मुसलमान बदल गए मगर मीडिया के कैमरों का मुसलमान आज तक नहीं बदला । उसके लिए मुसलमान वही है जो दाढ़ी, टोपी और बुढ़ापे की झुर्रियाँ के साथ दिखता है । इस चुनाव के कवरेज में मीडिया ने एक और काम किया है ।मोदी के ख़िलाफ़ विपक्ष बना दिया है । जैसे बाक़ी समुदायों में मोदी को लेकर शत् प्रतिशत सहमति है सिर्फ मुसलमान विरोध कर रहे हैं । पूरे मुस्लिम समुदाय का एक ख़ास तरह से चरित्र चित्रण किया जा रहा है ताकि वह मोदी विरोधी दिखते हुए सांप्रदायिक दिखे । जिसके नाम पर मोदी के पक्ष में ध्रुवीकरण की बचकानी कोशिश हो ।
जिन सर्वे में बीजेपी विजयी बताई जा रही है उन्हीं में कई राज्य ऐसे भी हैं जहाँ बीजेपी को शून्य से लेकर दो सीटें मिल रही हैं । तो क्या मीडिया का कैमरा उड़ीसा के ब्राह्मणों या दलितों से पूछ रहा है कि आप मोदी को वोट क्यों नहीं दे रहे हैं । क्या मीडिया का कैमरा तमिलनाड के पिछड़ों से पूछ रहा है कि आप मोदी को वोट क्यों नहीं दे रहे हैं । क्या मीडिया लालू या मुलायम समर्थक यादवों से पूछ रहा है कि आप मोदी को वोट क्यों नहीं दे रहे हैं । मीडिया का कैमरा सिर्फ मुसलमानों से क्यों पूछ रहा है ।
ऐसे सवालों से यह भ्रम फैलाने का प्रयास होता है कि मोदी के साथ सब आ गए हैं बस मुसलमान ख़िलाफ़ हैं । जबकि हक़ीक़त में ऐसा नहीं है । ग़ैर मुस्लिम समाज में भी अलग अलग दलों को वोट देने का चलन है उसी तरह मुस्लिम समाज भी अलग अलग दलों को वोट देता है । अलग अलग दलों को एक एक मुस्लिम वोट के लिए संघर्ष करना पड़ता है । जबकि यह भी एक तथ्य है कि मुसलमान बीजेपी को वोट देते हैं । हो सकता है प्रतिशत में बाक़ी समुदायों की तुलना में कम ज़्यादा हो ।
लेकिन ऐसे सवालों के ज़रिये मुसलमानों की विशेष रूप से पहचान की की जा रही है कि अकेले वही हैं जो मोदी का विरोध कर रहे हैं । सब जानते हैं कि मुसलमान वोट बैंक नहीं रहा । उसने यूपी में बसपा को हराने के लिए समाजवादी पार्टी को इसलिए चुना क्योंकि अन्य समुदायों की तरह उसे लगा कि सपा ही स्थिर सरकार बना सकती है । बिहार में उसने शहाबुद्दीन जैसे नेताओं को हराकर नीतीश का साथ इसलिए दिया क्योंकि वह एक समुदाय के तौर पर विकास विरोधी नहीं है । वह भी विकास चाहता है। मुसलमान सांप्रदायिकता का विरोधी ज़रूर है जैसे अन्य समुदायों में बड़ी संख्या में लोग सांप्रदायिकता का विरोध करते हैं । जहाँ बीजेपी सरकार बनाती है वहाँ मुसलमान उसके काम को देखकर वोट करते हैं । मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के बारे में तो कोई नहीं कहता कि मुसलमान उन्हें वोट नहीं करता । राजस्थान में मुसलमानों ने कांग्रेस की नरम सांप्रदायिकता को सबक़ सीखाने के लिए बीजेपी को वोट किया । वहाँ बीजेपी ने चार उम्मीदवारों को टिकट दिया था और दो जीते ।
इस पूरे क्रम में बीजेपी और संघ परिवार की नीतियों के संदर्भ में उसे नहीं देखा जाता है । किसी नेता या विचारधारा से उसका एतराज़ क्यों नहीं हो सकता । क्या मुसलमान सिर्फ एक राज्य के दंगों की वजह से संदेह करता है । राजनीति का इतना भी सरलीकरण नहीं करना चाहिए । क्या मीडिया को मुसलमानों से ऐसे सवाल करने से पहले उसके एतराज़ के इन सवालों को नहीं उठाना चाहिए । टीवी की चर्चाओं में युवा मतदाता है पर उनमें युवा मुस्लिम मतदाता क्यों नहीं है । दलित युवा आदिवासी युवा क्यों नहीं है । इसलिए मीडिया को किसी समुदाय को रंग विशेष से रंगने का प्रयास नहीं करना चाहिए ।
बीजेपी ने यूपी के जिन चौवन उम्मीदवारों को टिकट दिये उनमें एक भी मुसलमान नहीं है । बिना भागीदारी मिले सिर्फ मुसलमानों से यह सवाल क्यों किया जाता है कि आप अमुक पार्टी को वोट क्यों नहीं करते । राजनीतिक गोलबंदी बिना भागीदारी के कैसे हो सकती है । देवरिया से कलराज मिश्र को टिकट मिले पर शाही समर्थकोँ को नाराज़ होने की छूट है तो एक भी टिकट न मिलने पर मुसलमानों को नाराज़ होने की छूट क्यों नहीं है ।
