अविनाश काम्बले से मिलना चाहिए- दलितोदय कथाइजेशन
"मैं तो बारहवीं फेल हूं। अंग्रेज़ी भी नहीं आती। इससे बिजनेस में कोई फर्क नहीं " 6 करोड़ का बिजनेस कायम करने के बाद अविनाश काम्बले ने पूरे आत्मविश्वास से अपनी यह बात माइक पर उड़ेल दी। हंस दिया और कहा कि डीटीडीसी में मैं डिलिवरी ब्वॉय था। फ्रैचाइज़ी होती है न वही मिल गई। एक आदमी दुकान बंद कर जा रहा था तो उसने कहा ले तू चला ले। मैंने काम शुरू कर दिया। आज मेरे पास एक सौ बीस लोग काम करते हैं। अविनाश काम्बले बोले जा रहे थे। लेदर की महंगी कुर्सी पर ठाठ से बैठा चौंतीस साल का एक नौजवान अपने संघर्ष की कहानी को यूं बता रहा था जैसे सबकुछ किसी कवि की कल्पना में घट रहा हो। शोलापुर से भाग कर आ गया था। बुआ ने रहने की जगह दे दी। चौराहे पर गजरे बेचने लगा। जिस चौराहे पर गजरे बेचने लगा उसी से दस किमी दूर पचपन लाख रुपये का पॉश इलाके में फ्लैट खरीदा है।
उदारीकरण के बाद निजी क्षेत्र में आए दलित युवकों की कहानियों में उलझ गया था। चाहता था कि मेरा कैमरा वैसा ही देख ले जैसा उनका आत्मविश्वास उबल रहा है। अविनाश ने कहा कि पुणे में भी लोग हैरान होते हैं कि दलित ने इतना कमाल कैसे कर दिया। पूरे पश्चिम महाराष्ट्र का मैं एक बड़ा कुरियर वाला बन गया हूं। डेढ़ सौ कारोपोरेट कंपनियां ग्राहक हैं। उनको कभी कोई शिकायत नहीं होने दी। मेरी नज़र अविनाश की बातों से हट कर कंप्यूटर के स्क्रिन सेवर पर भकभुक कर रहे अंबेडकर पर पड़ रही थी। पूछा कि बाबा साहेब यहां क्यों। अविनाश भावुक हो गया। बोला इन्हीं की वजह से हम हैं। ये न होते हैं तो हम कहां होते आज। बाबा साहेब से इमोशनल रिलेशन है। तभी मैंने जब ग्यारह लोगों को ब्रांच मैनेजर बनाया तो शोलापुर से लाकर छह दलित लड़कों को भी ब्रांच मैनेजर बनाया। उनको ट्रैनिंग दी और मौका दिया। वो अच्छा काम कर रहे हैं। बाबा साहब ने सिखाया है कि समाज का भला करते रहना है।
अविनाश से अगला सवाल था कि छह करोड़ तक कैसे पहुंच गए। अविनाश ने कहा कि डीटीडीटी के काउंटर को स्मार्ट लुक दे दिया। सोफा लगा दिया। शीशे का दरवाज़ा लगा दिया और एसी लगा दिया। डीटीडीसी के आल इंडिया चेयरमैन को भी विश्वास नहीं हुआ कि मेरी कंपनी का ऐसा लुक हो सकता है। अब वो हर जगह अपने काउंटर को अप मार्केट लुक दे रहे हैं। मैंने कई स्कीम निकाली है। हम लोग बिजनेस अच्छे से कर सकते हैं। गांवों में तो बिजनेस या जिसे आज आप सर्विस सेक्टर कहते हैं वो तो हम दलित ही चलाते थे न। बारात निकलवाने से लेकर श्मशान पहुंचाने तक। आप इसे अब सर्विस सेक्टर के रूप में देखिये। मैं पूछना चाहता था कि शोषण के रूप में न देंखे तब लेकिन दिमाग से उतर गया। दलित अपने स्किल का इस्तमाल कर रहे हैं।
