हिन्दी का पत्रकार अंतर्राष्ट्रीय नहीं हो सकता लेकिन मेरठ से सोनीपत के ब्रह्मांड की रपट लिखते लिखते थोड़ा ग्लोबल हो जाता है क्योंकि इन जगहों पर आपकी कंपनियों के माल सेल पर मिलते हैं । हिन्दी तो पढ़ नहीं पायेंगे फिर भी । अंग्रेज़ी ही जानकर आपने क्या कर लिया ।
तो महामहीम ग्लोबल राम रहीम ओबामा जी, इनदिनों आपको देखता हूँ तो मनमोहन सिंह याद आते हैं । आपकी रंगभेद, ग़रीबी और परवरिश के हालात वाली किताब खूब बिकी है । वैसे आपके कपड़े लत्ते तो कभी ग़रीब वाले नहीं दिखे । जिन दिनों आप अपनी ग़रीबी बेच रहे थे उन दिनों आप तो भरे पूरे संपन्न टक्सिडो सूट में दिख रहे थे । आपकी या आपके ऊपर लिखी किताब को हिन्दी में भी शायद प्रभात प्रकाशन ने छापा है । आजकल इंडिया में भी एक चाय वाला पंद्रह साल मुख्यमंत्री रहने के बाद अपनी ग़रीबी बेच रहा है । वो भी लाखों रुपये के मंच से । जो कहता है कि भारत के कुछ लोग यहाँ की ग़रीबी विदेशों में बेचकर अवार्ड ले आते हैं । मगर जनाब खुद अपनी ग़रीबी के अतीत को भुना गए । उसी मंच से । खैर अंकल न आप पहले थे न हमारे मोदी जी पहले हैं । सब अपने मौक़े के अनुसार अपनी ग़रीबी को चुन लेते हैं महान बनाने को । गाय भैंस चराने वाले लालू भी पंद्रह साल तक इन ख़ूबियों के कारण राज करते हुए जेल गए हैं । एक ऐसे ही ग़रीब को जब राष्ट्रपति बना दिया गया था तब न जाने क्या क्या बातें कहीं गईं थी । एक पहलवान और टीचर सीएम बना बाद में उनका बेटा आस्ट्रेलिया से पढ़कर सीएम बन गया । सब प्रतीक ।
ओबामा जी मैं यह ख़त इंडिया की पोलिटिक्स के ऊपर नहीं लिख रहा हूँ । आपको देखकर मनमोहन सिंह की याद आती है इस पर लिख रहा हूँ । आपका भी दूसरा कार्यकाल म मो जैसा है । जैसे नरेंद्र मोदी नमो हैं वैसे मनमोहन सिंह ममो हैं । मोमो मत पढ़ लीजियेगा । आप बहुओ हैं । बराक हुसैन ओबामा । बहुओ । केवल ओ पर अनुस्वार मत लाइयेगा वर्ना आप साँस बहू वाली लाइन में आ जायेंगे । आप फ़ेल हो गए हैं । चौपट अर्थव्यवस्था । चौपट ग्लोबल कूटनीति सब । इंडिया और अमरीका कई मामलों में एक हो रहे हैं ।
आज जब ख़बर आई कि अमरीकी सरकार बंद हो गई है तो मुझे बेहद खुशी हुई । काश इस ऐतिहासिक मौक़े पर आपकी सरकार का कर्मचारी होता तो ऐश करता । सात लाख लोग छुट्टी पर । काम नहीं करना पड़ता । ओबामाकेयर को लेकर रिपब्लिकन वाले ने आपको नचा रखा है । जैसे खाद्य सुरक्षा बिल को लेकर बीजेपी ने सरकार और संसद को नचा रखा था । सरकार बंद हो जाए इससे अच्छी बात क्या है । काश ममो की सरकार भी बंद हो जाती । आपने अमरीका की दुकान बंद करवा कर जो काम किया है वो अगर भारत में होता तो देखते आप । क्या आपने दुनिया में ब्रांड अमरीका की भद पिटवा दी ? मैं मित्रों से कहता हूँ आपने सरकार की दुकान बंद करवाई है, कोई भद नहीं पिटवाई है ।
अब आपकी तरह यहाँ भी 'कैन' और 'होप' बेचा जा रहा है । दरअसल सर ऐसे नारे सिर्फ एक चाल होते हैं जो विरोधी के मुक़ाबले अंतर पैदा करने के लिए गढ़े जाते हैं । आपने ऐसा कुछ नहीं किया जो आपके उदय से उभरी उम्मीदों को उचित ठहराते हों । आपके ये नारे पिट गए हैं । आप न कैन कर पाए न होप कर पाए । लेकिन आपका हर पिटा हुआ माल इंडिया में बिक जाता है । यक़ीन नहीं तो आप आकर देख लो । आपके प्रचार पंडाल की बाँस बल्लियाँ इंडिया की चुनावी सभाओं में लगने लगी है । इतिहास का सबक़ है कि जो लहर पैदा करता है वो उसी में बह जाता है । भारत में सत्तहत्तर की लहर पैदा करने वाले घोटाले में डूब गए फिर भी उस लहर की याद ऐसे करते हैं इस उम्मीद में कि लौटती हुई लहर सत्ता की नाव को किनारे लगा दें । सत्तहत्तर का एक इतिहास यह भी है सर ।
