पता नहीं क्यों काफी देर से पाईलीन की रिपोर्टिंग देख रहा हूँ । मैं तो टीवी कम देखता था न । देखना ही छोड़ दिया था । फिर क्यों ? मैं क्यों करवटें बदल रहा हूँ । क्यों ? ऐसा बिल्कुल नहीं है कि पाईलीन तूफ़ान के कवरेज़ के कारण यह सब हो रहा है । मगर हो तो रहा है न । जैसे रात में बत्ती चले जाने पर अंधेरा डबल लगता है वैसे ही रिपोर्टिंग के छूट जाने पर लगता है । शायद एक कारण यह भी है कि टीवी कम देखता हूँ । किसी एंकर को देखकर लगता नहीं कि वहाँ होता । किसी रिपोर्टर को देखकर ज़रूर लगता है ।
एंकर के पास चार पाँच जोेड़े टाई जैकेट से ज़्यादा कुछ नहीं होता । इसी में वो घुसकर मुँह बिचकाता रहता है और हाथ मलता रहता है, आँखें मटकाता रहता है और नट्टी घड़घड़ाता ( बैरी टोन) रहता है । वो ज़रूर शहर की दुकानों में पहचाना जाता है मगर यह पहचान चौराहे पर लगे साइन बोर्ड से ज़्यादा की नहीं होती । उसकी स्मृतियाँ धीरे धीरे संकुचित होती चली जाती है । किस्से पुराने पड़ने लगते हैं । ख़त्म होने लगते हैं । एंकर नए कपड़े में भी बासी लगता है । कई लोग इस पहचान के साथ बेहद ख़ुश होते हैं । ठीक मेरे गाँव के उस लड़के की तरह जिसकी लंबे समय तक शादी नहीं हो पाती थी और जब होती थी तो दूल्हा भूरे रंग या क्रीम सूट में ऐसे इतरा कर चलता था कि गाँव भर के लोग देख लें कि उसकी भी बारात निकल रही है । मुझे न्यूज़ रूम में एंकर ऐसे ही दिखते हैं । इनको देखकर ही लगता है कि नाच पार्टी आ गई । अस्नो क्रीम पावडर पोत पात के । टाई और सूट के कंबीनेशन से लगता है कि कोई मूसा बैंड का मास्टर है तो कोई पंजाब बैंड का तो कोई राजा बैंड का ।
ख़ाली होने की पीड़ा पहचान की उठती निगाहों से नहीं दूर हो पाती । मुझे काफी वक्त लग रहा है यह स्वीकार करने में मैं भी नाच पार्टी का हिस्सा हो चुका हूँ । सुखी जीवन जीने के लिए ज़रूरी है कि इस सत्य को स्वीकार कर लिया जाए कि अब मेरे पास वो किस्से नहीं रहे, दृश्य नहीं बचे । शब्द कलाकारी होने लगे हैं । आप एक ऐसे खाँचे में आ जाते हैं जहाँ हर एंकर एक दूसरे की फोटोकापी लगने लगता है । दरअसल रिपोर्टर होने की याद से गुज़रना इसी संकट से गुज़रना है । हुआ ही कहाँ था । हो रहा था कि होना रूक गया । आप रातों रात एंकर बन सकते हैं मगर सालों साल बाद रिपोर्टर बनते हैं । मैं हर दर्शक से गुज़ारिश करता हूँ कि किसी एंकर को देखें तो बिना पहचाने बगल से निकल लीजिये और किसी रिपोर्टर को देखिये तो कंधे पर हाथ रखना मत भूलिये । ऐसा कर आप टीवी पत्रकारिता में ज़रूरी बन चुके एक बेवजह हिस्से को हतोत्साहित करेंगे और ग़ैर ज़रूरी होते जा रहे एक बेहद ज़रूरी हिस्से को प्रोत्साहित ।
कोई नहीं । मन दुखी होता है तो सुखी भी हो लेता है । मुझे पता है एंकर के बिना टीवी का काम नहीं चलता । किसी न किसी को बनना ही पड़ता है । हर समय आप ही नहीं चुनेंगे । कोई आपके लिए भी चुनेगा । इसलिए सुबुकने से अच्छा है नियति का सम्मान करना सीख लीजिये । आप में जिस किसी को जितना भी रिपोर्टिंग करने का मौक़ा मिले जमकर कर लीजिये । वहीं यादें हैं आपकी । जितना हो सके सहेजते रहिए । बाकी ये पुट एडिटर वो पुट एडिटर बेक़ार है जी । चुटपुटिया पटाका जानते हैं न । खाली पट पुट करता है । बजता रिपोर्टर का ही है । ग़लत बोले क्या जी । मिलते हैं सोमवार को प्राइम टाइम में ।
Dear Ravish Sir
ReplyDeleteaap apne blog me Like ka button lagwa lijiye kyounki facebook use karte karte itni aadat ho gayi hai ki kuch bhi accha padne par like button press kar dete hein..
