अब हम लगभग हर बड़े शहर को लेकर शर्मनाक हो चुके हैं । समझना मुश्किल है कि हम शहर और पीड़िता को कैसे और कब एक मान कर शर्मसार होने लगते हैं । नारीवादी सोच ने तो यही सिखाया है और सहमत भी हूँ कि पीड़िता क्यों शर्मसार हो बलात्कारी क्यों नहीं । उसी लिहाज़ से शहर क्यों शर्मसार हो । ऐसी घटनाओं के बाद हम शहर को भाई की तरह 'ट्रीट' करने लगते हैं जैसे भाई के रहते बहन के साथ ऐसा क्यों हुआ । मुंबई और दिल्ली को मर्द बना दिया जाता है ताकि वो ऐसे वक्त में शर्मसार हों । जब हमारी अभिव्यक्तियाँ नहीं बदल पा रही हैं तो सोचिये समाज की क्या हालत होगी ।
दरअसल बलात्कार की मानसिकता शहर के अंधेरे कोनों और ख़ाली पड़े कारख़ानों के एकांत में नहीं पनपती है । वो पनपती है लाखों घरों में जहाँ हम और आप बड़े होते हैं । आए दिन दफ्तर से घर लौटता हूँ तो पत्नी से बेटी के साथ घटी कहानियों को सुनता हूँ । हर दिन उसके साथ कोई लड़का ताक़त आज़मा चुका होता है । दस साल की उम्र में सामाजिकरण का ये अनुभव है कि वो अक्सर पूछती है पापा ये लड़के ऐसे क्यों होते हैं । उनकी आधुनिक मम्मियों को जब सुबह शाम जागिंग वाकिंग करते देखता हूँ तो लगता है कि कितना अच्छा है ये । सेहत को प्राथमिकता दे रही हैं । लेकिन जैसे ही उनके बेटों के बारे में फ़ीडबैक दीजिये तुरंत ऐसे प्रतिक्रिया देती हैं जैसे हमने उनके ख़ानदान की नाक छेड़ दी हो । बेटी की शिकायत कीजिये तो मम्मी डैडी थोड़े ना- नुकर के साथ सुन लेते हैं मगर बेटे के बारे में बिल्कुल ही नहीं । उनका बेटा हमेशा ही अच्छा होता है । एक चार साल का लड़का है वो अपने से छह साल बड़ी बहन को मार देता है । उसकी दोस्तों पर हमला कर देता है । उसके मां बाप को कुछ भी गलत नहीं लगता । बचपन से ही ऐसी हिंसक प्रवृत्तियाँ को हम कृष्ण लीला समझ आहलादित होते रहते हैं । धीरे धीरे इन लालों में ताक़तवर होने का यह गुमान लड़कियों के बरक्स पनपता रहता है ।
दुनिया में इस पर तमाम शोध हो चुके हैं लेकिन इन्हें पढ़ा कौन है । कोई नहीं । आज कल के साफ्टवेयर कंपनियों के माँ बाप अपनी जीवन शैली को ही सोच समझ लेते हैं । मान लेते हैं कि वो जागरूक हैं । लेकिन नारी विमर्श की संवेदनशीलता से जितने उनके पढ़े लिखे और लफ़ंगे पति अनजान हैं उतनी ही वेस्टसाइड स्टोर से सेल में खरीद कर कैपरी टीशर्ट पहनने वाली उनकी पत्नियाँ । उनकी जागरूकता की परिभाषा उपभोक्ता विकल्पों के चयन से आगे नहीं जा पाती । कुछ लोग बदले भी हैं तो सिर्फ संयोग से । समझदारी को बदलने में हम सब आलसी होते हैं । यह सबसे बड़ा मिथक है कि एक माँ अपने बच्चे को नहीं समझेगी तो कौन समझेगा । बेटी का बाप है तो ऐसा नहीं होगा । इसी तरह से हम शहर को लेकर एक मिथकीय संसार में जीने लगे हैं । मुंबई में ऐसा नहीं हो सकता । और यह भी एक मिथक है कि यह सब आधुनिक जीवन की देन है । भारत के किसी स्वर्ण युग में ऐसा नहीं होता था । संयुक्त परिवार में नहीं होता था । बहुत सारे मूर्ख इस मिथक में जी रहे हैं ।