ओबामा जी आप लोकतंत्र में वोटर को झुंड में बदल कर झुमाने की कला में माहिर हैं । आपने नए नए माध्यमों का इस्तमाल किया है । आपके रहते चीन आगे निकल गया या एतना आगे आ गया । आप सिर्फ एक आदमी को वीज़ा न देने वाला कंट्री बनकर रह गए हो जो हर दूसरे दिन आपके यहाँ वीडियो कांफ्रेंसिंग करते रहते हैं । वो वहाँ है मगर आ नहीं सकता । ओबामा वीज़ा वाले । मेरठ में दुकानों के नाम होंगे एक दिन ।
मगर आपकी नाकामी के बाद से ज़्यादा उत्साही और प्रबंधन के चमत्कार से किसी उम्मीद का प्रतीक बनने वाले नेताओं से डर लगता है । विकल्प क्या है । जो अच्छा था वो भी फ़ेल था जो प्रचारित है वो भी फ़ेल है । बस न वहाँ पब्लिक को दिखता है न यहाँ । आपके प्रचार से पैदा हुआ जुनून आज फुस्स हो गया । यही वजह है कि सत्ता वही की वही रहती है बस चलाने वाला कहीं से आ जाता है । ग़रीबी से, जाति से, अल्पसंख्यक से, नस्ल भेद की पीड़ा से, चारागाह चाय की दुकान से, राज परिवार से, संघ परिवार से , जाने कहाँ कहाँ से । सत्ता का चरित्र कोई नहीं बदल पाता । उम्मीद की राजनीति फ़र्ज़ी है । आप उम्मीद बन कर आए थे अब लीद बन चुके हैं । राजनीति तभी बदलाव लाती है जब वो मुद्दों को लेकर व्यापक समझ पैदा करती है न कि प्रचार से यस वी कैन । ढैंन ढैंन ढैंन ं ।
आपका अमरीका यात्रा से वंचित पत्रकार ,
रवीश कुमार' एंकर'
पैस तो देर सबेर मिल ही जायेगा, छुट्टी नहीं मिलेगी। अव्यवस्था फैलेगी तो सभी दौड़े दौड़े आयेंगे।
ReplyDeleteبہت خوب لکھ دیا
ReplyDeleteरविश भाई,
ReplyDeleteआज आप ही की चर्चा कर रहा था अपने मल्टीनेशनल कंपनी में चाय की चुस्की लेते हुए.
सच बताऊ तो ख़ुशी तोह मुझे भी बहुत हुई जब अमरीका की सरकार ठप्प है ये सुना तो।
फिर सोचा की कहीं मैं उस देहाती औररत की तरह तो नही हूँ जिसका जिक्र नवाज़ ना-शरीफ कर गये .
वो औरत जिसकी खुद की ज़िन्दगी कठिनाइयो से परिपूर्ण है पर दुसरो की बहु बेटी के बारे में बातें कर के ही खुश हो लेती है .
अमरीका की सरकार का भट्टा भले ही बैठ गया हो पर उसनके डॉलर के मुकाबले हमारा रूपया आज भी वैसे ही खड़ा है जैसे स्कूल के नवी क्लास के गुंडे के सामने अपनी इलास्टिक टूटी ढीली निक्कर संभालता छठी क्लास का बच्चा। सब जानते हैं के गुंडा भले ही कितना बीमार हो जाए, बच्चा उसे कभी भी हरा नहीं पायेगा .
बाकी रही ममो या नमो की बात, तो इतिहास गवाह है भारत में शुरू से चलता पैसा है पर बिकती गरीबी है
जो अपने को गरीब साबित कर गया वही सी देश का हीरो है, भले ही वो आज कितना ही पैसा ले के घूम रहा हो पर उसने बचपन गरीबी में गुज़ारा है और वही गरीबी को भुना के अक्सर लोग दोलत और शोहरत की सीडी चढ़े हैं
दिल्ली की एक मिडिल क्लास फॅमिली में पैदा हो के मेरे जैसे नौजवान कभी कभार सोचते हैं के अपने आप को कैसे स्पेशल बनाये .
