खाते पीते कांग्रेस के प्रवक्ताओं ने आज पाँच रुपये का जो सम्मान किया है उससे मैं बहुत ख़ुश हूँ । पाँच रुपये को कोई कुछ समझ ही नहीं रहा था । जब से सिक्का चरन्नी हो गया है सारा भार पाँच रुपया पर आ गया था । बारातों में पाँच रुपये की गड्डी उड़ते देखी है । बैंड मास्टर को नवाज़ कर हवा में उछालते हुए । पनटकिया का क्या जलवा होता था । पांच का नोट मिला नहीं कि मिठाई की दुकान पर । देहातों में तीन पत्ती में पांच रुपये को पांचाली की तरह दांव पर लगते देखा है । रेड लाइट पर देखा है लोग अब कार के डैश बोर्ड से पाँच का सिक्का ही देते हैं । जिसे देखो वही पाँच रुपया दान दिये जा रहा है । इतने कम में दानवीर बनने का सुख प्राप्त किये जा रहे हैं सब । यही वो पाँच रुपया है जिसे मोदी के लिए प्रति श्रोता वसूला जा रहा था । जो लाख से मिलकर पाँच लाख होकर उत्तराखंड में रौनक़ बहाल करने वाला है । पाँच रूपये के कितने ही चिप्स के पैकेट सड़कों पर मिल जायेंगे । जिन्हें खाकर ग़रीबों के ललना पेट जलाते हैं । अमीरों के बच्चे ज़िद में पाकर ख़ुश हो जाते हैं । पाँच रुपया चौराहों पर शनिदेव की टँकी में खूब टपकाया जाता है । पाँच रूपये में कुछ मिलता तो लोग ऐसे बाँटते न चलते । सबकुछ शांति से चल रहा था । रशीद मसूद साहब ने पाँच रुपये की औकात लगा दी । एक टाइम का खाना मिलता है पाँच रुपये में । पाँच रुपये का ऐसा टाइम आ गया सुनकर चकरा गया । रशीद साहब भी खाते हैं । बीमारी की वजह से । हवा और पानी फ़्री का हो तो शायद बाक़ी दाल पानी आ जाता होगा । पता ऐसा बताया जैसे लंदन का हो । जामा मस्जिद के लोग भी भटक रहे हैं । पाँच का खाना खाने के लिए । फटे पुराने नोट बदले जाने की दुकानों के आगे लाइन लगी है । पाँच नया कर रहे हैं । जिसे देख वही पाँच का सिक्का उछाल रहा है । फ़िज़ा में पाँच ही पाँच है । रिक्शा भी पाँच है ठेला भी पाँच है । खुशी के मारे सब पागल हो रहे हैं । खाना खोज रहे हैं । पाँच रुपये को देखकर ही पेट भर रहे हैं । कोई अपना पाँच रुपया किसी को दान में नहीं दे रहा है । दो टकिया की नौकरी में तेरा लाखों का सावन जाए टाइप माहौल है । झंडू पंचारिष्ठ टाइप शक्तिशाली फ़ील कर रहे हैं । आज पाँच का पंचनामा टीवी पर आयेगा । रशीद आयेंगे,नकवी आयेंगे । एक ग़रीब के पेट पर लात मारेंगे एक सहला़येंगे । रशीद साहब की कल किताब आयेगी । पाँच रुपये में कामयाब भोजन कैसे करें । नकवी साहब की किताब आएगी कि पाँच रुपये में कैसे रशीद साहब को खिला आएं । कुतर्कों का कुचक्र चलेगा । फिर खंडन आयेगा । फिर नया बयान आएगा । बीजेपी आरोप लगाएगी सरकार ने पैमाना घटाकर ग़रीबी घटा दी है । अपनी राज्य सरकारों में घटी ग़रीबी के पैमाने नहीं बताएगी । अगर पैमाना बढ़ जाए तो देश में ग़रीबी भी बढ़ जाए । उनके राज्यों में भी बढ़ जाएगी । फिर सबके ग्रोथ की पोल खुलेगी । आंकड़ों के हेरफेर के खेल का भांडा फूट जाएगा । भारत की ग़रीबी पाँच रुपये में इतरायेगी । रशीद साहब वित्त मंत्री बन जायेंगे और चिदंबरम उनके खजांची । टीवी पर ग़रीबी की हर थाली का सैंपल सजा मिलेगा । पाँच रुपये को भारत का राष्ट्रीय रुपया घोषित कर दिया जाएगा । पाँच रुपये के सम्मान में एक दिन मसूद दिवस मनाया जाएगा । लोगों