बिना भाषण के राजनीति का राशन नहीं
चलता। लेकिन हाल के दिनों में नरेंद्र मोदी ने भाषण को कुछ इस तरह से महत्वपूर्ण
बना दिया है कि उनके कथनों की एक एक पंक्ति की समीक्षा होने लगती है। ये शुरूआत
संगठित रूप से मोदी के इंटरनेट पर मौजूद चंद समर्थकों ने ही की है। जैसे ही
नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी भाषण देते हैं एक किस्म का मैच छिड़ जाता है। जीताने
हराने की शैली में बातों की मीमांसा की जाने लगती है। हाल के दिनों में नरेंद्र
मोदी ने दिल्ली और कोलकाता में चार या पांच बार भाषण दिये हैं। वो जहां जाते हैं
गुजरात में अपने विकास कार्यों को लेकर भारत के बारे में एक सपना रचते हैं। देश के
स्तर पर स्वपन देखने की राजनीतिक प्रवृत्ति भौगोलिक खंडों के राष्ट्र राज्यों में
उदय होने के साथ चली आ रही है। शासक खुद को युगदृष्टा के रूप में पेश करना चाहता
है। न भी करे तो उसकी बात को इस नज़र से भी देखा ही जाता है। इसके लिए हर नेता
अपने पसंद से किसी कालखंड का चुनाव करता है और उसे गया गुज़रा या स्वर्णिम बताते
हुए तथ्यों और मिथकों को मिलाकर ऐसी तस्वीर खींचता है कि आपको अपना वर्तमान भी
अजनबी जैसा लगने लगता है।
नरेंद्र मोदी के भाषणों की शैली की
बहुत चर्चा होती है। सार्वजनिक जीवन में अच्छे वक्ता की शैली भी देखी जाती है।
लेकिन राजनीति का इतिहास बताता है कि सिर्फ शानदार शैली वाले नेताओं ने नहीं बल्कि
साधारण कद काठी और शैली वाले नेताओं ने भी गहरा प्रभाव डाला है। इसलिए शैली पर
ज़ोर देने से समस्या यह होती है कि लालू प्रसाद यादव की शैली याद आ जाती है। वो
अपनी शैली के कारण ही बिहार की सत्ता में पंद्रह साल काबिज़ रहे और नवीन पटनायक,
शीला दीक्षित या शिवराज सिंह चौहान अपनी भाषण शैली के साधारण होते
हुए भी जनता के बीच विकास के चुनावी पैमाने पर पसंद किये जाते रहे हैं। मनमोहन
सिंह की भाषण शैली तो राजनेता की लगती ही नहीं है। इन सबके बीच नरेंद्र मोदी एक
खास शैली का खाका बनाये रखते हुए मंच लूट ले जाते हैं। शैली में मीडिया और मंच के
नीचे मौजूद श्रोता की दिलचस्पी ज्यादा रहती है लेकिन नेता खासकर नरेंद्र मोदी जैसे
नेता को मालूम रहता है कि लोग उन्हें गौर से सुन रहे हैं इसलिए उनकी नज़र सिर्फ
शैली पर नहीं बातों पर भी है।
नरेंद्र मोदी के भाषणों में स्पष्टता
इसलिए है कि प्रशासन और उपलब्धियों का लंबा अनुभव है । वे भरोसे के साथ अपने काम
का प्रदर्शन करते हैं। भारत के बारे में क्या सोचते हैं वे खुलकर सामने रखते हैं।
तभी उनकी बातों की आलोचना और सराहना घनघोर तरीके से होती है। उनके हाल के चार पांच
भाषणों को बार बार पढ़ने के बाद यह लिख रहा हूं कि वे अपने पसंद का कालखंड चुनते
हैं और उनका महिमंडन करते हैं या धज्जियां उड़ा देते हैं। पिछले कई भाषणों में
उन्होंने कहा है कि गुजरात एक ऐसा प्रदेश है जहां किसानों को मिट्टी की जांच के
लिए हेल्थ कार्ड दिया गया है। निश्चित रूप से उन्हें सिर्फ गुजरात के बारे में बात
करने का हक है लेकिन यह जताने का भाव नहीं होना चाहिए कि हेल्थ कार्ड सिर्फ गुजरात
में दिया गया है। मिट्टी जांच के लिए हेल्थ कार्ड गुजरात के अलावा पंजाब, हरियाणा,कर्नाटक,उत्तर प्रदेश
बिहार और आंध्र प्रदेश में भी दिये गए हैं। जब वो गुजरात के पर्यटन सेक्टर में डबल
