बहुत दिनों से कुर्ते का कपड़ा रखा था । क़मर अली को दे आया । मालूम नहीं क्यों । शायद बाबूजी को महसूस करना चाहता था । वैसा ही कालर मगर लंबाई उनके जैसी नहीं । बदन पर कुर्ता डालते ही लगा आइने में वे खड़े हैं । उनको अच्छा लग रहा है । नाप सही है या नहीं इस बहाने एक के बाद एक तीनों कुर्ते पहन डाले । सफ़ेद वाला देर तक रह गया । मालूम ही नहीं चला कि कब आँखें भींग गईं और कब कुर्ता । आज बहुत दिनों बाद उनको देखा है । मेरे बदले वही मीन मेख निकाल रहे थे । कंधे पर ठीक फाल नहीं है तो कालर ज़्यादा खड़ा हो गया है । अचानक हाव भाव और चेहरा उनसे मिलने लगा । कभी खुद को आइने के सामने इतनी देर नहीं देखा । इस तरफ़ से मैं और उस तरफ़ से वो । जैसे उन्होंने कह दिया हो फ़र्स्ट क्लास । इ नू भइल कुर्ता !
इसीलिए कुर्ता नहीं पहन पाता हूँ । पहनते ही लगता है कुर्ते में मैं नहीं हूँ । बाबूजी हैं । मन अचानक उनके कुर्ते की खनक को पहचानने लगता है । याद तो बहुत आती है उनकी । हर पल । चलती कार में उन्हें पुकारने लगता हूँ । पाँच साल हो गए । दफ़्तर जाने से पहले बहनों को फ़ोन लगा देता हूँ । किसी न किसी बहाने उनके बारे में बात करने के लिए । जब तक थे हर सुबह उठ कर पहला काम उन्हें फ़ोन करना, दवाई के बारे में पूछता था । अब भी जल्दी उठता हूँ फ़ोन करने के लिए ही, फिर नींद नहीं आती । फ़ोन ख़ाली लगता है । दिन भर में तीन चार बार फोन करना । खाँस रहे हैं । खाए नहीं । सोए थे क्या ।
कुर्ता सचमुच भारी कर देता है । मैं कुर्ता ही पहनना चाहता हूँ मगर होता नहीं है । इतना ख़ालीपन भर जाता है कि बस उनके पुकारने की आवाज़ खनकती रहती है । चलेके बा, कुर्तवा न देलक ह हो । दिल्ली चल जइब त सिया न पाइ । उन्हें लगता था दिल्ली में किसी को कुर्ता सीलने की तमीज़ नहीं । मैंने भी कब और क्यूँ मान लिया पता नहीं । आज क़मर अली ने जब सील कर दिया तो पटना की कमी नहीं खली । कमी खल गई बाबूजी की ।
dhanya h aapke pita ji jinhe aap itna
ReplyDeleteyad karate h...yaha to log jite ji pita
ko mar dete h..bat kiye huye mahine beet
jate h..sayad ye lekh padh k unhe b samajh aa jaye...kurta acha laga aapka.
मन भावुक हुआ जा रहा है ...आत्मग्लानि हो रही है की पिताजी को फोन नही करता बिना किसी खास वजह के , याद है जब घर से पहली बार अहमदाबाद के लिए निकला था तो पिताजी की आँखो को पहली बार भींगा हुआ देखा था , आज भी ज़रा सा बुखार आता है मुझे या मेरे बच्चे को तो सारी रात सो नही पाते वनहा दरभंगा मे, सुबह 5 बजे श्रीमती जी को फोन कर के हाल जानते हैं .
ReplyDeleteमहीने का बिल 25 पन्नो का पर उसमे पिताजी माताजी का नंबर 2 से तीन बार ....मुझे शर्म आ रही है
Naaz hota he App par,fakra ki bat he apke bapuje ne aapko insaniyat,sachai ko be jizak bolne ki takak de he,use virasat ko kabhi khone na dena,
ReplyDeleteGreat..........
ReplyDeleteGreat..........
ReplyDeleteGreat..........