अच्छा है कि औरतों के ख़िलाफ़ होने वाली हिंसा को लेकर पब्लिक स्पेस में लड़कियों ने आवाज़ बुलंद की है । मगर यह आवाज़ टीवी चैनल से गूँजती हुई ट्विटर के टाइमलाइन पर पस्त हो जाती है । शुक्र है कि निलांजना राय, अनुषा रिज़वी, सुप्रिया, नम्रता, शुभ्रा गुप्ता, रेवती लाल खुलकर इन सवालों को उठा रही हैं मगर काश ये आवाज़ उन सामाजिक फैक्ट्रियों में पहुँचती जिसे हम घर कहते हैं । टीवी एक फ़ेल माध्यम है । उससे होगा नहीं । वो ' कौन है ज़िम्मेदार ' टाइप की बहसों से आगे नहीं देख सकेगा । जे एन यू की घटना भी कम दर्दनाक नहीं थी मगर हमारी प्रखर मेधा उसे छोटे शहर और बड़े शहर की चिरकुट प्रस्थापनाओं में सिमट कर रह गई । हम लगातार नाकाम हो रहे हैं ।
दरअसल मुझे पजेरो चलाते हुए जाॅकी पहनने वाला और रूपा पहनकर ट्रैक्टर चलाने वाला मर्द एक ही लगता है । पटना की मेरी पड़ोसी वर्णिका पांडे एम्स में डाक्टर थी । प्रेम विवाह किया था । पिछले हफ़्ते उसने ख़ुदकुशी कर ली । घर वाले बताते हैं कि उसका डाक्टर प्रेमी मारने लगा था । छह महीने की शादी शोक में बदल गई । वो लड़की घर तोड़ने की सामाजिक उलाहनाओं के भय में क़ैद हो गई । उसे लगा कि इससे अब नहीं निकल सकती है । ज़िंदगी ख़त्म कर ली । काश हम अपनी बेटियों को यह सीखाते कि शादी के पहले ही हफ़्ते में प्रेमी या पति में यह तत्व दिखे तो तोड़ दो रिश्ते को । तब तो और जहाँ इसमें सुधार की गुज़ाइश न बची हो । लड़की हो एक नहीं चार शादी करना ।
हाल ही में मेरी स़ासू माँ ने एक क़िस्सा सुनाया । उनकी एक मित्र ने कहा कि शादी करके आई थीं लेकिन उनके पति जब तब चांटा मार देते थे । शुक्र है भगवान ने बेटा जैसा प्रसाद दे दिया । बहू के सामने भी मार देते हैं तो बेटा इतना अच्छा है कि अपनी बीबी को समझा देता है कि पापा न ऐसे ही है । तभी हमारे मर्द चाहे किसी शहर में हों ऐसे ही रहेंगे । किसी भी गाँव में रहते हों । वो रोज़ ऐसे किस्से सुन कर घर आती हैं । पर शायद यह एक बदलाव होगा कि उम्र के इस मोड़ पर औरतें इसे साझा कर रही हैं । लड़के कब साझा करेंगे कि वो कितनी हिंसा करते थे ।
मेरा नारीवादी मूल्यों के प्रशिक्षण में घोर विश्वास है । जिन सामंतवादी और मर्दवादी मूल्यों के सामाजिक वातावरण में पला बढ़ा था उनके बारे में लगातार पढ़ने और समझने से काफी फ़र्क पड़ा । शुक्रगुज़ार हूँ अपनी पत्नी और उन तमाम महिला दोस्तों का जिनके साहचर्य में मैंने इन मूल्यों को सीखा । दोस्ती के दिनों में मेरी पत्नी नाॅयना मेरे वाक्यों से एक एक शब्द निकाल कर घंटों बोला करती थी कि ये है प्रोब्लम । कई बार लगता था कि इश्क़ की जगह किसी फेमिनिस्ट स्कूल में भर्ती हो गए हैं । मुझे यकीन हो गया था कि ' अनफिट' हूं लेकिन आज लगता है वो ट्रेनिंग काम आई । हमारी भाषा हमारी सोच से निकलती है । शब्द अनायास किसी अनजान जगह से नहीं निकलते । इसी तरह एक रात इंदिरा विहार अपने दोस्तों के घर रूका था । सिमोन द बोवुआर की किताब 'द सेकेंड सेक्स' पढ़ने लगा । सुबह तक काफी कुछ बदल चुका था । उस किताब ने झकझोर दिया । जब यह पता चला कि मर्दों की सोच स्वाभाविक नहीं है । उन्हें समाज और परिवार अपने साँचे में गढ़ता है जिसे हम एक दिन प्राकृतिक मानने लगते हैं । आज जब कुछ मर्द टीवी एंकरों को मुंबई दिल्ली घटनाओं पर बकते देखता हूँ तो सोचता हूँ कि ये भाई साहब कैसे हैं । इनके जीवन में ' घोर मर्द' होने से एक सामान्य मर्द होने की कोई प्रक्रिया रही होगी या ये पैदाइश प्रोडक्ट है 'अच्छे लड़के हैं' !