ना कभी भूखे रहे, ना हिंदी में माहिर, ना कान्वेंट वाली अंग्रेजी , ना गाँव की समझ, ना दिल्ली की हाई सोसाइटी की समझ , ना छोटी जाती का होने का प्रमाण, ना ऊंची जाती का होने का घमंड। कभी कभी सोचता हु के हे इश्वर कम से कम लड़की ही बना देता तो नारी उत्थान के नाम पे ही हंगामा क्र लेता .
खेर, मैं अपने विषय से भटक गया हु, इसलिए समाप्त करता हु (व्याकरण व् स्पेलिंग मिस्टेक्स के लिए माफ़ी )
रवि खुराना
Ravi Khurana
Deleteबहुत खूब भाई | इस कैमरा के साथ एक कलम भी पकड़ लो | खूब तरक्की करोगे | गुड लक |
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DeleteShukriya bhai :)
Delete
ReplyDeleteआपके पत्र पढ़ते हुए कुछ व्यंग्यात्मक लाइनों पर मुस्कराहट आती है, तो कुछ तीक्ष्ण शब्दों और वाक्यों पर घुटन भी होती है। कभी-कभी बहुत बेबसी भी लगती है। खैर, आपको पढने का एक अलग मजा है।
Ravi Khuranaji ke shuruwaati vakyon se kuch had tak sahamat...
Sonam Gupta- dar-asal main bhi nahi jaanta ke main likhna kya chahta tha, bhawo ko shabdo mein byaan karna sab ke bas ki baat nahi
ReplyDeleteRavish Kumar "anchor" ji... i have bookmarked your blog and visit it at least once to read any update. aapne Garibi bhunane ki baat kahi.. matlab..purani baaten.. aap Delhi Mahanagri me shayad early 90s se hain.. apne gaav patna shayad kabhi kabhi hi jaana ho paaya hoga..woh bhi kuch doni ke liye hi.. uske baad bhi aap apne bachpan ke gaav ki baat karte hain... to agar koi apne bachpan ki baat kare to aapko kya aappti ho rahi hai???? Gudri ke lal shahstri ji yaa phir Rajendra babu bhi to garibi se hi upar uth kar desh ke pradhan mantri aur mahamahim rastrapari banne hain.. yeh bharat ka saubhagya hai ki desh ki mitti se jude hue log shirsh par pahunch rahen hain...naa ki muh me silverspoon le kar paida hue log...
ReplyDeleteअमरीका यात्रा मैं कितने 'तीर्थ' है वैसे?और कौन कौन से?:) :-p
ReplyDelete'अर्थ व्यवस्था' के चलते लोग अमरीका जाते है-सुना है। 'अव्यवस्था' नया लॉजिक है :)
"ममो", "नमो" की "राग" रटते रटते हम सब नेपथ्य की ओर साफ तौर पर बढ़ रहे हैं.
ReplyDeleteरविश जी आपने इस ख़त के ज़रिये एक महत्वपूर्ण मुद्दे पर लिखा है मगर कुछ बातों के ऊपर प्रकाश डालने की गुस्ताखी कर रहा हूँ।
ReplyDeleteअमेरिकी सरकार के बंद होने का कारण ओबामा नहीं है बल्कि विपक्ष में बैठी रिपब्लिकन पार्टी है जिसका बहुमत है कांग्रेस में (जिसे अमेरिका की निचली संसद कहते हैं)। पिछले साल ओबामा ने गरीबी रेखा के निचे के लोगों को मुफ्त/बेहद कम दाम पर स्वास्थ्य सुविधा प्रदान करने का कानून लाया था जिसे ओबामा केयर कहते हैं। कानून उपरी संसद के द्वारा लाया गया था जिसमे ओबामा की डेमोक्रेटिक पार्टी की बहुमत है। इस स्वास्थ्य सुविधा के लिए सरकार को अतिरिक्त खर्च उठाना पड़ता। इसके अलवा इस कानून के अंतर्गत बिमा कंपनियों को गरीबों से कम पैसे लेने पढ़ते जिसकी वजह से उनका मुनाफा कम हो जाता। और चूँकि देश के हरेक नागरिकों के पास स्वस्थ्य बीमा होता तो इसका मतलब यह होता की की बीमार पड़ने वालों की संख्या ज्यादा होती स्वस्थ्य रहने वालों के मुकाबले। बिमा कंपनियों ने माना की अमीरों के मुकाबले गरीब ज्यादा बीमार पड़ते हैं और अस्वस्थ रहते हैं। इस स्थिति में बिमा कंपनियों को अस्पतालों को ज्यादा पैसे देने पड़ते जिससे उनका लाभ काफी कम हो जाता।
