लखनऊ की रैली में मायावती ने कांग्रेस की आलोचना तो की मगर मनमोहन सोनिया या राहुल किसी का नाम नहीं लिया । सीधा हमला किया नरेंद्र मोदी पर । उनके भाषण से लगा कि वो यह मान कर चल रही हैं कि वे फिर से सपा का विकल्प बन चुकी हैं और उनकी लड़ाई अब बस बीजेपी के नरेंद्र मोदी से हैं । कांग्रेस तो ज़िक्र के लायक भी नहीं । माया ने यह भी संकेत दिया कि बीजेपी यूपी में उनके विरोधी नंबर वन तो हो ही गई है । जिसकी चुनौती में बताया कैसे बसपा के पास स्वाभाविक दलित मुस्लिम गठबंधन हैं क्योंकि दंगों के वक्त दलितों ने मुस्लिम समाज के लोगों की पूरी मदद की । यानी दोनों में समरसता है ।
आज का लेख पढ़ते हुए लगा कि क्या मायावती के एक बार मना करने के बाद भी गठबंधन होगा । इस लेख में कहा गया है कि मायावती का दलित वोट बैंक चंद प्रतिशतों से सिमट रहा है । यूपी में भी और अन्य राज्यों में भी । वर्मा कहते हैं कि बड़ी संख्या में दलित आज भी वोट नहीं देते । मायावती इस पहलु पर ज़ोर लगाकर खेल पलट सकती हैं मगर मेरी राय में माया जितना अधिकतम कर सकती थी कर चुकी हैं । उन्होंने एक बार ब्राह्मणों को साथ लेकर इस कमी को पूरा किया था और इस बार मुसलमानों के साथ करना चाहती हैं । हालाँकि २००७ के नतीजों को देखेंगे तो मायावती मुस्लिम मतों को भी अधिकतम लिहाज़ से हासिल कर चुकी है जब बसपा के पैंतीस से भी ज़्यादा मुस्लिम विधायक चुनें गए थे ।
जिस तरह से राज्यों में मतदान का प्रतिशत बढ़कर पैंसठ से पचहत्तर प्रतिशत हुआ है उसे देखते हुए कैसे मान लिया जाए कि दलित कम वोट दे रहे हैं । खैर लेखक की दलील है कि मायावती ने हर दलित को मतदान केंद्र तक लाने का प्रयास नहीं किया है । ऐसा कर वो यूपी में ताक़त बढ़ा सकती है । बसपा ज़रूर दूसरे राज्यों में सिमट गई है लेकिन यूपी में उसके आधार पर कहना जल्दबाज़ी होगी । बीएसपी को जितना समझा है उसके अनुसार यह पार्टी जीतने के वक्त भी दिखाई नहीं देती और हारने को बाद तो इसके लुप्त प्राय होने का सर्टिफ़िकेट जारी कर ही दिया जाता है । यूपी में मीडिया के अनुसार हर चुनाव में सिर्फ बीजेपी या कांग्रेस का उभार होता है और जब नतीजे आते हैं कि इनका और पतन हो जाता है ।
इतना ज़रूर है कि बीएसपी ने बूथ मैनेजमेंट की जो रणनीत ईजाद की थी उस पर सबने क़ब्ज़ा कर लिया है । राहुल और नरेंद्र मोदी भी बूथ मैनेजमेंट की बात करते हैं । ठीक बात है कि बीएसपी का जनाधार कुछ कमज़ोर हुआ है । बीजेपी प्रचारित कर रही है कि यूपी का ग़ैर जाटव दलित नीचे (विधानसभा) मायावती ऊपर(लोकसभा) मोदी की बात करने लगा है । पर जिस तरह नरेंद्र मोदी बीएसपी कांग्रेस सपा को मिलाकर 'सबका' कहते हुए मायावती पर हमले करते हैं, लगता नहीं कि ग़ैर जाटव दलित लोक सभा में जातीय पहचान को छोड़ मोदी को वोट देगा और वापस विधानसभा में मायावती को ।
हर वोटर 'डुअल सिम' नहीं होता । चुनाव कोई वीकेंड का मनोरंजन नहीं है । संडे को कहीं और मंडे को कहीं और । दलित राजस्थान मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की तरह बीजेपी को यूपी में भी वोट करेगा इतनी आसानी से बात हज़म नहीं होती है । अगर ऐसा हो भी गया कि दलित केंद्र में मोदी को वोट देंगे तब उनके लौट कर आने की संभावना कम ही समझिये । तब तो बसपा को समाप्त ही मान लीजिये । मुझे नहीं लगता कि ये होने जा रहा है फिर भी दिल्ली चुनाव के अनुभव के कारण थोड़ा इंतज़ार करना चाहिए । जब बसपा केजरीवाल से कम हो सकती है तो क्या मोदी के कारण भी ?