एक दिन एनडीटीवी में पत्रकार महुआ चटर्जी ने जब यह पूछा कि 'गुड टच' और 'बैड टच' समझते हो तो मैं ही पूछने लगा कि ये क्या होता है । महुआ चाहती थीं कि बेटी को सीखाऊं । लेकिन इससे तो बाप ही अनजान था । तब से मैं जब भी किसी लड़के को किसी लड़की के कंधे पर हाथ रखते देखता हूं मेरी नज़र छूने वाले की आंख पर होती है । कई लोगों को ठीक ठीक समझ पाया हूं कि ये उदार और सहज बनने की आड़ में ' बैड टच ' है । एक दिन नताशा ने अपनी किसी दोस्त के साथ हुए वाक़ये को सुनाते हुए कुछ ऐसा कहा ' ही ट्रायड टू फ़ेल्ट हर अप ' यू नो रवीश । नो आय डोंट नो । ये क्या होता है । ' फेल्ट हर अप ' । बाद में जब उसे लगा कि 'यू नो ' और ' आय मीन' से मैं नहीं समझ पा रहा हूं तो उसने साफ साफ शब्दों में कह दिया । मेरे पांव के नीचे से ज़मीन खीसक गई । इसलिए कि पहली बार ऐसी अभिव्यक्ति सुनी । शा़यद अंग्रेजी के पास मर्दाना हिंसा के इतने बारीक और चालाक रूप को अभिव्यक्त करने के लिए कई वाक्य हैं । एकदम सटीक । कहने का मतलब है कि आप ऐसे प्रसंगों से विशेष रूप से सचेत होते हैं । मेरी दोस्तों ने मुझे काफी बदल दिया और यह प्रक्रिया आज भी जारी है ।
ये ज़रूर था कि स्वभाव से मैं छेड़ छाड़ करने वाला हिंसक लड़का नहीं था फिर भी अच्छे कहे जाने वाले लड़कों की सोच में नारीवादी मूल्यों की समझ हो यह ज़रूरी नहीं है । बस इतना कहना चाहता हूँ कि हमारा सबसे ख़राब सामाजिक उत्पाद मर्द है । इस प्रोडक्ट को बदल दीजिये । जो अच्छे हो गए हैं उनके ऊपर एक लेबल लगा दीजिये । चेंज्ड । और जो लड़के और मर्द मुंबई की घटना को लेकर उत्तेजित हैं वो अपने मर्द होने की सामाजिक प्रक्रिया के बारे में लिखें । लड़कों का लिखना ज़्यादा ज़रूरी है । बलात्कार एक मानसिकता है और इस मानसिकता का शहर है हमारा घर न कि मुंबई ।
हम सब को बदलने की जरुरत है...बिगड़ता ही चला जा रहा है...अभी बीमारी है...महामारी का रूप ना अख्तियार कर ले...
ReplyDeleteaapki sahaj abhivyakti ke liye kya kahu...shabd nhi milte.
ReplyDeleteaap se bahot inspiration milti hai. aapko bahot bahot dhanyavad.
aapki patni ki tarah maine bhi apne pati ko 'changed;ker diya hai tatha ab apne bete ko sahi insan banane me lagi hoo.shayed her maa-papa apne bachhoko sahi rah dikhaye to aisi ghatna hi n ho.kafi achha aapne likha wo bhi sab kaha padhte hai .sab apne ko hi kabil samjhte hai ki hamse achha koi hai hi nahi.maine kitno ko sggest kiya aapka blog padhne ko lekin;;;
ReplyDeleteहम एक मर्दवादी समाज में रहने के इतने अभ्यस्त हो चीकें हैं कि कई गलत चीजों और सोचों को हम 'नॉर्मल' मानने लगे हैं...
ReplyDeleteमर्दों को बदलने की जरुरत है. और औरतों को अपने घर के मर्दों की सोच बदलने के लिए कोशिश करने की जरूरत है. अपने पिता, पति और बेटे से शुरू करना होगा...
Pashu jaati se bhi tulna karna mshkil ho jaata hai....
ReplyDeleteRAVISH JI,
ReplyDeleteLAMBI PRATIKSHA KE BAD EK SACHA SACH PADHNE KO MILA. KASH AAJ KA TATHAKATHIT ADHUNIK PARIVAR OR SAMAJ IN SACHAIYON KO SUNNE, SAMAJHNE KI KOSHIS KARTA. HAMEN IS DISHA ME PRAYAS TO KARNE HI HONGE. APNI LEKHNI KE DWARA AAPKE DWARA KIYE JA RAHE IS PRAYAS KI MAIN SARAHNA KARTA HU. ISHWAR AAPKO SHAKTI DE.
need to be changes in humanity.
ReplyDeleteneed to be changes in humanity.
ReplyDeleteIF WE CHANGE IN OURSELF THEN ONE BASTERD WILL BE LESS IN OUR INDIAN SOCIETY.
ReplyDeleteWE ARE DOUBLE STANDARD PEOPLE.
