चिड़िया चिड़िया चिड़िया
उड़ उड़ के आई चिड़िया
घूर घूर के देखे गुड़िया
कहाँ से आई चिड़िया
पंखों से उड़ती चिड़िया
बिस्तर पे रोती गुड़िया
चिड़िया चिड़िया चिड़िया
इधर से उड़ के आई
उधर से उड़ के आई
पंख हैं कि पुड़िया
सोचे है मेरी गुड़िया
हंसती है मेरी गुड़िया
उड़ती है देखो चिड़िया
आसमां की रानी है
बादल इनकी नानी है
चंदा इसका मामा है
सूरज इसका चाचा है
तारों की है सहेलियां
बतियाये सारी रतिया
चिड़िया चिड़िया चिड़िया
(बस गुनगुनाने लगा उसे मनाने के लिए तो हिन्दी साहित्य में भूल वश योगदान हो गया। मेरी चंद्रावती,रामदुलारी,प्रेमदुलारी,भगवती,केसरपति,चंद्रकला,सुमनलता इन तुकबंदियों को सुनकर झूमती रही। तभी मुझे अहसास हुआ कि यह कोई सामान्य रचना नहीं है। इसे तुरंत साझा किया जाना चाहिए। आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि आलोचक भी इसे सराहेंगे। नहीं सराह सकते तो अपने घर का पता दे दें..आकर समझाता हूं।)
बिटिया को गुनगुना कर सुनाने से और भी रसीली हो जायेगी यह रचना।
ReplyDeleteघर का पता दे सकता हूं पर विश्वास हैं आप घर पर नहीं आयेंगे
ReplyDeleteआप तो हर दिन घर मेँ आते है।
ReplyDeletePahle chandravati,ramdulari,premdulari,bhagvati,kesarvati,chandrakala,sumanlata etc etc se to written 'saraahna' le lo aap :p :p yahan par written opinion dena padta hai-sirf jhumne se nahin chalta-i hope u know sirf jhumnewale log kahan paaye jaate hai :p :p well it seems you are spending time with new born daughter :) simple :)
ReplyDeleteपता तो हम भी दे दते ...लेकिन आप आयेंगे यह संदेह है ...लेकिन कविता ....अच्छी है ..दरअसल कस्बों में ऐसी ही कवितायेँ बनती हैं ...!
ReplyDeletenice poem but bhai ye suraj yo iskaa bhaiya tha ab chacha kaise?just joking
ReplyDeleteaise hi gungunate rahiyee hum logon ka fayada hi ho raha hai....
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ReplyDeleteइतनी प्यारी,
ReplyDeleteसबसे न्यारी।
कोमल दिलो पर फुदकती सी कविता!!
समझ आ गई साहब!!
पता देना और पंगा लेना?
पधारें यह रहा पता……
निरामिष: शाकाहार संकल्प और पर्यावरण संरक्षण (पर्यावरण दिवस पर विशेष)
Bahut khoob. Jaha na pahuche ravi waha pahuche kavi Ravish. Manoj Uniyal Rishikesh
ReplyDeleteravsih ji, der se magar bahut bahut badhai hoo, shayad isi liye aap NDTV par nazar nahin aa rahe hai
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ReplyDeletekoi samjhe na smjhe aapki nanhi chidiya ko papa ki kavitaye jarur samjh rahi hogi...
ReplyDeletekavita me masumiat mann ko bha gai
ReplyDeletekavita me masumiat mann ko bha gai
ReplyDeleteyou'r so spontaneous!!!!
ReplyDeleteरवीशजी, कल Prime Time में आपका कथन सत्य था "FCI, काम का न काज का, दुश्मन अनाज का"
ReplyDeleteaapki kavita bahut achhi hai..
ReplyDeletePar dukh ki baat ye hai ki jis chidiya ki baat aap kar rhe hain..wo ajkal nazar nhi aati..
भवन संख्या- A-36, G-8, basement, kailash colony, GK-1, फैसला आपका, द्वार खुले हैं सदैव...हाहाहा
ReplyDeleteसर जी मै अपनी एक कविता का लिंक दे रहा हूँ पढ़िए शायद आपकी बात को ये बखूबी समझा दे लोंगो को....
ReplyDeletehttp://urvaani.blogspot.in/2012/05/blog-post_220.html
क्या बात है...रवीश जी...
ReplyDeleteयह रचना पढ़कर अपना बचपन याद आ गया...और आंगन में फुदकती-चहकती चिड़ियें भी...
क्या बात है...रवीश जी...
ReplyDeleteयह रचना पढ़कर अपना बचपन याद आ गया...और आंगन में फुदकती-चहकती चिड़ियें भी...
क्या बात है...रवीश जी...
ReplyDeleteयह रचना पढ़कर अपना बचपन याद आ गया...और आंगन में फुदकती-चहकती चिड़ियें भी...
That's very nice .. I busy but loving it. Again and again i will read ..
ReplyDeleteGood sir!! I have bit time so i have'nt read your all blog , but chiriya wali is very fantastic & show that u will be good poet in future ... Plz write about IT Professionals also .. The Computer Yug
ReplyDeleteमेरे सिंग दाँत पंजे डैने
ReplyDeleteदब जाते हैं
सौ फुट भीतर
स्वत
जब तुम न सना
लहरा कर झूल जाती हो
मुझसे लगकर
तब सहसा मेरी धमनियों में
बजता है संगीत
और बहता है
प्रीत
राग अनुराग के
इस क्रम से तुम
अनभिज्ञ
मुझे बचाए रखती हो
रवीश सर, आपकी ये कविता अपनी भतीजी को सुनाया... आप यकीं नहीं करेंगे उसके चेहरे पे जो खिलखिलाहट आई, वैसी खिलखिलाहट मैं पहली बार देख रहा था. उसे देख ह्रदय के अंतरतम से आपको धन्यवाद...
ReplyDeleteरवीश सर, आपकी ये कविता अपनी भतीजी को सुनाया... आप यकीं नहीं करेंगे उसके चेहरे पे जो खिलखिलाहट आई, वैसी खिलखिलाहट मैं पहली बार देख रहा था. उसे देख ह्रदय के अंतरतम से आपको धन्यवाद...
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