तो राहुल जाति-राजनीति सीख रहे हैं?

क्या आधुनिक भारत के निर्माता कहे जानेवाले जवाहर लाल नेहरू को चुनावी राजनीति में किस भी तरीके से लांच किया जा सकता है? इस बात पर चर्चा चलेगी कि राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के चुनावी अभियान की शुरूआत के लिए नेहरू के संसदीय क्षेत्र फूलपुर को क्यों चुना? संविधान निर्माताओं और आज़ादी की लड़ाई के नेताओं में डॉ भीभराव अंबेडकर को छोड़ कर कोई चुनावी प्रतीक नहीं बन सका। नेहरू हमेशा राजनीति से ऊपर उठकर याद किये जाते रहे। सरदार पटेल लौह पुरुष की उपमाओं के लिए याद किये जाते रहे, मगर राजनीति में जैसी निरंतरता अंबेडकर की रही, नेहरू और पटेल की कभी नहीं रही। १९७१ के चुनाव में विश्वनाथ प्रताप सिंह के फूलपुर से जीतने के बाद गांधी परिवार ने वहां से कभी नेहरू की विरासत पर दावा करने का प्रयास नहीं किया। अपने घोर राजनीतिक संकट के वक्त भी इंदिरा ने चिकमंगलूर और सोनिया ने बेल्लारी को चुना। फूलपुर को नहीं। बाद में रायबरेली और अमेठी राजीव गांधी,इंदिरा गांधी और राहुल गांधी से जुड़ते चले गए। राहुल गांधी ने अचानक अपनी दादी के जन्मदिन से पांच दिन पहले जवाहर लाल नेहरू के जन्मदिन को क्यों चुना? क्या इसलिए कि नेहरू तक पहुंचकर सारे राजनीतिक विवाद ठहर से जाते हैं। नेहरू को याद करने में एक किस्म का रोमांस है पर उन्हें रोमांस के साथ याद करने वाली पीढ़ियां अब बची ही कहां हैं।

लेकिन राजनीति प्रतीकों के पीछे अपने असली मायने गढ़ती है। फूलपुर पूरी तरह से पिछड़ों के वर्चस्ववाला राजनीतिक गढ़ है। यहां ब्राह्मण भी पर्याप्त मात्रा में हैं। यहां की पांच विधानसभा सीटों में से एक कांग्रेस के हाथ में हैं। राहुल की रैली से एक दिन पहले उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण सम्मेलन में मायावती ने ब्राह्मणों को चेताया था कि अगर कांग्रेस आई तो ठाकुर दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री बनेंगे और बीजेपी सत्ता में आई तो ठाकुर राजनाथ सिंह। मायावती का यह बयान राहुल गांधी के गुस्से की तरह अनायास नहीं था। वो जानती हैं कि यूपी की राजनीति में ठाकुर और ब्राह्मण प्रतिद्वंदि रहे हैं। दोनों सत्ता की वापसी के लिए बेचैन हैं। ब्राह्मणों ने थोड़ी बहुत वापसी भी की है मगर बीएसपी को डर है कि कहीं वे छिटकर राहुल गांधी के पास न चले जाएं जो कहीं न कहीं पंडित जवाहर लाल नेहरू से खुद को जोड़कर उस पहचान को और स्पष्ट करना चाहते हैं। राहुल गांधी भी जानते हैं कि अगर ब्राह्मण बसपा से छिटक गए तो कांग्रेस और मज़बूत हो सकती है। अपने भाषण की पहली दूसरी पंक्ति में ही राहुल गांधी ने कहा कि जहां के नेहरू एमपी थे,आज वहां से माफिया एमपी है। फूलपुर को अपनी इस विरासत पर गर्व होता तो अमेठी और रायबरेली की तरह गांधी परिवार के साथ जुड़ा रहता। अगर राहुल यहां के पचास से साठ फीसदी पिछड़ों को नेहरू और सुनहरे अतीत के नाम पर कांग्रेस की तरफ कर सकते हैं तो समाजवादी पार्टी को भी प्रभावित करेंगे। इसलिए फूलपुर जाकर उन्होंने मायावती और मुलायम को चुनौती ही नहीं दी बल्कि दोनों को लालची तक कह दिया। ये राहुल गांधी की ज़ुबान नहीं है मगर एंग्री यंग मैन की भूमिका में आए राहुल जब यह कहते हैं कि मुलायम मायावती को अब ग़रीबों के अत्याचार पर गुस्सा नहीं आता। मुझे आता है तो वो उत्तर प्रदेश में सरकार विरोधी जनभावना की इकलौती आवाज़ बनना चाहते हैं। बीजेपी का तो ज़िक्र भी नहीं था उनके भाषण में।