मीडिया को मुसलमानों को चिन्हित नहीं करना चाहिए । उसके हाथ से यह काम जाने अनजाने में हो रहा है । नतीजा यह हो रहा है कि चुनाव मुद्दों से भटक रहा है । ध्रुवीकरण के सवालों में उलझ रहा है जिससे हिन्दू को लाभ है न मुस्लिम को । अब मीडिया को बनारस बनाम आज़मगढ़ के रूप में ऐसे रूपक गढ़ने के और बहाने मिल गए हैं । पाठक दर्शक और मतदाता को इससे सचेत रहना चाहिए । मतदान के साथ साथ सामाजिक सद्भावना कम महत्वपूर्ण नहीं है । बल्कि ज़्यादा महत्वपूर्ण है ।
(यह लेख आज के प्रभात ख़बर में प्रकाशित हो चुका है)
Inhi sab khabron ki vajah se media bhi biki hui jaan padtee hai.khair media bhi ek business hai aur business man hamesha satta ke saath rahna chahta hai.aisa lag raha hai ki next pm modi
ReplyDeletehonge isliye sabhi modi lahar batane ki koshish kar rahe hain
Inhi sab khabron ki vajah se media bhi biki hui jaan padtee hai.khair media bhi ek business hai aur business man hamesha satta ke saath rahna chahta hai.aisa lag raha hai ki next pm modi
ReplyDeletehonge isliye sabhi modi lahar batane ki koshish kar rahe hain
कल जब किसी पत्रकार भाई ने मुख़्तार साहब से उत्तर प्रदेश में मुसलमान प्रत्याशियो की संख्या पूछी तो पार्टी प्रवक्ता ने कहा की " भरपाई होगी ,सूद -मुल -ब्याज समेत सत्ता में आने के बाद। " सम्भावना तलाशते रहिए या यूँ कहिए की ख्याली पुलाव पकते रहे।
ReplyDeleteवर्ग विषमता और भारतीय मुसलमानों का वोट बड़ा मुद्दा हैं।
रविश जी, सादर प्रणाम, आज आपका NDTV पे बनारस के ऊपर प्रोग्राम देखा। बिलकुल सही आप ने बनारस को पकड़ने की (समझने की ) कोशिश की हैं। बनारस, सिर्फ एक हिन्दू धर्म का केंद्र नहीं हैं, ये कबीर जैसे नास्तिक की भी धरती हैं, जो मरने के लिए काशी छोड़कर मगहर चले गये थे, कुछ दिनों से और चैनल्स पे, केवल इसे हिन्दुत्व से जोड़ा जा रहा था एक चैनल पे एंकर चिला रही की मोदी जी ने सॉफ्ट हिन्दुत्व को प्रोजेक्ट किया हैं, इसलिए बनारस चुना हैं, तरस ही नही, गुस्सा भी आ रहा था ऐसी घटिया एनालिसिस पे। एक खाटी बनारसी होने के नाते अपने विश्व के प्राचीनतम शहर की विरासत पे गर्व करते हुए, में इस बात को समझ नही पा रहा था की मेरा शहर कैसे, केवल हिंदुत्व की पहचान बन गया. कैसे केवल ये , मन्दिर का शहर हो गया। गौतम बुद्ध के, बनारस के सारनाथ में, दिए गये उपदेश को, रविदास जी के उपदेश को किसी भी एंकर ने बताया नही। बनारस की मस्जिदों और चर्च(बनारस में नॉर्थ इंडिया का सबसे बड़ा चर्च हैं ) के बारे में सब ऐसे मौन हो गये, जैसे की किसी ने उनके मुह पे टेप लगा दिया। यहॉ जैन मन्दिर हैं, जैन पाशर्वनाथ घाट हैं। घोर मूर्ति पूजा विरोधी, आर्यसमाज, का पाड़िनी कन्या महाविद्यालय हैं। ये एक धर्मनिरपेक्ष शहर हैं, यहॉ हिन्दुओ ने एक मुस्लिम (स्व श्री स्वेलहा अंसारी ) को अपना मेयर बनाया हैं. पर यहॉ की धर्मनिरपेक्षता आयतित नहीं हैं , शुद्ध खांटी बनारसी हैं जिसे तथाकथित धर्मनिरपेक्ष विद्वान् समझ नही पाते हैं ( जिनके अनुसार धर्मनिरपेक्षता का मतलब, भारतीय संस्कृति का मजाक उड़ाना, से ज्यादा कुछ नहीं हैं ). ये शहर बंगाली , गुजरती , महराष्ट्रियो और दक्षिण भारतियों का भी हैं, जो कई पीढ़ियों से बसे हैं, जिनकी संख्या 1 लाख के आस पास हैं। यहॉ जब आंतकवादियों ने जब संकटमोचन मंदिर में विस्फोट किया था, तो भारत रत्न बिस्मिल्लाह खान ने, उन्हें टीवी कैमरो के सामने, माँ -बहन की गलियों दी थी.