ऐसी स्थति में बिमा कमपनियों नें विपक्ष में बैठी रिपब्लिकन पार्टी को लॉबी (इसमें पैसे भी दिये जाते हैं और यह गैर क़ानूनी नहीं है अमेरिका में) किया की इस निति का विरोध करे। इन सब बातों से सहमत होकर रिपब्लिकन पार्टी ने यह निर्णय लिया की अमेरिका आज के आर्थिक हालत में गरीबों के स्वास्थ्य बीमा के खर्चे का बोझ नहीं उठा सकता और इसके अलावा अगर बीमा कंपनियों का अगर मुनाफा कम हुआ तो अमेरिकी अर्थ व्यवस्था में इसका प्रतिकूल असर पढ़ेगा। जीडीपी ग्रोथ और कम हो जायेगा।
रिपब्लिकन पार्टी प्राइवेट कंपनियों की पार्टी रही है और किसी निति पर अपनी स्थिति अक्सर प्राइवेट कंपनियों के फायदे के अनुसार तय करती है। और इस बार भी उन्हों यही किया। जिसका परिणाम हुआ की उनके विरोध के कारण ३० सितम्बर तक राष्ट्रीय बजट पास नहीं हो पाया और फिर सरकारी संस्थानों को बंद करना पड़ा। और जब तक बजट पर सामंजस्य तय नहीं हो जाता तब तक यह स्थिति बनी रहेगी।
निश्चित तौर पर ओबामा अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपतियों की तरह ही एक घटिया राष्ट्रपति हैं जिन्हें अपने बाहुबल का हुमास मारते रहता है। मगर इस वाले मसले पर उनका दोष नहीं है।
साल २०१२ में वाशिंगटन इस्थित जॉर्ज वाशिंगटन विश्विद्यालय के छात्र संघ नें में मुझे विद्यार्थियों के लिए स्वस्थ्य निति बनाने का जिम्मेवारी दिया था। पुरे साल मैं इन्ही मुद्दों पर जूझता रहा और इस दौरान कई बिमा कंपनियों और सरकारी अधिकारीयों से इस मसले पर बातचीत करने का मौका मिला। और मूलतः सब लोग यह साल भर से जान रहे थे की ऐसी स्थिति आनी निश्चित थी क्योंकि कोई प्राइवेट कंपनी इस निति के हक में नहीं थी। जब तक ओबामा अपने ओबामा केयर की धुन नहीं छोड़ते या फिर उसे एक साल के लिए स्थगित नहीं करते तब तक यही स्थिति बनी रहेगी। अमेरिका में सरकार अब तक कूल १७ बार बंद हो चुकी है। पिछली बार सरकार ९५-९६ में बिल क्लिंटन के कार्यकाल के दौरान बंद हुई थी।
Ravishji ap achhe ankar ho to uska matlab ye nahi k ap kisi insan ko apne trikrse nicha dikha sako apko apni okkat ka dhayn rakhna chahiye kya chay bana k bechane wala sirsh pad pe nahi beth sakta kys soch he apki yar bhut bura lagta he ye padh kar or dusari bat apki okkat bhi nahi he unko rokneki samje yad rakhna tumare jesrt kutto bhokte hi rahega modiji ko koi fark nahi padta ap to pefa hi hua ho bhokne ke lia bhoko bud bhokte hi raho
ReplyDeleteRavishji ap achhe ankar ho to uska matlab ye nahi k ap kisi insan ko apne trikrse nicha dikha sako apko apni okkat ka dhayn rakhna chahiye kya chay bana k bechane wala sirsh pad pe nahi beth sakta kys soch he apki yar bhut bura lagta he ye padh kar or dusari bat apki okkat bhi nahi he unko rokneki samje yad rakhna tumare jesrt kutto bhokte hi rahega modiji ko koi fark nahi padta ap to pefa hi hua ho bhokne ke lia bhoko bud bhokte hi raho
ReplyDeleteSir, main aap ki fan hoon or main aap main Premchand Ji ki jhalak dekhati hoon. Halaki main Obama Ji ki respect karti hoon par mujhe aape vichar ko padkar acha laga or face par ek Badi vaali smile aagayi.
ReplyDeleteGOOD JOB SIR..
Sir, main aap ki fan hoon or main aap main Premchand Ji ki jhalak dekhati hoon. Halaki main Obama Ji ki respect karti hoon par mujhe aape vichar ko padkar acha laga or face par ek Badi vaali smile aagayi.
