मोबाइल चार्जिंग की सामाजिकता



पिछले बीस सालों में कई प्रकार के नए रोज़गारों का जन्म हुआ है। मोबाइल इंजीनियर और चार्जर का धंधा। अक्सर अखबारों में इसके बारे में छपता भी रहा है। गढ़ मेले में मोबाइल चार्जर काउंटर पर मेरी नज़र पड़ी। गांवों में बिजली नहीं है मगर फोन है। फोन बिजली के भरोसे नहीं है। चार्ज करने के कई सारे विकल्प ग्रामीण जीवन में ढूंढ निकाले गए हैं। कहीं ट्रैक्टर से चार्ज किया जा रहा है तो कई कंपनियां यह प्रचारित कर रही हैं कि बैटरी चार दिनों तक चलने वाली है। लोग मोबाइल चार्ज कराने के लिए पांच पांच किमी साइकिल यात्रा करते हैं। कोसी बाढ़ के दौरान देखा कि लोगों ने चीनी एंटिना के ज़रिये अपने नेटवर्क को बेहतर कर लिया था। एंटिना से मोबाइल फोन चलाने का आइडिया पूरी तरह से देसी है।



तस्वीरों में आप देखेंगे कि कई मोबाइल चार्ज के लिए लगे हैं। हर चार्जर पर मॉडल का नाम लिखा है। फोन पर उपभोक्ता का नाम, गांव और नंबर लिखा है। मोबाइल चार्ज करने के लिए ट्रैक्टर में लगने वाली बड़ी बैट्रियों का इस्तमाल किया गया है। पूरा एक सिस्टम बन गया है। पांच टका में मोबाइल चार्ज। एक साथ बीस लोग बैठ कर मोबाइल चार्ज कर रहे हैं। चार्जिंग का अनुभव हुक्का पीने या आग तापने जैसा हो गया है। किस्से भी चल रहे होते हैं। हम शहरी लोगों के लिए मोबाइल चार्जिंग सामाजिक अनुभव नहीं है। ग्रामीण लोगों के लिए हैं। वहां मोबाइल फोन के मॉडल से लेकर मनमोहन के मॉडल तक की चर्चा हो रही थी। थोड़ा और ध्यान देना चाहिए था। पता चलता कि बीस मोबाइल फोन में ज्यादा किस मॉडल और किस कंपनी के हैं।

18 comments:

  1. invertor ka sahee istemaal ho raha hai praveen

    ReplyDelete
  2. इसी का नाम संधर्ष है ।
    यह जानना और भी रोमांचक होगा कि
    गांव में लोग गोमूत्र से बैटरी चार्ज कर रहे हैं ।
    भारतीय गांव में सारे लोग बुद्धू नहीं हैं ।

    ReplyDelete
  3. रवीश जी, ये हिन्दुस्तानी "जुगाड़ " है , कोई ना कोई आईडिया ढूंढ ही लिया जायेगा..................

    ReplyDelete
  4. Bhavishye ke naye vavsayi...takneek or dimaag ka sahi istemaal.

    ReplyDelete
  5. हर हाल में हल ढूंढ़ लेंगें ....... ज़बरदस्त

    ReplyDelete
  6. लगे हाथ अभिषेक को भी दिखा देते...... उन्हें क्वोनो नया आईडिया आ जाता.



    क्या आईडिया है सर जी,

    ReplyDelete
  7. गढ़ मेले की यह एक तस्‍वीर बाकी सब पर भारी है. उपलब्‍ध साधनों और संसाधनों से काम बना लेना इस (जुगाड़ के)मामले में भारतीय मेधा का कोई जवाब नहीं. (याद कीजिए उदाहरण 'बड़ी तादाद में लस्‍सी बनाने के लिए वाशिंग मशीन का उपयोग) रोग की औषधि उसके आसपास ही होती है, ऐसा कहा तो जाता है आयुर्वेद चिकित्‍सा के लिए, लेकिन यह पॉजिटिव नजरिया कहां-कहां लागू हो जाता है.

    ReplyDelete
  8. इसे जुगाड़ नहीं संसाधनों का सदुपयोग कहते है जुगाड़ कह कर भारतीय दिमाग का तिरिस्कार न करे

    ReplyDelete
  9. रवीश जी, गाँवो में जितना दिमाग है यदि उसे उचित स्‍थान मिल जाए तो देश ना जाने कहाँ चला जाए। बहुत जोरदार बात से परिचय कराया।

    ReplyDelete
  10. Avashyakta avishkar ke janni hai. Kaisee rahee.

    ReplyDelete
  11. sir aap ki aaj ki report ne BPL card yogana ki poll khol di....aaj ka episode tho parliament mai dekhna chahiya

    ReplyDelete
  12. thank u sir for showing the reallity of karnal bpl card system

    ReplyDelete
  13. india ki jugad technology bejod hai kahi nahi milegi..............

    ReplyDelete
  14. हमारे दैनन्दिन जीवन की आम सी लगने वाली घटना भी एक खास मीनिंग रखती...सिर्फ़ एक नज़र चाहिये उसको सामने लाने के लिये और वो नज़र रविश जैसी हो तो फ़िर क्या बात है...

    ReplyDelete
  15. sir aapki nazar se shayad hi kuch bach nikalta hai... rajdhani mein bathe logo ko aap goan ki yaad dilate rahte hai...

    ReplyDelete
  16. चाइनीज चीजो का का गाँव में बहुतायत से प्रयोग होता है |हम कितना ही नारे लगा ले स्वदेशी वस्तुए प्रयोग करने की किन्तु गाँव में अवे लोग अपनी सुविधाए जुटा ही ले लेते है फिर चाहे चनिज बेटरिया हो ?या भारतीय बिजली की चोरी (इसे चोरी मानते ही नहीं सरकारी मॉल अपना मॉल )
    है इसमें खूब मेहनत और दिमाग लगाते है |

    ReplyDelete
  17. India is country of innovations.. JUGAAD se kaam chalana seekna hai toh hum se seekhiye..GREAT MINDS...GREAT IDEAS..

    ReplyDelete