aapke is blog ko padkar aapke "ravish ki report" ki yaad aa gayi....i miss a lot that one
sir aapse ek prashn ai kya aap ki reporting fir kabhi dekhne ko milegi???
mein apka prime time bhi dekhti hoon lekin thode time se wo repeated jaisa lagta hai..sorry for saying this
फ़ील्ड में काम करते करते ही यह समझ में आता है कि एंकर बन कौन से सवाल पूछने हैं, ज़मीन से जुड़े।
ReplyDeletewah sir kya nazariya hai khud ke awlokan ka aur bahut hi accha hai aap jaise log hi hai jo reporter ki value ko samajhte hia, tabhi to aap kayi baar prime time ka time cut karke kisi reporter ka show aur soch dikha dete hai,,,,,,lot'ss of thanks.
ReplyDeletewe love you sir As a anchor coz you do work like a new reporter jiske har sawal ka jawab leaders de nhi paate hai kyuki wo bahut hi kathin aur sacche sawal hote hai tabhi to aap unko salah dete ho ki tuff question ko chhod dijiye apne teacher ke reference se....
अंत: दृष्टी 'एंकर' स्पेशलिटी है या 'रिपोर्टर' की ?:) मुझे तो 'इंसानी' लगती है :)
ReplyDeleteसही कहा सर। हम आपकी रिपोटिंग के फैन तबसे जब आप रविश की रिपोर्ट पेश करते थे।
ReplyDeleteसही कहा सर। हम आपकी रिपोटिंग के फैन तबसे जब आप रविश की रिपोर्ट पेश करते थे।
ReplyDeleteमेरे शिकायत करने पर कि "नौकरी आजकल डस रही है", आपने ने ही कभी मुझे समझाया था - "नौकरी को गले में लपेटे रहिए"। :)
ReplyDeleteHaa sir Ravish Ki Report ka jawab nhi tha
ReplyDeleteUP se Kamaal Khan bhi lajawab reporting krte hai
Aur Aaj Barhampur se Manish Kumar bhi Mushkilo k beech reporting kr rhe h
Reporter ko salute..!!
5 din se intazaar kar raha hu, kaha hain bhaiya. . . prime time ke chakkar me kai traffic ki diware fan ke aata hu . . . 1 hafta ho gaya . . .aabki baar jhoot mat boliyega. . . milte hai prime time per. . .
ReplyDeleteआप एंकर है फिर भी आपका छोटा सा पटाखा भी किसी बम के धमाके से कम नहीं गूंजता। आप एक पूर्ण पत्रकार हैं, और हर उच्चाकांक्षी पत्रकार को आपसे सीख लेनी चाहिए।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सर, आपकी बात पर अम्ल किया जायेगा।
Namaskar sir g aaj bahut dino bad mai v bihar aya apne gaon gaya tab pata chala app kya cheez ho.Ap bar bar prime time mein bolte rahte hain ki ab gaon mein v log bijli(Current) nahi ane par log tractor se battery nikal kar t.v. dekhte hain, bilkul dekhte hain dekhte hi nahi uske bare mein jitna humlog nahi sochte utna unlog ek panchayat type ka bulakar harek najarion k bare mein charcha karte hain aur waise v gaon mein t.v dekhne ka apna hi ek alag maja hota hai sabhi gaon bale sath mein baithkar harek news ko dekhna aur phir uska punchnama karna kasam se bol raha hun ek alag hi maza deta hai sir g.unlog ka punchnama applog k t.v studio mein baithe political pandit v nahi de pate honge jitna unlog kar dalte hain harek comment ka, waise aaj yaha ka v prime time ka show cyclon k bare mein hi ka tha,sabhi log yahi bol rahe the "e ho yahan kakhni bandoba(cyclon)kab pahunch tau".