डिजिट ग्रोथ की बात करते हैं तो ऐसा लगता है कि गुजरात ने बड़ा बदलाव किया है। तुलनात्मक
रूप से किया होगा मगर २०११ के केंद्रीय आंकड़े के अनुसार आज भी मध्यप्रदेश में
घरेलु पर्यटक गुजरात से ज्यादा आते हैं। मध्यप्रदेश और बिहार ने भी पर्यटन के
क्षेत्र में डबल डिजिट ग्रोथ हासिल किया है। सबसे ज्यादा
यूपी और आंध्र प्रदेश में पंद्रह करोड़ लोग जाते हैं। गुजरात में दो करोड़ से कुछ
ज्यादा घरेलु पर्यटक गए हैं। सवाल है कि आप अपनी उपलब्धियों की पैकेजिंग कैसे करते
हैं। आंकड़ों का आधार क्या है। क्या हम इस तरह से नेताओं के भाषण को देखते समझते
हैं। यह सवाल खुद से पूछना चाहिए।
गौर से देखेंगे तो राहुल गांधी और
नरेंद्र मोदी की बातें कई जगहों पर मिलती जुलती लगती हैं। जैसे राहुल गांधी कहते
हैं कि एक अरब आवाज़ को सिस्टम में जगह देनी है। ऐसा सिस्टम बनाना है जिसमें
व्यक्ति की अहमियत न रहे और सिस्टम इस तरह से चले कि सबको न्याय मिले। नरेंद्र
मोदी भी फिक्की की महिला उद्योगपतियों से कहते हैं कि पचास फीसदी आबादी को आर्थिक
विकास की प्रक्रिया से जोड़ने के बारे में सोचना होगा। राहुल गांधी की तरह वे भी
गुजरात की औरतों की कामयाबी के किस्से चुनते हैं। इस ईमानदारी से स्वीकार करते हुए
कि इन किस्सों में गुजरात सरकार का कोई योगदान नहीं है वे बताने का प्रयास करते
हैं कि आम आदमी संभावनाओं के इंतज़ार में नहीं है बल्कि वो इस्तमाल करने लगा है।
ज़रूरत है तो एक सिस्टम बनाकर उसे धक्का देने की।
मोदी एक मामले में साहसिक नेता है।
पार्टी के भीतर ही इतने विरोध के बावजूद वो दिल्ली आने की सभी कोशिशों में कामयाब
हो जाते हैं। पार्टी के बाकी नेता जहां चुप हैं वहां वे खुलकर खुद को प्रोजेक्ट
करते हैं। प्रधानमंत्री का दावेदार नहीं कहते लेकिन तब तक वे चुप क्यों रहे। इसका
मतलब है कि वे सत्ता के लिए आतुर हैं। उन्होंने जो सोचा है उसे करने के लिए सत्ता
ही चाहिए ये प्रदर्शित करने में जरा भी संकोच नहीं करते हैं। मध्यप्रदेश के
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के हाल के बयान के संदर्भ में मोदी को देखा जाना
चाहिए। शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि अच्छे कामों को प्रचार की ज़रूरत नहीं है।
प्रधानमंत्री पद की बात करने से बीजेपी का मज़ाक उड़ रहा है। शिवराज सिंह चौहान से
पूछा गया कि वे ट्विटर पर आए हैं क्या उनके समर्थक भी अब प्रचार में जुट जायेंगे
तो शिवराज तुरंत कहते हैं कि मेरे समर्थक क्या होते हैं। जो भी समर्थक हैं वो
बीजेपी के हैं और मैं उनमें से एक हूं। शिवराज सिंह चौहान अटल बिहारी वाजपेयी और
लाल कृष्ण आडवाणी के प्रति अपने सम्मान को विनम्रता से ज़ाहिर करने में संकोच नहीं
करते लेकिन मोदी की शैली में मैं मैं और मेरा गुजरात ज्यादा प्रमुख हो जाता है। एक
ही पार्टी के दो प्रमुख नेताओं की शैली में इतना अंतर है।
फैसला जनता को करना है। उसके पास बहुत
सारे विकल्प हैं। मोदी खुद को एक विकल्प के रूप में पेश कर रहे हैं। खूब बोल रहे
हैं। दांव पर लगाने वाले को ही पता चलता है कि वो जीता या हारा। मगर राजनीति में
चुप रहकर काम करने वाले नेताओं की कामयाबी के किस्से अभी सुनाये नहीं गए हैं। ज़रा