को बुला बुलाकर पंतुआ वग़ैरह खिलाया जाएगा । छुट्टी घोषित होगी । लोग उस दिन सिर्फ पाँच रुपये का ही खाना खा़येंगे । जो जो खा लेगा रईस घोषित कर दिया जाएगा । राजनीति में मूर्ख होते हैं । मूर्ख रहेंगे । पनटकिया काल है कांग्रेस का ये । कपार पीटते रहिए । इसलिए हे पाँच रुपये तुम दुखी मत होना । शान से कहो मैं पाँच हूँ पाँच । अब कोई तुम्हें नहीं फेंकेगा । बस ज़रा देखना बारह रुपया बाज़ी न मार ले जाए । सरकार बारह का बब्बर नोट न छाप दे । बब्बर करेंसी ।
तुम्हारा
गैर पनटकिया पत्रकार
रवीश कुमार
अपनों के बीच बेगाना, ५ रुपया।
ReplyDeleteBahut achha likha hai aapne. Achhi sehat ke liye shubhkamna
ReplyDeleteJha aaj 1000 ki aukat nahi apnay pach ko gribo ka brand ambasder bana diya bauth badiya
ReplyDeleteJha aaj 1000 ki aukat nahi apnay pach ko gribo ka brand ambasder bana diya bauth badiya
ReplyDeleteअहसान होता अगर कीमत के साथ खाना मिलने का पता भी दे दिया होता
ReplyDeleteaap patrakar kyo hai...........vyangkaar kyo nahi???
ReplyDeleteBahut badiya sir g
ReplyDeletePanch ko ek ghari ke liye phir kadar ti mili
ReplyDeleteWrite something on this : On lighter note : have time than plz read : Trickle-down Economics of UPA
ReplyDeletehttp://suchak-indian.blogspot.in/2013/07/trickle-down-economics-of-upa.html
RAHID MASOOD SAHB NE HOMEWORK SAHI SE NAHI KIYA, BARNA UHNE PATA HONA CHIYE KI DELHI GOVE. KE FOOD STAL PAER BHI 1 THALI KA 15 RS KI HE. BASTAB ME YE HMARE NETAO KA KALA SACH HE
ReplyDeleteAajkal deewan-e-khaas me moorkhon ki pangat lagi hui hai.
ReplyDeleteek jamana tha jab "re Atthani" "re chawani"...Chidate the dost ko fir aya "re pach takiya"...
ReplyDeleteaab to halat ye ho gai hai chidhane ki liye sikke sikke nahi hai hamare pass.
फटे पुराने नोट बदले जाने की दुकानों के आगे लाइन लगी है । hahahaahahaha...
ReplyDeletemain samajh gaya ki sawan aate aate apko apne gaaon ki yad aa gayi or ye naukri buri lagne lagi hmm...
ReplyDeleteThe politicians with their crass comments have reduced us to the status of animals. Even the animals deserves the best
ReplyDeleteBahut acchi baat kahi hai, agar aise hi garibi mit jaye to ye kaam to aap aur main bhi kar sakte hai balki puri janta kar sakti hai jis kitab me Sarkar ne jo Math lagai hai bus usi ko change karna hai Jaha 1000/- mahine wala aadmi garib nahi hai to us 1000/- ko 500/- kar do phir dekho humare desh ki garibi kaise mit jati hai sab amir honge sarkar ke kharche bhi kam ho jayege 6th pay commission se vapas 1st ya 2nd pay commission lag jayega.
ReplyDeleteLo kar lo baat hume kon sa janta ko ye batana hai ki Rs 500/- ko kaise mahine bhar chalana hai.
Rashid Masood sahab ki Smaran shakti kahi filmo ki tarah 1950 ya 60 ke aas paas kahi ruk gai hai. Ho jata hai aisa kabhi kabhi are JAB TAK HAI JAAN Me bhi aisa hi hua tha na.
