नदियाँ नहीं होंगी तब भी नाव बची रहेगी । किसी माॅल के बाहर । ये मेरे घर के पास के एक माॅल में बिछा है । कंधे पर लाद कर कोई नदी और नाव दर दर भटक रहा है । आजकल के 'किड्स' रिवर में वोटिंग कर रहे हैं । यू नो, नाइस न !
Chandrama manushya charan se chur hota jaa raha hai, duniya ka har kona kam dur hota jaa raha hai, kya batala sakta hai aaj ka vigyanik yug aadami aadami se kyun dur hota jaa raha hai.....
ज़माने के हाथों से चारा नहीं है ... ज़माना हमारा तुम्हारा नहीं है . . .
हर गुज़रती हुई नस्ल इतरा के कहती है की ये आने वाली नस्ल क्या ख़ाक जी पाएगी हम प्रकृति के जीतने करीब थे ये कहाँ हो पाएँगे| पर हर पीढ़ी अपनी इबारत लिखती है और क्या खूब लिखती है|
Very nice but its dangerousalso
ReplyDeleteबदलेगा जमाना - बदलेगी तस्वीरें !
ReplyDeleteChandrama manushya charan se chur hota jaa raha hai, duniya ka har kona kam dur hota jaa raha hai, kya batala sakta hai aaj ka vigyanik yug aadami aadami se kyun dur hota jaa raha hai.....
ReplyDeleteसच है, इसी बहाने पुरानी यादों को ऐसे ही जियेंगे।
ReplyDeleteबस ये है कि इस नदी में कोई पिन न चुभो दे.:)
ReplyDeleteज़माने के हाथों से चारा नहीं है ...
ReplyDeleteज़माना हमारा तुम्हारा नहीं है . . .
हर गुज़रती हुई नस्ल इतरा के कहती है की ये आने वाली नस्ल क्या ख़ाक जी पाएगी
हम प्रकृति के जीतने करीब थे ये कहाँ हो पाएँगे| पर हर पीढ़ी अपनी इबारत लिखती है और क्या खूब लिखती है|