ReplyDeleteरविश जी, सादर प्रणाम, आज आपका NDTV पे बनारस के ऊपर प्रोग्राम देखा। बिलकुल सही आप ने बनारस को पकड़ने की (समझने की ) कोशिश की हैं। बनारस, सिर्फ एक हिन्दू धर्म का केंद्र नहीं हैं, ये कबीर जैसे नास्तिक की भी धरती हैं, जो मरने के लिए काशी छोड़कर मगहर चले गये थे, कुछ दिनों से और चैनल्स पे, केवल इसे हिन्दुत्व से जोड़ा जा रहा था एक चैनल पे एंकर चिला रही की मोदी जी ने सॉफ्ट हिन्दुत्व को प्रोजेक्ट किया हैं, इसलिए बनारस चुना हैं, तरस ही नही, गुस्सा भी आ रहा था ऐसी घटिया एनालिसिस पे। एक खाटी बनारसी होने के नाते अपने विश्व के प्राचीनतम शहर की विरासत पे गर्व करते हुए, में इस बात को समझ नही पा रहा था की मेरा शहर कैसे, केवल हिंदुत्व की पहचान बन गया. कैसे केवल ये , मन्दिर का शहर हो गया। गौतम बुद्ध के, बनारस के सारनाथ में, दिए गये उपदेश को, रविदास जी के उपदेश को किसी भी एंकर ने बताया नही। बनारस की मस्जिदों और चर्च(बनारस में नॉर्थ इंडिया का सबसे बड़ा चर्च हैं ) के बारे में सब ऐसे मौन हो गये, जैसे की किसी ने उनके मुह पे टेप लगा दिया। यहॉ जैन मन्दिर हैं, जैन पाशर्वनाथ घाट हैं। घोर मूर्ति पूजा विरोधी, आर्यसमाज, का पाड़िनी कन्या महाविद्यालय हैं। ये एक धर्मनिरपेक्ष शहर हैं, यहॉ हिन्दुओ ने एक मुस्लिम (स्व श्री स्वेलहा अंसारी ) को अपना मेयर बनाया हैं. पर यहॉ की धर्मनिरपेक्षता आयतित नहीं हैं , शुद्ध खांटी बनारसी हैं जिसे तथाकथित धर्मनिरपेक्ष विद्वान् समझ नही पाते हैं ( जिनके अनुसार धर्मनिरपेक्षता का मतलब, भारतीय संस्कृति का मजाक उड़ाना, से ज्यादा कुछ नहीं हैं ). ये शहर बंगाली , गुजरती , महराष्ट्रियो और दक्षिण भारतियों का भी हैं, जो कई पीढ़ियों से बसे हैं, जिनकी संख्या 1 लाख के आस पास हैं। यहॉ जब आंतकवादियों ने जब संकटमोचन मंदिर में विस्फोट किया था, तो भारत रत्न बिस्मिल्लाह खान ने, उन्हें टीवी कैमरो के सामने, माँ -बहन की गलियों दी थी.
ReplyDeleteये तो रही पुरानी बाते, यदि आज की बात करे तो काशी हिन्दू यूनिवर्सिटी, तो आज देश की एक अग्रणी यूनिवर्सिटी हैं(एक मजेदार बात ये हैं की यहों के अति जागरुक अध्यापक जो अधिकांश चैनल्स पे गला फाड़ते नजर आयेगे, वो वोट नहीं देते हैं यूनिवर्सिटी कैंपस में आज तक, 15%से जायदा वोट कभी नहीं पड़ा,(चाहे मोदी लडे चाहे जोशी) जब की अधिकांश के पास बड़ी कारे हैं और बूथ भी कैंपस में ही बनता हें) कभी BHU का कोई प्रोफेसर आपसे टकराये, तो ये जरुर पूछियेगा, की वो वोट, क्यों नही देता हैं, केवल, टीवी चैनल्स पे चिल्ला-चिल्ला के, घर में घुस जाता हैं। इसी तरह यहो डीजल रेल कारखाना (DLW) है, जहा भारतीय रेल के लिए, डीजल इंजन बनता हैं, यहों भी वोटिंग प्रतिशत बेहद कम रहता हैं(20 % से कम ), चैनल वाले, तो ऐसा धर्म का तड़का लगा रहे हैं, जैसे हर बनारसी,या तो, कट्टर हिन्दू या कट्टर मुस्लिम हैं, गलत हैं ये। यहाँ भी मध्यम वर्ग रहता हैं, जिसके बच्चे US में हैं, यूरोप में हैं, बेहद नामी BHU-IT हैं, जो की IIT हो चूका हैं। AIIMS से भी बड़ा मेडिकल कॉलेज हैं ,कई मल्टीप्लेक्स हैं जिसमे बनारसी, पिज्जा खाते हैं।