Yours Atiq
"Can have full meal for Re 1, says Farooq Abdullah"
ReplyDeleteSirji, kyu naraz hote ho in mahan purushon pe ye to maha santoshi vyaktigan he, galti to hamare salary system ki he, jo inhe lakho ki payment dete he, jabki inke liye to 1 ya 5 ya had se had 12 Rs ka khana hi zindgi ka sar he.
A warm request to the person who set their salary. please reset their salary breakup with 33 Rs. monthly so that they will be able to know meaning of their bullshit statements
मँहगाई का आलम यह है कि मुम्बई में एक सुपारी पाँच-पाँच लाख रुपये में मिलती है और पाँच रुपये मे तो सिर्फ पेट खाली किया जा सकते है, ये पमरिये भी अपने आप को राजनीतिज्ञ की औलाद समझने लगते है ।
ReplyDeleteAdwani ji ne phir kaha "vayam panchadhikam shatam" lekin is baar bhi unki kisi ne nahi suni.
ReplyDeleteMaja aya padhaneme ..aap ho hi kuch achhe
ReplyDeleteये भूख के विषय पर भी मजकिया बातें कर सकते हैं .....
ReplyDeleteravish sir Iam very much impressed by ur NDTV discussion.i am one of ur fan I think aap, aaj ka jo 1rupee 5Rs and 12Rs walekhane ka discussion tha wah aap bahot achhe se kar sakate the I miss u at the same. hope to see u very soon.
ReplyDeleteravish ji aap tunch maal ke baare me kya vichar rakhte hain ??
ReplyDeleteशायद काँग्रेस के प्रवक्ता गलती से डालर की जगह रुपए बोल गये वो कहना चाहते होँगे की 5 डालर और 12 डालर मेँ ही अच्छा खाना मिल सकता है।
ReplyDeleteपप्पू तो गरीब और दलितों को चूतिया बनाकर फ्री में खाकर आ जाता है....
ReplyDeleteपप्पू तो गरीब और दलितों को चूतिया बनाकर फ्री में खाकर आ जाता है....
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteरविश सिर आपके ब्लॉग का इस्तमाल मै अपनी बात सबके सामने रखने के लिए कर रहा हु | कृपा माफ़ करे अगर आपको बुरा लगा हो तो |
ReplyDeleteदिल्ली की बस का सफ़र |
दिल्ली का तो आप को पता ही होगा महान भारत देश की राजधानी है |यहाँ पर आम जनता के लिए सार्वजनिक परिवहन प्रणाली कैसी है ? इसकी एक झलक दिखाते है| दिल्ली सरकार ने दिल्ली वासियों के लिए अति-आधुनिक बसे चला रखी है | डी.टी.सी की अति-आधुनिक लाल व् हरे रंग की बसे चलती है |सड़क पर चलते हुए तो ये बहुत सुंदर लगती है पर इनके अन्दर क्या हाल अर्थात स्थिति होती है ? शब्द नहीं बताने को ! चलो फिर भी एक नाकाम कोशिश कर रहा हु इसमें सफ़र करने वालो के दर्द को बयाँ करनी की |
दिल्ली के पॉश इलाके धौला कुआँ से मैंने डी.टी.सी की बस पीरागढ़ी के लिए ली | बस में भीड़ इतनी के बस में दो पैर तो दूर की बात है एक पैर रखने की भी जगह नहीं | किसी का मुँह किसी के सिर को चाट रहा था तो किसी मेरी नौजवान बहन का शारीर नवयुवको के बीच फंसा था | वास्तव में हमारे देश ने आजादी के 65 वर्ष के बाद कितनी तरक्की की है ये साफ पता लग रहा था | मै तो सोच रहा था के बस में और जगह ही नहीं है पर बस बस स्टॉप पर रूकती और उतरते सिर्फ दो से तीन लोग और बस में दाखिल होते 10 लोग | पता नहीं बस में स्पेस कहा से कायम हो रहा था | पर इतना जरुर पता है कि बस में