इसीलिए नरेंद्र मोदी ने भी गोरखपुर की रैली में मायावती को खूब जवाब दिया । यह कम क़ाबिले तारीफ़ नहीं कि मोदी भी मायावती पर हमला कर अपनी दावेदारी पेश करते हैं । जब बिहार में लालू जेल गए थे तब यही मोदी द्वारका के कृष्ण बनकर यदुवंशियों के रक्षक बन रहे थे लेकिन यूपी में वे ऐसे किसी प्रतीक का इस्तमाल नहीं करते । मायावती से सीधा लड़ते हैं । कहते हैं कि कुछ लोग दलितों को वोट बैंक बनाकर उन्हें अपनी जेब में रखने का दावा करते हैं ।
लेकिन क्या यूपी में बसपा इतनी कमज़ोर हुई है कि बसपा 1996 की तरह कांग्रेस से समझौते करे और जहाँ से चली थी वहीं पहुँचे । 96 में बीएसपी ने कमज़ोर कांग्रेस से समझौता कर लाभ लिया था । 2014 में कांग्रेस फिर कमज़ोर है तो इसका लाभ सिर्फ केजरीवाल क्यों ले, मायावती क्यों न लें । मगर 96 का अनुभव यही था कि कांग्रेस का वोट बसपा में नहीं गिरा था । तब से बसपा ने कांग्रेस से पल्ला झाड़ लिया । हो सकता है कि मुस्लिम वोटों का बिखराव न हो इसलिए इस बार गठबंधन काम करेगा । लेकिन स्वर्ण के तो बीजेपी के साथ जाने की बात कहीं जा रही है । बिहार यूपी का स्वर्ण पूरी तरह से मोदी के पक्ष में हो चुका है । अगर दलित मुस्लिम यादव बीजेपी में टूट कर नहीं जा रहे तो बीजेपी में आ कौन रहा है । बहुकोणीय लड़ाई का लाभ बीजेपी को ही क्यों मिलेंगे वाला है ।
सवाल दो हैं । क्या मायावती यूपी से बाहर अपनी पार्टी का विस्तार कांग्रेस से गठबंधन के सहारे नहीं करना चाहेंगी या कर पायेंगी । वर्मा बताते है कि मायावती यूपी की बीस सीटों पर जहाँ कांग्रेस जीती हैं, कांग्रेस से समझौता कर बदले में उससे दूसरे राज्यों में सीटें मांग सकती हैं । अगर ऐसा हुआ तो मुसलमानों के पास सपा का कोई विकल्प नहीं रह जाएगा । मुस्लिम और दलित पूरे यूपी में एक गठबंधन के तहत आ जायेंगे । मगर कांग्रेस के पास है क्या जो बसपा को मिलेगा ।
फिर भी ऐसा हुआ तो इस चुनाव का सबसे बड़ा मास्टर स्ट्रोक होगा । इसके बाद कम से कम चुनाव तक गठबंधन के मामले में मोदी के पास कोई मास्टर स्ट्रोक नहीं बचेगा । जयललिता लेफ़्ट के साथ जा चुकी हैं । उन्होंने मोदी को पसंद नहीं किया । पवार क्लिन चिट देकर कांग्रेस के साथ रह गए हैं । सुप्रीम कोर्ट के क्लिन चिट से भी मोदी गठबंधन का विस्तार नहीं कर पा रहे हैं । हो सकता है कल जयललिता मोदी पर हमले भी कर दें । क्या नरेंद्र मोदी जयललिता के ख़िलाफ़ बोलने का साहस करेंगे । एक लफ़्ज़ नहीं निकलेगा । तमिलनाडु में बीजेपी खुदरा खुदरी दलों से समझौते कर गठबंधन की संख्या तो बढ़ा हुआ बता सकती है लेकिन क्या वो यह बता सकती है कि जिस जया के मोदी से क़रीबी रिश्ते रहे हैं उनके साथ गठबंधन क्यों नहीं हुआ । अब बीजेपी के पास चौटाला ही बचे हैं । येदुरप्पा के अलावा ।
तो आता हूँ माया कांग्रेस गठबंधन की कपोल कल्पना पर । अगर ऐसा हुआ तो कांग्रेस के पास अपनी हार को रोकने के लिए एक जनाधार लौटेगा । इसका मतलब यह नहीं कि कांग्रेस जीत जायेंगी । दलित वोट के कारण यह चुनाव कांग्रेस के न चाहते हुए भी मोदी बनाम मायावती का हो जाएगा । कांग्रेस मायावती और केजरीवाल के बीच मोदी को फँसा देगी । मायावती भी इस मौक़े को अरविंद केजरीवाल की तरह लपक सकती हैं । कांग्रेस से गठबंधन कर यूपी की साठ सीटों पर मज़बूत विकल्प तो बन ही सकती हैं दूसरे राज्यों में पार्टी से खिसके जनाधार को वापस ला सकती हैं । दूसरे राज्यों के दलित मतदाताओं, जिस पर बीजेपी का प्रभाव साबित हो चुका है, को बसपा में लाने का मौक़ा होगा । यह ध्यान रखना चाहिए कि बीजेपी को रिज़र्व सीटों पर बढ़त हवा में नहीं मिली होगी । बीजेपी ने ज़रूर वहाँ स्थानीय दलित नेतृत्व पैदा किये होंगे या कोई समीकरण बनाया होगा । क्या बीएसपी बीजेपी से इन सीटों पर नहीं लड़ना चाहेगी । पहले भी उसके पास नहीं थी लेकिन क्या उसमें साहस है कि वह बीजेपी से उसके गढ़ में रिज़र्व सीटों पर लोहा ले । लेकिन बसपा को कांग्रेस से मिलेगा क्या जिसके लिए वो समझौता करेगी । इस बात के लिए कर सकती है कि साठ सीटों में से अधिकतम जीत कर प्रधानमंत्री पद की दावेदारी करने का मौक़ा न लग जाये ।
राजनीतिक विस्तार का सबसे बड़ा मौक़ा चुनाव ही होता है । जिस बीएसपी ने कभी यूपी में कांग्रेस सपा और बसपा से समझौता कर अपना जनाधार बनाया उसे अन्य राज्यों में ऐसा करने का मौक़ा मिलेगा तो क्या वह नहीं करेगी । साथ ही कांग्रेस बसपा लालू पासवान के एक प्लैटफ़ॉर्म पर आने से पहली बार दलित एकता का राष्ट्रीय मंच कांग्रेस के छाते के नीचे बन जाएगा । मायावती कांग्रेस को उसके खेल में फँसा सकती हैं या कांग्रेस खुशी खुशी फँसना चाहेगी । मोदी यही दुआ कर रहे होंगे कि ऐसा न हो । लेकिन सवाल मोदी का नहीं बल्कि यह है कि मायावती क्या सोच रही हैं या लखनऊ में जो कह दिया है वही अंतिम है यानी कांग्रेस से समझौता नहीं !
