बर्लिन की इमारतें - सादगी के रंग

मुझे मकान और खिड़कियाँ देखने का शौक़ है । आर्किटेक्ट नहीं हूँ इसलिए उनके बारे मे ठीक ठीक व्यक्त करने की भाषा नहीं है । मई में बर्लिन शहर में था । काफी वक्त लगाया वहाँ की इमारतों को देखने में । सबकी रंगत में एक ख़ास बात नज़र आई । हर इमारत दूसरे की पूरक नज़र आई । इमारतें ख़ूबसूरत तो हैं मगर इनमें खिड़कियों का बड़ा हाथ है । इन खिड़कियों के आधार पर कुछ लोगों ने बताने का प्रयास किया कि युद्द पूर्व और बाद की खिड़कियां कैसे बदली हैं । विश्व युद्ध से पहले के मकान रंगीन नहीं होते थे ( सामान्य जानकारी है ) बाद की इमारतें रंगीन होने लगीं । वास्तुकला का एक चरित्र तो है ही । ये तस्वीरें आपकी नज़र कर रहा हूँ । 






11 comments:

  1. पुरानी pics पर brand new reviews चाहिए?:)
    very smart!:)
    तिन महीने बाद comments आयेंगे तो चलेगा?:-\
    office दत्त iPhone वापस ले लेते है क्या ?:)

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  2. Ravish, ek baat gaur kijiyega sare ke sare buildings bina chemical paint or distemper ke hai, buildings sirf chemical color se khoobsurat nhi hota architecture se hota hai. hum bhi india me thoda chemical paints kam use kare to environment aur hamare aane wale generation par ehsaan hoga..

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  3. इन्जीनियरिंग के दिनों से ही जर्मन डिज़ाइन फिलॉस्फी प्रभावित करती रही है, एक भी तत्व व्यर्थ का नहीं मिलता है उसमें।

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  4. बहुत खूब ! सादगी में खूबसूरती।

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  5. ravishji-aap 'wall of Berlin' dekhne to gaye honge?
    ab to east-west Germany--dono desh vapas ek hue bhi itihaas ho gaya---uski pics hee post kar dete! :)
    apne yahan ke gadhe to lakir mitaanese rahe!(reference : sarfarosh--nasiruddin shahaa ka dialog hai-mujhe kaafi pasand hai :) )

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  6. sach likha hai sir aapne ki deedare shouk hai to nazar paida kar!! maan gya aapko!! you are great

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  7. Bahot khubsurat clicks hai. Lajawab

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  8. It Appears Building Architech not only present the Technology but also the thought of the culture

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  9. :)सुंदर तस्वीर

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  10. इन खिड़कियों से एक बात समझ में आती है कि इनसान कि हमेशा से खुलेपन का हिमायती रहा है

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