पुणे की कहानी रोचक होती जा रही थी। उन्नीस सौ नब्बे के बाद के नौजवान उद्योगपतियों से मिलने का अनुभव। चंद्रभान प्रसाद से बात होते ही अगले दिन पुणे पहुंच गया था। जिस किसी से मिलता एक नई गाथा से टकराने लगता। भारत की पत्रिकाओं के कवर पर ग्लोबलाइजेशन की पैदाइश कई महापुरुषों की तस्वीर छपी है। मित्तल,टाटा और अंबानी। अविनाश काम्बले की तस्वीर भी किसी पत्रिका के कवर पर होनी चाहिए। ऐसी कई कहानियों का कोलाज आप शुक्रवार रात साढ़े नौ बजे रवीश की रिपोर्ट के लिमिटेड एडिशन में देख सकते हैं। न देख पाएं तो रविवार रात साढ़े दस बजे भी देख सकते हैं। आप सबकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा।
आपकी रिपोर्ट देखने की पूरी कोशिश करेंगे। किसी टीवी वाले दोस्त के यहां मुकर्रर वक़्त पर पड़ोगी दे दी जाएगी। नक्सलवाद पर आपकी स्पेशल रिपोर्ट देखी थी, आपके लफ्जों से पीड़ितों का दर्द उबल रहा था।
ReplyDeleteअविनाश ने पुराने शोषण को परिष्कृत रूप देकर सर्विस सेक्टर बना दिया। यह काम का हो या न हो, लेकिन सोच का परिष्कृत वर्ज़न है। अविनाश ने वाकई सोच और काम दोनों के मार्चे पर मिसाल कायम की है। दूसरे के उद्यम को बुलंदियां को देकर अपने लिए मयार बनाना आसान नहीं होता।
SAHI HAI AVINASH AOUR IN JAISE DUSRO KO BHI INKI SAHI PAHCHAAN MILNI CHAAHIYE......LEKIN YAHA BHI HUM UNHE DALIT YA ...KISI DHARM AOUR JAATI MEIN NA BAANDHKAR RAKHE..UNHE HUM EK SAFAL BUSINESMAN KE TOUR PER DEKHE......KYA EK CHAAL SE APNI JINDAGI KI SHURUAT KARNE WALE DHIRU BAHI KO KOI UNKI JAATI KI WAJAH SE YAAD KARTA HAI.......
ReplyDeleteFIR AVINASH KO KYUN USKI JATI SE JODE..ACHHA HAI UN JAISO KA AAGE ANA...AVINASH AOUR UN JAISE DUSRO KO SALAM.....
AOUR AAPKA AABHAR KI AAP HAME IN LOGO SE RU-B-RU HONE KA MOUKA DETE HAIN.......
प्रेरणास्पद आलेख......."
ReplyDeleteप्रेरणास्पद...
ReplyDeleteRavish Jee bahut hi uthsahjank baat hai ki ap dalit log bhi is qabil hoagye hain ki bade bade corporate chala saken. Aschariya nahi hota hai or nahi hon chahiye bhi. Waqat bahut tezi se change horaha hai, Avinash jee ki kahani to bus ek example bhar hai.
ReplyDeletereally inspiring...
ReplyDeleteravish sir..... aaj ke din yadi india kee tasweer badalanee hai to hame chhote saharo ko khash tavajjo deni hogi kyoki jo 21vee shadee ka bahrat ban raha hai usame mukhay yogdan chhote saharo kaa hee jayada hai....... kyoki chhote saharo kee abhi kaaafe growth honee hai...........
ReplyDeletetotally impressed ...he is role model for us...
ReplyDeleteIs achchhe kaam ke liye aapko sadar pranaam.
ReplyDeleteऐसे ही युवा प्रेरणास्रोत हैं, यही भारत को बदलने वाले कारक हैं… अविनाश काम्बले को बधाई और नमन…
ReplyDeleteआज यह पोस्ट पढकर मैं कई लोगों को सलाम करता हूँ..
ReplyDelete.अविनाश को.
रवीश को..
पाठकों को....
उन सभी को जो अपने बल-बूते आगे बढे है....
.और उनको भी जो ऐसे लोगों से प्रेरणा लेते हैं....
..शत् शत् नमन....
