आप चाहा मत कीजिये । जब भी आप चाहते हैं कोई और चाहने वाला आ जाता है । जब आपने पहली बार चाहा तो अटल जी आ गए । आपने हमेशा अटल जी से एक दूरी बनाए रखी । अपनी चाहतों की ख़ातिर । आप तब भी डिप्टी ही बन सके और आज भी डिप्टी ही हैं । डिप्टी मने डेप्युटी प्राइम मिनिस्टर । लोग आपकी चाहत का मज़ाक उड़ा रहे हैं तो मुझे अच्छा नहीं लग रहा । आपकी अधूरी चाहतें आपको भुतहा खंडहर में बदल देंगी । लौह पुरुष कभी प्रधानमंत्री नहीं बना करते हैं । इतिहास है भारत का । सरदार पटेल को भले ही इतिहास ने उपमाओं से नवाज़ा मगर वही उपमायें उनकी आख़िरी मंज़िल बनी रहीं । हर जगह कोई जवाहर होता है जो निकल आता है । आपके वक्त भी अटल जी जवाहर बन गए थे ।
सरदार पटेल तमाम उपलब्धियों के बावजूद जनमानस के नेता नहीं बन सके । आपने गृहमंत्री के काम को प्रधानमंत्री के काम से स्वतंत्र व्याख्या करने का प्रयास किया और भारत को जोड़ने का काम सिर्फ एक व्यक्ति का बता दिया । दरअसल बुनियादी गड़बड़ी यहीं थीं । सरदार पटेल के काम को ज़रूरत से ज़्यादा अलग कर उन्हें अपनी तरफ़ हथियाने का प्रयास किया । आप मौलिक नेता थे मगर खुद को फोटोकापी बना लिया । अटल जी मौलिक नहीं थे मगर उन्होंने खुद को किसी का फोटोकापी नहीं बनाया । एक कमरे में एक से लगने वाले दो नेताओं के फोटो नहीं टंगते । सरदार पटेल के पास इतिहास में भूमिका निभाने का वक्त था । आपके पास क्या था । आपका सरदारीकरण इतना कमज़ोर रहा कि आप पटेल की तरह सख्त लगने को ही अंतिम समझने लगे । दूसरी तरफ मोदी सरदार की ऊँची मूर्ति बनवाने जा रहे हैं । हर काम एक मिनट में करने वाले मोदी अमरीका की स्टैच्यू आफ़ लिबर्टी से भी ऊँची बनवाने के लिए दो साल से प्रस्ताव ही घुमा रहे हैं । शायद वे सरदार का उत्तराधिकारी बनने का इंतज़ार कर रहे हैं । मूर्ति तब बनेगी और तब आप नहीं होंगे । मोदी की सत्ता के आगे नतमस्तक लोग उन्हें सरदार घोषित कर देंगे । गैंगवार में एक सरदार को मरना पड़ता है दूसरे सरदार के पैदा होने के लिए । गैंग आफ़ बीजेपीपुर ।
पौरुषत्व और लोहा किसी और काम नहीं आते हैं । पौरुषत्व की उम्र होती है । क्षणभंगुर है । लोहे से कुर्सी बनाई जाती है, कुर्सी पर लोहा नहीं रखा जाता । सब पुरुष एक से होते हैं । लौह पुरुष कुछ नहीं होता । पौरुषत्व का दावा कोई भी कर सकता है । 'मुसली पावर' बेचने वाला रोज़ अख़बार में दावा करता है । जिस हिन्दुत्व के आप ब्रांड रहे उसके कई छोटे बड़े ब्रांड देश में रहे हैं । उनके कभी भी बड़े ब्रांड में बदलने की संभावना को आप समझ नहीं पाये ।
