चुनाव तो हो चुका है ।

लोगों के बीच घूमने से पता चलता है कि हवा का रुख़ क्या है । अब लगभग यह स्थापित होता जा रहा है कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने में रूकावट नहीं है । जिन लोगों ने फ़ैसला कर लिया है वे चुप हो गए हैं । उन्हें बार बार बोलने की ज़रूरत नहीं कि नरेंद्र मोदी को वोट देंगे क्योंकि ये बीजेपी के लोग नहीं है । आख़िर कोई तो बात होगी कि जहाज़ से लेकर ट्रेन, पहचान और दुकानों में मुझे एक आदमी नहीं मिला जिसने यह कहा हो कि वो कांग्रेस को वोट देगा । मैं नहीं कहता कि पूरे भारत के लोगों से मिल आया हूँ । 


यह चुनाव दम तोड़ चुका है । दम तोड़ने से मतलब मोदी के ख़िलाफ़ विश्वसनीय लड़ाई नहीं है । वाम हो या राजद हो या सपा बसपा या तृणमूल ये सब तदर्थ रूप से बीजेपी से लड़ रहे हैं । सबका दुश्मन नंबर एक कांग्रेस है मगर ख़िलाफ़ बीजेपी के लड़ रहे हैं । इन दोनों पंक्तियों को ग़ौर करेंगे तो अंतर समझ आ जाएगा । इन दलों की मजबूरी ये है कि बिना कांग्रेस को दुश्मन बताये जनता के बीच नहीं जा सकते क्योंकि जनता कांग्रेस से नाराज़ है बीजेपी से नहीं । बीजेपी से ये राजनीतिक दल वैचारिक आधार पर नाराज़ हैं मगर वो नाराज़गी महज़ औपचारिकता और अकादमिक है । कहने के लिए कह रहे हैं ।

लोग मुस्लिम मतदाता की बात करते हैं । १९९८ में जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनी थी तो उसमें मुस्लिम वोट का कितना योगदान था । चंद्राबाबू नायडू जैसे एकाध दल या नेताओं को छोड़ कर  । क्या ये सभी अपने दुश्मन नंबर एक कांग्रेस के ख़िलाफ़ एनडीए में नहीं गए । एनडीए में जाने की सज़ा किसी को नहीं मिली । चंद्राबाबू नायडू जैसे अपवादों को छोड़ कर जो अपने आप में विवादास्पद ज़्यादा है तथ्यात्मक कम बाक़ी दल अपने अपने कारणों से हारे और जीते । क्या ममता को बंगाल में मुसलमानों ने वोट नहीं किया । तो यही इस बार होगा । 

मुस्लिम वोट बैंक एक मिथक है । मुसलमान किसी एक दल को वोट नहीं करते । अगर ये देखें कि मुसलमान कितने दलों को वोट करते हैं तो कोई समाज या सामूदायिक समूह उनके मुक़ाबले नहीं ठहरेगा । वे कांग्रेस बीजेपी सपा बसपा, एनसीपी, राजद, जदयू, तृणमूल कांग्रेस आदि आदि कई दलों को वोट करते हैं । इधर कई मुस्लिम दल भी वजूद में आए हैं । असम से लेकर यूपी और केरल तक । ये छोटी संख्या में सीटें जीतते भी हैं और मुस्लिम मतदाताओं के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ाने का काम तो करते ही है । भले संसदीय क्षेत्र के स्तर पर रणनीतिक वोट करते हैं मगर देश के स्तर पर यह पचासों दलों में बिखरे हैं । उनके इस लोकतांत्रिक विवेक को तुष्टीकरण के चश्मे से देखना भी सांप्रदायिक रणनीति है । क्योंकि यह अकेली क़ौम है जो अपने पिछड़ने की क़ीमत पर भी धर्मनिरपेक्षता को महत्व देती है । इस क़ौम की इसी प्राथमिकता के कारण कई दल धर्मनिरपेक्षता की आलोचना करते हुए भी धर्मनिरपेक्ष कहते हैं । ऐसा नहीं है कि बाक़ी समाज या तबके के लोग साम्प्रदायिकता के ख़िलाफ़ नहीं है । कहने का मतलब यह है कि उनके लिए धर्मनिरपेक्षता का मसला 'अलावे' हैं । मतलब जातीय और वैचारिक निष्ठा के 'अलावे' । मुसलमानों के लिए यह 'अलावे' नहीं है । लेकिन वहाँ भी बदलाव है । राजस्थान में मुसलमानों ने बीजेपी को वोट किया है । यह साफ़ दिखता है । 