(दिखाया तो ऐसे जा रहा हैं , की हम बनारसी केवल पान खा के जीते हैं ) बनारसी लडकियों भी जीन्स पहनती हैं, लडको के साथ(चोरी छिपे) लडको के साथ मल्टीप्लेक्स जाती हैं, फैशन में कही से मेट्रो गर्ल्स से कम नही होगी। अतः मोदी जी की जीत को(जो की तय हैं ), हिंदुत्व के चश्मे से देखना, बिलकुल गलत हैं। आप ने सही कहा, मोदी जी ,यहाँ से जीत चुके हैं, उसका कारण सिर्फ मोदी जी की विकास पुरुष की छवि हैं। सपा बसपा की जातिगत राजनीती, यहाँ कभी जड नहीं जमा पाई, क्योंकी, आजतक बनारस लोकसभ सीट से , सपा या बसपा को जीत नहीं हासिल हुई. और अनिल शास्त्री जो १९८९ में बनारस से जीते थे, वो भी भाजपा के सपोर्ट से जीते थे(वो बीजेपी और विपक्ष के संयुक्त प्रत्याशी थे) (ये वो बताते नहीं हैं , केवल अपनी राजनीती को चमकाने के लिए मोदी जी के खिलाफ, बेसुरा गान करते, दिखाई पड़ते हैं). आप तो अति विद्वान् पत्रकार हैं , आप ने मोदी जी की भारी विजय को सूघ लिया हैं। गली गली में मोदी जी व्याप्त हैंं, इसका कारण, धर्म या जाति नहीं हैं, बनारस विकास से वंचित हैं और भ्रष्टाचार से ग्रसित हैं. जनता, विकास पुरुष से विकास की उम्मीद कर रही हैं। उसे सम्र्प्रदायिकता से कोई लेना देना नही हैं, वो तथाकथित धर्मनिरपेक्षिता का झंडा भी नही उठाना चाहता हैं, वो तो अपने पण्डे और उनके डंडे में मस्त हैं. उसने BJP को 1991 , 1996 , 1998, 1999 और 2009 में जीता चुकी हैं. 3 विधयाक BJP के हैं, जिसमे श्री श्याम देव रॉ चौधरी (जो की बंगाली दादा हैं ) 7 बार से लगातार एक ही सीट वाराणसी साउथ से, BJP के टिकट से , जीत रहे हैं (वाराणसी साउथ में मुस्लिम पापुलेशन २५% से ज्यादा हैं ). उसी तरह श्रीमती ज्योत्सना श्रीवास्तवा जी, BJP के टिकट से ,4 बार से लगातार एक ही सीट वाराणसी कैंट से जीत रही हैं (उससे पहले उनके पति बीजेपी से इसी सीट से दो बार विधयाक रह चुके हैं. वाराणसी नॉर्थ से श्री रविन्द्र जायसवाल जी बीजेपी के टिकट से जीते हैं (यहॉ भी मुस्लिम पापुलेशन ३०% से ज्यादा हैं ). अब जातीय समीकरण भी देख लिय जाये, जो की बनारस में कभी भी,बहुत प्रभावी नहीं रहा उसे भी देख लिया जाये. 2 लाख पटेल हैं, 2.5 लाख ब्राह्मण हैं, 2.0 लाख बनिये हैं, 90 हजार भूमिहार हैं, 65 हजार राजपूत हैं, जो की बीजेपी का , अपना वोट बैंक हैं और इस बार पटेल और कुर्मी की पार्टी (अपना दल ) का विलय बीजेपी में होने की सभांवना हैं, तो पटेल वोट तो बीजेपी को ही मिलेगा (मोदी जी भी तो obc हैं ). सपा का खेल 2 .5 लाख मुस्लिम और एक लाख यादव पे टिका हैं, और बसपा 80 हजार SC /ST के भरोसे उतरती हैं. 90 हजार obc(जैसे की भर , राजभर , मल्लाह , कहार इत्यादि) सपा और बसपा के साथ हैं। वाराणसी की सड़के टूटी हैं, भ्रष्टाचार इतना, की सड़क बनती हैं, तो 10 दिन में फिर टूट जाती हैं पर BJP के तीनो विधायक, अपनी सेवा भाव के कारण, लोकप्रिय हैं , बीजेपी के मेयर भी काफी एक्टिव हैं। श्री श्यामदेव 7 बार, लगातार, विधयाक होने के बाद भी simple जीवन जीते हैं । जोशी जी बनारस को समझ नहीं पाये, जनता ने नकार दिया. यहॉ तक की , ब्राह्मण बहुल मोहल्ले में भी उनकी , हूटिंग हो जाती थी। बनारस में, केवल इस बात पे सट्टा लग रहा हैं, की मोदी जी 2 लाख वोट से जीतेंगे या (सिर्फ) 1 लाख वोट से.
