तुम इस्तीफ़ा मत देना । कोई माँगे या किसी से मँगवाया जाए तुम अडिग रहना । तुम इस्तीफ़ा नहीं देते हुए ही क्यूट लगते हो । माँगने वाले पत्रकारों को भगाते हुए कूल । तुम टीवी में काफी आते जाते दिखते हो । कभी कोलकाता कभी मुंबई कभी चेन्नई । ये भी मुझे अच्छा लगा कि तुम्हें शर्म भी नहीं आती । अपना प्लेन है घूमो जेतना मन करे । तुम नहीं भाग रहे जो तुम पर आरोप लगा रहे हैं वो भागे भागे फिर रहे हैं ।
आरोप ही तो लगे हैं । बहुत हो चुका आरोपों पर इस्तीफ़ा देना । तुमने आरोपों को उनकी औकात दिखा दी है । जो तुम्हारे साथी हैं वे सब दलों के दलदल से आये हैं जहाँ हर आरोप प्रत्यारोप है । आरोप तटस्थ नहीं होता । एक आरोप के बदले या तो दूसरे आरोप का जन्म होता है या पहले से ही हुआ होता है । आरोप मैच करने के लिए होते हैं । इस्तीफा देने के लिए नहीं । उन दलों पर कितने आरोप है । क्या वे अपने दलों से 'सेट असाइड'हो गए हैं । बल्कि यही तुम्हारा योगदान है । तुमने 'सेट असाइड' होने की नवीन परंपरा की बुनियाद नहीं पड़ने दी । 'सेट'करने की यह कौन सी 'असाइड प्रथा ' है या तो डाउन हो जाइये स्टेप के साथ या डटे रहिये स्टेप पर ।
पवार तुमसे इस्तीफ़ा माँगे और तुम दे दो । ना श्रीनी ना । राजीव शुक्ला और अरुण जेटली के कहने पर इस्तीफ़ा । ना श्रीनी ना । मत देना । अख़बार और टीवी मत पढ़ो जिसमें तुम्हारे बारे में हर दिन अनाप शनाप लिखा होता है । तुम्हारे दामाद ने ऐसा क्या गुनाह कर लिया । इस्तीफ़ा माँगने वाले को शोले दिखाओ । अरे मौसी जी लड़का शरीफ़ है बस ज़रा कभी शराब तो कभी जुआ और कभी की तो । ख़ैर । क्या ये लोग धर्मराज युधिष्ठिर से इस्तीफ़ा माँगेंगे । जब जुआ खेलते हुए युधिष्ठिर धर्मराज हो सकते हैं तो तुम अपने दामाद के सटोरिये होने पर बीसीसीआई प्रेसिडेंट क्यों नहीं हो सकते । ठीक है कि महाभारत काल में सटोरिया नहीं था । अब जुआड़ी भी तो उस लेवल के नहीं रहे जो राज्य से लेकर बीबी दांव पर लगा दें तो परंपरा बचाने के नाम पर कुछ क्षुद्र परंपराओं की खोज तो करनी पड़ेगी न । वही काम तुम्हारे दामाद और बुकीज़ ने किया है । 'हाऊ फ़नी '! तुमने दामाद को करोड़ों यूँ ही दे दिया होता तो वो लाख वाख का सट्टा नहीं खेलता । नालायक । ठीक किया उसे नौकरी पर रखा । प्रिंसिपल बनाकर । एकदिन स्कूल का पर्चा ही ग़ायब कर देना और कहना कि जब स्कूल यहाँ बना ही नहीं था तो ये नालायक प्रिंसिपल कैसे हो गया ।
अच्छा किया है तुमने 'स्टेप असाइड' की मांग करने वाले दुर्योधनों की बात नहीं मानी । यहाँ जनता ही धृतराष्ट्र है । आंख ही नहीं उसकी 'मेमरी' भी तो गायब है रे । उसे कुछ नहीं दिख रहा इसीलिए लोकलाज की चिंता मत करो । याद भी नहीं रहेगा । इस्तीफ़ा मत दो । मैं जानता हूँ कोई तुम्हारे साथ नहीं है । पब्लिक में सब विरोधी हैं । प्राइवेट के साथी हैं । पर मुझे तुम्हारी औकात पसंद आई । किसी की मज़ाल नहीं हुई कि सीधे इस्तीफ़ा माँगे । वो तो टाइम्स आफ़ इंडिया का कमाल था कि सब पोज़िशन लेने लगे तुम्हारी पोज़िशन की 'कौस्ट' पर । पर चिंता मत करना । श्रीनी तुम डटे रहो । हिमाद्री तुंग श्रृंग से टाइप की कविता पढ़ते रहो ।
जो लोग तुमसे इस्तीफ़ा मांग रहे हैं उनकी नैतिकता किस स्कूल से प्रमाणित है । आजकल सब यही कर रहे हैं । तुमने न देने की मनमोहनी परंपरा को मज़बूत किया है । इस्तीफा न देने की । तुम अकेले क्यों शर्मिंदा हो । धोनी की अच्छी हालत की तुमने । हज़ारों करोड़ों कमा चुकने वाला यह ब्रांड बिना ज़ुबान के लग रहा था । हम सोचते थे कि इत्ता पैसा कमा लेंगे तब खुलकर दाँव पर लगाकर बोलेंगे । सबके ख़िलाफ़ बोलेंगे । इस मामले में मेरे जैसे प्लानिंग कर टाइम निकाल कर बोलने वालों को तुमने रास्ता दिखाया है । जब सचिन धोनी जैसे अमीर और पूजे जाने वाले खिलाड़ी मौन रहकर सम्मानित हैं तो हम और तुम क्यों नहीं । है न श्रीनी । पता चला न कि ये देश के लिए नहीं क्लब के लिए खेलते हैं । क्लब का बाॅस कौन ? भिखू म्हात्रे कि श्रीनी !