ख़ैर माइग्रेशन के कारण किसी दल से जातीय अंतरसंबंध टूटे हैं । वे दूसरे शहरों में जाकर शहरी हो रहे हैं । उनके लिए यादव होकर लालू या अखिलेश से ही जुड़ कर देखना एकमात्र विकल्प नहीं है । इसका सबसे बड़ा कारण है कि उन पार्टियों में नया वैचारिक आधार नहीं है जो पिछड़ी या दलित जातियों की वैचारिक राजनैतिक चेतना को मुखर कर सके । लिहाज़ा एकमात्र आख़िरी डोर है जबकि उन जातियों का स्थान बदला है । जो बाहर गए हैं वे लौट कर अपना वजूद यादव होने में या अति पिछड़ा होने में कम ढूँढते हैं । ये प्रक्रिया नई है । इसके बावजूद कि सीएसडीएस का एक दो तीन साल पुराना अध्ययन कहता है कि यूपी में यादव और जाटव का अस्सी फ़ीसदी हिस्सा सपा और बसपा को वोट करता है । मगर दिल्ली में बसपा का आधार क्यों टूट गया । 

सही है कि जातीय पहचान हर जगह या पूरी तरह नहीं बदली है इसीलिए मोदी खुद को पिछड़ा बताते हैं और केरल जाकर अपने साथ हुए राजनीतिक भेदभाव को जातीय भेदभाव में बदल कर दलित हो जाते हैं । खुद मोदी यह चुनाव उस पहचान के सहारे लड़ रहे हैं जिसमें गुजरात का मुख्यमंत्री होना तीसरे नंबर पर है, दूसरे पर पिछड़ा और पहले पर चाय वाला है । इन पहचानों को उभारना दो बातें कहता है । मोदी या तो जीत को लेकर आश्वस्त नहीं हैं या वे कोई चांस नहीं लेना चाहते । इसलिए यह चुनाव भी जात पात पर ही हो रहा है और मोदी भी वही कर रहे हैं जो मुलायम या लालू पर करने के आरोप लगाते हैं । एक भारत की बात करने वाला पिछड़ा पिछड़ा क्यों करता है । फिर बाक़ी के पिछड़ा और इनके पिछड़ावाद में क्या अंतर है । 

क्या मोदी मुलायम या लालू का विकल्प बन रहे हैं । नीतीश अखिलेश या माया सबने अपनी जातीय पहचान को पीछे कर सवर्णों को मिलाया है । अब नीतीश मुलायम या लालू भी पिछड़ा पिछड़ा नहीं करते हैं । क्या मोदी को ये लग रहा है कि उनके लिए सबसे मुखर सवर्ण तबक़ा ( ख़ासकर बिहार यूपी में) नारे तो लगा रहा है मगर जीत नहीं दिला रहा है । मोदी ने उनकी चिन्ता छोड़ दी है कि पिछड़ा पिछड़ा करने से ब्राह्मण भूमिहार राजपूत क्या कहेंगे ।

मुझे मोदी की इस रणनीति पर हैरानी हुई है । आख़िर उन्होंने जात पात से ऊपर उठकर राजनीति करने का विश्वास क्यों छोड़ दिया । तब जब लोग उन्हें इससे पार जाकर चुनना चाहते हैं । क्योंकि दिल्ली का प्रयोग बता रहा है कि पहचान मायने नहीं रखता । भारत में अब कई दिल्ली है जहाँ दिल्ली की तरह नए सिरे से प्रवासी मज़दूर या लोग काम करने गए हैं ।  रमन सिंह और शिवराज सिंह ने भी अपनी पहचान को नहीं उभारा । वे भी जीते हैं । मोदी छका रहे हैं । जब कमज़ोर विपक्ष सांप्रदायिकता की बात करता है तो वे विकास की बात करते हैं । जब विकास के सवाल पर चुनौती देता है तो मोदी पिछड़ा हो जाते हैं । 