PREY GODDESS IN MANDIR AND IN NAVRATRA.BUT DONOT RESPECT TO OUR
REAL DEVIS.
बलात्कार एक मानसिकता है और इस मानसिकता का शहर है हमारा घर न कि मुंबई ।
ReplyDeleteसोच बदलने की जरूरत है.
पहली बात तो ये की यह 'news' क्यूँ है?i mean-किसी लड़के का inputent होना news है?किसी लड़के की पगार कट के आना वह भी उसके नाफकरे वर्तन की वजह से-यह सीरियल/movies का मैं subject है?
ReplyDeleteतो फिर लड़की के प्रति दुर्व्यवहार चाहे कोई भी हो-आर्थिक(दहेज़)-सामाजिक(मारना) या आध्यात्मिक(शास्त्रों/धर्मगुरुओं की पकड़) सभी के सभी crime है एयर वह करनेवाले criminals! simple!
अगर किसीको आम का पेड़ दिखाओ और उसको मारो तो शायद दर से निम् का पेड़ बता दे-समझ तो आम की ही रहेगी?
फिर?जिसको पता ही नहीं 'स्त्री दाक्षीण्य' क्या है उसकी पांच पीढ़ी भी पढ़ के तभी सुधरेगी जैसे 'भागवद पुराण' पढ़ के भेंस !
मेरे नानाजी कहा करते थे-स्त्री सौजन्य शील पुरुष और स्त्री
स्त्री सौजन्यशील पुरुष और स्त्री जड़ पुरुष मैं सिर्फ हिंसा का अंतर होगा....और इसको पहचान लेना उतना ही सरल है जितना की 'सींह का जूथ' और 'हस्ती(हाथी) समाज' को जंगले मैं पहचानना :)
ReplyDeleteravishji नानाजी रोज यह बात सिखाते मुझे-और फिर पूछते--बताओ तो! दूर से देखना हो तो कौन दिखेगा हाथी या सींह ?:)
फिर पूछते सिंह खाना खाने के लिए छिपेगा/दौड़ेगा या हाथी?
फिर कहते सींहो का बढ़ जाना सिंहों की चिन्ता है लेकिन हाथिओं का बढ़ जाना हाथिओं की ताक़त :)
आप जरूर यह सिखैयेगा अपनी बेटिओं को और कहना-यह उपनिषदों मैं लिखा है कई युगों पहले :)
कौआ जैसे चमकीली चीज पर जा के बैठता है वैसे ही तड़क भड़क के शौखिन दुष्टों ने शाश्तों मैं से भी अनर्थ ही सीखे है-तुम मान सरोवर के हंस बनना-यह कहना-फिर देखना-कोई लड़का उसके लिए बुरा नहीं होगा:)
**यही नोट मीनाक्षी मंदिर मदुरै और थिर्वर्कोट्टूम चेन्नई मैं भी मैंने देखि है--saint वेल्लुवर के दोहरे चोपाई अपने तुलसीदास की तरह गाते है लोग--बस सिक्जते कुछ नहीं :-(
apka post padhkar shayad kuch logo ki maansikta badal jaaye... or ab dekhna ye hai ki iss baar nyay milta hai ya sirf rajniti or candle march hi hote hai...
ReplyDeletekisi ko zarurat nhi sharmsar hone ki, sirf unke jo in apradhiyon ke family member ya friends he, kyuki inki mansik bimari ke peechhe kanhi na kanhi inke karibi jimmedar he, ye to namnjoor he ki inke hiteshi is bimari se vakif nhi the. media me inki photo ke sath me inke family members ki photo bhi disclose kr dijiye, jb khud ki ijjat pe aayegi na tabhi log apne bachcho ko sahi sanskar dene ki ahmiyat ko samjhenge, fir apne ladlo ko chhedchhad karte huye pakar kanhya kah kr hasne ke bajay, usse Shree Ram ki tarah banne ka Vachan lenge
ReplyDeleteकिस घटना पर जाकर जगने की प्रक्रिया पूरी हो पायेगी? यही एक टेस्ट केस बना लें और पूरी तरह जागें ताकि बलात्कारी सदा के लिये सो जायें।
ReplyDeleteये रिपोर्ट पढ़ने के बाद ऐसा नहीं लगता जैसे अब अपने ही पाती और बेटों पर शक करने के दिन आ गए हैं ....
ReplyDeleteपता नहीं उन हिंसक पुरुषों की सोच कब बदलेगी जो बलात्कार को अंजाम देते हैं
IS MARDVADI SAMAJ ME MAHILAON KA JINA SACH ME MUSHKIL HO GYA HAI...KASBON AUR CHOTAY SHEHRON ME TO STITHI AUR BHI BHYANAQ HAI.GALI K NUQAD,girls schools k aas paas kathit majnoo kuch is tarah se behave kartay hain mano sharm naam ka koi word un ki dictionary me ho hi na.v shayad bhul jaatay hain k un k ghar me bhi behan, beti,bahu,ya maa hai.