दरअसल तुमने एक कमाल किया है । इस्तीफ़ा न देकर बाक़ी सबको इस्तीफ़ा देने लायक बना दिया है । वही ऐसी एक्टिंग कर रहे हैं जैसे इस्तीफ़ा उन्हीं से मांग लिया गया हो । तुम्हारे टीके में जो भभूत हैं उसी से भस्म हो जायेंगे सब नालायक ।
श्रीनी ओ प्यारे श्रीनी, देखना मेरे इस पब्लिक सपोर्ट के बदले कोई जगह हो तो । इस्तीफ़ा न देकर तुमने जो नैतिकता के नए मानदंड स्थापित किये हैं उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रहा गया यार । मत देना । भगवान क्या हर माँगने वाले भक्त को दे देता है जो तुम इस्तीफ़ा दे दोगे । तुम्हारे इस्तीफे की सब फ़िरनी बनाने के चक्कर में हैं । रसगुल्ला खिलाकर भगाओ सबको ।
तुम्हारा एक प्रशंसक रवीश कुमार ।
हा हा, हम भी आपके साथ हैं।
ReplyDeletesab teeke ka hee kamal hai.
ReplyDeleteअब तो आपको इंडिया सेमेंट्स मे भागेदारी मिल ही जाएँगी ! :)
ReplyDeleteSabas india, sabas indian ravish ji. Kisi ne sahas nahi kiya srini ke khilaf bolne ka, kyoki sabhi ke muh me rasgulle bahre hain. Aapne jo sahas kiya to dekhiye kahin aapke ghar bhi rasgullo ka packet napahuch jayen. Ya phir ndtv ke prime time par baitha koi panalyst yeh na kah de ki ravish kumar bhi kah rahe hain ki angur khatte hain...jo bhi ho bhai sahab main aapke is blog ko padhkar bahut khus hua...
ReplyDeleteभभूत वाले जगह से ही तीसरा नेत्र खुलने वाला है । वैसे लगता है बेटों की जगह दामादों ने ले ली है...बाप माय का नाम डुबाने की..कभी रोबर्ट तो कभी मयप्पन...
ReplyDeleteहिमाद्री तुंग श्रिंग से...
कभी ऐसा भी लगता होगा की जो लिख रहा हू वो मज़ेदार हो? यह तो ज़रूर था|व्यंग की अपनी एक भाषा होती है और अपना महतव| आप लिखते रहिए अभी और कयि श्रीनि खड़े है कतार में|
ReplyDeleteवीर तुम डटे रहो
ReplyDeleteधीर तुम डटे रहो
सामने पवार हो या
राजीव की ललकार हो
कुर्सी से चिपके रहो
बोलो महात्मा श्रीनी जी की जय
Ab agar ye blog pad liya to jarur resign kar denge Shri Ni... Ha ha ha...Acha vyang tha Saab!!!
ReplyDeleteनहीं इताबे जमाना ख़िताब के काबिल / तेरा जवाब यही है के मुस्कुराए जा //
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ReplyDeleteVery funny:) bas ek baat--aap ke 'shreenni' aap ko cute dikhe? mann to kar raha hai comments hi na likhun:-/ :)
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब... श्रीनी की फिरनी
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