आम आदमी का विस्तार इसीलिए हो रहा है कि जातीय,दलीय और इलाकाई निष्ठाएँ टूट रही हैं । माइग्रेशन की इसमें बड़ी भूमिका है । यही कारण है कि यूपी बिहार के राजनीतिक दल राज्यों में सरकार बना लेने के बाद भी दिल्ली के रास्ते में बीजेपी के सामने विश्वसनीय और स्पष्ट विकल्प नहीं दे पा रहे हैं और मुस्लिम वोट इन्हीं दलों के सहारे हैं । नतीजा इस बार यह भी होगा कि मुस्लिम वोट का ख़ास मायने नहीं रह जाएगा । मुस्लिम वोट कभी भी बैंड पोलिटिक्स या गवर्नेंस करने वालों के साथ नहीं जाएगा । ये उसकी धर्मनिरपेक्षता के अलावे दूसरी राजनीतिक पहचान का सवाल है । आम आदमी पार्टी के साथ जा सकता है मगर वहीं जाएगा जहाँ आप खुद एक मज़बूत विकल्प होगी । जिससे जुड़ कर वो एक और विक्लप चुन सकता है । 

जब तक यह नहीं होता और अब होता नहीं लगता है तब तक नरेंद्र मोदी फ़िनिशिंग लाइन पार कर चुके होंगे बल्कि पार कर चुके हैं । दो सौ सीटों से लेकर दो सौ बहत्तर सीटें सरकार बनाने के लिए काफी है । हारी हुई कांग्रेस के पास यह साहस नहीं होगा कि वो अपेक्षित रूप से बड़े जनादेश के ख़िलाफ़ किसी गठबंधन को सपोर्ट करे । कांग्रेस विपक्ष में ही बैठेगी क्योंकि लेफ़्ट सपा बसपा तृणमूल सब कांग्रेस के ख़िलाफ़ लड़ रहे हैं । दिल्ली की तरह कांग्रेस हर बार उससे मिलकर सरकार नहीं बनाएगी जिससे हारी हो । पिछले तीन चुनावों में गठबंधन के भीतर बड़ी पार्टी की संख्या बढ़ी है। मोदी कांग्रेस के 206 सीटों से भी आगे जायेंगे । हो सकता है कि मिशन 272 में कामयाब हो जाएँ । अकेले । मुझे यह होता लग रहा है । आम आदमी पार्टी के अलावा कोई मोदी से सीधे नहीं लड़ रहा । सब गुजरात दंगों की सीमित बात कर लड़ने की औपचारिकता पूरी कर रहे हैं । जो भी हो रहा है सब मोदी के लिए हो रहा है । अब यह तभी नहीं होगा जब मोदी की क़िस्मत में ही प्रधानमंत्री नहीं लिखा हो । 

30 comments:

  1. Ravishji aapko sunne se bhi jyada padna jyada chuta hai. Halanki FB par ke mazedar post miss kar rahi hu.Kam se kam ek bar hasne ka mau.ka mil zata tha .

    Kuch din pahle tak lag raha tha shayad chunav me jati important factor nahi hoga Lekin Modiji Jane unke pichdi jati se hone ka dindhora pitne ki salah kis PR agency ne di ? Gujarat me jati ki pehchan Bihar , UP jitna strong nahi hai. Mai Valsad se Surat Social function me hi ja rahi hu.Gujarat to Modimay ho hi chuka hai. Yaha par log political debate me kam interest lete hai par Modi ke PM banne ko lekar log utsahit hai.

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  2. aap shayad bihar se hokar ayen hai jaisa aapki recently post ki gayi photograph se lag raha hai. wahan congress ki halat kya hai aap jaante hain. Isliye aapka conclusion thoda anti congress ho gaya hai. jabki rahul gandhi ke recent promotion campaign (tv wala) aisa lag raha hai ki congress is coming back in race. mere view mein manifesto aane ke baad congress shayad aur improve karegi. resigning ke baad AAP will also change the mood swing.