ReplyDeleteरवीश जी बनारस आएगा तो मिलना चाहूंगा अपने को टीवी पे चमकाने के लिए नहीं, बल्कि असली धर्मनिरपेक्ष बनारस दिखने के लिए. मेरा ईमेल ID हैं pareshksingh@rediffmail.com और pareshksingh73@gmail.com
ReplyDeleteबढ़िया विश्लेषण !
ReplyDeleteएक बात और जोड़ना चाहूँगा यदि सभी बहुसंख्यक जो कि वोटरों का लगभग 84% है, भाजपा को वोट देते होते तो पिछले अधिकांशतः चुनाव में भाजपा सत्ता से बाहर नही होती !
kal ka p.t. bada hi rochak raha. kai jankariya mili. paresh ji ne banaras ke bare me tv valo se jyada jankari di hai.
ReplyDeleteबसपा ने 19 मुसलमानों को टिकट दिया है ,सपा ने भी और कांग्रेस ने भी. भाजपा के लोग अपनी रैलियों में खेजाब और मेंहदी से रंगी पुती दाढ़ी और चमकीली टोपियों पर इतरा रहे हैं.
ReplyDeleteआदरणीय मोदी जी अगर मेरा कम्नेट पढ़ रहे हो तो मुझे भी शहजादा कह कर डकार ले लें .
Aapke blog ke saath sabhi comments ko bhi dhyan se padha...sab pad kar yahi niskarsh nikala ki modi to pehle hi jeet chuke hain ...election to bas formality h.....par ravish ji aap sab ek baat bhul rahe hain ki KEJRIWAL abhi baaki h.aapne sabhi ka vote bank dekha h.....BSP SP CONGRESS BJP par kejriwal ka vote bank kya h?har dalit jo samajhdar h,har brahmin jo samajhdar h,har baniya jo samajhdar h aur.......har muslim jo nasamajh h ...sabhi milkar kejriwal ko vote denge.Bjp ka mudda hindutav h aur modi vikas purush hain lekin kejriwal kya h? Anti corruption crusader ya kuch aur?....kejriwal vs modi mein jeete chahe koi bhi lekin harrenge Modi hi....kyonki kejriwal ke maidan mein aate hi modi ki pm banne ki sambhavnayein behad kam ho gayi hain.agar arvind jeeta tab to pralay hi aa jayegi(jiski sambhavna behad kam h....lekin h)par agar modi jeet bhi jaayein tab bhi modi ji ke liye to kejriwal ke aage ladne par hi pralay aa gayi h.....desh ke saare muslim aur anti bjp log AAP ke paksh mein lamnand ho jayenge aur baaki log modi,cong,teesre morche mein bikhar jayenge.....modi is gone...he is so gone.....ek purane modi fan hone ke naate meri sahanubhuti modi ji ke saath h.....par ravish ji iska matlab ye mat samajhiyega ki aapke saath meri sahanbhuti aapke saath nahi h.patarkar community to itni majbur h ki rajneeti ke is naye khatarnak jaanvar ko (jiska naam AAP h)use purane muhavron se ghadne ka prayas kar rahe hain....kabhi 1977 se tulna karte hain to kabhi VP singh se....sunkar badi hansi aati h...modi vs arvind in varanasi....is par bhi koi blog likhiye pls....aapka ek pichala blog tha named "modi vs arvind" par tab paristhiryaan itni rochak nahi na thi....ab kuch likein is par to baat banegi....
ReplyDeleteAapka fan aur shubchintak
Tapasvi lecturer
Bahut khub. Par kisi community vishesh ko nasamajh kehna konsa logic h? Free m koi voter nhi hota... Khair.. Bada hi dilchasp andaj h arvind ka. Aage aage dekhiye hota h kya.. :)
ReplyDeleteHello Ravish Ji, do din pahle hi aap ke blog ke baare me jaan paya ...almost saare hi padh daale ek saath..knob saare bhawnawo ke utaar chadhv se hokar gujra ...dhanyabad..Kaash ye contents hame tv ke madhyam se bhi milte rahe to desk ki ye durdasha an ho..tv ab shor hi lagta hai sir..aap ke primetime ko chorke.
ReplyDeleteBahut khub likha hai. Jis din sabhi yeh samajh lenge ki neta sirf vote bank ke liye logo Ka vibhajan karte hai us din netao ko sabak mile ga.
ReplyDeleteनरेंद्र मोदी की शानदार बढ़त में बीजेपी , संघ , आडवाणी का चाहे जितना योगदान रहा हो, वह तो है ही! मोदी की सफलता, टीआरपी में ''सेकुलर '' दलों और नेताओं का भी बाड़ा योगदान है ! भारतीय मुसलमानों की दशा-दुर्दशा में कांग्रेस और सेकुलरों का बड़ा हाथ रहा है। उनकी रोजी -रोटी , शिक्षा , बेकारी , बीमारी को नजरअंदाज़ कर बस उन्हें ''वोट '' मात्र बना दिया गया है।
ReplyDeleteआखिर , देश में संघ और बीजेपी के बिना सरकार नहीं बनती है क्या ? यूपीए , सपा , बसपा , जयललिता , ममता , माणिक सरकार आदि अनेक नेता और दल संघ के कारण
थोड़े ही हैं। या फिर सिर्फ एक जाति ,समुदाय के बल पर चुनाव जीत कर आये हैं ?