इन्हें भी सुनने की तैयारी कीजिए। लोकसभा चुनावों के नजदीक आते ही हर भाषण दूसरे
पर भारी पड़ेगा। व्यक्तिवाद या विचारवाद इसकी लड़ाई नरेंद्र मोदी ने छेड़ दी है।
फैसला आना बाकी है।
(यह लेख आज के राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित हो चुका है)
aapne jo likha sahi likha hai, lekin kya aap bhi apne man pasand ka kalkhand nahin chun rahe. Jab modi ji paryatan kshetra me vikas dar ki baat kar rahen hain to aap bhi sirf vikaas dar ki hi baat kijiye. Unhone to kabhi ye nahin kaha ki gujarat parayatan ke kshetra me sabse aage hai ya sabse jyaada vikaas kiya. Unhone sirf itna kaha ki dwiankiya dar pe vikaas kiya. Haan aapki ye baat sahi hai ki bihar aur MP ne unse jyaada vikaas kiya hai. Lekin baaki rajyon ke kul prayatakon ki sankhya batana to is sandarbh me kahna mujhe sahi nahin laga.
ReplyDeleteआज की राजनीती में बिना भाषण रासन नही चलता,बेहतरीन आलेख.
ReplyDeleteआपको नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनायेँ!
Sir, aapko blog par phir se kam samyantral me post krte dekhkar behad khusi hui, apke lekhon ka besabri se intazar rahta h, hamesha ki tarah vicharottejak
ReplyDeleteeffectively summarized in last paragraph. your views well understood- you have this way of putting forward things with such sublimity that it reaches your audience. Though i don't very well support your this view, yet the sheer idea of putting thoughts into words is wonderful.
ReplyDeleteमोहल्ला ब्लाग वाला लिंक खुल नही रहा
ReplyDeleteराजनीति के मुखर होने से लोकतन्त्र को कभी हानि नहीं हुयी है, हानि हुयी तो राजनीति के फूहड़ होने से।
ReplyDeleteरविश कुमारजी आपने जो लिखा वो बिलकुल सही है। आपकी प्राइम टाइम की डीबेट मैं रोज देखता हु। बहुत अच्हा लगता है। के देश मैं आप जैसे न्यूज़ चैनल है जो चिलाकर न्यूज़ नही दिखाते जो सही है उसपर विस्तृत चर्चा करते है।
ReplyDeleteमैं नरेन्द्र मोदी के बारे मैं कुछ कहना चाहता हूँ और गुजरात के जो विकाश का जो झूठ उन्होंने रचा है। उसके बारे मैं कहना चाहता हु।
मैं खुद एक गुजराती हु नरेन्द्र मोदी को लगता है गुजरती के पास जो पैसा है वो आज उनकी गवर्नमेंट की वजहसे है। जो बिलकुल गलत है गुजरात पहले से एक विकास की और आगे बढ़ने वाला राज्य था।
पूरा देश आज आगे बढ़ रहा है मोदी को लगता है सिर्फ गुजरात मैं परिवर्तन आ रहा है। मगर मोदी इस बातसे अनजान है की देश के कई राज्य गुजरात से ज्यादा तेज गति से आगे बढ़ रहे है। जो गुजरात एक समय सबसे आगे था। आज अगर कुछ तथ्यों के आधार पर देखे तो गुजरात 1 1 वे नंबर पर है। 1 1 वा नंबर मैंने जीवन धोरण की तुलना के बारे मैं बताया। गुजरात से आगे राजस्थान और कश्मीर है। अगर वो टॉप 3 मैं होते तो मैं उनकी दलील सही मानता मगर ये तो फेकू है सिर्फ फेकू नही the ग्रेट फेकू।
1. गुजरात मैं कए गावो मैं पानी की समस्या है। कोई न्यूज़ इशे दिखा नही रहे है।
2. गुजरात की केग की रिपोर्ट मैं मोदी का ब्रस्थ्चार सामने आया है मगर सरे न्यूज़ वाले मोदी से डरते है ऐसा लगता है.