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  3. मोदी कभी P M नहीं बन सकते ये सारी मिडिया का करा धरा है। जो ये आपने लिखा है उसकी पूरी जिमेदारी लेते हुये लिख रहे हो न। अगर ऐसा नहीं हुआ तो तब आप क्या करोगे। मीडिया तो मोदी को साल भर पहले ही PM मान चुकी है। आप अब मान रहे हो।

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  4. yeh to ham jaiso ko bhi maloom hai ki miracle ke bina Congress ko 100 se jyadaseat milna mushkil hai.

    baat gatbandhan ki hai , Shiv Sena aur Akali Dal ke saath bhi BJP 230 se upar jaati nahi dikhti.
    YSR congress ya TDP , AIADMK ka paitran , TRS ko kaise saamil karenge ,AGP ko to inhone durdura diya hai..
    Padhiyega Jaroor
    MORE and about Champaran ,AAP on http://atulavach.blogspot.com/

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  5. modi development, vision, technology ki baton se abhi tak bharat ke ek bahut bade warg ko apne sath jod chuke hain........ab garibon aur pichadon ko impress karne ke liye unhen pichhadi jati ka aur chai wala banana pad raha hai....

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  6. modi pe to kafi likh chuke,ab kejriwal ke tamashon par bhi apne vichar vyakt kar deejiye

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  7. koi kuchh bhi kahe Modiji innovative toh hai hi.

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  9. बात चुनावी है रवीशजी बीजेपी और मोदीजी हर तरफ से पुख्ता होना चाहते है क्युकी उन्हें भी पता है अगर इस बार नहीं तो कभी नहीं और इस समय कि सबसे खास बात है दिन पर दिन दिलचस्प होती जा रही राजनीतिक गतिविधिया जाने क्या होगा पर जो भी होगा गेंद बीजेपी और मोदी के पाले में ही रहने वाली है

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  10. Sir ji, Mujhe aapki aakhiri line charitarth hoti dikh rahi hai.. "PM banna Modi ki kismat mein nahi hai".. maine unki kundali nahi dekhi hai aur na hi main jyotishi hoon.. Lekin ek or jahan log MP mein Shivraj ko vote karne ko ready hain wahi Lok sabha mein Modi ko vote karne ko utsahit nahi hai.. Aur fir Aaam Aadmi Party kab Modi k hawa nikal degi pata hi nahi chalega.. Modi ke naam ka mauhal to TV pe bhi ek saal se bana hua tha lekin AAP aur Kejriwal ne bina kuchh jyada kare ek mahine mein hi Modi ko TV se nikal fenka... Ab to Kejriwal khula Sher hai..jab poora focus lok sabha pe rahega to fir Modi ka kya hoga ye to waqt hi batayega..filahl aaka survey sach sakta hai lekin is internet ke yug mein sach pal pal badalta hai aur fir abhi to lok sabha chunav ke liye 4 mahine waki hai.. Kejriwal ne Delhi mein jo kiya uske aage Modi tai tai fiss huye ise maanne mein aapko koi aapatti nahi hogi..Chalo maan bhi le ki kejriwal ke paas jyada waqt nahi hai ..to kya hua..Hawa nikalne ke liye ek puncture kafi hai...

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    1. Kejri ki ho gayi tayn tayn fisss bhogra kuch nahi kar sakta natak ke alawe...AAP WALE. SARE IMANDAR BAKI SARI PUBLIC CHOR....APNE ANDAR JHAKO AUR DUSRE KO BOLO NAHI TO KABIR KA DOHA YAD KARO BURA JO DEKHN MAI CHALA BURNA NA MILYA KOI JO DIL DOONDHA AAPNO MUJSHE CHOR NAA KOI

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  11. I can vote for BJP but not for MODI,

