इक्कीसवीं सदी। लतियाये,गरियाये जाने की एक लाचार सदी। कितनी उम्मीदों के साथ आई थी। आ रही थी तो कितना हंगामा मच रहा था। सारी सदियां ईर्ष्या से तुम्हें निहार रही थीं। आईं तो वो भी थीं लेकिन कोई चर्चा तक नहीं। सदियों को लगा कि कोई सौतन सदी आने वाली है। तुम जब आ रही थी तो मीडिया में कैंपेन चल रहे थे। आने वाली हो,आते ही छाने वाली हो टाइप के गीत लिखे जा रहे थे। अब ऐसा क्या हो गया है कि तुम बात बात में गरियाई जाती हो।
मुझे बिल्कुल नहीं लगा था जिस सदी का इतना इंतज़ार किया जा रहा है उसकी ऐसी भद पिटने वाली है। अच्छी तरह याद है बड़ी उम्मीदों से इक्कीसवीं सदी आई थी। दफ्तर से लौटते वक्त उस रात मुनिरका के पास एनडीटीवी की पुरानी सहयोगी पल्लवी अय्यर ने ऑफिस की कार रुकवा दी थी। बारह बजते ही उसने इइयये(yeah)जैसा इंग्लिश चित्कार किया और सबने वाऊ बोलकर क्लैप किया। पहले तो वाई टू के की चिन्ता हुई फिर मैंने भी वाऊ बोल कर ताली बजाई। कंप्यूटर रहित मैं मध्यमवर्गीय ग़रीब जल्दी ही जश्न में डूब गया। वाई टू के की आशंका को भूल गया। अंतर्राष्ट्रीय मीडिया का फर्ज़ीवाड़ा था वाई टू के का प्रपंच। कुछ नहीं उड़ा। न सेना के अड्डे से राकेट अपने आप उड़े न एयरपोर्ट पर हवाईजहाज़ दुर्घटनाग्रस्त हुआ। लगा कि चलो अच्छा हुआ। न्यू मिलेनियम में बाखुदा इंटर कर गए हैं। कई पीढ़ियों बाद मेरे परिवार में किसी को यह सौभाग्य हासिल हुआ। मुझे इसलिए क्योंकि मेरे परिवार में दो चार लोगों को ही मालूम था कि सदी चेंज हो रही है। पुरानी वाली चली जाएगी और नई वाली बिल्कुल टाटा इंडिका के नए माडल की तरह लांच हो जाएगी। न्यू ईयर मनाते मनाते बोर हो चुके लोगों के हाथ न्यू मिलेनियम की रात लग गई थी। जश्न मन रहा था।
इतनी खुशफहमी के बाद जब देखता हूं कि हर बात में इक्कीसवीं सदी गरियाई जाती है तो दुख होता है। दिल्ली में कोई मंदीप किसी सुनीता को मार देता है तो बदनाम इक्कीसवीं सदी होती है। जैसे इक्कीसवीं सदी गारंटी देकर आई थी कि देखो मेरे आते ही सारी सामाजिक बुराइयां छूमंतर हो जाएंगी। तुम सब टेंशन एंड अटेंशन फ्री जगत में ऐश करोगे। कुछ भी हो जाता है तो अखबार से लेकर टीवी तक सर पीटने लगते हैं कि जो हुआ सो हुआ लेकिन इक्कीसवीं सदी में कैसे हुआ। हम हैरानी से आंखें फाड़ देते हैं,जो दिख रहा है उसे भी ऐसे देखने लगते हैं जैसे माइनस प्वाइंट का चश्मा पहन लिया हो। अरे बाप रे इक्कीसवीं सदी में ऐसा हो गया। संसद में मारपीट हो गई, हेडलाइन बन गया कि इक्कीसवीं सदी में हम जा कहां रहे हैं। क्या इक्कीसवीं सदी के भारत में खाप पंचायतें होनी चाहिए। क्यों न हो। आप उन्नीसवीं और बीसवीं सदी में झक मार रहे थे। जब उन दो सदियों में इनको बर्दाश्त किया तो एक और सदी। ये कहिए न कि खाप को खतम करने का ट्राइ कब किया। किया कुछ नहीं और गरिया दिया इक्कीसवीं सदी को। बेचारी को सब ढोल की तरह पीटते रहते हैं।