सवार सभी का दम जरुर घुट रहा था | बस में कुछ लोगो से पूछा के आप हर रोज इसी तरह सफ़र करते है तो जवाब मिला भैया ये भीड़ तो कुछ भी ना है ! जवाब सुन कर आंखे खुली की खुली रहा गयी ! एक बुजुर्ग मेरे आगे खड़े थे और उनकी तकलीफ़ को मै शब्दों नहीं पिरो सकता | बस में ज्यादातर मजदुर वर्ग के लोग थे | दिल्ली में शाम के वक़्त बसों में मजदुर वर्ग के लोग ही ज्यादा दिखते है जो मजदूरी कर रोजी कमा के अपने घर की तरफ जाते है | इन लोगो को बस में कितनी भीड़ है ? क्यों है ? इन सब बातो से कोई सरोकार नहीं | क्यों ? शायद ये सब अशिक्षित है |प्रतीत होता है भारत सरकार के सर्व शिक्षा अभयान से वंचित लोग है | बस में कंडक्टर साहब की वार्तालाप की भाषा इनके साथ क्या गजब की है ? बस पूछिए मत | जिस गुरु से इन्होने शिक्षा ग्रहण की है वो तो धन्य हो गये शायद ? एकाएक एक व्यक्ति को चक्कर आ गये तो सभी ने कहा के भाई सीट ले लो सीट ले लो पर अपनी सीट से उठा कोई नहीं | वो तो धन्यवाद एक महाशय का जिन्होंने उसे एक बोतल पानी की दे दी |बस का फर्स्ट-ऐड बॉक्स कहा था ? पता नहीं शायद था ही नहीं ! बस में किसी को चक्कर आदि आजाये तो कंडक्टर साहब की जिम्मेदारी होती है उसे संभालना और प्राथमिक उपचार देना पर वो अपनी सीट से ही नहीं उठे | शायद कंडक्टर साहब को रेडक्रॉस से फर्स्ट-ऐड के सर्टिफिकेट (कंडक्टर के लिए अनिवार्य) के बिना ही नौकरी मिली हुई थी | बस चलती जा रही थी और लोग अपनी अपनी मंजिल पर उतरते जा रहे थे | पर शयद ही किसी ने सोचा होगा के बस बसों में क्यों इतनी भीड़ है ? क्यों बसे इतनी कम है ? हमारे कर के पैसो से क्या सरकार हमे मूलभूत सुविधाए भी नहीं दे सकती है ? हमारे राजनेता जिनको हम इस लिए चुनते है की वो हमारे दुखो को समझेगे और आम जनता के हितो के लिए कार्य करेंगे वो क्यों कुछ नहीं करते है ? सिवाए बड़े-बड़े घोटालो के |सरकार में बैठे राजनेताओ को शायद हमारा आम जनता का दर्द नहीं दिखता है|वो तो अपने वोट ले कर आधुनिक एसी के कमरों में आराम फरमाते है और लाल बत्ती की करो में चलते है |आम जनता के टैक्स के पैसो पर मौज करते है और मेरे महान देश भारत की जनता ऐसे ही दुःख उठाती है |
मेरा भी बस स्टॉप आ गया तो मै भी बस ये उतर गया | इतनी भीड़ बस में प्रथम दफा आँखों ने देखी थी | ये तो बस एक बस का सफ़र था ऐसी हजारो बसे दिल्ली में चलती है उनसब में ऐसा ही हाल है | उम्मीद करता हु की कभी तो मेरे महान भारत की दशा को कोई सुधरेगा ? वो राहुल गाँधी हो नरेंद्र दमोरदर मोदी हो या कोई और मुझे इस बात से कोई सरोकार है |मुझे चाहिए तो बस हम आम जनता के लिए सुविधा | आम लोगो को फक्र हो जिस व्यवस्था पर मुझे ऐसी व्यवस्था की कामना है|
सर मेरे पास शब्द नहीं है
ReplyDeleteकि मै इन हरामखोर राजनेताओ को क्या गली दू ।
सब -माँ --------------है।
बस
बाकी आप का कम जबर्दस्त हैं हमेसा की तरह।।
sir ye 5 rs me uss kauva biryani ki bat to nhi kr rhe,,,
ReplyDeleteये राजनेताओं का पञ्चटकिया काल है . उनके राजनीति का स्तर पांच पैसे का भी नहीं रह गया . .. आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (29.07.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी. कृपया पधारें .