३. राजकोट मैं एक परिवारने भाजपा के कार्य करता से तंग आकर जल्गये NDTV तक ने नहीं दिखाया .
और पानी की समस्या महारास्ट्र जैसी है मगर गुजरात देश का हिसा नहीं है क्या जो कोई उसकी तकलीफ को दिखा नहीं रहा है और बठोत्री हो रही है दिकत मैं। अगर आअप सच दिखाना चाहते है तो दिखाए सच। लेखन :- फैसल मन्सूरी
सर अगर देखा जाए तो यह नेता (राहुल जी और मोदी जी) अपने आप में नहीं अपनी पार्टी के कारण बड़े नेता के रूप में गिने जाने लगे है। क्योंकि कांग्रेस सोचती है कि राहुल जी से बड़ा व लोकप्रिय नेता उनके पास है ही नहीं। वहीं भाजपा में कोई एक सुर में किसी नेता को स्वीकार ही नहीं करता, जिसका फायदा कहीं न कहीं मोदी जी को हो रहा है। ऐसे में बेचारी जनता क्या करें कहने को उसके पास सारे विकल्प खुले है, लेकिन वह विकल्प भी काफी हद तक ऐसे ही हैं।
ReplyDeleteविकल्प
ReplyDeleteमहत्वाकांक्षा , साहस , प्रस्तुतिकरण को एक मखमली पैकेज के रूप में पूरे विश्वास के साथ प्रस्तुत करना अपने आप में एक बहुत बड़ा गुण है , जो किसी भी नेता को स्थापित करने के साथ आतंरिक एवं बाहरी विरोधों को संतुलित करता है, मोदी जी इस कला में प्रवीण हैं , ऐसे व्यक्ति का हर शब्द का समर्थन और आलोचना दोनों बन जाना स्वाभाविक घटना है , परन्तु प्रहारक जानता है की एक प्रहार के बाद दूसरा प्रहार कब और कैसे करना है, खिलाड़ी टी-२० का हो या पांच दिवसीय मैच का, आवश्यक दोनों ही हैं, समय और परिस्थिति के अनुसार >
ReplyDeleteA fine, balanced analysis. I agree with you that Modi seems to have made speeches a tool to spread his political influence. In terms of campaigning, he appears to be following what Barack Obama successfully did in 2008 and, to some extent, in 2012. Obama boldly and loftily painted a vision that millions of his followers lapped up, especially because of his unlikely candidacy. It should also be noted that Obama was perhaps the first major world politician to effectively harness the power of social media. Modi is said to be seeking advice from a US-based PR agency APCO. I glanced at the website of the agency and found that it is headed by the former New Mexico governor and a presidential contender in 2008, Democratic Bill Richardson. Bill debated alongiside Obama in the 2008 US Democratic presidential primaries. Thus, Modi's coopting of Obama's campaigning style seems plausible.
ReplyDeleteI think you make an excellent point about individual aggrandizement. One of the reasons our constitutional framers did not prefer the presidential form of democracy was a large number of uneducated people in the country, who might be easily swayed by a despot. Modi is not the first politician in India to focus on his own image. We know how Indira Gandhi actually imposed emergency on the country and undermined our parliamentary democracy, until she was thrown out in the election of 1977. Hence, the danger of individual worship should not be underestimated, especially because our neighbors are not exactly good role models of democracy. If we survey the world, we also have many other examples of high-handed leadership, whether it is the former president of Venezuela, the rulers in Cuba, the regime in Iran, or any number of other despotic governments. I do not mean to compare our situation to these situations, as there are many important dissimilarities between India and many of these countries. However, mass, uncritical following of a leader has seldom been without problems.