फूलपुर की रैली सिर्फ नेहरू के प्रतीक के पीछ के विश्लेषणों तक सीमित नहीं रहेगी। राहुल गांधी की नई छवि पर भी काफी कुछ कहने के लिए मजबूर करेगी। राहुल गांधी ने खुद को एक गंभीर नेता के रूप में पेश करने की कोशिश की है। मनरेगा के मज़दूरों के साथ फोटो खींचाना, दलितों के घर जाकर खाना, भट्टा परसौल में पंचायत करना और पदयात्रा। मगर अन्ना आंदोलन ने उनकी छवि को काफी धक्का पहुंचाया। उम्मीद की जा रही थी कि भ्रष्टाचार को लेकर व्याप्त गुस्से के वक्त राहुल गांधी कुछ बोलेंगे। बहुत देर तक राहुल चुप ही रहे। यह ठीक है कि सोनिया गांधी की हालत उस वक्त काफी खराब थी मगर जब वो संसद में बोलने गए तो अपनी लाइन चला दी। उसके बाद वे फिर चुप हो गए। लोगों ने पूछना शुरू कर दिया कि ऐसे मुश्किल वक्तों में राहुल गांधी सार्वजनिक बयान क्यों नहीं देते हैं? हर नेता बयान के लिए अपना वक्त चुनता है। मायावती भी तभी बोलती हैं जब उन्हें लगता है कि सही मौका है। लेकिन राहुल की चुप्पी को अन्ना आंदोलन में शामिल युवाओं ने अलग तरीके से देखा। अब राहुल गांधी अपने गुस्से को यूपी का गुस्सा बनाना चाहते हैं। जवाब हम देंगे। ये उनके पोस्टर का नया नारा है। मुझे गुस्सा आता है कि कब जागेगा यूपी। मुझे बताइये कब जागेगा यूपी। राहुल गांधी काफी उत्तेजक रूप से बोल रहे थे। उन्होंने अपनी पुरानी शैली छोड़ दी है। बीस साल से अधिक हो गए कांग्रेस को सत्ता से बाहर हुए, फिर भी यूपी की जनता कांग्रेस की के लिए नहीं जागी। शायद राहुल यही पूछ रहे हैं कि क्या इस बार जागेगी? क्यों नहीं जागती है?

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को जगाने की आशा-हताशा में राहुल चुनावी मुद्दे भी गढ़ रहे हैं। उत्तर प्रदेश का आदमी कब तक महाराष्ट्र में भीख मांगेगा। राहुल गांधी ने यह बात उठाकर बता दिया है कि चुनावी राजनीति की पैंतरेबाज़ियों को भी अपनाने से नहीं चूकेंगे। विस्थापन को स्वाभिमान से जोड़ने की सफल कोशिश बिहार में नीतीश कुमार ने भी की थी। राहुल गांधी की फौरी आलोचना तो हो गई मगर भीख मांगने वाला उनका यह बयान स्वाभिमान के रास्ते उत्तर प्रदेश की जनता में उतर सकता है। यह सत्य है कि हाल के दिनों का विस्थापन विकास की क्षेत्रीय असंतुलन से भी बढ़ा है मगर उत्तर प्रदेश में विस्थापन दो सौ साल पुरानी प्रक्रिया है। इस बयान पर विवाद होंगे मगर यही वो बयान है जो उनके विकास के एजेंडे की राजनीति को बैक अप देने का काम भी करेगा। राजनीति इसी का नाम है। वो जितना सतही और चुनावी होगी, संघर्ष दिलचस्प होता है। कार्यकर्ताओं में जोश इसी से भरता है, विचारधारा से नहीं। राहुल गांधी ने सीख लिया है।
(आज के राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित)

20 comments:

  1. राहुल से उम्मीद किसे है? जिसे है वह विचित्र व्यक्ति है। खिसियानी बिल्ली खम्भा नोच रही है। इन दिनों तो बस उत्तर प्रदेश दिख रहा है सबको…

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  2. ठीक कहा आपने, राहुल अभी राजनीति सीख ही रहे हैं।

    जहर उगलता है ये गांधी

    http://aadhasachonline.blogspot.com

    देखिए शायद आपको पसंद आए

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  3. Mjhe ni lgta kuch naya kr paye rahul apni rally se.ye toh tape ko rewind kr k dkhne jaisa h

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  5. अरे बाप रे. आप तो तुलसीदास के स्टाइल में राहुल चालीसा पढ़ने लगे.
    अरे ये नेता नहीं बैल है. कब क्या बोल दे ये तो बस दिग्विजय सिंह ही जानते होंगे.
    लेकिन का करियेगा, पूरा NDTV ग्रुप ही कांग्रेस का चारण भाट है. आप को भी रोजी-रोटी चलाना है तो करना ही पड़ेगा.

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  6. लगता है राहुल दिग्विजय सिंह जी से राजनीति सीख रहे हैं, इसीलिए एक से बढ़कर एक वक्‍तव्‍य दे रहे हैं।

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  7. राहुल गांधी से बहुत आशाएं हैं !
    मुझे तो उनके शालीन व्यक्तित्व के आस-पास भी दूसरा कोई नजर नहीं आता !