क्या मोदी के पहले मुस्लिमों की सारी समस्याएं दूर हो गयी थीं ? मुस्लिम समुदाय दूसरे लोगों की तरह जिसे चाहे , उसे वोट क्यों न करे ?
अगर सभी बहुसंख्यक बीजेपी को वोट देते ध्रुवीकरण के आधार पर तो फिर बीजेपी की हर जगह सरकार होती ! प्रायः हर राज्य में।
याद है रवीश जी , BJP KE ''राम '' (एनडीए वाले पासवानजी ) जब बिहार का मुख्यमंत्री मुस्लिम को बनाएंगे का जिद ठाने हुए थे उस समय उनके साथ लादेननुमा (लेआउट डिज़ाइन में ) एक मुस्लिम नेता उनके साथ होते थे। पता नहीं आज वे कहाँ हैं ! मानों मुस्लिम्स के आदर्श लादेन ही हो। बनारस जैसे ''समुद्र संगम'' की नगरी जो ब्राह्मण ही नहीं श्रमण धारा का भी प्रमुख केंद्र रहा है। तुलसी ही नहीं कबीर और रैदास को भी अपने पेटे में समेटे
हुए है। भारतेन्दु से लगायत प्रेमचंद , आचार्य शुक्ल , प्रसाद , बिस्मिल्लाह खान जैसे मनीषियों की परम्परा जहाँ रही हो , उसे धर्म के चस्मे से मीडिया माध्यमों द्वारा खेला -ताना जा रहा है।
अरे भाई , मोदी या तो चुनाव लड़ने के योग्य हैं या नहीं हैं ! क्या चुनाव आयोग ने कुछ नया प्रावधान कर दिया है कि मोदी ही बनारस से लड़ सकते हैं राहुल नहीं ?
ध्रुवीकरण में नेताओं का जो महान योगदान है वह तो है ही मीडिया जी का भी महान अवदान है! मीडिया की मूर्खता , दृष्टिहीनता खूब दिख रही टीभी पर। मोदी और बनारस पर तो पूछिए ही नहीं ! '' कौन ठगवा नगरिया लूटल हो ?'' (कबीर )
ये तुम्हे किसने कहा तुम वतन कि जान नहीं,
ReplyDeleteबिना तुम्हारे मुक़क़मल ये हिंदुस्तान नहीं।
कोई तुम्ही से वफ़ा का सवाल क्यों पुछे,
वतनपरस्ती तो जज़बा है इम्तेहान नहीं।
--कर्नल(रिटायर्ड) वी पी सिंह
SIR JI "DIVIDE AND RULE" is BRITISHER'S policy ,but
ReplyDeleteit has contributed a lot to the present Indian Politics.
BROTHERS are being divided ,then how can the caste be left out .Caste is one of the most important topic during elections and unfortunately has been showing it's result effectively.It is a huge tragedy of our Indian Politics.Hope people will understand it soon before it is too late.
Ravish ji musalman eak football ki tarah hai jisko har party apnay hisab say kick karti hai BJP & Media dono musalmano kay negative role ko hi dikhati hai BJP musalmano ka vote tu layna chahti hai per bhagidari na day kar second class citizens honay ka ehsas our hardliner hindu kay samnay musalmano kay auqat ko bhi dekhana chahti hai modi nay aaj tak kisi bhi leader yehan tak ki maulan Abul kalam azad yah A P J abdul kalam.ka nam bhi abpnay bhashan may kabhi bhi nahi liya isko kisi bhi media nay point out nahi keya , BJP nay afzal gru kay phansi ki mang karti rahi per Rajiv kay qatilon kay phansi ki koe mang nahi ki
ReplyDeleteध्रुवीकरण शब्द पर जी भर के प्रयोग हो चुके हैं, अपने देश में। यही कारण है कि कई स्थानों पर ध्रुवीकरण की राजनीति के विरुद्ध ध्रुवीकरण प्रारम्भ हो चुका है।
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Ravish, you need to do following debates (even if you 'think' it has no value):
ReplyDelete1. If Modi/BJP's campaign looses traction, will it give advantage to Congress? or someone else? this is long debate and do it atleast 3 times till elections are over.
2. How many tainted UPA ministers, and parties have joined BJP? So, has Congress morphed into BJP? Or, It
is simply a case of crony capitalists using new tool(BJP), when old is broken(Congress)?