इक्कीसवीं सदी का गुनाह क्या है। क्या इसने कहा था कि रिन की सफेदी की तरह चमत्कार कर दूंगी। क्या आपने वादा किया था कि इक्कीसवीं सदी में मैं जाति को तोड़ूंगा। आपने क्या किया है जिससे इक्कीसवीं सदी का नाम रौशन हो। गलती आपकी और बदनाम बेचारी इक्कीसवीं सदी। अच्छा होता वाई टू के हो जाता और हमारी घड़ी से लेकर कंप्यूटर तक फेल हो जाते। ऐसा नहीं करके इक्कीसवीं सदी ने अपनी लाज तो बचा ली लेकिन लोगों को खुला छोड़ दिया कि आओ,मैं आ गई हूं,सरेआम मेरी इज्जत का फलूदा बनाते रहो। क्या यह इक्कीसवीं सदी का भारत है टाइप के सुपर लगाते रहो। अरे भाई जब इक्कीसवीं सदी पलट कर पूछ देगी कि बीसवीं और उन्नीसवीं सदी के भारत ने कौन सा तीर मार लिया था,तब क्या जवाब दोगे। जात-पात,खाप-वाप,प्यार-वार तो पहले की कई सदियों में मौजूद थी। क्या हम कहते हैं कि साली..सत्रहवीं सदी...उसी बदमाश की गलती थी ये जाति। जब पिछले को नहीं गरियाते तो अगले को क्यों लतियाते हो। आज देखो हमारी बेचारी इक्कीसवीं सदी को ताने झेलने पड़ रहे हैं।
मेरी प्यारी,इक्कीसवीं सदी,तुम्हें हर दिन समस्याओं के बाथरूम में धुलता देख दुख होता है। तुम्हारी फिंचाई देखी नहीं जाती। सारे संपादक,रिपोर्टर,नेता सब तुम्हारे पीछे पड़े हैं। अभी तो सिर्फ दस साल गुजरे हैं। न जाने बाकी के नब्बे सालों में लोग तुम्हारी क्या गत बना देंगे। तुम्हारी हाल मनमोहन सिंह जैसी है। कोई सोनिया गांधी को नहीं गरियाता। सब मनमोहन को फटकारते हैं। मेरी प्यारी सदी,मेरी प्यारी सखी,तुम्हारी इस हालत पर मैं एक असहाय रिपोर्टर की तरह अपनी स्क्रिप्ट से लाइन काट दिये जाने के दर्द जैसा रोता हूं। कुछ कर नहीं पाता। वॉयस ओवर में तुम्हें गरियाता हूं। कहीं ऐसा न हो कि सदियों के इतिहास में तुम्हारा नाम गरियाये और लतियाये जाते रहने के कारण दर्ज हो जाए।
bharat mein aam aadmi pahle do pahiye waali gaadi cycle chalaata tha,,, aur pahiye ki hawa nikal jaane par paidal chal use ghaseetta tha jaldi se puncture lagvane aur hawa bharvane ke liye... phir scooter mein petrol reserve par aane se pata chal jaata tha ki petrol shigrh bharana padega yadi scooter ko ghasitne se bachna hai...
ReplyDeleteikkisveen sadi bhi aise hi ghaseetti lagti hai, reserve mein aaye scooter jaise (21/12/2012 tak?)
Abhi to aage aage dekhiye hota hai kya.........
ReplyDeleteAgle 90 years mein Jaane Kitne Ravish Kumar ke dil ka darad saamne aayega.
Hum to nahi hoge hamari peedhi sayad apni najro se dekhegi aur fir koi aur itne kareeb se dekh kar aisa hi kuch kahega.
...बहुत खूब!!!