मायावती जी को ही नहीं बल्कि इस देश के सभी गैर सवर्ण प्रमुख वाले दलों को आपस में गठबंधन करना चाहिए... आज नरेंद्र मोदी के नाम पर केरल से लेकर असम तक के सवर्ण गोलबंद हैं... भारतीय राजनीति में पहली बार ऐसा हुआ है... जब राज्यों के मुद्दे या दलों के मुद्दे सवर्णों के लिए अहम नहीं है... वो राष्ट्रीय स्तर पर गोलबंद होकर अपनी ताकत दिखाना चाहते हैं... लेकिन ओबीसी, एससी, एसटी और अल्पसंख्यक नेता आज टुकड़ों में बंटे हैं... यानि एक बार फिर 18 फीसदी लोगों का शासन 85 फीसदी लोगों पर होगा... हां इसमें एक फायदा ओबीसी, एससी, एसटी और अल्पसंख्यकों को हो सकता है कि बीजेपी इस बार गैर सवर्णों को ज्यादा टिकट दे.... खासकर यूपी और बिहार में... ताकि सवर्ण गोलबंदी के दौर में उसे दूसरी जाति के वोट उम्मीदवार की जाति की वजह से मिले.. ठीक उसी तरह जैसे पिछले दिनों में गैर सवर्ण वाली पार्टी सवर्ण उम्मीदवारों को टिकट देती थी.. ताकि उसे उसके गैर जाति वाले वोट मिले...
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteaaj ki bahas ko mai tisre tarike se dekhta hu (kyuki dusre tarike tak ho chuka hai)..waise to aap sabko pani pila dete hai lekin aaj apko hi pani ki jarurt par rhi thi..just joking..get well soon...
ReplyDeleteaalochna hai kya??? jis bat par aap bhadak gye kya wo apki aalochna thi?? ya aap bjp ko gherne ki koshish kar rhe the wo aalochna thi??? waise i don't like bjp.. phihr v ..jab aap aalochna ko itni imandari se lete hai ya karte hai..to umid hai ki jabab milega...isliye mujhe puchna par rha hai ki aakhir ye aalochna hai kya????
NAMASKAAR..
रवीश जी में आपका प्रशंसक हु ! इसिलए नहीं कि मैं आपके शब्दो मे छुपे कटाक्ष को समजता हु ! बल्कि आपकी बातो में मुझे एक युवा नज़र आता जो घुल कर कुछ कह नहीं पाता ह ! या फिर अपने दुनिया कि सबसे बड़ी लोकतांत्रिक प्रक्रिया को ही कटाक्ष का विषय बना लिया ह ! ये कोई आरोप नहीं ह टीवी मिडिया कि कठिनाइया समहजता हु
ReplyDeleteaapka political vishleshan bahut sateek, nishpaksh aur awwal darje ka hota hai lekin sar mujhe jahan tak lagta hai aaj kal ki raajneeti me technicality aur logic to kuchh toh hota nahi hai isiliye in party ke numanindo ko na toh in cheezo ki knowledge hoti hai na icchha isiliye aap kripya sirf experts ko hi bulaya karen jab mudda technical aur logical wala ho...shayad bahas thodi conclusion ki taraf badhe
ReplyDeleteaap bakhoobi maloom hain posturing in politicians ki. Jayalaitha ne CPI se hath milane ki jahmat kyun uthai hain, ye hamse behtar Ravish Babu samajh sakte hain. TRS ,TDP aur YSR Congress bhi apna mahatava samajh rahen hai.