    उत्तर प्रदेश से कांग्रेस के विदा होते ही पूरे प्रदेश की राजनीति सिर्फ जातियों में विभाजित होकर रह गयी !
    जातियों के ध्रुवीकरण के सहारे ही चुनावी गणित बैठाया जाता है !

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  8. राहुल गांधी अपनी बेतुकी बातों से मायावती का पक्ष मजबूत करते जाएँगे।

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  9. RAHUL GANDHI KA SARVJANIK JEEVAN KA ACTION BAHUT HI SELECTIVE HOTA HAI.KABHI KAHI SPEECH DE DIYA ,KABHI KISI KE YEHA KHANA KA LIYA, KABHI PADYATRA KAR LIYA, USAKE BAD EK LAMBE SAMAY TAK WO GAYAB HO JATE HAI. UNAHE CHAHIYE KI HAR MUDDE PAR APANI VICHAR PRAKAT KAR.....
    HO SAKATA HAI DESH UNAHE DESH PRADHANMANTRI BANA BHI DE,LEKIN KYA WO DESH KO BANA PAYENGE....
    AUR ANTIM BAAT..............

    KYA RAHUL GANDHI BRAHMAN HAI??????

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  10. Ravish Ji,
    Ham aapki nai kitaab ka naam jaanana chahte hai? Kripaya usake bare mein iss blog pe kuchh likhein.

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  11. मुलायम और मायावती में जिसे उम्मीद नजर आती हो वो राहुल की आलोचन करे.....

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  12. Main Rahul Gandhi kee constituency Amethi ka hee hoon. Mera unke bare main yehi kahna hai yadi unke naam ke saath Gandhi na juda ho to woh kisee gaon ke Pradhan bhi nahi ban sakte. UPA-1 ke dauran Amethi aur Raebareli kee Roads ke upgradation ke liye CRF fund se Rs 150 crore aaya tha. Us fund se banee roads ka haal agar aap dekhe to pahle se bhi jyada bure hal main pahuch gayee hain.Jiska apnee MP seat par control nahi hai, woh India ka PM bankar kya kar lega.

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  13. sir.. jati rajniti karna unke uss byan ki tarah anivariye hai jis byan ko wo fulpur anayas hi keh gaye..!!..
    Baki fulpur se hi chunavi bigul bajana bi purane congressi astitav ko jagana hai.. ha shyad nehru ji kabi jatigat rajniti ni krte tey..!!..(mafi chahta hu agar main galat hu)
    Par sthayi dushman aur sthyai dhost rajniti mei ni hota.. yeh toh suna ta ab badalte vote bank ki rajniti bi bhekubi smj aane lagi hai. !!

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  14. how can 1 family dominate a country of 121 crore people and we call ourselves biggest democracy... Better we can say it a legacy

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  16. राहुल गाँधी, कभी कभी कुछ लोग महानता का तमगा लेके ही पैदा होते हैं. चाहे कितनी भी गलतिया कर दें. लोग गलतिया कर के सीखते हैं.. लकिन राहुल गाँधी की एक बात बहूत ही आछी लगी की जब ये गलतियाँ करते हैं तो पूरी कांग्रेस पार्टी इसे सही साबित करने में जुट जाती है. खेर जो भी हो मुझे बहूत ही आछा राजनितिक नाटक देखने को मिल जाता है. किसी भी बोलीवुड के फिल्म से जयादा मनोरंजक होता है.

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  17. राहुल गाँधी, कभी कभी कुछ लोग महानता का तमगा लेके ही पैदा होते हैं. चाहे कितनी भी गलतिया कर दें. लोग गलतिया कर के सीखते हैं.. लकिन राहुल गाँधी की एक बात बहूत ही आछी लगी की जब ये गलतियाँ करते हैं तो पूरी कांग्रेस पार्टी इसे सही साबित करने में जुट जाती है. खेर जो भी हो मुझे बहूत ही आछा राजनितिक नाटक देखने को मिल जाता है. किसी भी बोलीवुड के फिल्म से जयादा मनोरंजक होता है.

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  18. Ye Public Hai Ye Sab Janti Hain.
    Jab Tak Rahul Ji Lokpal Par Chup Rahenge Tab Tak Aisi Yatray Nikalne Se Kuch Fayda NAhi.
    Hum Bhi Uttar Pradesh Se Hai Or Sab Jante Hai Congress Apne Rajyaon Main Kya Kya Kar RAhi Hai. Apne Kisano Ka To Bhla Kra Nahi Paa Rahi Ek Dorse Rajya Ka Bhala Karne K Bare Mai Sochi Rahi H

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  19. हमारे देश की राजनीतिक और चुनावी व्यवस्था ही इस प्रकार की है की इस तरह के स्टंट और हथकंडे अपनाने होते हैं जिन्हें शायद वो खुद भी नहीं चाहते हों ! राहुल गाँधी ऐसा करते हैं तो इसमें कुछ नया या अजीब नहीं है ! यदि किसी व्यक्ति को भारतीय राजनीती मैं अपने पैर ज़माने हैं तो यह सब चलता है !

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