मै अविनाश को ऐसे आदमी के रूप में देखता हूँ जो सेल्फ मेड है ...जमीन से उठा है ....शायद अपनी प्रतिभा मेहनत ओर सपनो की डोर को छोड़े बगैर ....मै उसे पूंजी वादी समाज में एक आम आदमी के प्रतिनिधित्व के तौर पर दर्ज करना चाहता हूँ ....बशर्ते वो भी उस जमात में शामिल न हो जाए ....मै चाहता हूँ आप भी उसे इसी रूप में याद रखे ओर रिप्रेसेन्ट करे ......"दलित युवक "कहकर उसे आइसोलेट न करे ....क्यूंकि पूंजीवादी दुनिया से इतर दुनिया की कोई जात नहीं होती है .....
ReplyDeleteRavish, meri tarah aapke kai pathak ya darshak print ke desk patrkar bhi hain jo na to friday ko aur na hi sunday ko raat me ye prgrm dekh sakta hai. din me kab aata hai?
ReplyDeletewakai me ye story kisi k liye bhi prerna ka srot ban sakti hai......
ReplyDelete......
"मैंने जब ग्यारह लोगों को ब्रांच मैनेजर बनाया तो शोलापुर से लाकर छह दलित लड़कों को भी ब्रांच मैनेजर बनाया।" इस बात से उन लोगों को प्रेरणा लेनी चाहिए जो आरक्षण के बल पर ऊँचे पद पाने के बाद पलट कर अपने गाव और दलितों की तरफ नही देखते वो भूल जाते है की उन्हें आरक्षण इस उम्मीद में दी गई है की वो पुरे दलित समाज को आगे बढ़ने में मदद करेंगे पर वो उसका लाभ अपने और अपने बच्चो तक ही सिमित रख रहे है
ReplyDeleteरविशजी, प्राचीन हिन्दू मान्यतानुसार 'भगवान्' नादबिन्दू यानि शून्य से आरंभ कर अनंत ब्रह्माण्ड का मालिक बन गया - शायद ऐसी कहानियाँ उसी की झलक हों, क्यूंकि मान्यता यह भी है कि भगवान् का ही प्रतिरूप है अस्थायी मानव :)
ReplyDeleteravish ji newspaper me kaam karne wale patrkaron ke liye special report ka samay din me kijiye
ReplyDeletesushil raghav
अनुकरणीय उदाहरण।
ReplyDeletenamaskaar!
ReplyDeletekisakii karaamaat hai yah. mehanat kii, takdiir kii, tikadam kii, yaa tiinon ke mel kii.yaa globlijeshan kii.
chamatkaar ko namaskaar.avinaash kambale ke sevaa ksheyra kii paribhaashaa acchhii lagi.
bijalii kii samasyaa ke kaaran aapako ndtv par dekhanaa sunanaa kam ho paataa hai.
hindi ke blog par "Leave your comment"khatakata hai. kament baaks roman kaa transliteration nahii karata. jabakii "hidustaan" akhabaar men ho jaataa hai.isakaa kuchh upaaya kar sakate hon to karane kaa kasht karen.
namaskaar.
avinaash kaamble jaise logon ki safalta se un larke larkiyon ko prerna leni chahiye jo ek choti si asafalta se ghabraakar atamhatya jaisa bada aur buzdil kadam uthane ki himaakat karte hain. unhe ye samjhna chahiye ki zindagi vahin khatam nahi ho jaati..
ReplyDeleteरविशजी, मेरे पास सौभाग्यवश कुछ वर्षों से लगभग हर दिन कुछ खाली समय मिल पाता है 'शून्य' को समझने के लिए :) आपकी स्पेशल रिपोर्ट मैं देख नहीं पाता हूं केबल वाले के कारण,,,फिर भी आपके ब्लॉग में आकर कुछ कुछ आभास हो जाता है...जो खाली समय में मैं जान पाया हूं वो भी मैं आपकी सूचना हेतु लिखता जाता हूं, उसको भले ही कमेन्ट कहें या टिप्पणी, क्यूंकि हम भी अपने समय में सुनते आये हैं कि हमारे पूर्वज 'सत्य' को स्वयं तो पा गए किन्तु अपने साथ स्मशान ले गए और उसको मिटटी में मिला दिए :)
ReplyDeleteयह भी 'सत्य' है कि 'आम आदमी' असहाय हो अपनी त्रुटियों या कमी के लिए दोष दूसरे किसी पर छोड़ कुम्भकर्ण समान स्वयं सो जाता सा प्रतीत होता है, और 'सरकार' से ही आशा करता है, यानी उनके ही बीच उपलब्ध उनसे अधिक ज्ञानी प्रतिनिधियों को उनके निदान दिलाने के लिए :) और जहां तक जवान लोग हैं वो शिक्षा प्रणाली को प्राथमिक दोष देते हैं...