ReplyDeleteI THINK WE NEED TO TEACH OUR CHILD FROM CHILDHOOD HUMANITY AND MORAL SCIENCE AND ALSO TRY TO GIVE THEM TIME AND TEACH THEM SOCIAL VALUES.
ReplyDeleteTHIS TYPE OF INCIDENT MAKE US ANGRY SHAMELESS AS A HUMAN AND MAN.NO WORD TO JUSTIFIED OUR SELF EXCEPT TRY TO CHANGE OUR ATTITUDE AND THOUGHT.
YOU WROTE SO WELL AND ETHICAL.
behtar hai bhaisahab.... ummda or vicharniya.... kyonki
ReplyDeletecharcha zaruri hai... ye hoti rahni chahiye... ek din hal niklega...
pradyumna
रविश जी आपका लेख पढ़ा आपकी नारीवादी सोच से पहले भी अवगत हुई थी. शायद टीवी के कार्यक्रम में. आपकी बात सही है की बलात्कार एक मानसिकता है. इसमे इतना जोड़ना चाहती हूँ कि यह पितृसत्तात्मक सोच की अभिव्यक्ति है. इसलिए पितृसत्ता को समूल नष्ट करने की बात करना बहुत जरूरी है. जाहिर है पितृसत्ता हर पुरुष को rajya सत्ता का एक वैकल्पिक और छद्म सुख देती है. इस लिए वह राजसत्ता से भी जुड़ जाती है. अपने नारीवादी विमर्श में हमें ये भी शामिल करना होगा।
ReplyDeleteकृति
www.kritisansar.noblogs.org
SIR ACTUALLY BADLAV SOCH ME AUR ATTITUDE ME HUM SAB CHAHTE HAI SAMAJ ME BHI CHAHTE HAI BUT AAGE BADHNE KO KOI TAIYAR NHI HAI HUB SAB PADOSI KE GHAR ME BHAGAT SINGH KE PAIDA HONE KA WAIT KARTE REHTE HAI AUR ESI INTEJAAR ME HIMARA ZINDGI KHATAM HO JAATA HAI FIR SOCHTE HAI KI KASH KUCH TO KOSHISH KIYA HOTA TO SHAYAD KUCCH BADAL JAATA.
ReplyDeleteज्यादा टिपण्णी करने को कुछ है नहीं। आपने ज़्यादातर सभी महत्वपूर्ण बातें लिख दी हैं। यह लेख ट्विटर /फेसबुक /sms के ज़रिये मित्रों से शेयर कर रहा हूँ। इसे बार बार पढ़ने, समझने और समझाने की ज़रुरत है। ख़ासतौर से घर के "अच्छे लड़कों" को । संवेदनशीलता, केवल मृत्युदंड की वकालत या छाती पीटने से नहीं आएगी । उसे बार बार अपने अंदर के काई नुमा पूर्वाग्रहों और जंग लगी मानसिकता को खरोंच, खरोंचकर बाहर निकलना होगा। दिल्ली की हुकूमत से जवाब मांगना ज़रूरी है , पर उससे ज़रूरी है घर की सत्ता पर बार बार प्रश्न करते रहना। ये लेख लिखने के लिए शुक्रिया।
ReplyDeleteस्वाभाविक रूप से हिंसक तीखी प्रतिक्रिया वाला व्यक्ति हूँ लेकिन महिलाओं के प्रति हिंसा को अक्षम्य दृष्टि से देखता आया हूँ यहाँ तक कि हिंसक व्यक्तियों के प्रति वीभत्स हिंसा को डितेरेन्ट के रूप में देखता आया हूँ। बलात्कार अगर मानसिकता है तो चालीस हजार साल में नहीं बदली। भयानक सजा का भय इन्सान को अवसरवादी हिंसा से रोकता आया है और उसी ने हजारों वर्षों में इन्सान बनाया है।
ReplyDeleteaap toh aise keh rahein hain jaise har mard balatkari paida hota hai, aur samaj aur parivar ko chahie ki use badle. aisi gatnawoon ke baad sare nariwadi log ek moral platform par chad jate hain aur chate hai ki har mard pehle apne aap ko balatkari mante hue apne ko badlne ki kosis kare.
ReplyDeleteis desh mein jo hamein dikya jaata hai aur asal zindagi mein hota hai usme itna adik antar hai ki hinsak ghtnaein hongihi. jab hum 2billlion ke nizdik pahuchein ge tob dekihe is desh mein kaisa tandav hota hai.
aap toh aise keh rahein hain jaise har mard balatkari paida hota hai, aur samaj aur parivar ko chahie ki use badle. aisi gatnawoon ke baad sare nariwadi log ek moral platform par chad jate hain aur chate hai ki har mard pehle apne aap ko balatkari mante hue apne ko badlne ki kosis kare.
