सारनपुर इधर वाला लेकिन वो भाजपा को हराना चाहता है तो वो जिताउ उम्मीदवार पर जाएगा और जिताउ उम्मीदवार में अगर सपा की ओर गया तो सपा का काम बन सकता है, बाकी प्रदेश में मुस्लिम सपा के साथ है खासकर भाजपा को हराने के लिए। ओर यादव कहीं जाओगे नहीं वो सपा के साथ ठीक वैसे ही खड़े हैं जैसे जाटव बसपा के साथ, गैर यादव पिछडावर्ग में भी सपा की सेंधमारी चल रही है तो वो भी सपा की ओर रुख कर सकते हैं, राजपूत भाजपा के साथ है एक दो जगह छोड़कर जैसे, प्रतापगण वहाँ राजा भैया है एक जगह राजेन्द्र चौधरी हैं तो कुलमिलाकर जाति का खेल है जिसके पास जितनी अधिक जाति वो उतनी अधिक सीट लेकर आने वाला है, सर्वे २००४ , २००९ की तरह औंधे मुह गिरेगे इसबात की में गारटीं देता हूँ। जिसे भरोसा न हो वो चुनाव बाद बात कर ले मुझसे।
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