ReplyDeleteइक्कीसवीं सदी की फिलहाल एक उपलब्धि है कोसी के बाढ़ पीड़ितों का पैसा खर्च न करते हुए उसे इज्जत के नाम पर वापस करना....और उससे भी बड़ी उपलब्धि यह है कि दोनों पक्ष के लोग मान रहे हैं कि इस वाकए से दोनों ही पार्टियों की इज्जत बढ़ी है।
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट।
आपने बिल्कुल सही कहा कि ट्राई कब किया........लेकिन ट्राई किया भी हो तो शायद पता न चला हो क्योकि तब न गरियाने के लिए इतने माध्यम थे और न हि लतियाने के इतने तरीके......न एफएम था, न 24 घंटा खबरिया चैनल न मार्निंग इवनिंग और मिड डे इतने सारे अखबार और न ये 'ब्लाग'...
ReplyDeleteअच्छा है....
ReplyDeleteखुद मरे बगैर स्वर्ग नहीं मिलता- जब हम इक्कीसवीं सदी में प्रवेश कर रहे थे तभी हमने देश की तकदीर बनाने का जिम्मा एक ऐसी पार्टी को दिया था जो बरसों पुराने मुद्दे को लेकर सत्ता तक पहुंची थी। बदलाव के काल्पनिक दौर में हमने खुद कोई वास्तविक कदम नहीं उठाया। फड़फड़ाते पन्नों पर तारीख बदल जाने से तकदीरें नहीं बदला करतीं।
ReplyDeleteखुद मरे बगैर स्वर्ग नहीं मिलता- जब हम इक्कीसवीं सदी में प्रवेश कर रहे थे तभी हमने देश की तकदीर बनाने का जिम्मा एक ऐसी पार्टी को दिया था जो बरसों पुराने मुद्दे को लेकर सत्ता तक पहुंची थी। बदलाव के काल्पनिक दौर में हमने खुद कोई वास्तविक कदम नहीं उठाया। फड़फड़ाते पन्नों पर तारीख बदल जाने से तकदीरें नहीं बदला करतीं।
ReplyDeleteआपके ब्लॉग का तो कलेवर ही बदला हुआ है.. इक्कीसवी शदी का ही कमाल लगता है ये तो.. :)
ReplyDeletesir,
ReplyDeletekya nayab tarika eizad kiya hai apne vigyapan ka 21 sadi ke dhulae ke sath rin ki safedi.............
maf kigeaga sir thora humourous hun. darasal ye khap wale bajra murkh hai pure din tabele me rahte hai aur sham ko pure matha me sarso ka tel pot kar sarko per awaragardi karte hai aur dusro ki bahan betio pe line marte hai. bat mudde ki kare to jyada behtar hai. 21 sadi matlab adunikta ki taraf ek aur kadam.adhunikta se mera matlab half sleve se sleveless,mini skirt se bikne ka hai. jaha adhunikta vicharo ke bajaye libaso se paribhashit hoti ho waha kisi v sadi ka gariyaya jana/latiaya jana hairatangej nahi hai.
बढिया लिखा है।
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteपर आज आपको अचानक इक्कीसवीं सदी पर गरियाने का मन कैसे हो गया
मेरे कहने का मतलब आज इक्कीसवीं सदी की याद कैसे आ गई
bilkul sahi kaha raveesh ji aapane. aaj is sadi ki jo haalat hai usase pichali sadiya pahale to awashy hi jalati hogi lekin aaj ise anguthha dikhakar has rahi hogi.
ReplyDeleteRavishji, ek shaandar vyang ! 21v sadi chodiye....22,23....jaane kitni aur sadiya aaiygi kuch nahi badelega....yeh sab sala garibi ka chakkar hai aur kuch nahi...khap matlab Amir log aur aam janata matlab garib log...bharast neta matlab amir log.... yu hi sab chalta rehaga....aur kuch dunaki/sanaki type log apna sirr dunate rahage....
ReplyDeleteआपने बिल्कुल सही लिखा और कहा है.
ReplyDeleteअसल में गलती उसी की है ......टी वी के कैमरों में आयी ...जश्न मनाया ओर चल दी......अब गरियायेगे नहीं तो क्या करेगे भाई
ReplyDeletenaaam hai to badnaami ka chance to rahega hi..jitna hungama Y2K ko lejkar hua jitna jashn new millennium ko lekar hua ........ utni maar to hamara over enthusiastic media or usi se prabhavit neta denge hi
ReplyDeleteab 21 sadi hai kuch bhi likho.....