ReplyDeleteis desh mein jo hamein dikya jaata hai aur asal zindagi mein hota hai usme itna adik antar hai ki hinsak ghtnaein hongihi. jab hum 2billlion ke nizdik pahuchein ge tob dekihe is desh mein kaisa tandav hota hai.
Totally agree with you. There was no swarna kaal when we did not have this problem and join family culture was also not perfect. Hats off to you.
ReplyDeleteअंग्रेजी के पास मर्दाना हिंसा के इतने बारीक और चालाक रूप को अभिव्यक्त करने के लिए कई वाक्य हैं
ReplyDeleteहिन्दी भाषा और उसके समाज के प्रशिक्षण को उजागर करने के लिए ये तथ्य पर्याप्त है कि हमारी भाषा के पास इस हिंसा के बहुपरतीयता तथा बहुरूपता को व्यक्त करने के लिए शब्द व मुहावरे हैं ही नहीं... और ये संयोग नहीं है, कतई नहीं। इसके लिए जरूरी संवेदनशीलता हमारे पास रही ही नहीं है इसलिए भाषा भी ऐसी ठूंठ रह गई इस मसले पर।
वाकई समाज को मर्दों को बदलने के इन स्कूलों की जरूरत है।
ReplyDeleteआखिर कब तक ?
ReplyDeleteघर हो या बाहर हर ओर दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण हो रहा है
आखिर कब तक ये सब चलता रहेगा... कब किसके साथ क्या हो जाये कुछ कहा नहीं जा सकता...मेरी सोच में हम सभी कहीं न कहीं इन सब चीजों के लिये जिम्मेदार हैं....।
ReplyDeleteदुखद और दुर्भाग्यपूर्ण हो रहा है!सोच बदलने की जरूरत है!!!
ReplyDeleteBadalna hoga ...system hi galat hai....social system education system sab galat hai...betiyon ko hamesha parai hone ki samjhdaari bhari baat sikhai jaati hai...aazadi unme kahin chhup kar so jaati hai ...mardo dwara kiya jaane wala karaya,khan-paan galti se koi mahila apnale toh use awwww jhelna padta hai
ReplyDeletea
ReplyDeletebahut hi achha lekh h bahut achha laga padh ke
ReplyDeleteJabardast,Lajwab.
ReplyDeleteवाकई सामाजिक स्तर पर भी बड़े बदलाव की जरूरत है, जिसकी शुरुआत घर से ही होनी चाहिए...
ReplyDeleteAwsome...true.
ReplyDeleteAwsome...true.
ReplyDeleteएक बात से असहमत, टीवी एक फेल माध्यम नहीं है, टीवी से उम्मीदें ही कुछ गलत लगा रखी है हमने। अगर गलतियां कई वर्षों में समाज ने off air की है, तो उम्मीद ही गलत है की एक घंटे में एक एंकर 8 बिज़ि व्यक्तियों को बुला कर चिल्ल पों कर सुलझा देगा ।
ReplyDeleteoff air बदलाव आवश्यक है जो फिर वर्षों के दौरान होगा।
Kash ....apki jaisi sabki soach hoti.Ab to bus yehi lagta hai-
ReplyDeleteNari nahi mehfuze ,Durga ke desh main,
Bhediye chupe baite hai insa ke vesh main.
एक बात जिस ओर हम ध्यान नहीं दे रहे , वह है नशा । दिल्ली और मुंबई दोनों जगह आरोपी नशे मे थे । आज बाज़ार मे नशे की एसी चीजे आसानी से उपलब्ध है जिन्हे लेने से आदमी सब कुछ भूल जाता है , फिर क्या कानून क्या शिष्टाचार , कुछ भी ध्यान नहीं रहता । इन नशीली चीजों पर रोक लगाना बहुत जरूरी है ।
ReplyDeleteअपने अपने घर से शुरू करें, बेटों को स्त्री का सम्मान करना सिखाएं, बेटियों को सावधान रहना सिखाएं। समाज भी हम से ही है , स्वयं ह निर्माण करना होगा - राज झा
ReplyDeletehttp://koneykacabin.blogspot.in/2013/08/blog-post_24.html
ReplyDeleteBaat to yahi hai-Sochna hamen Padega- MARD hain-kis prakaar ke!