All in all, India needs to look at all its options critically in the next elections, as you have hinted. Our nation's future depends on how wisely the people of India make their decision. – Anish Dave
Just a technical correction in my comment above: Bill Richardson is the chairman of an international team of consultants of Global Political Strategies, a division of APCO. The agency describes it on its website as "an executive service of APCO Worldwide."
ReplyDelete@faisal, sankhyiki bahut hi ajeeb cheej hai isko har koi apni tarah ghuma ke pesh karte hain. Ab jab gujarat pahle se hi itna viksit tha, to vikaas dar to kam hi hoga na jaise ki USA ka vikaas dar 2-3 hai jab ki baharat ka 5-6. Iska matlab ye nahin ki Bharat aage hai USA se. To tathyon ko aur gananaon ko sahi tareeke se pesh karna chahiye aur tulna karni chahiye. Main maanta hoon ki gujarat ke sabhi gaon me haalat ek jaisi nahin hai, but main Jamnagar ke ek gaon balachadi me rahta tha, wahan tanker aata tha paani ke liye aur aaj kal tap water aata hai jo ki chaubis ghante aati hai. Main sabarmati nadi bhi dekha tha jo ki humesha naale ki tarah lagta tha aaj usme paani hai. To kuchh to kaam hua hai. Ye nahin hua hai ki poore gujarat ka kaya kalp ho gaya hai. Lekin agar hum maharashtra ya rajasthan ki baat karen to kuchh to batayen media wale ya wahan ke mukhyamantri ki wahan unhone kya kiya hai. Kisi ne roka thode hi na hai. Ye ek achha pratispardha hoga jab har rajya vikaas ko le ke pratispardha karengen aur is se poore desh ka vikaas hoga.
ReplyDeleteकभी कभी ऐसा लगता है कि मोदी को इतना weight क्यों दिया जा रहा है. खासकर सोशल मीडिया पर तो लगता है जबदस्त campaign किया जा रहा है. एक पहले से ही विकसित राज्य का कितना विकास मोदी महाराज ने किया है यह तो वहां उनको भुगत रही जनता ही बेहतर बता सकती है. बापका यह लेख सटीक लगा. आपका धन्यवाद.
ReplyDeleteAb to comment dekhakar #FEKU and #PAPPU company walo ka andesha hone lagta hai...
ReplyDeleteRavishji mai appka kariyakaram prime time ko kafi samay se dekhta a raha hu, isiliiye mai yeah janta hu ki app har paksh ki soch ko ek hi mapdand ke anusar napte hai aur jaha tak mai samjhta hu nishpaksh baat rakhte hai. Mai yeah nahi kahunga ki mai appka fan hu kyuki mujhe malum hai ki yeah sunna shayad appko pasand nahi hai, aur mai bhi is "fan following" ki dharna ke khliaf hu. yeah fan following ki dhrana shyada humari soch ko nishpaksh nahi rehnediti hai tabhi shayad hum kabhi ek khiladi ko bhagwan bana dete hai kabhi kisi filmy sitare ko, to kabhi koi kisis khas kulanam ke logo ko bhagwan banadete hai. ajjakl is social networking may jeene waale ek warg ke logo ke naye bhagwan narendra Modiji hai. Per shayad khud ko puran teh nishpaksh rehkar appni raye dena namumkin nahi hai. Aur yadi app khud ko yakeen dila bhi de ki app ki soch nishpaks hai to patahk ko appni nishpakshta ka yakeen dilana namumkin hai. Mai puri imandari se yeah kehna chahunga ki mai jo likh raha hu woh meri appni smajh may nishpaksh hai. Per mujhe puran tarah gyat hai ki ishe padhne wale ismay pakshpat kahi na kahi dhoond hi lenge aur shyad yeah sahi bhi hai kyuki kisi ki samikha karte waqt kahi na kahi ek taraf jhukaf humare "subconsciousness" may ban hi jata hai. Tabhi hum sabhi ko team papu ya team Fekku ka khiladi samjh liya jata hai.