ReplyDeleteMujhe nahi lagta aap ham logo ka comments padhte hain phir bhi umeed pe likh rahan hu do shair
1. tijarat hi qabil e eatamade ki taraqeeb, hain unka phasana;;;
ilm ul adad kahan insan ki tassdeeq, yeh khakshar bhi janna
doosra agar apne pehla padha tab likhoonga
बहन मायावती एक नेता (नेत्री नहीं … ) के तौर पर चटानी फ़ैसला लेने के लिए जानी जाती हैं।
ReplyDeleteउनके यहाँ आयं -बांय -सांय नहीं चलता। वे भाजपा और मोदी के साथ रह कर भी जो करना चाहेंगी कर लेती हैं।
दलित अस्मिता को सर्वजन के साथ जोड़कर वे बहुत आगे जा सकती थीं। लेकिन जो यह भारतीय समाज है , राजनीति है वह एक रेखीय नहीं
है।
नरेंद्र मोदी और भाजपा इस बार सत्ता में आने से चुकती है तो यह उनकी 'समझदारी' के कारण ही सम्भव हो पायेगा ! नकारात्मक
राजनीति और बड़बोलई के कारण होगा !
और यदि मोदी सत्ता में आते हैं तो भी सेकुलर 'समझदारी '' का महान योगदान होगा !
पीएम जी , सोनिया जी , राहुल जी , दिग्गी जी , मनीष तिवारी जी , कपिल सिब्बल जी , नीतिश जी…की मोदी के प्रति समझदारी की महान भूमिका है मोदी की बढ़त में। एक निर्वाचित मुख्यमंत्री को 'हत्यारे ' कहते घूम रहे हैं ये लोग !
भारत में बीजीपी या कांग्रेस से हर दल का न्यूनतम -अधिकतम समझौता हो सकता है , सिर्फ बीजेपी -कांग्रेस का नहीं हो सकता !
अजित सिंह जी , नितीश जी , रामविलास जी , शरद जी जैसे नेतागण हमेशा 'सेकुलर' रहेंगे। चाहे कांग्रेस हो या बीजेपी।
क्रिकेट से कहीं ज्यादा अनिश्चित है हमारी राजनीति ! सबकुछ सम्भव है जी !
100 baton ki ek baat...kisi bhi mukhote me agar Congress bani rahi to isase jyada sharmnaak kuch nahi hoga...in swarthiyo se keval bhagwaan bacha sakte hai...
ReplyDeleteरवीश सर, मैं राजनीती में आपकी निष्पक्षता का प्रशंषक हूँ. पर मैं एक बात पर आपके विचार जानना चाहता हूँ. आजकल जो नयी प्रकार की आरोप आधारित राजनीति आम आदमी पार्टी ले कर आई है... क्या वो लोकतंत्र के लिया सही है..की अपना थोडा बहुत नाम करने के लिए किसी भी बड़े और सम्मानित राजनेता पर बिना किसी आधार के गंभीर आरोप लगा देना और बाद में उसे सिद्ध करने के लिए धरना प्रदर्शन करना? मैं भी जनता हूँ की आरोप प्रत्यारोप राजनीति में कोई नयी बात नहीं है.. पर बिना किसी आधार के आजकल के इतना ज्यादा मीडिया आकर्षित समय में ऐसा करना बिलकुल भी सही नहीं है..ऐसे तो राजनीती में लोगों का इमानदार रहना मुश्किल हो जाएगा.. अगर इस पर अपने विचार दें और एक बहस करें तो अच्छा होगा..