केशुभाई आपकी व्यथा को समझ सकेंगे । वो पार्टी से यह कह कर चले गए कि जब तक आप हैं मोदी का कुछ नहीं हो सकता । ऐसे कई चले गए । आज वही मोदी आपको केशुभाई बना रहे हैं । इसी गोवा में आपने अटल जी के ख़िलाफ़ मोदी को बचाया था और आज इसी गोवा में लोग आपसे मोदी को बचा रहे हैं । आप बाहर हो गए । इतिहास इंसाफ़ करता है । दरअसल खोट मज़हब की बुनियाद पर टिकी इस राजनीतिक अवधारणा में ही है । अटल जी उसी धारा में रहते हुए हिन्दू धर्म की जगह राजधर्म की बात करते हुए इतिहास में सहानुभूति पा गए । आप हिन्दुत्व की रक्षा करते हुए वर्तमान मे ही ख़ारिज हो गए ।।
निश्चित रूप से आप राजनीति में संयम के मिसाल हैं । भोजन और स्वास्थ्य के मामले में आप कितनों की प्रेरणा कर सकते हैं । मैं क़ायल हूँ । आप फ़िल्म पत्रकार रहे हैं मगर अपनी राजनीति की एक कामयाब स्क्रिप्ट तक न लिख सके । किसी से नहीं सुना कि आप ईमानदार नहीं हैं । आज आपकी पार्टी में ही आपका मज़ाक़ उड़ रहा है । आप खलनायक हैं और आपका ही एक रथयात्री महानायक । आप इसी पार्टी में हटाये गए हैं लाये गए हैं और अब भगाये जा रहे हैं । कितना कुछ हुआ आपके साथ । आप न संघ है न शरणम । आपका वर्तमान हमेशा इतिहास की तरह रहा है ।
राजनीति क्रूर होती है । मानवीय कब थी । आपने कब बनाया । मोदी आ रहे हैं । वे आप ही के उत्तराधिकारी हैं लेकिन आपकी हर नाकामी का वो बदला लेंगे । पहले आपसे फिर इतिहास से । इस बार कोई आडवाणी ही है जो मोदी बनकर बीजेपी के अटलों से बदला ले रहा है । एनडीए के नीतीशों को धकिया रहा है । मोदी अटल नहीं हैं । वे खुलेआम आडवाणी हैं मगर आपसे कहीं ज़्यादा सरेआम । वे अपने कट्टर चेहरे और छवि को लेकर ही कामयाबी के रास्ते पर निकलने जा रहे हैं ताकि सत्ता मिलने पर कोई अटल न बचा रहे । किसी आडवाणी की दोबारा हार न हो । इस बार बीजेपी हिंदुत्व पर एक राह से चलेगी । अटल आडवाणी के द्वंद पर नहीं चलेगी । इसका नाम विकास होगा इस बार ।
उठिये आडवाणी जी अपने लौह पुरुष को त्याग का मर्म समझाइये । अपने भीतर के हारे हुए आडवाणी को सौंप दीजिये नरेंद्र दामोदर मोदी को । आप हार चुके हैं । गोवा पान मसाला भी है । गोवा ज़हर भी है । सौंप दीजिये इस ज़हर के प्याले को । समंदर के किनारे सत्ता बिंदास लग रही है । आज मोदी हैं कल कोई और आएगा जो मोदी के चक्र को घुमा देगा । आपका मोदी विरोध वैचारिक होता तो जनता लामबंद हो जाती आपके पीछे । आपका विरोध व्यक्तिगत है । जो भी है गुप्त है । मोदी सार्वजनिक है ।
एक चम्पक रिपोर्टर के तौर पर आपका जलवा देखा है । आप लोहे की तरह आया करते थे । एक ही बार मिला हूँ । फ़ोन करने पर आपके सेक्रेट्री ने झाड़ दिया था । फिर भी आपने घर बुला लिया था । किसी किताब पर इंटरव्यू के लिए । छोटी से मुलाक़ात में मुझे आडवाणी की छवि ही दिखी आडवाणी नहीं मिले थे । मोदी के बाद आपको आडवाणी बनकर जीने का मौक़ा मिलेगा । दिल की बात कहने का मौक़ा मिलेगा । यही वक्त है आडवाणी को आडवाणी बनने का ।
एक मामूली सा ग़ैर ल्युटियन पत्रकार
रवीश कुमार
Seriously.. bahut bahut accha likha hai.. Patel se compare kia ryt...