"ज़िन्दगी इम्तहान लेती है..." कथन को साक्षर करते हर बच्चा स्कूल-कोलेज में इम्तिहान से बच नहीं पाता है - प्रतिवर्ष,,,और देखते हुए भी नहीं देखता, सोचना तो छोडो, कि हर पेपर में जो अंक बच्चे प्राप्त करते हैं वो लगभग जीरो ('०') प्रतिशत से सौ ('१००') प्रतिशत तक फैले होते हैं, जो शायद आम आदमी भी जान सकता है कि दर्शाता है कि हर व्यक्ति की ग्रहण शक्ति शायद प्रकृति समान विविधता दर्शाती है - सदैव, किसी भी क्षेत्र में :)
नक़ल करने से यदि ज्ञान प्राप्त हो जाता तो क्या हर एक बच्चा बरगद के पेड़ के नीचे बुद्ध समान आठ वर्ष बैठ सर्व्गुणसम्पन्न हो जाता भले ही वो 'प' से पुणे निवासी होता या पटना निवासी????
रविश जी जो लोग सच में पिछड़े है उनकी सफलता की कहानी उन लोगों के लिये प्रेरणादायक है जो अब भी किसी मसीहे का इंतजार कर रहे है, आप मतलब समझ रहे होंगे, किसी दलित का उद्धार कोई पुरुष या महिला दयावती या सोमवती नहीं कर सकती है उन्हे खुद ही आगे आना होगा, आगे आना का मतलब रिजर्वेशन नहीं है, आगे आने का मतलब है कि अपने हक के लिये आगे आना
ReplyDeleteरवीश जी, ऐसा ही एक वाकया याद आया राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी मसूरी का. एक बार मीडिया वाले कवरेज करने गए थे, तो देखकर ताज्जुब में रह गए कि हिंदी और पिछड़े बेल्ट से ऐसे दलित व पिछड़े लोग सिविल-सर्विसेस में सफल हो रहे थे, जिनकी अंग्रेजी ज्ञान नाम मात्र की थी, घर से गरीब थे (कुछ का सपना तो पहले ट्रक-ड्राइवर बनने का था), पर हौसले बुलंद. इसी हौसले के चलते वे कलेक्टर से लेकर तमाम महत्वपूर्ण पदों पर हैं. इण्डिया टुडे ने इस पर आवरण स्टोरी भी प्रकाशित की थी. ...फ़िलहाल, ऐसी प्रेरक चीजों को सामने लाने के लिए आपको साधुवाद.
ReplyDelete_________
"शब्द-शिखर" पर सुप्रीम कोर्ट में भी महिलाओं के लिए आरक्षण.
MR.AVINASH KAMBLE'S CASE HISTORY IS REALLY INSPIRING ...HE HAS CREATED REAL FOOTMARK IN THE COURIER INDUSTRY.BY HIS HARD WORK, DEDICATION , VISION TO EXCEL MADE HIM IKON FOR ALL OF US. WE SALUTE THIS GREAT BUSINESS MAN.WE HAVE GREAT HOPE FROM MR. AVINASH KAMBLE . HE WILL BE OUR ROLL MODEL.
ReplyDeleteWE ALSO ARE GREATFULL FOR OUR BELOVED RESPECTED CMD SHRI SUBHOSH CHAKRABORTY SIR ,MR. PATIL SIR (AGM),MR.DEBU SIR(RM)AND OTHER TEAM MEMBER OF DTDC COURIER AND CARGO LTD. FOR THEIR SUPPORT ,GUIDANCE, AND CORPORATE ENTERPRINERSHIP TOWARDS ESTABLISHING THIS BUSINESS.... .