    ये सुनने में बहोत अटपटा लग रहा होगा लेकिन मै बहोत बड़ी बात लिख रहा हूँ, ऐसा इंसान इस देश का PM पद पर कभी नहीं होना चाहिए जिसके भाषा में ही कड़वापन हो, और जिसके शाशनकाल में सांप्रदायिक दंगे हुए हों और वो आज तक उस बात पर माफ़ी न मांगे उससे बड़ा अहंकारी और कौन हो सकता है और मै तो यही कहूंगा वो देश के लिए हितकर साबित नहीं हो सकता है, उसका यह व्यक्तित्व कल पूरी BJP को नष्ट कर देने वाला है.
    और जो देश कि तरक्की कि बात करता है कोई विकास और तरक्की इन पार्टियों के राज में नहीं होने वाली है, तरक्की कुछ हद तक हो भी गयी तो हर इंसान को शिक्षा के ढांचे में कसना और उनकी सोच को नया आयाम देना बहोत ज़रूरी है, किन्तु ये कार्य कोई पार्टी करने को तैयार नहीं केवल वोट बैंक कि राजनीती कि जा रही है वो भी जब चुनाव सर पर है, ये तो बस चुनाव के माहोल में अपनी अपनी रोटी सेंकते हैं, बाद में किसको किसकी परवाह।

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    1. Ek dam sach kaha,
      Or ban gaye to India ki vat lagne fix he..

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  12. इस चुनाव के निष्कर्ष देश के लिये अत्यन्त रोचक होने वाले हैं।

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  13. Namo ki raah me AAP hee sabse bade badha hai. Ambani, Adani hote yeh kahan tak pahoonchegee kuch ata pata nahi hai. Congress to teen anko ke liye(100 seats) lad rahi hai. Telangana mudde par think tank ka approach samajh se pare hai. Sitting 33 me se 4 bhi mil jaye to bhagwan ka shukra manaye.Aur to jo hai sa haiye hai.

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  14. सभी को सुनने से तो यही लगता है कि मोदी का रथ अब कोई रोक नहीं सकता। रही मुस्लिम मतदाताओ कि बात मोदी उनको भी लुभाने कि कोशिश कर रहे है और कांग्रेस साम्प्रदायिक बोल मोदी से डराने कि। लेकिन लोकसभा के नतीजे इस बार कुछ और ही कहानी लिखने वाले है।

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  15. Ravish bhai baut maja aaya aapke is blog ko padh kar sacmuch aap hawa ke isaron ko samjhne ke liye nikle the sayad theek hii samjha hai aapne...i was also a fan of AAP the way Arvind started bt thode hi der baad samajh me aagaya natak....AUR YE DESHKO BHI SAMJHNA JAROORII HAI..PRACTICAL LIFE KAHI MUSKIL HOTI HAI JO DAR KE BHAG JATA HAI WAH KUCH NAHI KAR SAKTA....HUM LOGO ME HI SARI ACHHAI AUR BURAI HOTI HAII.AGAR MAI YE KAHU KI I M D BEST ND HONEST AUR BAKI SAB CHOR BEIMAN TO ITSNT GUD ATALLL N I DONT THINK KOI BHI SAHI ADAMI ISEEE SACH MANEGA....MAINE APNE LIFE ME KABHI BJP KO VOTE NAHI KIYA UNKI VICHRDHARON KE KARAN BT THIS TIME. I LL KYONKI. WAQT KE. SATH CHEEJE BADLTI HAINAUR INSANKO badlne ka mauka dena chayee....ISBAAR TO NAMO KI BARII HAIII...HAAN TU PURNEA SE KHADAHOBA TOO TOHARA KE JAROOR VOTE DEL JAYEE...N LAST I ONCE AGAIN SAY I LUV N LIKE UR SHOW

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  16. kejriwal ko bahut under estimate kar rahe ho sir ji

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  17. Ravish ji hawa ka rookh shayad fir se badal raha hai..aam aadmi ki mand mand gandh bhi kahin kahin mahsoos ho rahi hai..khaaskar ke shahari ilaakon me..maamla trishanku bhi ho sakta hai..