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteraveesh ji bahut khoob........
ReplyDeleteसही कह रहे हैं रविश जी! लेकिन वो क्या समय था..हम सभी इस सड़ी का इस तरह इन्तिज़ार कर रहे थे मानो कारूं का खज़ाना मिलने वाला हो.गाया करते थे..वो सड़ी जो आ रही उसे आजमाएंगे यूँ ही गुनगुनायेंगे यूँ ही मुस्कुराएंगे...
ReplyDeleteटाइपिंग की ग़लती से सदी सड़ी हो गया है.
ReplyDeleteक्षमा करेंगे !
आज हम एक ऐसी पहल कर रहे हैं जिसमें आपका साथ किसी बच्चे का भविष्य बना सकता है।
ReplyDeleteप्रीती जिसने अभी-अभी कक्षा दस उत्तीर्ण की है के पिता एक सिक्योरिटी गार्ड हैं जिनकी मासिक आय 4500 (4 हजार 500 रूपये) लेकिन प्रीति विज्ञान की पढ़ाई करना चाहती है। जिस स्कूल से उसने 10वीं की है उस विद्यालय में विज्ञान नहीं है और जिस स्कूल में वह सरकार के नियमों के आधार पर प्रवेश पा सकती है वो इसे एडमिशन नहीं दे रहे है। विद्यालय का तर्क है कि हमारे पास बच्चे पूरे हो गये है। हम पहले अपने स्कूल के बच्चों को एडमिशन देंगे। दूसरे विद्यालय के बच्चों को प्रवेश देने से हमें एक और सेक्शन बनाना पड़ेगा। प्रश्न उठता है क्या प्रीति को एच्छिक शिक्षा का अधिकार है या नहीं। या इसे मजबूर होकर दूसरा विषय चुनना पड़ेगा।
10th Roll No : 6382468 (CBSE)
10वीं वाला विद्यालय : GGSS School Q Block Mangol Puri, New Delhi
प्रवेश चाहिए : SKV Kamdhenu, D Block Mangol Puri, New Delhi
आप सबसे आग्रह है कि प्रीति का एडमिशन कैसे हो सकता है इसका उपाय बताये।
कन्हैया
9958806745
aap ki paini najar se koi bhi bindu achhuta nahi rah sakta.
ReplyDeleteachhe lekhan ke liye badhaaiya sweekar kare....
इक्कीसवीं सदी। मे वारेन एनडरसन मिल गया काया कम है देल्ही मे यमुना का पुराना पुल है जिसने उसे बनवाया है उसका पता लगवा लीजिए १०० साल पुराना लगता है उसकी खस्ता हालत से लगता है कुछ साल मे कुछ भी हो सकता है जिसने बनवाया उसको सज़ा तो होनी चहिए इक्कीसवीं सदी। मे सबकको इंसाफ़ मिलना चहिए अभी से निराश ना होय 90 साल बाकी हाई मेरे दोस्त
ReplyDeleteपत्रकारिता के सुने-सुनाये, रटे-रटाये पर सुरक्षित जुमले हैं ये,आप तो जानते ही हैं की पत्रकार उसी पर आरोप लगाते हैं , जिस पर आरोप लगाना सुरक्षित हो. जसे अपने ही किसी दिन इस जुमले का जिक्र किया था "की ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा " , अब आप महानतम जीवित वैज्ञानिक Stephen Hawking की A Brief History of Time पढ़ लीजिये, वक्त के बारे मैं इतना बताया है की उसे पूरी तरह समझने का मुझे वक्त नहीं है, पर उसमे कहीं नहीं बताया की वक्त कुछ बताता भी है, या उसका कोई मुह भी होता है !!!
ReplyDeleteMedia ka sabse udayiman suraj, apki bhasha pe jo pakar hai wo shayd hi aur kisi me hain Ravish ji,mati se jude hui lagti hai apki writing Main aapka fan ho gaya hu, Keep the good work going
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