कानपुर लखनऊ राजमार्ग पर यह चाय की दुकान मौजूद है । इस शख़्स को अपनी दुकान के एकांत में इस तरह बैठा देख देर तक देखता रहा । कोई नई बात तो नहीं है । ऐसे लोग तो बहुत हैं । अंतिम आदमी की तरह बैठे इस शख़्स के क़रीब गया तो साँस की तकलीफ़ से काँप रहा था । छाती ज़ुबान को खींच ले रही थी ।
इन्होंने बताया कि दिन में बीस रुपया कमा लें बहुत है । इतनी धूल है कि कोई आता नहीं । बस इस बुढ़ापे में एक जगह मिल गई है । वोट दे देंगे । किसे देंगे मालूम नहीं । अख़बार ख़रीद नहीं सकते । हम तो बस चाय बेचते हैं । इनकी दुकान के वक्त अंबेडकर की एक मूर्ति लगी थी । बिल्कुल इनकी तरह सिकुड़ कर छोटी हो चुकी मूर्ति । मूर्ति के नीचे शराब की छोटी बोतलें गिरी थी । अंतिम आदमी की आँखें नाच रही थीं । हम दोनों एक दूसरे को अपराधी की निगाह से देख रहे थे ।
थोड़ी देर बाद कानपुर इलाहाबाद मार्ग पर शुक्ला ढाबा पर था । वहाँ चाय की यह प्याली आई । पूछा कि नीचे सिल्वर पत्ती क्यों लगी है । प्याला रिस रहा है क्या । नहीं सर । शोभा के लिए है । चाय चाय का फर्क है बाबू ।
प्याला बहुत सुन्दर है
ReplyDeleteGaribi ek bahut bada abhishap hai sir ji.
ReplyDeleteRavish ji good morning kya bidumbna hai humari humlog Modiji, ko PM banane ke liye hode me lage hai sayad ye satta ke chaounkidar kam se kam 5 sal me ek bar bhi to hal chal puchneaa jate inki.....
ReplyDeleteरवीश जी !
ReplyDeleteइस चुनावी मौसम में चाय दो प्रकार की होती है - धर्म निरपेक्ष और साम्प्रदायिक !
SIR JI mere ghar me apka swagat hai.
ReplyDeleteThis is sangam station SIR JI,
enjoy it throughly.
Sir allahabad aa rahe hai kya?
ReplyDeleteSir,Us din aapka saharanpur wala P.T. episode dekh ke ye idea aaya tha,k agar har aise ek gaanv me shahar ka padha likha koi 1 noajwaan ja k bas jaay,Ya bas na paay to kam as kam hafte me 1-2 bar ja k wahan k logon ki preshaniyan,Asiksha Door krne k liye kuch kaam krta rahe,,Ashiksha choonki jad hai samaj ki adhiktar buraiyon ki,,,,To sir aise ganvon ki stithi kaafi kuch sudhar skti hai......Mai b koshish krunga sir insha ALLAH.
ReplyDeletei am an ardent reader of ur blogs......i have been to kanpur via lucknow ....seen the small....so called shops by so old fragile people......its really sad....have also been to shukla dhaba n agree with the diff.
ReplyDeleteModi ko post kary sir
ReplyDeleteAaj k abhigyan prakash k opinion poll ne ndtv ko india tv category me pahuch gyi hai ...ravish sir se savinay nivedan hai ki ndtv se jitna jald ho saje resign kar de..
ReplyDeleteRavish jee...aap ka journalism kae koi shanee nahee......aap aisae hee kaam kartae rahiyhae.......
ReplyDeletekhud ko chai wala btakar chai waale gareebon ke naam par vote mangne waalon sharam karo
ReplyDeleteUmeed h k aapne chai antim aadmi ki dukaan par b p hogi..............
ReplyDelete1 Pyali mri trf se b p lete .....kbi milta aapse to udhaar chuka deta .......
जो कच्चा पीने वाला है उनकी ममता घट/प्यालों पे...जो सच्चा पीने वाला है...कब रोता है चिल्लाता है?...जो बीत गई सो बात गई...
ReplyDeleteकलीयुग ऐसे अंतिमों के लीये ही आया है...
Jusice-Mind your own business.
ReplyDeleteKnow then think then act then make happen then learn but never be unjust.
आजकल चाय पीने , चाय पिलाने और चाय बेचने के लिए भी हौसला चाहिए . निर्भर करता है की चाय पी कौन रहा है और चाय पिला कौन रहा है ????????????
ReplyDeleteVikas ka naam aata hai tu mera gaun dumri muzaffarpur bihar mere aankhun ke saamne aajata hai hum wahan ab bhai lakhandai nadi ku paar karte hain baans ke pool se pool paar karne ke baad ek waisa hi chai wala wahan bhi nazar aajyga.khair vot tu phir bhi miljayga in rajnetauon ku. Jai hind jai bharat
ReplyDeleteसर आपकी इसी पत्रकारिता का प्रशंसक हूँ मैं, अन्दर से झकझोर देती है आपकी पत्रकारिता। सर एक जमाना हो गया टृवीट नहीं किया आपने, वहाँ भी थोड़ा कुछ डाला कीजिए।
ReplyDeleteपूरा ब्लॉग पढ़ा, मज़ा आ गया, आपने बनारस की आत्मा को पहचान लिया है, ऐसा लगता है.......ऐसे ही लिखते रहें.....
ReplyDeleteरवीश जी....आप बेहद अच्छा लिखते हैं, पूरा ब्लॉग पढ़ा, लगा जैसे फिर बनारस पहुँच गया....काशी की गलियों और चौराहों, पर चाय पीते पान खाते जैसी चर्चाएँ सुनी वैसा ही कुछ यहाँ पढ़ने को मिला...अच्छा लगा....यूँ ही लिखते रहें....
ReplyDelete