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  18. Just because Modi's rally is attracting huge crowds does not mean it will translate to seats.
    Mission 272 is not possible. Here's why (number in brackets are Constituencies in the state):

    BJP's sure shot states = max of 100
    Maharashtra (+allies) (48), Madhya Pradesh (29), Gujarat(26), Rajasthan (25), Chhattisgarh (11)

    BJP has some presence = max of 80
    Uttar Pradesh(80), Bihar (40), Karnataka (28), Jharkhand (14), Punjab (+allies) (13), Haryana (10), NCT of Delhi (7), Uttarakhand (5), Himachal Pradesh (4)

    BJP has least presence = max of 20
    West Bengal (42), Andhra Pradesh (42), Tamil Nadu (39), Odisha (21), Kerala (20), Assam (14), Jammu and Kashmir (6)

    The rest of the union territories and the north-east states put together might give BJP around 10 seats.

    Total = max of 210

    Considerable change in the total will occur only if they have a pre-poll tie up in two of the big states - UP and AP, otherwise they are at the mercy of other parties after the election results.

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  19. yaahan comment padh ke lagta hai ki kuch pathakon ko aam admi party ne acha chutiya banaya hai yaa fir wo paid comment karte hain.
    Ravish ji aap ki baaton me dam hai our apki analysis to hamesha ki taraha best haiye hai.
    TC
    Ramanuj

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  20. एक कमेंट को पढ़ कर ऐसा प्रश्न मेरे दिल-ओ-दिमाग पर छाया रहा कि क्या हम २१वीं शताब्दी का शिक्षित समाज में जी रहे हैं कुछ घटिया शब्द जो आम तौर पर हमारे समाज के बिगड़ैल तथा अपरिपक्व वर्ग के द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द कृपया इस पटल पर न इस्तेमाल किया जाये तो बेहतर होगा। रही बात अपनी बात को प्रस्तुत करने का तो वह कई तरीकों से उसे किया जा सकता है और इंसान कि इज़ज़त स्वयं के हाथ में होती है चाहे उसे समाज में वह ऊँचा बना ले या अपने आप को गिरा ले.
    तो कृपया अपनी भाषा शैली को बड़े ही सोच समझ के साथ प्रस्तुत किया जाये ये मै खुद को भी समझने कि कोशिश करता हूँ जब कभी क्रोधित होता हूँ।

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  21. '' अब लगभग यह स्थापित होता जा रहा है कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने में रूकावट नहीं है। … मोदी छका रहे हैं । जब कमज़ोर विपक्ष सांप्रदायिकता की बात करता है तो वे विकास की बात करते हैं । जब विकास के सवाल पर चुनौती देता है तो मोदी पिछड़ा हो जाते हैं । ''
    ....... अब यह तभी नहीं होगा जब मोदी के क़िस्मत में ही प्रधानमंत्री नहीं लिखा हो। ''