ReplyDeleteबात मायावती और मोदी की लड़ाई का नही हैं असल मे कांग्रेस के अलावा सभी को लगता हैं कि इस बार के चुनाव मे उनकी चाँदी होगी और ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा
ReplyDeletehttp://aaapkablog.blogspot.in/
प्रिय रवीश जी, मै पिछले कई सालों से आपके प्रोग्राम देखता और उनमे से अधिकांश की प्रशंसा करता रहा हूँ.पर मैंने एक परिवर्तन होते हुए अनुभव किया है जिसमें पहले तो बीजेपी का पक्ष लेना बंद करते हैं,किसी तार्किक मुद्दे पर भी,फिर अगर पैनल में कोई २००२ का ज़िक्र न करे तो आप उसे उठाना अपना कर्त्तव्य समझने लगते हैं;अगले पड़ाव पर आपको किसी बीजेपी प्रवक्ता की बात तार्किक तो दूर हास्यास्पद लगने लगती है, और उसे ही नहीं यदि बीजेपी के पक्ष में कोई निष्पक्ष विश्लेषक भी बोलने का प्रयास करे, तो उसे अपना पक्ष रखना नामुमकिन कर देते हैं. अगर आपका बीजेपी विरोधी यही रुख है तो आशुतोष की राह पकड़ लेना अधिक उपयुक्त होगा. आप भी खुल के आइये न मैदान में, ये क्या बात हुई कि कहलायेंगे पत्रकार और अपने राजनितिक झुकाव के अनुसार पक्षपात करेंगे. रविश जी,कृपा कर निष्पक्ष रहे और प्रतीत भी हों,यही मेरा अनुरोध है. नमश्कार..
ReplyDeleteउत्तर प्रदेश की लड़ाई दिलचस्प होगी. आपका आकलन एक हदतक सही है.लोकसभा चुनाव में इसबार सवर्ण वोट पूरीतरह भाजपा के पक्ष में न सिर्फ गोलबंद है बल्कि बहुत आक्रामक है. मुजफ्फरनगर के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश बहुत हदतक ध्रुवीकृत हो चूका है, कुछ-कुछ गुजरात की तरह.मध्य और पूरब में गैर-यादव पिछड़ी जातियां सभी के निशाने पे हैं.कांग्रेस-बसपा गठजोड़ कुछ गुल खिला सकता है.बिहार में भाजपा के पक्ष में सवर्णों की आक्रामक गोलबंदी भाजपा के लिए महँगा पड़ सकता है.वैसे एक सलाह है .पिछले कुछ दिनों में ,इस पेड मीडिया के युग में, कई संपादक और पत्रकार मोदी के प्रति आलोचनात्मक रुख के कारण नप चुके हैं.ज़रा संभलके.
ReplyDeleteKUCH JYADA DEEPLY ANALYSIS MEIN GHUS GAYE HO,CG MEIN BJP NE SAARI STSC SEAT JEET LI BALKI WAHA TO RESERVATION 4%KAM KAR DIYA USKE BAAD BHI ISS BAAR SAB HINDU BAN GAYE HAIN HAWA BADAL RAHI HAIN
ReplyDeleteAAPKI FB PE POST AUR BLOG PADKE LAG RAHA HAIN KI AAP AB NEUTRAL HOKAR NAI LIKTE ANTI-BJP SA SMELL AATA HAIN SIR JI AUR IS POST SE KAGA KI AAP APNE AAPKO CONVENCE KAR RAHE HAIN KI BJP NAI JEETEGI
ReplyDeleteSir aaj Reservation ke against "Prime time" Bahot acha laga. Please ek episode or kijiyega same topic pe.
ReplyDeleteApko or apke channel ko meri taraf se dehr saari shubhkamnayein jo aapne league se alag topic pe baat karne ki takleef uthai :)
God Bless You.
Ab apki halat dekhar to paka yakin ho jata hai ki BJP hi jitegi.Kyunki ab apke prime time show mein v apki BJP ke prati jhunjhlahat saf dikhai deta hai."AAP"se aisi umeed nahi thi,samajh rahe hain na samajhdar babu..
ReplyDeleteहे रवीश! तुमसे विनति तुम्हारे जह्वा पर जिस देवी का भी निवास स्थान है उसका सदैव मानव कल्याण के लिए ही उपयोग करना।
ReplyDeleteहे रवीश! तुमसे विनति तुम्हारे जह्वा पर जिस देवी का भी निवास स्थान है उसका सदैव मानव कल्याण के लिए ही उपयोग करना।
ReplyDeleteअटकल सटकल, जी भर भटकल।
ReplyDelete