ReplyDeleteश्राद्ध पक्ष मैं पित्रुओं की स्मृतियाँ सहज है और उचित भी ।है न? इसको शगुन मानते है यहाँ-पित्रुओं के सद्गुण हम मैं आए वैसी प्रार्थना करते है इस शगुन के होने पर:) वित्तीय स्थिति अछ्छी हो तो कोई पूर्त कर्म का संकल्प करतें है।(मेरे नानी 'बा' मुझे इस जगत मैं सब से प्यारी है(थी) वे हमारे घर आती तो मुझ से ही cupboard share करती-उनके कपडें देख कर मेरी आंकें कल ही नाम हो गई तो मुझे दिया गया आध्यात्मिक मन फेर मैंने आप को लिख दिया है ) :) बाकी इन्सान की जगह तो महाकाल भी भर नहीं सकते-no replacement pattern :-(
ReplyDeleteकुर्तेवाला फोटो जरुर post कीजियेगा वैसे:)क्या?:)वो तो just conform करने की आप वही ravishji ही हो-i mean नेता जाती मैं convert हुए हो या नहीं:) :-p
father= hero of the child's life...cherish the memory
ReplyDeleteवाव,कुआँ खुदवाना ,पानी की परब बिठाना,गरीब को घर बना के देना,पेड़ लगाना एटक को पूर्त कर्म कहते है -आप एक छोटी सी तुलसी ही बो दीजिये किसी गमले मैं और रोज जल देना पिताजी को याद करके you will feel very good :)
ReplyDeletehummm. Main khush hun mere pitaji mere pas hain. Bas aise h inspire karte rahiyega hame.
ReplyDeletefather= hero of the child's life...cherish the memory
ReplyDeleteहमारी जिंदगी में बहुत लोग हैं, जिन्हें हम याद करते रहते हैं । बहुत खुशी या ग़म हो.... अपने याद आ ही जाते हैं । आप ही कहते हैं... "चलते रहिए "...."वो जब याद आए बहुत याद आए, ग़में जिंदगी के अँधेरों में हमने.... चिरागें मुहब्बत जलाए बुझाए.... "
ReplyDeleteभाउक कर दिय सर आपने आज.. आपके विचार अतुलनिय है.. हम उन्हे भले न याद करे ..लेकिन ..शायद ऐस कोइ पल नही ..जब वो हमे याद न करे.. :(
ReplyDeleteravish सर आपके ब्लॉग को किसी अपने को पढाया, ये बताये बिना क आपका है उसने समझा की मैंने लिखा है। आपके बाबूजी कुर्ते में भी हैं और आपके हृदय में भी।आज भी सुबह शाम वो आपसे जरुर बात करते होंगे। पत्रकार के कर्तव्य को जिस निष्ठा से आप निभा रहे हैं वो उनके कुर्ते को और वे चमकदार बना रहा है।
ReplyDeleteमैं मुंबई में रहता हूँ रोज आपकी तरह सुबह और रात में पूछता हूँ नींद भैल रहा ,खाना खिलक रहा।एक नौकरी के चक्कर में घर द्वार सब छुट गया|
मार्मिक ! अपने इतने निजी भावनाओं , संवादों और संवेदनाओं को शेयर करके आपने हम सबके जीवन में भरे खालीपन को आवाज़ दे दी.. (सार्वजनिक तौर पर , अभी और ज्यादा लिखते नहीं बनेगा इस विषय में, इसलिए कमेंट यहीं ख़तम किये दे रहा हूँ)
ReplyDeleteबाबूजी की स्मृतियाँ आपको सदा ही शक्ति देगी, कुतर माध्यम बनकर आयेगा।
ReplyDeleteमेरी आंखों में आंसू आ गए पढ़कर..
ReplyDeleteदिल छू लिया आपने रवीश जी मौका देखिये मैं भी अपने पापा के पास ही जा रहा हूँ उनसे मिलने.....
ReplyDeletebahut badhiya likha sir, aap ke pitasri punyatma hai. jinke gun aap sambhaal rahe ho.. mata pita ke liye ye samaan or itna aadar tabhee aata hai jab unhone apne jeevan main inhi guno palan kiya hoga. Nishchit hi wo ek mahaan vyaktitwa hain.
