केंद्रीय मंत्रिमंडल का यह फैसला न्यूज़ चैनलों के लिए क्रांतिकारी हो सकता है। सरकार ने तय किया है कि वह केबल आपरेटरों को अनिवार्य रूप से डिजिटल तकनीक अपनाने के लिए अध्यादेश लाएगी। हमारे देश में अस्सी फीसदी टीवी उपभोक्ता केबल नेटवर्क के ज़रिये चैनलों को ख़रीदते हैं। जिसके लिए वो महीने में दो सौ से तीन सौ रुपये तक देते हैं। अभी एनालॉग सिस्टम चलन में है।एनालॉग सिस्टम में कई तरह के बैंड होते हैं। बैंड का स्पेस सीमित होता है। टीवी सेट भी बैंड के हिसाब से होने चाहिए। कई टीवी सेट में पचास से ज़्यादा चैनल नहीं आते। इसीलिए पहले पचास में आने के लिए चैनल केबल आपरेटर को भारी मात्रा में कैरेज फीस देते हैं। इस मांग और आपूर्ति का उपभोक्ता से कोई लेना देना नहीं है। एनालॉग सिस्टम में होता यह है कि एक चैनल एक नंबर पर आता है और दूसरा किसी और नंबर पर। अगर आप टाटा स्काई ऑन करें तो न्यूज़ चैनल एक जगह मिलेंगे, स्पोर्टस एक कैटगरी में। लेकिन एनालॉग में आपको पूरा सौ नंबर तक जाकर अपने पंसद के चैनल ढूंढने पड़ते हैं। इसीलिए न्यूज़ चैनलवाले भारी रकम केबल आपरेटर को देते हैं ताकि वो पहले दस या पहले बीस में चैनल को दिखाये।
कोई न्यूज़ चैनल अगर सौ करोड़ रुपये खर्च करता है तो उसमें से पचास से साठ करोड़ रुपये केबल कैरिज फीस से के रूप में चला जाता है। बीस पचीस करोड़ रुपये मार्केटिंग में और कांटेंट पर सबसे कम बीस करोड़ के करीब। यही वजह है कि कांटेंट सस्ता और चलताऊ होता जा रहा है। सारा पैसा मार्केट में दिखने के लिए खर्च हो जाता है। केबल आपरेटरों के डिजिटल होने से बहुत राहत मिलने की बात कही जा रही है। एक तो यह है कि आपका चैनल किसी भी नंबर पर आएगा, साफ सुथरा ही दिखेगा। धुंधला नहीं। तो पहले दस और पचीस को लेकर मार खत्म। इसके लिए बताया जा रहा है कि केबल जगत को तीस हज़ार करोड़ रुपये खर्च करने होंगे। अब यह देखना होगा कि केबल जगत इस खर्चे की भरपाई कैसे करता है। उपभोक्ता से कितना वसूलता है। क्या अस्सी फीसदी उपभोक्ता इसके लिए तैयार होंगे? एक दलील यह भी दी जा रही है कि डिजिटल होने से केबल वाले चैनलों के स्पेस की मार्केंटिग खुद कर सकेंगे। जैसे अमुक चैनल के ब्रेक में पटना में अलग एडवरटीज़मेंट दिखेगा और लखनऊ में अलग। अभी तो केबल वाला यह करता है कि अमुक चैनल को हटा देता है। उससे जबरन ज्यादा पैसा मांगता है। उपभोक्ता कुछ नहीं कर सकता। उसे मजबूरन अपने पंसद का चैनल छोड़ उस नंबर पर दूसरा चैनल देखना पड़ता है।
यह एक ज़रूरी कदम है। वर्ना न्यूज़ चैनलों की आर्थिक हालत खराब होती जा रही है। न तो नए लोग आ रहे हैं न नया चैनल न नया प्रोग्राम जिसमें बहुत सारे प्रयोग हों। पर यह प्रक्रिया कैसे लागू होगी और कब तक लागू होगी इसे आप सिर्फ डेडलाइन देकर तय नहीं कर सकते। ज्यादातर केबल नेटवर्क राजनीतिक लोगों के हाथ में हैं। इसलिए जब हो जाए तभी ताली।
हो सकता है कि कल मैं भी टी वी देखने लगूं...
ReplyDeleteअपने मन के देखने को मिले तो माँग बढ़ेगी।
ReplyDeleteडिजिटल तकनीक होने से गुणवत्ता तो बढ़ेगी पर देखना यह है कि इसके लिए उपभोक्ता को अपनी जेब कितनी ढीली करनी पड़ेगी।
ReplyDeleteअध्यादेश?!@#$%&^*
ReplyDeleteलगता है कि किसी डिजिटल सेटटॉप बॉक्स बनाने वाली कम्पनी ने मोटी रकम चुनावी चंदे में दी है.
नहीं?
dekhiye ho saktaa hai tv dekhne ka bhi man hone lage
ReplyDeleteचलिए केबल वालों की मनमानी से तो छुटकारा मिलेगा।
ReplyDeleteRavish Ji Aap kaha hai ... Holiday par hai Kya ....Prime Time me apko bahut miss kar raha hoon.....
ReplyDeleteरवि रतलामी जी की बात से सहमत हूँ। लेकिन डॉ0 मानवी मौर्य ने भी सही कहा है कि हो सकता है इसके दाम उपभोक्ताओं के लिए उतने सहनीय न हों जितनी की अपेक्षा की जा रही है।
ReplyDeleteसंचार में एक-दो अच्छे काम कर रही है सरकार तो भरपाई तो करवाएगी ही। रवि जी ने चंदे की बात कही है, वह भी सोचने लायक है…वैसे देश का अस्सी फीसदी हिस्सा टीवी देखता ही नहीं…अब बीस का अस्सी …
ReplyDeleteकल 15/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
Ravish Bhai...
ReplyDeleteBhaut dino se kuch update nahin mila tha... Phir aap prime time mein bhi kuch dino se nahin dikh rahe the... Man asahnakit ho gaya tha.. Accha laga aap ka post phir se dekh ke...
Kamna hai ki swasth aur kiusshal honge.
aaj hi is khabbar ko hindustan ke jareye padha....achchhi jankari mili
ReplyDeleteआपने जटिल लगने वाली चीजों को भी काफी सुलझे तरीके से सामने रखा है.
ReplyDeleteacchi bat hai... bas bharat me bhi videshon ki tarah PAY CHANNELsystem aa gaya, to ye bada revolutionary hoga.
ReplyDeleteRavishji,Raviji ki baton main kitna dam hai. Kahin yeh future ka Digital scam to nahin.
ReplyDeleteidea achha hain lekin, yeh bhi dekhna hoga ke . jaha pe abhi CAS system hain , waha pe bhi channel waalo ki mannmaani chal rahi hain .
ReplyDeleteHamare yahan NDTV channel nahi dikhaya ja raha hain aur hum iss ke baare mein complaint karne se bhi kuchh nahikiya ho raha . Aise mein digital hone se bhi .., kya grahak ko apna pasand ka channel milega ke nahi !!! ?
kya sarkaar iss ke baarein mein kuchh karegi.
abhi to filhaal hum Internet ke zariye NDTV aur ravish ke samachar dekhte hain :)
sir sometimes ur blog make me cry...
ReplyDeletesir aapki ravish ki report aur blog pad k aankh se aansu aa jata h...
ReplyDeletesir please write about how to start reporting in small city to big city
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