सही बात कह रहें है। अंग्रेज चले गयें पर आज भी राजनीति divide एंड rule पे हे चल रहा है।कोई डरा कर तो कोई हमदर्दी जगा कर वोट बटोर रहा है।पता नहीं कब लोग समझेंगे ,कब गरीब गरीब होगा मुस्लिम sc st obc नहीं। जिस दिन समझ गया उस दिन ये सारी राजनीतीक दुकान बंद हो जाएगा। विकास तो हो रहा है लेकिन सिर्फ कुछ लोगों तक सीमित है।
ReplyDeleteमुसलमान का भी विकास हुआ है लेकिन बेचारा डरता है कही अपना नाम बताने से तो कही अपने लोग दूंधने में तभी तो घर वही लेना चाहता है जहा उनके लोग हो। सिर्फ पार्टी ही नहीं बल्कि लोगों की अपनी मानसिकता बदलनी होगी ,एक विश्वास जगाने की।जब समाज में विश्वास होगा तो ऐसे बरगलाने वाले बातों का कोई असर नहीं होगा।दूसरों पर ऊँगली उठाने से पहले अपने आप को बदले। थोरा वक़्त तो लगेगा समाज को बदलने में लेकिन अब बहुत से लोग मंडल कमिसन से उबार गयें वैसे ही इससे भी उबर जायेंगे।
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ReplyDeleteआजकल खूब चल पड़ा है। मीडिया को गाली देना, लगता है नया सा है , पर फिर मैंने सोचा क्या सचमुच नया सा है? इमर्जेंसी , मनसे एवं शिवसेना द्वारा मीडिया हाउस में तोड़फोड़ , उत्तरप्रदेश में तो प्रसारण ही रोक देना क्या ये सब गाली के प्रतीक नहीं है या उससे भी ज्यादा , एक कदम आगे। कौन केहता है भारत पिछड़ गया है। मीडिया भी क्या करे, हमारे हाई कोर्ट सुप्रीम कोर्ट को तो केस निबटाने कि फुर्सत नहीं तो मीडिया खुद ही निबटाता है। सही भी है २० २५ साल कौन प्रतीक्षा करेगा , कइयो का तो रिटायरमेंट आ जाएगा .
ReplyDeleteसच तो ये है कि मीडिया भी बेशरम या बेरहम हो गया है , खबरो के नाम पर विज्ञापन चला रहे है और लगता है सारी खबरे चार महानगरो में सिमट के रह गई है। बताया गया था ८०% भारत गाँव में बसता है मगर समाचारो में तो १% भी नहीं है , क्या ग्रामीण क्षेत्र ज्यादा उपयुक्त है जीवन गुजरने के लिए ? कुछ भी अच्छा -बुरा नहीं होता , या अब वहाँ कोई नहीं रहता? क्षेत्रीय अखबार तो जैसे अपने राज्य के मुख्यमंत्री एवं रुलिग पार्टी का प्रशस्ति गान करने बैठे है , जो बुराइया एक नागरिक देखता है वो मीडिया क्यों नहीं देखता क्या ये भी हमारे कानून कि तरह अँधा हो गया है।
कुछ नेता आए है , केहते है डेवलपमेंट करेंगे, पर किसका ? देश को किसी कॉर्पोरेट कंपनी कि तरह चलने का वादा बड़ा लुभा रहा है , समझ नहीं आता कब कोई हमारे सामाजिक विकास की बात करेगा . बोलते है हमारा देश एक युवा देश है , पर जो दीखता है उससे लगता है कि भटके हुए युवाओ का देश है। आज जहाँ सारी जानकारी और इतिहास हमारे हाथो में है और कुछ मिनिटो में सारी जानकारी हासिल कि जा सकती है ,वहाँ हम इडियट बॉक्स देख रहे है जो बस भरमा रहा है। किसी होटल में पसंदीदा खाने कि तरह खबर परोसी जा रही है , जो आपकी मानसिकता को तुष्ट करे ऐसी खबर देखो। कमाल है खबर में भी एकरसता न रही , खबर कैसे अलग हो सकती है ?
६० सालो में तो दुनिया बदल जाती है पर हमारी सोच क्यों नहीं बदली ? फूट डालो शासन करो २६० साल पुराना हो गया पर अब भी क्या काम करता है हम भारतीयो पर। जाती धर्म के नाम पर किसी को भी मारने और मरने पर उतारू हम भारतीय गर्व कैसे कर लेते है ये शोध का विषय होना चाहिए।
समाचार भी अभिव्यक्ति का साधन बन चूका है पर सिर्फ कुछ नेताओ पूंजीपतियो को ही ये अधिकार प्राप्त है और जो लोग सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति करना चाहते है उन्हें रोकने का प्रयास कितनी बार किया जा रहा है , धन्य है भारत सरकार। विशुद्ध खबर न जाने कहाँ खो गई , सोच का निर्माण करना भी एक कला है , तो क्या न्यूज़ रिपोर्टर भी अभिनेता हो गए है. नेता और अभिनेता का ये संगम कमाल है , नेता करवाता है और अभिनेता अभिनीत करता है , वाह्ह !! .
जब मेरे आस पास के लोगो से बात करता हु तो उनकी भाषा और विचार शब्दशः वही होते है जैसे कि हमारा समाचार अभिनेता बोलता है, लगता है मेरे देश के लोगो के पास रुक कर सोचने का भी समय नहीं है . युवा अपनी भागदौड़ में सोचने का काम भी आउटसोर्स कर चूका है .