    देखते रहिए रवीश ! नरेंद्र मोदी की इस बढ़त में 'गोधरा -गुजरात ' की बड़ी भूमिका रही है। प्रचार -दुष्प्रचार ! जांच एजेंसियों , न्यायपालिका से इतर भी मोदी पर फैसलें दिये जाने लगे। 'गुजरात' एक मुहावरे में बदल गया। कविताएं लिखी गयीं। कई काव्य संग्रह निकले। मोदी को हत्यारा और लादेन को लादेन जी भी कह दिया गया !
    अब बताइये एक निर्वाचित मुख्यमंत्री को देश का प्रधानमंत्री अहमदाबाद की सड़कों पर कत्लेआम करने वाला बताता है ! देखिये ! मोदी ने जो शाहिद सिद्दिकी को इंटरव्यू दिया। आपने छापा
    भी था। अगर मोदी गुनहगार हैं तो सज्जा दीजिये। लगा दीजिये तमाम एजेंसियों को। लगा दीजिये धारा 356 . कातिल मुख्यमंत्री क्यों है भाई ! मोदी को गुजरात की जनता ने सहानुभूति भी दी ! अरे इस पर सब पड़ गए हैं ! गुजरात की जनता ने इस रूप में भी मोदी पर हमले को लिया !
    अब देश के सन्दर्भ में देखें तो यूपीए -1 की गलतियों ने 'स्पेस' दिया है मोदी के लिए। एक नेता तो चाहिए न ! इस समय मोदी को किसी कांग्रेस और तीसरे -चौथे से डर नहीं है। डर आपसे है। आपसे नहीं 'आप' से . केजरीवाल वाचडॉग की भूमिका में उनके खेल को बिगाड़ सकते हैं ! किसी के भी खेल को !
    मोदी ने गुजरात के विकास को खूब भंजाया। भंजा रहे हैं ! उनके पास एक तुरूप का पत्ता रहा है जिसकी गुजरात में जरूरत नहीं पड़ी। पिछड़ा और गरीबी की राजनीति को उन्होंने खेल दिया है। यूपी बिहार , साउथ में जरूरत पड़ेगी न !
    सवर्ण …तो मायावती को भी अपना लिए। और मोदी की पार्टी का दर्शन तो 'ब्राह्मण' है न ! तो बिहार और यूपी के सवर्ण नीतीश , मुलायम को अपना लिए हैं तो मोदी को इस बिना पर थोड़े ही छोड़ेंगे ? जी हाँ , ....... अब यह तभी नहीं होगा जब मोदी के क़िस्मत में ही प्रधानमंत्री नहीं लिखा हो। ''
    सोनिया जी , राहुल जी , दिग्गीजी , मनीष तिवारी जी , कपिल सिब्बल जी , बेनी प्रसाद वर्मा जी , नीतीशजी और तमाम.... जीयों को श्रेय जाएगा , अगर मोदी जी सचमुच पीएमजी बन जाते हैं तो ! एक नयी तरह की अस्पृश्यता को जन्म दिया जा रहा है। अंगेया देकर बीजे तक गायब कर दिए नीतीश जी ! मोदी के कारण। अपने ऊपर भरोसा नहीं है तभी तो !

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  22. आपने पुरे लेख को एक पंक्ति में स्पष्ट कर दिया है, सबका दुश्मन नंबर एक कांग्रेस है मगर ख़िलाफ़ बीजेपी के लड़ रहे है। यही एकमात्र वजह है कि कांग्रेस आज तक और सर्वाधिक समय तक हमारे देश पर शाशन करती रही है। आम आदमी पार्टी भी इसी कड़ी में शामिल एक और पार्टी है, जो लड़ तो कांग्रेस से रही है लेकिन मुख्य उद्देश्य भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी जी को प्रधानमंत्री के पद से दूर रखने का है। अखिल भारतीय स्तर पर जो दृष्टिकोण मोदी जी का सामने आया है, राहुल जी कहीं से भी उसके आगे नहीं टिक पा रहे है। अपने व्यक्तित्व का प्रचार करने के लिए मोदी जी और राहुल जी दोनों ने बहुत धन खर्च किया है लेकिन एक बात स्पष्ट हो गई है कि प्रचार भी काम का ही किया जा सकता है बिना काम किये प्रचार या लोकप्रियता हासिल नहीं किया जा सकता। काम कर के मोदी जी से ज्यादा लोकप्रियता पाने का समय राहुल जी ने गवां दिया है। यही बात अरविंद केजरीवाल जी पर भी लागु हो रहा है, केजरीवाल जी ने न सिर्फ एक बेहतर अवसर गवांया है बल्कि पुरानी राजनीती से उब चुकी और राजनीती के प्रति सर्वथा उदासीन जनता को एक नई राजनीती कि जो उम्मीद केजरीवाल जी के रूप में नज़र आई थी उन्होंने उन सारी उम्मीदों पर यमुना बहा दी है। आने वाले दिनों में अरविंद जी के साथ साथ इसका खामियाजा देश को भी उठाना पड़ेगा। अब रही बात क्षेत्रीय क्षत्रपों कि तो उनके पास राष्ट्र स्तरीय दृष्टिकोण का सर्वथा आभाव है। आज तक के आज़ाद भारत का राजनैतिक विश्लेषण यही कहता है कि क्षेत्रीय क्षत्रपों ने राष्ट्रीय मुद्दों पर हमेशा से ही नकारात्मक प्रभाव छोड़ा है, ये कभी भी निज स्वार्थों से ऊपर उठ ही नहीं पाये और शायद इसकी वजह को ही वोट बैंक कि राजनीती कहा जाता है। कांग्रेस और भाजपा इन दोनों दलों में राष्ट्रीय दृष्टिकोण तो है ही, जिसमे कांग्रेस पूरी तरह से पिछड़ गया है और मोदी जी अपनी रैलियों में इसे नए और व्यापक तरीके से परिभाषित कर रहे हैं। मोदी जी फिनिशिंग लाइन पर कर रहे हैं। ऐसा नहीं हुआ तो मोदी जी कि किस्मत में नहीं बल्कि इस देश के किस्मत में एक बेहतर प्रधानमंत्री नहीं है।

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  23. Ravishji Poem likha hun....feedback dijiyega please..