ReplyDeleteGOOD JOB SIR..
रविश जी, आज कल मोदी जी से inspire हो गये है क्या..सिर्फ़ शब्दो की युगल बंदी मे उलझे है... अर्थ क्या है , तथ्य क्या है इतना तक तो श्रोता पहुच ही नही पाता बस शब्दो के घुमावट , बनावट मे ही फसा रह जाता है. कही आप पत्र्कार से साहित्यकार होने का मनसा न्ही बना रहे.. वैसे fiction category मे लेख अच्छा था .. पर अगर आप non fiction मे सोच के लिख रहे थे तो Shasvat Gautam का comment ज़्यादा informative and unbiased था...
ReplyDeleteरविश जी
ReplyDeleteआखरी पंक्ति पढके ऐसा लगा की जैसे आपके "दिल के अरमान आसुओं में बह गये" हों | टेंशन मति लो , टशन में रहो | क्यों की आपकी सहकर्मी बरखा दत्त क्या गुल खिल के आई है , उसकी ट्वीटर पे खूब चर्चा है |
आपको भी "मरीका" जाने का ज़रूर मोका मिलेगा बस हिंदी से चिपके रहिये | क्योकि मैंने ऐसा सुना है ओबामा जी जेब में हनुमान जी की मूर्ति रखते है |
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ReplyDeleteकहने का मन करता है...
ReplyDeleteपढ़ने का मन करता है...
देखने का मन करता है...
सुनने का मन करता है...
रवीश जी,अच्छा लिखते-लिखते आप पूर्वाग्रहों से ग्रसित हो कुछ ऐसा लिख जाते है जिससे पाठको को लगता है अब आपकी लेखनी भी इमानदार नही रही या फिर आप आज भी उस मानसिकता से ग्रसित है जिसे सत्ता सबसे नीचे तबके के आम लोगो को हस्तांतरित करने में पीड़ा महसूस होता है!मोदीजी ने अपने गरीबी का मार्केटिंग नही किया उन्होंने भाजपा और देश की जनता का आभार प्रगट किया और बताया कैसे एक चाय बेचने वाला आपका पार्टी का आशीर्वाद पा प्रधानमन्त्री बनने का ख्वाब सजो सकता है!भाजपा में लोकतंत्र जिन्दा है इसका प्रमाण भी
ReplyDeleteAjit rai me apki bat se sahmat hu kyuki ravishji prejudice ho jate he bus wohi bat yah pe nahi jamti uper wala unhe sadhbudhi or shisunita de .
ReplyDeleteAjit rai me apki bat se sahmat hu kyuki ravishji prejudice ho jate he bus wohi bat yah pe nahi jamti uper wala unhe sadhbudhi or shisunita de .
ReplyDeleteसोरी भैया । आप मीरका को अमरीका लिख गए ।
ReplyDeleteसोरी भैया । आप मीरका को अमरीका लिख गए ।
ReplyDeleteApp me se kuch logo ko kyu lagta hai ki ravish jee modi virodi hai? Wo hamesa sahi likhate hai bas aap log modi bhakt hai isi leyae aap galt samajh layte hain.
ReplyDeleteApp me se kuch logo ko kyu lagta hai ki ravish jee modi virodi hai? Wo hamesa sahi likhate hai bas aap log modi bhakt hai isi leyae aap galt samajh layte hain.
ReplyDeleteAb to obama bhai saab ko visa de dena chahiye. Unki "Yes v can"ko copy maar liya hai kisine??
ReplyDeleteIss baar ke P.M delegation mein shamil na ho paane ka frustration dikh raha hai....lekin koi nahi apne congressi aakaon ki khushamad jaari rakhen...jald mauka milega..
ReplyDeleteआज रविश ने अपने ब्लॉग में नमो की तर्ज़ पर बराक हुसैन ओबामा को बहुओ का खिताब दिया । तो कहीं बेचारे दूसरे नेता अपने हीन भावना का शिकार न हो जाए यह सोचकर मै कुछ लोगों की कड़ी पूरी कर रहा हूँ । मसि, सोगा, रागा, रसि, मूसि, लाया, शप, मबे, निकु, दिसि, मुअन, शाहु, अजे, उठा, राठा, यरासि, फाअ, उअ, शिसचौ, यसि, मुमजो, पीची, कसि, अके. वॉट एन आइडिया सर जी ।
ReplyDeleteअइसन लिखोगे का यार गुरू?
ReplyDeleteइंडिया इंक भरवाए हैं का पेन में?