केजरीवाल ने जब मीडिया को आइना दिखाया तो अपनी ही शक्ल देख के घबरा और बौरा गया और किसी छोटे से बच्चे कि तरह बदले कि आग में जलने लगा। सोच कर भी विचित्र लगता है कि मीडिया , हमारे लोकतंत्र का चौथा स्तंभ बदले जैसी अपरिपक्व हरकत भी कर सकता है। बदला लेने कि ये कार्यवाही ही केजरीवाल के दावो को बल दे रही है , पर ये बात सोचने से ही समझ आती है। आउटसोर्स कि गई सोच में ये ख़याल कैसे आएगा , वो ये कभी नहीं सोचेगी कि जिन राजनीतिक पार्टियो का बीजेपी विरोध कर रही थी उन्ही के गुंडामण्डित छवि के लोगो को गले लगा कर खुद को पहले वाली सरकार जैसा बना रही है। सुना था जहर ही जहर को काटता है तो क्या ये काला पैसा जो चुनाव में लगा है ये ही काले पैसे को भारत वापस लाएगा . आरोप नहीं लगा रहा हु , अँधेरा भी काला ही होता है और जहां कुछ न दिखे वो अँधेरा ही तो है . मीडिया और नेताओ के सामूहिक कृत्य से ये चुनाव अँधेरे में ही लड़ा जायेगा , बड़े दुःख कि बात है।
हमें सैकड़ो सालो से दुसरो कि सोच जीने कि आदत है , पहले मुगलो कि , फिर अंग्रेजो कि और अब मीडिया कि। खुद कि सोच बनाने कि छटपटाहट से मै तो जीत गया पर हमारा युवा देश जो इडियट बॉक्स के सामने बैठ कर अपने आउटसोर्स हुए काम का अवलोकन कर रहा है , उसका वोट तो देश के लिए एक आतंकी हमले सा प्रतीत होता है।
ध्यान से देखो , खुली आँखों में के इस अँधेरे को . ६० सालो में क्या हुआ और किस चहरे के पीछे कौन है .
http://arpitvyas23.blogspot.in/
Sahi kah rahe hain sir,Iski wajah ye lgti hai k ab zyadatar media channels,Journalists,Reporter Janch karna zyada dimagh lga k sochna zamini taor pe bhag daud mehnat karna nhi chahte,,BJP ko vote na dene vala yadav ya koi aur ya koi aur ko gar wo dikhana chahnge to pahle unhe khojna pdega k kaon kaon nhi dene wala hai jbki yahan to seedha seedha hai Musalmano k Anti-Modi hone ki Aam Dhaarna hai hi,Zyadatar hain b kyonki wajah(Kayi) hai,,Dikhaa do!....Baaki to jo hai Hayye Hai!!!!!
ReplyDeleteRavish ji,
ReplyDeleteEk baat bahut dino sey khatak rahi hai aur kisi patrakar ko to follow karta nahi aapka blog ya pt dekhta hu...... To aap hi batayey......... Aaj kal har news channel per ek hi khabar q chalti hai??????? Har news paper ki headline alag alag hoti hai lekin koi bhi news channel dekh lo Sab per ek hi khabar jyadatar chal rahi hoti hai , kya aap log aapas mey itna ekaa banayey Huey hai ki koi alag khabar dikhata nahi...... Court cases , politics , crime , movies aur cricket bus issey aagey ki sooch khatam hai prabhu..... Aur HA kejriwal. & co ...... Kuch to alag Karo
Ravish Bhaiya Pranam,
ReplyDeleteYe sahi hai ki sare muslim Modiji ke virodhi nahin hain. To sabko ekahi laathi se hankna galat hai. Isme ya to un logon ka haath hai jo so called polarization dekh rahe hain ya un media walon ka bhi jinhe lagta hai ki aisa karne se unki TRP badh jaayegi. Jahan tak BJP la sawal hai unhe age badhkar dikhana chahiye ki unke yahan bhi muslimon ka pratinidhitva hai per shayad unhe lagta hoga ki aisa karne se wo hindutva ki vichardhara se alag ho jaayenge. Unke is kritya se hindutva ko bhi dhakka pahunchta hai kyonki Hindu dharm itna sankeern nahin hai. Aur ye baat to aapki solah aane sach hai ki bina pratinidhitva ke aap kisi se samarthan ki ummeed kaise rakh sakte hain.
regards
रवीशजी हमारे jile सुल्तानपुर(उप) में भी राजपूतों का मुस्लिम में बहुत कन्वर्शन हुआ है . थोक के भाव में . इसे लोग खानजादा के नाम से जानते है . Nh-५६ के दोनों तरफ इनको आप देख सकते है .
ReplyDeleteनमस्कार सर। आज मैंने आप का प्राइम टाइम देखा मुसलमानों के बारे में जो आप ने दिखाया अछा लगा ।आप की रिपोर्ट बहुत अच्छी और साफ़ होती है। वैसे मैं आप का फैन हूँ।
ReplyDeleteLast night maine Prime time dekha saharanpur ka wah village jo aap dikha rahe the yakin hi nahi hota ki aaj ki india me bhi aise villages hai
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