We all have to change our thinking and attitude towards women and need to create a camaraderie among all of us
ReplyDeleteneed to develop and control the attitude of the children ,girls from fashion and flirting the boys 09417773324
ReplyDeleteसाइमन द बो की थे सेकंड सेक्स जो 1949 में प्रकाशित हुई थी उसे तो आप पढ़ ही चुके हैं ... उस से आगे बढ़े और क्रिस्टीना होफ़ सोमेर्स की हू स्टोल फेमिनिस्म : हाउ वुमेन हवे बिटरेड वुमेन भी पढे जो 1994 में प्रकाशित हुई थी... शायद आपकी सोच 1949 से 1994 तक पहुंचे ... यद्यपि इस टिपन्नी के प्रकाशन की आशा तो नहीं है.... परंतु होती है तो औरों की भी पता चले की आप मात्र बहती गंगा में हाथ धोने वालों से अलग तो नहीं है...यद्यपि कुछ घटनाओ के आधार पर सामान्यीकरण और अपने घोर पूर्वगृह को दिखाने का कोई अवसर नहीं छोडते हैं
ReplyDeleteRavish, You are excellent. aaj tak reporting or journalism me itna imandar insaan nhi dekha. Aapki soch logo ki soch ban jaye yehi manata hoo main..
ReplyDeleteRaveesh Kumar is a great journalist but in an attempt to blend into Delhi crowd, he is loosing his connection with real India. There is no need for taking us down in a guilt trip.
ReplyDeleteThe problem with India is that there is no emphasis on civic sense, social behavior and respect for others. There is absolutely no concept of personal space. Both men and women rub against each other whole day rather than giving each other space. Sorry to say but Indian are as dirty as India, me included. Thank god, I came to west and understood what civilized behavior means. It s time Indians learn manner. This rape epidemic is because of culture of disrespect towards others.
haan sb thk baaten h aapki, ..law clg. student hun to ek experience btata hun ,room mate k sath rape pe baat chl rhi thi aur achanak usne kha m rape ko utna bda crime nhi manta jitna murder kynki rape me aadmi ka dimag khrab ho jata h ,usme uski jyada galti nhi ..its natural....bht gussa aaya lekin socha k kis kis ko smjhayega bhai...rehne de khud ko sudhar....
ReplyDeletehaan sb thk baaten h aapki, ..law clg. student hun to ek experience btata hun ,room mate k sath rape pe baat chl rhi thi aur achanak usne kha m rape ko utna bda crime nhi manta jitna murder kynki rape me aadmi ka dimag khrab ho jata h ,usme uski jyada galti nhi ..its natural....bht gussa aaya lekin socha k kis kis ko smjhayega bhai...rehne de khud ko sudhar....
ReplyDeletedekho ravish hum likh sakte hain par yeh bhi dekho ki saare ladke awaaragard,gunde,hinsak aur nasha karne waale hain. aise ladke kitna sochenge bas rape kiya bhaag gaye.lekin ravish ek baat bata ki vishaka judgement ko sahi tarike se kya sabhi jagah jaha aurat kaam karti hain waha laagu hain. lifestyle magazine waale ne 4 mahine mein us ladki ko sunsaan jagah mein bhej diya. magzine ke assignment par koi baat kyo nahi kar raha. isme aap logo ke upar ungli uthegi. samaaj ko dutkaar ke kya hoga jab samaaj ko sahi banane waale log hi blue film assembly mein dekh rahe hain aur balaatkaar ashram mein kar rahe hain. soch sabko badalni hogi aur kanoon toh saqt hain hi. jo judgement aata hain uska paalan bhi karna hoga. kam se kam apni mahila karmi ki protection toh karo. jab parso social media mein mujh jaise log chillane lage ki namm batao jaise nirbhaya case mein hua tha ki sab balaatkario ke naam bataye vaise yaha batao maaf kijiyega sirf india news ne bataya. kaun sa secular vaatavaran bana raha hain aapka pranab roy kisi ke dimaag mein nahi ghusega.
ReplyDeleteबहुत शानदार और आँखे खोलने वाला लेख
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा। मर्द आज के दौर का सबसे खराब उत्पाद है। मर्द रूपी मानसिकता को बदलने की जरूरत है और इसकी शुरुआत हर घर से होनी चाहिए। यह एक दिन में नहीं होगा, इसमें कई पीढ़ियों की सतत कोशिश होनी चाहिए। हर घर में प्रत्येक मातापिता को इसके लिए कोशिश करनी होगी। जिस तरह आज लड़के को मर्द बनाने के बीज बोए जाते है, उसी तरह लड़का को केवल लड़का ही बनाने के संस्कार डाले जाने चाहिए। यह बताना चाहिए लड़का और लड़की में कोई अंतर नहीं है। ऐसा ही पारिवारिक माहौल विकसित करने की जरूरत है।
ReplyDeleteRavish ji,
ReplyDeleteangreji tho meri bhi tang hai, per kya karoon hindi typing jo nahin aati
roman kaa sahara lena padta hai...
sunaa tho aapko kai baar hai per padha aaj pehli baar hai, accha laga...