ReplyDeletefiz; jfo”k th]
ReplyDeletefcgkj jkT; dh fxjrh fof/k O;oLFkk ds vusd dkj.kksa esa ls ,d dkj.k
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sir please ship of theseus pr apne vichar jarur de agar apne dekh li hai to!!!!
ReplyDeleteसटीक !!
ReplyDeleteदस का दम ख़त्म , अब पांच की बारी है. जनता परेशान है की पांच का सिक्का देने पर भिखारी भी नाक भौं सिकोड़ता है , धनिया बेचने वाला पांच रुपया ग्राहक के हाथ में देखते ही उसे आगे का रास्ता दिखा देता है. लेकिन रशीद साहब ने पांच की पताका फहराने की ठान ली है. जनता के प्रतिनिधियों द्वारा गरीबों का ऐसा मजाक उड़ाना बहुत भारी पड़ सकता है. रवीशजी बहुत धन्यवाद व्यंग्य के लिये.
ReplyDeleteaap thik ho gaye achha laga.award ke liye badhai.lal band sunker achha laga.shandar lekhan;;;
ReplyDeleteबड़ा इंतज़ार है रवीश दो बातो पर आपकी रिपोर्ट का, बनायेंगे तो अच्छा लगेगा l
ReplyDelete1. उत्तर प्रदेश में धर्मनिरपेक्ष अखिलेश के शासन के बारे में (सुन रहे है कि अब वो दंगे रोकने के लिए कानून को ताक पर ही नहीं रख रहे बल्कि कानून लागू करवाने वालो को सज़ा भी दे रहे है)
2. दिल्ली के स्टंट बाइकर युवाओ के बारे में (दिन में भी सिग्नल पर करते समय डर लगता है कही कोई रेड सिग्नल तोड़ कर सामने न आ जाये, कई बार ऐसे लोगो के कारण दुर्घटना होते देखा है जिसमे मरता वो है जिसकी गलती नही थी फिर भी बाइकर के पक्ष में तर्क आ रहे है कि सिर्फ यातायात नियम ही तो तोडा था, यातायात नियम तोड़ने के कारण ही देश में 65000 मौते होती है हर साल जिनमे नियम नही तोड़ने वाले ज्यादा होते है)
बनायेंगे न रिपोर्ट दोनों मसलो पर ?
पाँच के बहाने पंजे का खूब प्रचार कर रही है कांग्रेस...अभी पंजा दिखा रही है, फिर अंगूठा दिखाएगी ।
ReplyDeleteravish ji aapka media bhi kam nahi hai, Digi jaise logo ke aage peche ghumta rahta hai,
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteNice
ReplyDelete" yek mazlum qoum ki mishal yian us kutte ki tarah hai jo aawara bekar aur beizati k paikar hai aur jinhe roti k yek adan tukade par ladaya ja sakta hai lekin ager yahi kutte sarkashi par kambasta ho jayege to apene aakao ki hadiya chaba kar abaru ka mukam hasihil kar k hi dam lege magar sart ye hai k in gafilo ko zillat ka ehasas dilaya jaye ...
ReplyDelete"ye mazlum makhluqe gar sar uthye ! To insan sab sarkashi bhul jaye ! Ye chahe to duniya ko apna bana le ye aakao ki hadiya tak chaba le ! Koi inko ehasas zillat dila de ! Koi inki soi hui dum hila de......
----- faiz amhad faiz ------
" yek mazlum qoum ki mishal yian us kutte ki tarah hai jo aawara bekar aur beizati k paikar hai aur jinhe roti k yek adan tukade par ladaya ja sakta hai lekin ager yahi kutte sarkashi par kambasta ho jayege to apene aakao ki hadiya chaba kar abaru ka mukam hasihil kar k hi dam lege magar sart ye hai k in gafilo ko zillat ka ehasas dilaya jaye ...
ReplyDelete"ye mazlum makhluqe gar sar uthye ! To insan sab sarkashi bhul jaye ! Ye chahe to duniya ko apna bana le ye aakao ki hadiya tak chaba le ! Koi inko ehasas zillat dila de ! Koi inki soi hui dum hila de......
----- faiz amhad faiz ------
WAH SIR MAJA AA GYA
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