ReplyDeleteमेरे बाबाजी भी मेरे लिए कुर्ते छोड़ कहीं गायब हो गए, जब भी ज्यादा याद आते है मैं भी उनका कुर्ता पहनकार यादों में जाकर उनसें बहुत सवाल करती हूं।
ReplyDeleteआपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी यह रचना आज सोमवारीय चर्चा(http://hindibloggerscaupala.blogspot.in/) में शामिल की गयी है, आभार।
ReplyDeleteस्मृतियों के सहारे ही समय बीतता जाता है और साथ ही बीतते हैं हम...
ReplyDeleteNirala,Shrilal Shukla ki rachnao ke baad aap ke "satsaiye ke Dohre"ne feer padhne aur padhne,padhte he jau
ReplyDeleteki bhukh kojaga diya.
Ravish je ye Dilmange more.
Rajeev ji thik kahete hai aap ke babuji aapke sath hai har vakht. Aajj subah se ndtv pe aap hi ko dekh rahi thi aur abhi ye padh k natmashtak ho gayi. Aap sach me bilkul hindustani hai. Down to earth. Gujarat me pale bade english me padhe mumbai me rahete hai to bhasha koi bhi puri tarah se nahi sikh paye. Aap ki tarah chah kar bhi apni bhavnao ko shabd nahi de pati hu. Satymev jayte ka ek song aaj bhi rulata hai"ghar yad aata hai mije" meta bhi hal yaha aisa hi he
ReplyDeletePar thodi jyada khush kishmat hu me apne papa se aur unse hi ajij sasurji rup papaji bhi roj phone pe bat karleti hu. Par aaj bhi jab mere bache apne papa k sath khelte he to mujhe apne papa bahot yad aate he. Maine gujrati me papa par ek article jaisa kuchh likha bhi hai.aap ne to hamari aankhe bhi nam kardi
उम्दा पोस्ट
ReplyDeleteहम भी एक कुरता सिलवाये हैं :))
ReplyDeleteबड़े भाव से लिखा हुआ लेख है !!!
ReplyDeleteमन भर गया पढ़ के, बहुत बढ़िया लिखे है रविश बाबु।
ReplyDeleteसंदीप कुमार
bahot achha Likhte hai Aap
ReplyDeleteSir ji aap ne to aankho ko majbur kar diya chhalakane ko...............
ReplyDeleteव्यस्तता की गर्द से ढंके हुए दर्द को छोटी छोटी चीजें हवा देकर उड़ा देती हैं| लेख में बहुत कुछ जाना पहचाना लगा - पिताजी , कुर्ता और इस याद से जुडी हुई पीड़ा जिससे शब्दों में उल्लेख करना संभव नहीं| :(
ReplyDeleteVery touching sir...jab apke blog padhte hai to lagta hai koi apna sa bol raha hai...man bhar aata hai.
ReplyDeleteRAVISH SIR AAPKI PITA JI AUR AAPKA UNKI TARAF INTNA PREEM DEKH KE MUJHE AAPNI NANI KI YAAD AHA GAYI KUCH MERI BHI KAHANI AHSI HI HAI BACHPAN SE UNHOONE MUJJHE PAAL POSS KE BADA KIYA JAB PEECHLE SAAL UNKA DIHAANT HO GAYA TOH MUJHE BHI UNKI BAHUT YAAD ATI HAI JAB UNKO CHOODKE MEIN DELHI AAYA TAB MEIN BHI UNHE ROOZ SHAAM KO PHONE KARTA THA AUR APNI PURE DIN HAAL SINATA THA YEH KARKE DIL HALKA HO JATA THA THANK YOU SIR YEH BAAT YAAD DILANE KE LIYE .....
ReplyDeleteश्राद्ध पक्ष चल रहा है..पिताजी को लेख दिखाया,आंखें भर आईं,अपने मां-बाबूजी को याद करने लगे...मैंने ढांढस बंधाया..पर टूट तो मैं भी चुका था...जीवन के दो पहलू होते हैं दूसरा यही तो है..
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