बलात्कार एक मानसिकता है और इस मानसिकता का शहर है हमारा घर न कि मुंबई ।
Ravish ji,
ReplyDeleteangreji tho meri bhi tang hai, per kya karoon hindi typing jo nahin aati
roman kaa sahara lena padta hai...
sunaa tho aapko kai baar hai per padha aaj pehli baar hai, accha laga...
बलात्कार एक मानसिकता है और इस मानसिकता का शहर है हमारा घर न कि मुंबई ।
ravish sir m pahli baar kisi ka post read kr rha hun ...aapne bade saaf aur saral sabdo m kafi kuch smjha diya ....aapne sahi kaha h ki हमारी भाषा हमारी सोच से निकलती है । ...
ReplyDeleteNeed a Society Education system. So that we can take care of this issue. But again main issue the Diff. in Income resource and billionor 4 to 60 this number cause a obstacle to invest in this area.
ReplyDelete
ReplyDelete'रवीश का तरीक़ा है--कह दिया साफगोई से
कि जैसे भोर की किरनें ओस को सोख लेती हैं'
बात साफ हो .... वह भी कैसे ...
सीख मिलती है आपसे
Ek-ek shabd, har baat bilkul sateek aur sahi hai. Badlaav ghar se shuru hona chahiye. Jab kabhi aisi ghatnaayen hoti hain to betiyon ke maa-baap aur dukhi ho jaate hain ki unke ghar mein betiyan kyon hui...koi ye nahin sochta ki gunahgaar kisi ka beta hai. Aisi ghatnaon ke baad beton ke maa-baap ko sochna chahiye ki we apne beton ko samvedansheel banayen, sahi maayne mein ek achha suljhi hui soch ka insaan banayen taaki samaj mein ek swasth soch bane...
ReplyDeleteEk-ek shabd, har baat bilkul sateek aur sahi hai. Badlaav ghar se shuru hona chahiye. Jab kabhi aisi ghatnaayen hoti hain to betiyon ke maa-baap aur dukhi ho jaate hain ki unke ghar mein betiyan kyon hui...koi ye nahin sochta ki gunahgaar kisi ka beta hai. Aisi ghatnaon ke baad beton ke maa-baap ko sochna chahiye ki we apne beton ko samvedansheel banayen, sahi maayne mein ek achha suljhi hui soch ka insaan banayen taaki samaj mein ek swasth soch bane...
ReplyDeleteसुनने या पढने में शायद अजीब लगे, सहमत हो जरूरी नही पर सोचना जरूर l
ReplyDeleteजब कोई राजनीतिक या प्रशासनिक पहुच वाला मर्द या औरत या फिर मजबूत शरीर वाला या धन बल के दम पर किसी गरीब या कम बल वाले को अनुचित तरीके से परेशान करता है जो कि रोज़ होता है समाज में अलग - अलग स्थानों पर लाखो घटनाओ के रूप में वो भी बलात्कार ही है ? मैं तो ऐसा ही मानता हू l
मर्द अपनी सोच बदले क्या ये पर्याप्त है या कहना चाहिए क्या ये सम्भव है ?
बड़ी मछली छोटी मछली को खाती है ये समुन्दर का कानून है, बाघ खरगोश को, खरगोश साँप को, साँप मेंढक को, मेंढक कीड़ो को खाता है ये जंगल का कानून है और ताकतवर कमजोर को प्रताड़ित करता है अपने फायदे के लिए या अपने अहम को तुष्ट करने के लिए ये रवायत है इंसानी समाज की सदियों से और यही हो रहा है आज भी फिर वो तानाशाही हो या गणतन्त्र फर्क नही पड़ता l
सुनते है मानव ही वो प्राणी है जिसे ईश्वर ने बुद्धि दी है, कहने वाले फिर से सोचे कि बुद्धि दी है या दुर्बुद्धि दी है क्योकि न समुन्दर में न जंगल में अहंकार के तुष्टिकरण के लिए तो कोई किसी को नही मारता न ही जिस प्रकृति ने जीवन दिया है उसका सत्यानाश करते है फिर बिना बुद्धि का जीव कौन हुआ ? मानव या वो बाघ जो किसी को सिर्फ तब मारता है जब भूख लगती है तब नही जब बाघिन उसके प्रणय निवेदन को स्वीकार कर लेती है और ख़ुशी मनाने के लिए नही मार देता चार हिरण (Let us have a party guys)
सवाल मर्दों की सोच या पुरुषवादी समाज का है या ताकत के अहंकार का एक बार फिर सोचे
दुआ यही है की 'इस पोस्ट को अधिक से अधिक लोग पढ़े और कम से कुछ देर इस पर विचार करें'
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