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ReplyDeleteLOH PURUSH KI AATMA LOHE KI HO GAYEE LAGTAA HAI !
ReplyDeleteअब लालकृष्ण आडवानी जी को कौन समझाए कि “कन्यादान” करने की उम्र में “दूल्हा” बनने चाह करना गलत बात है ।
ReplyDeleteअब लालकृष्ण आडवानी जी को कौन समझाए कि “कन्यादान” करने की उम्र में “दूल्हा” बनने चाह करना गलत बात है ।
ReplyDeleteभाषा और शिल्प तथा कहन को सिर्फ बढ़िया कहना बदमाशी होगी हमारी !
ReplyDelete..पर ये जो 'लौह पुरुष' हैं ...भाजपा के अन्दर और बाहर भी ..इनसे मजबूत
विकल्प नहीं है ! 8 0 पार आडवाणी की राजनीतिक सोच का मोदी और अन्य विकल्प नहीं हो सकते ! ध्यान रहे यहाँ सफलता -असफलता की बात नहीं है !
२ सीट से आज तक बीजेपी की बढ़ न -घटन में आडवानी के किये-धरे का बहुत बड़ा हिस्सा है ।
आज जो मोदी की इमेज है , उफान है ...वह कभी आडवानी की और ज्यादा मजबूत थी ।
लेकिन वे स्वीकार्य नहीं थे ..अयोध्या और उसके बाद ।
संघ के वे अपने थे ! लेकिन एन डी ए के 'सेकुलरों' के लिए पच नीये नहीं थे !
अटल जी तभी एक नहीं तीन बार पीएम बन सके । नहीं तो संघ और बीजेपी में
उनके 'हक़ ' का ज्यादा मान था । अटल की उदार छवि संघ के लिए
'अयोग्यता ' थी !
अब जब की आडवाणी स्वीकार्य हैं ...उनके सामने के बच्चे , जिन्हें उन्होंने पाला -पोसा
वे बुजुर्ग के लिए इतना भी नहीं कर सकते कि उनकी सुनें ...!
जिन्ना प्रकरण के समय , एक तथ्यात्मक उक्ति को जिस तरह से लिया गया ..क्या वह सही था ?
.....और जब देवेगोड़ा ..आई के गुजराल ..चंद्रशेखर ..आदि बिना किये -धरे
पीएम बन सकते हैं तो आडवाणी की महत्वाकांक्षा नाजायज़ कैसे हो सकती है !
आडवाणी से बेहतर ...सक्रिय नेता ...ये 'नौजवान ' नहीं हैं !
होना तो यह चाहिए कि 8 4 साल के नौजवान को यदि 2 0 1 4 में एन डी ए की जीत होती है तो पी एम् बनाना चाहिए ।
हरीश खरे या किसी वरिष्ठ पत्रकार ने कही सही कहा है कि आडवानी की पारी विशेष होती यदि अटल जी की जगह वे पीएम बनते !
मोदी 2 0 1 9 में स्वीकार्य हो सकते हैं , 2 0 1 4 में नहीं !
आडवानी घटे नहीं हैं , इतिहास एक दिन साबित करेगा !
aadwani ke liye bahut hi afsos hai. jansangh ko bjp aadwani ne hi banaya.2 seat se satta tak bjp ko aadwani ne hi pahuchaya.par samay bahul hi balwan hai
ReplyDeleteआप चाहा मत कीजिये । जब भी आप चाहते हैं कोई और चाहने वाला आ जाता है । ha ha ha:D
ReplyDeleteGopalji ka kathan kabile tarif hai.Pramod ji kahna bhi sahi ho sakta hai lekin jab desh ke 50% voter 40 se kam kee umra ka hon to Advaniji kee umeedwari ko kya kahen? varith patrakar Pradeep singh je ne apne column main likha hai ke jab koi vanprastha se grihasth main pravesh karta hai to aisee hee ghatnaye hote hai. Aur ravishji apke gair lutian patrakar hone par badhai!