ReplyDeleteSir monday ko prime time....... but sunday ko hum log nahi aayega kya..
ReplyDeletePailyn sab jagah breaking news bana hua hein. Lekin india tv waalono ka breaking news kuchh or hota hein. Kya unko india ke news se koi matlab nahi hota.
ReplyDeleteआदरणीय रविश सर,
ReplyDeleteआपका ब्लॉग नया नया पढना शुरू किया है. मैं २२ साल का हूँ, नालंदा जिले बिहार का. ब्लॉग की आदत नहीं थी. इसलिए पुराने वाले पोस्ट नहीं पढ़ पाया था. ट्विटर पर फॉलो करता था आपको, लेकिन आपने अपना अकाउंट बंद कर दिया आपको खोजते खोजते ब्लॉग पर पहुंचा. आपके २००७ के पोस्ट से पढना शुरू किया है. नए वाले भी पढ़े हैं. अभी फिलहाल वन रूम सेट का रोमांस पढ़ रहा हू "जिंदगी को करीब से देखा है" ये डायलाग/ बात आपके सन्दर्भ में बिलकुल फिट बैठती है. आपकी कुछ कुछ बातें राजू श्रीवास्तव की याद दिला देती है. उनके भी चुटकुले आम आदमी के जिंदगी के बिलकुल नज़दीक के होते हैं. दुर्गा पूजा की छुट्टियां हैं, इसलिए लगातार दिन रात लैपटॉप से चिपका रहता हूँ आपके पुराने पोस्ट पढ़ रहा हूँ. ऐसे ही रेगुलर पोस्ट करते रहिये.
आपका बहुत बड़ा फैन
सोहन लाल
Aap bahut achchha likhte hain..Ravish ji
ReplyDeletegood morning Ravish sir, कभी कंही पढ़ा था, आज आपकी post पढ़ के फिर याद आ गया, "If you don't like how things are, change it! You're not a tree." ये आपकी लाइफ है, चुनने का हक़ भी सिर्फ आपको है l
ReplyDeleteravish ji
ReplyDeletenamaskar
Aap ka lekh accha laga. par ye problem to agge badne ke saath aati he hai. Aap kise IAS officer se puch le, aap ko uplabdi ke kisse apne collector ke time ke he batayenge. Par jo upar progress kar gaye hai, vo better hai tabhi to hua. So ankar hone ko bhi enjoy kijeye.
Bas itna kahna hai chhejo ko alag se dekhne ke aadat mat chodiye. Thoda ho raha hai aap ke saath bhi, kai baate stereo type kar rahe hai, jabki jamini sacch change ho chuka hai. Gor kijeye ga
क्या सर अंदर का पांच महीने पुराना रिपोर्टर जिंदा रप दिया। सोच रहा हूं अब डेस्क की जॉब छोड़कर रिपोर्टर ही बन जाऊं। पेज डिजाइन करवाने में वो मजा नहीं जो दर दर भटक कर नई चीजों को देखने में। अभी फोन करता हूं...संभावनाओं को ढ़ूढ़ने की तरफ
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ReplyDeleteरवीश भाईजी, आप तो एंकर में भी संवाददाता ही नज़र आते है। लगता है अभी अभी संवाददाता से प्रमोशन हुआ है। सच बोले तोआप की एंकरी भी कमाल की है।
Sir, your blog has just confirmed my doubt that your charm is diminishing as you are spending more time in studio than in field preparing "Ravish ki report". Your fan in me feels with passing time you have to toe official lines as well on various topics which restricts your freedom of expression which is/was life of your journalism. I am sad that I am gradually loosing my reason for watching news..