ReplyDeleteAshchary ki baat yeah hai ki hum vyakti pradhan rajneeti ka virodh karte karte is puri charcha ko vyakti pradhn hi bana dete hai. Jaisa appne modiji ka ziakr karte hue appne man pasand ka kalkhand ka ziakr kiya waise hum sab bhi appni appni soch ke jhukaw ke anussar tathyo ko vyakti ki badai ya burai karne ke liye istemal karte hai. aur yeah statistics ajjke daur ka sabse bada jadu hai jise har koi appne tarah se pesh karke appna ullu sedha karta hai. Yeah thek kuch aisa hi hai jaise ek CBSE ke chatra ke parinam ko U.P board ke chatra ke parinam se tulna karna. Jaha ajjkal CBSE may 90% se kam lane per appko kamzor samjha jata hai wah doosari ore U.P board may ksis bhi chatra ke liye 80% lana shayd namumkin sa hojata hai. Ab pehle nazar me yadi inke parikhshao ke parinamo ki tulna kare to UP board ka har chatra appko kamzor hi lagega. per kya wakai haqueqat may aisa hai. Isiliye mere sab se guzarish hai kii appne appne purvagrah ko tyag karke kewal thos aur samman tathyo per hi kisi samiksha ki jani chahiye. Mera anurodh hai ki kripya app news channel wale kewal statistics(ankdo) ko hi sacch na mane zameni haquekat ka khud jayeja kare aur sach chahe jiski ke bhi pratikul ya anukul ho usay same appne camera mai kaid kar laye.
dhanyawad
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ReplyDeleteनमस्कार सर जी !!!
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ReplyDeletehttp://www.frontlineonnet.com/fl3004/stories/20130308300404300.htm
narendra modi is best option for pm..
ReplyDeleteमौका देखकर पक्ष बदलना कोई मीडिया से सीखे... वैसे इन्तज़ार रहेगा कभी आपकी कोई पुस्तक प्रकाशित हो जिसमे मीडिया को वैसे ही खोलकर रखा जाए जैसे राजनेताओं का अंग भंग किया जाता है...
ReplyDeletesir ap buhat achha likhte hai , apne toh राजनेताओं का अंग भंग किया जाता है... u r supbbb
ReplyDeleteहाँ रबिश जी सही कहा आपने लिखने बोलने की शैली तो आप की भी कुछ कम नहीं है | कैसे राउल बाबा को मोदी के बराबर दिखा दिया ! मान गए उस्ताद ऐसे ही लोग आपके प्रशंसक नहीं बन जाते ! लेकिन में उनमे से नहीं हूँ | बिहारी बाबु तुम्हारी शोर्टकटिया नीति मुझे कुछ जमी नहीं, बुरा ना मानो तो फ्री की सलाह हे नाम कमाने के लिए इतनी बेसब्री भी अच्छी नहीं, धेर्य रखोगे तो सीधे रास्ते से भी मंजिल मिल जायेगी| जल्दी से देर भली | सच का साथ दो इन काले कांग्रेसी अंग्रेजो से कालिख के सिवाय कुछ नहीं मिलेगा | सेकुलर सेकुलर का गाना गाने से तुम्हारा सम्प्रदाय नहीं मिट सकता | सम्प्रदाय ही समाज की रचना करता हे, जबकी गैर साम्प्रदायिक (सेकुलर)तो सिर्फ सवयं केंद्रित और स्वार्थी ही होता है |
ReplyDeletevonod babu, aap apni passport photo bhijva do. Pocket me rakhunga. Main modi fobiya ke rogiyon ka aspatal kholne ke chakkar me hun.
ReplyDeleteMain to kisi bhi neta ko ballet paper ke naam se hee mulyankan karti hun--rahi baat raashan bijli paani noukri ki to chalo maan lo ek pal ki ye sab available hai-power game to firbhi kahan rukni hai?!!:( fir?100grm bheja kyun kharch kardun netaon ke pichhe?:) :p
ReplyDeletesuddenly, i remarked your absence in twitter today so remembered this blog and read the "Modi.....rashan" nice one, well said.....pls return to twitter again Sir....journos shud not feel hurt on any criticism...!
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