ReplyDeleteकाश, लोग भविष्य देख वर्तमान बदल लेते।
ReplyDeleteप्रभु !
ReplyDeleteबी जे पी के आज कल के हालातो में एक कहावत याद आती है और एक शेर की पंक्ति याद आती है ! कहावत है " घर का भेदी लंका ढाय " और शेर की पंक्ति है " घर को आग लग गई घर के ही चिराग से " !
इसमें कुछ भी आश्चर्यचकित करने जैसी कोई बात नहीं लगती क्यों की इस देश का इतिहास ही हमें ये बताता है.!
अगर अपने स्वार्थ की पूर्ति नहीं होती तो देश पर दाव लगाने वालो की कमी नहीं है इतिहास में ! ये अभी भी हो रहा है और होता भी रहेगा !
इस बात में कोई दो राय नहीं है की बी जे पी के उत्थान में आडवानी जी का बहुत बड़ा योगदान है और रहेगा भी.किन्तु ८४ वर्ष की इस अवस्था में जो कार्य उन्होंने पिछले दो दिनों में किया बी जे पी की सारी साख रसातल में मिला दी.! अगर उन्हें कोई तकलीफ थी तो पार्टी फोरम में जाकर कहते ये क्या बच्चो की तरह मुह फुलाकर घर पर बैठ गए कि जाओ " तुम मोदी को खिलाओगे तो मै नहीं खेलूँगा " अगर प्रमोद जी जैसे उनके समर्थक ये कहे की आडवानी जी वाकई बीमार थे तो वो वीडियो कांफ्रेंसिंग से कार्यकारिणी को संबोधित कर सकते the ! और अगर वो वाकई में इतने ही बीमार थे कि इस प्रकार भी कार्यकारिणी को संबोधित नहीं कर सकते तो फिर किस तरह उनके समर्थक उनको अगला प्रधान मंत्री पद का उम्मीदवार मान रहे है ! एक साल बाद उनकी उम्र ८५-८६ साल हो जायगी. क्या यह सक्रिय राजनीति करने कि उम्र है ?? अगर कोई ये सोचता है तो मुझे तरस आता है.
मुझे आडवानी के विरोध का दूसरा ही कारन नज़र आता है ये कुर्सी का चक्कर नहीं है ! मुझे लगता है कि मोदी जी जिस प्रचार समिति का अध्यक्ष बनने जा रहे है वो नवम्बर में होने वाले ४ राज्यों के चुनाव कि भी जिम्मेदारी संभालेगी और जिसके लिय आडवानी जी दूसरी समिति कि मांग कर रहे है और राजनाथ जी ने एक ही प्रचार समिति कि बात कही थी ! दरअसल क्या हो सकता है कि निष्पक्षता से अगर बात कि जाय तो मध्य परदेश और छत्तीसगढ़ कि सरकार अच्छा काम कर रही है और उनके तिबारा जीतने के आसार है ! राजस्थान और दिल्ली कि जनता वहां कि सत्ताधारी कांग्रेस से काफी नाराज है और वहां भी बी जे पी के पक्ष में सत्ता परिवर्तन हो सकता है ! इसलिय वहां के बी जे पी के शीर्ष नेताओ को लगता हो कि मेहनत हमारी और सारा श्रेय कही मोदी जी को न मिल जाय और उन्होंने आडवानी जी से गुहार लगाई ही कि आडवानी जी बचाओ और आडवानी जी उनके पक्ष में खुलकर न कह पा रहे हो ! किन्तु इस तरह के क्रिया कलापों से उन्होंने बी जे पी को सरे जग में हंसी का पात्र बना दिया है !!! ये उन्हें शोभा नहीं देता और हाँ बी जे पी को अभी से घोषणा कर देनी चाहिये कि देश का अगला राष्ट्रपति आडवानी जी होंगे.. इससे आडवानी जी के ह्रदय को भी शांति मिलेगी.. इस उम्र में वो प्रधान मंत्री पद के नहीं वरन राष्ट्रपति पट के भूमिका में सही फिट होंगे...
darbaar laga rahta hai sada darwan badalte rahte hai.