    चुनाव अब जो पास आया है
    राहुल: हमने RTI लाया है
    मोदी: मैंने भी कभी चाय बनाया है।
    नितिश: मुझे किसी पर भरोसा नहीं है।
    माया: किसी को पिछडों का ख्याल नहीं है।
    सुषमा: कांग्रेस का अब सम्मान नहीं है।
    मुलायम: मुजफ़्फ़र नगर की बात ना करो
    शीला: लड़कियों अकेले ना बाज़ार जाया करो।
    राजागोपालन: तेलंगाना तेलंगाना।
    विश्वास: भंवर कोई अमेठी पर जो जा बैठा तो हंगामा।
    मोदी: मैं राजनेता गद्दावर।
    राहुल: व्हाट अबाउट वीमेन एमपावर?
    शिंदे:ये संसद कोई फुटपाथ नहीं है।
    अरविन्द: मैं आम आदमी हूँ जी मेरी कोई औकात नहीं है।

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  24. रविश जी एक हदतक आपका आकलन सही है. हालांकि इसका एक दूसरा भी है.शायद अभी वो दिख नहीं रहा है.समय के साथ यह आकार लेगा. अगर मेरा बस चले तो इस बार मोदी को प्रधान मंत्री जरूर बना दू. कारण एकदम भिन्न है.परिप्रेक्ष तो ऐतिहासिक है लेकिन भविष्य सामने दिख रहा है.

    हां, एक बात और,इसी तरह कभी-कभी मोदी के पक्ष में लिखा करें. भविष्य सुरक्षित रहेगा .

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  26. रवीश के पास बजट नही है इसलिए बिना प्रमोशन के जितने लोग भी इस सड़क का पता जानते होंगे, रवीश के फैंस ही होंगे, रवीश जो भी लिखते हैं हर कोई तारीफ करता है तब तक जब तक राजनीतिक ना लिखा हो, रामलीला मैदान पे खड़े होकर जब शपथ ग्रहण की रिपोर्टिंग की तो आप समर्थको ने खूब पीठ थप-थपाई, मोदी वाला रवीश फैन थोड़ा नाराज हुआ, आज मोदी वाले का दिन है, आम आदमी वाला रवीश फैन रवीश को ही नसीहत दे रहा है, राहुल वाला तो आजकल ज़्यादा दिखता ही नही, एक श्री कॉँमेंटबाज़ ने मोदी की तारीफ को रवीश के भविष्य की सुरक्षा योजना बताकर रवीश की निष्ठा को ही जूता मारा, अरे भाई अनुभव था प्री पोल सर्वे नही नाराज़ क्यूँ होते हो वोट देने मिलेगा ना आपको, रवीश जब भी राजनीतिक लिखते हो गाली खाने को तैयार हो जाया करो, किसी ना किसी से तो खाओगे ही, असल में हम सब आपकी शैली के कायल ज़रूर हैं पर सुनना पढ़ना वही चाहते हैं जो हमे पसंद है, अच्छा लिखते हो लिखा करो, तुम्हारा कहने का मन करता है पर हमारा वही सुनने का करता है जिन धारणाओ से हमारा मन ग्रसित है, नया कुछ भी हो भले सच हो हमे परेशान करता है हमारी अवधारणाओ से हटकर कुछ भी होगा तो झूठ ही होगा, पेड मीडीया के दौर में हर वो चीज़ जो हमे अच्छी नही लगती पेड बन जाती है, तुम भी...

    इंद्रजीत दीक्षित
    www.swatantr.wordpress.com

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