ReplyDeleteएंकर और रिपोर्टर की यह तुलनात्मक व्यख्या हमारे पढ़ाने के काम की है । अकादमिक पत्रकारिता की किताबों में भी सब -एडिटर को अनसंग हीरो क्यों कहते हैं ? सनातन सवाल बन गया है । रिपोर्टर पत्रकारिता का सबसे महत्वपूर्ण चेहरा है ---आदि -आदि ।
ReplyDeleteशायद , आपको एंक री से उब रोजाना के शानदार 'एकरस' बोरियत और जग प्रसिद्धी से हुई है ! आखिर प्रशंसकों की भी लिमिट होनी चाहिए न ! फ्लैट , बाज़ार , सिनेमा हॉल, रिश्तेदारी , शादी -समारोह ----हर जगह पहचाने जाने का और चैन से सिर्फ 'रवीश कुमार' (मोतिहारी वाले ) का न होने का गम है ! चैनल में भी' मैं रवीशजी के गाँव का हूँ ' कहकर मिलने वाले पत्रकारिता के बच्चे भी होते हैं जिससे की कम से कम उनसे मिला तो जा सके । उन तक संदेशा जा सके । गाँव के न हुए भी तो क्या जिले के या बिहार के तो हैं ही न ! आयेंगे --हो सकता है थोडा जुंझलाएं , मुलाकात तो हो ही जायगी । कह देंगे गार्ड भगा देता इसलिए गाँव का बता दिया । ध्यान रहे मोतिहारी और आसपास ही नहीं , पूरा बिहार वाले बच्चे ऐसा ही मानते हैं । यह एंकरी और रवीश की रीपोर्तरी से संभव हुआ । बच्चे कहते हैं 'मैं रवीश कुमार बनाना चाहता हूँ ' ! यह टीवी का असर है । टीवी सपने पैदा करता है ।
असंख्य फ़ोन - फान भी आ ते होंगे सुबह -शाम , किसी भी टैम । ' सर , आप बढ़िया बोलते -कहते हैं ' । 'तो मैं क्या करूं ' टाइप खीज होती होगी कभी -कभार । यह टीभी है जी !
बाकी आपका लिखा औसत भी कहाँ होता है ! फिर भी कह दे रहा हूँ बढ़िया लिखा है । सचमुच !
---प्रमोद
अच्छे और ईमानदार और खरी बात करने वाले पत्रकार आज विलुप्त होते जा रहे है. आप और हृदेश को देख कर लगता है की आप ही लोग है जो शायद जूझ रहे है ... आपकी बेबाक anchoring और हृदेश का हर आम आदमी की स्मस्या को cover करने का जुनून के लिए सलाम.
ReplyDeleteHey Priyavar sohan Lal.Ravish ke likhat se yaad karne ke liye koi aur nahi mila.kam se kam Bhando ko to mat yaad kiya karo.
ReplyDeleteशर्मा जी , थोड़ा आदमी की कद्र किया करो, कला की समझ न्ही है तो. राजू एक बहुत ही अच्छा कलाकार है. और उसके लिए आपने ये शब्द प्रयोग किया ये बड़ा civilized न्ही है..सोह्न की बात से सही है रविश और राजू की समझ जिंदगी को बहुत बारीकी से देखती है..
ReplyDeleteमूसा बैंड आज भी पटना में हिट है
ReplyDeleteरविश जी,
ReplyDeleteएक एहसान कीजिए,टीवी पत्रकारिता छोड़ दीजिए। एक साथ दोनों चीजें नहीं हो सकती। भाई साब, अगर कोई एक्टर या खिलाड़ी किसी ब्रांड के विज्ञापन करता है तो वो कभी उस ब्रांड की बुराई नहीं करता। ये पेशेवर नैतिकता का तकाजा है। ठीक वही बात आप पर लागू होनी चाहिए। आप टीवी पत्रकारिता का चेहरा हैं। अगर आपको अपने ब्रांड (काम) पर भरोसा नहीं तो फिर क्यों दर्शकों को बेवकूफ बना रहे हैं। छोड़ क्यों नहीं देते ये सब रविश जी। जो चीज आपके नजरिये से गलत है वो गलत है, फिर उसे आप जारी कैसे रख सकते? हाल के वर्षों में आपने टीवी पत्रकारिता के मौजूदा स्वरूप की तीखी आलोचना की है। दो राय नहीं कि आलोचना होनी भी चाहिए। लेकिन, बुरा मत मानियेगा रविश जी, आपके बहुत सारे ब्लॉग्स पढ़ने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि आप सिर्फ वाहवाही के लिए ऐसा लिखते हैं। जिम्मेदारी से बचने के लिए लिखते हैं। आप खुद को क्लीन रखने के लिए लोगों को भरमा रहे हैं। जनाब, आप एनडीटीवी में टॉप पोजीशन पर हैं। खुद बताइये बदलाव के लिए कौन-सा क्रांतिकारी कदम उठा लिया?