ReplyDeleteinsaan ki khushbu rahti hai insaan badalte rahte hai
ye sab to laga hi rahta hai aaj aap hain kal koi aur hoga.
हर बार की तरह, बहुत ही सही आंकलन!
ReplyDeleteआज के आडवानी जी ही कल वाले अटल है । आज भाजपा या NDA में केवल वो ही स्वीकार्य हो सकते है.। मोदी को वक्त दीजिये ।अगर उन्हें स्वीकार्य होना है तो उन्हें भी अटल बनना होगा । वो 2 0 1 9 के अटल हो सकते है ।
ReplyDeleteबात अगर महत्वाकांक्षा की करें तो कौन राजनेता महत्वाकांक्षा से पीड़ित नहीं है. इतिहास गवाह है सभी को इसका रोग भी लगा और यह कुछ हद तक नैसर्गिक भी है । लेकिन यह कोई गलती नहीं है यह मेरा मानना है.
और 8 0 पार के आडवानी जी हमारे बहुत सारे सो कॉल्ड युवा नेताऊ से बहुत ज्यदा फिट है बोथ मेंटली और physicily .
सर,ट्विटर छोर कर कहाँ भाग गए । पत्रकार है तो गाली खाने से क्यों परेशान होते है । थोडा बहुत तो चलता ही रहता है । पर वहां हमारे जैसे लोग भी तो है जो आपको वहां follow करते । आपके ट्विट देखना चाहते है । इस बहाने आपसे बात कर पाते है । ब्लॉग थोडा एफर्ट मांगता है फॉलो करने के लिये :P
ReplyDeleteMain apse milna chahta hoon
ReplyDeleteMain APse milna chahta hoon...........
ReplyDeleteo realy want to meet You ,,,,plz
ReplyDeleteplz .. i realy want to meet you
ReplyDeletemujhe apse milna hai ,,,
ReplyDeletemujhe aapse milna hai
ReplyDeletemeri mulaqat apke sath bohot jaruri hai ,,,,
ReplyDeleteplz
contact me ravish plz
ReplyDeleteplz
ReplyDeletepleaseeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeee
ReplyDeleteबहुत ही सधा लेख और उसपर ये सत्य वचन -
ReplyDelete"इतिहास इंसाफ़ करता है । दरअसल खोट मज़हब की बुनियाद पर टिकी इस राजनीतिक अवधारणा में ही है । अटल जी उसी धारा में रहते हुए हिन्दू धर्म की जगह राजधर्म की बात करते हुए इतिहास में सहानुभूति पा गए । आप हिन्दुत्व की रक्षा करते हुए वर्तमान मे ही ख़ारिज हो गए ।।"
nothing but shaaandaaar.U have your own style of writing...totally different from others...
ReplyDeletenothing but shaaandaaar.U have your own style of writing...totally different from others...
ReplyDeleteAwesome Arcticle Sir. NaMo ki bahut lehar hai India mai... Congress chahe kuch bh bol le but yeh pakka hai ki Hindustan Ki Janta is baar NaMo k naam par hi vote daalne wali hai is main koi shaque nh hai... Thanks for this Beautiful Article. Appka bahut bada Follower, Shashank Dalela
ReplyDeleteAgar wakai gair Ltutien patrakar ho to NDTV chhodo... bahar niklo is TV ki duniyaa se ... apni dhaar kund mat karo Ravish Bhaii... Lekh achcha hai, par middle class se age nahin padha jaayega...
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