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JAI BHIM. JAI BHARAT.- RAJU SHELAR
रविश जी अछी कहानी थी लेकिन किसी की सफलता को उसकी जाति से जोड़ना वो भी पुणे जैंसे शाहर में बड़ा अजीब सा लगा। ये सिर्फ एक काबिल आदमी के अपने दिमाग का अछा प्रयोग और मेहनत से आगे बढ़ने की कहानी थी। जिसे बिना बात के जज्बाती रंग दिया गया। माफ़ कीजिये लेकिन गरीब सिर्फ गरीब होता है उसकी कोई जाति नहीं होती। कृपा कर के आप जैंसे पत्रकार तो ये न दर्शाएं की गरीब सिर्फ दलित होता है या दलित सिर्फ गरीब होता है। दलित का मतलब दरिद्र नहीं है।
ReplyDeleteRambhau Sontakke - Mazya Mitra ! Kharach to ek jyot ahes ! Badlachi !! Ek Prerna ahes !! Badal Honya Sathi Koni Akashatun yenar nahi !! Parmeshwar swathaha madhech Ahai,Tya kade Phun Karya karne mahatwache ahai !! Mag yesh Milnarach !!Anni He Karya Niswarth Pane LOkan paryant Pohchwane He SEVA !!!!!!! Ji Apan KArat Ahat !!!!!Mzya Shubhecha !!!!!!!!
ReplyDeleteरवीश जी,
ReplyDeleteआश्चर्य में क्यों पड़ गए? अविनाश काम्बले अकेला उदाहरण नहीं है.अपनी बुद्धि , मेहनत, अवसर का उपयोग करने की क्षमता और लगन के बल पर कितने ही अविनाश काम्बले अलग-अलग जगहों पर दलितोदय की नई इबारत लिख रहे हैं. आपके पापुलर मीडिया की नज़र ही मोतियाबिन्द्ग्रस्त है तो कोई क्या करे.
aaj jis mukam par abinash pahuche hain wahan par har bhartiya pahunch sakta hai. aage badne ke liye kisi jati ki jaroorat nahi hoti hai bas kewal unchi soach aur uske prati samarpan hona jaroori hai.
ReplyDeleteरविश जी नमस्कार
ReplyDeleteपिछले एक महीने से आपके कस्बे में आ रही हू..और पढ़ने का सुख उठा रही हू..लेकिन इतने कम दिनों में कस्बा अपना लगने लगा है। दलित उत्थान वाली स्टोरी मैने टीवी पर भी देखी थी..वैसे तो मै आपके प्रजेंटेंशन की फैन हूं...अगर टीवी देखते समय कोई अड़चन ना आए तो मै हर शुक्रवार को आपका एपिसोड देखती ही हूं..आपने बहुत ही अच्छा ट्रीटमेंट किया था..बिना किसी तामझाम ग्राफिक्स से शब्दों के मायाजाल से ऐसा समां बांधा कि कब आपका साइन ऑफ आ गया पता ही नहीं चला।क्या ऐसा नहीं हो सकता कि आप पूरी की पूरी स्टोरी ही कस्बे में उड़ेल दो..जब दिल चाहे एक बार पढ़ने का सुख उठा सके...
aapki report dekhi bahot aachi lagi ....dusron ke liye kaam karne ke bawzood jis tarah se avinash ji ne apne apko sabit kiya wakai ek anuthi misal hai...lekin agar unke is prayas ko jativad se alag rakha jaye aur unhe ek mehnatkas insaan ke roop me prernashrot mana jaye to jyada uchit hoga ........hamare samaz me aise bhi kai log hain jo jati ki duhai dete rahte hain aur hakikat me kuch karna hi nahi chahte .aapki ye report un logon ke liye bhi ek bejod udahran prastut karti hai...
ReplyDeletesir,kal maine aapaki report dekhi thi.bahut behatarin tha.sir jis tarah aapane ise pesh kiya wo kabile tarif hai.auryahi weazah hai ki main aapaka aur puny prasoon vajpaye kaa fan hoon.aap aam jan ki baat ko aam logo tak pahunchate hai.wo bhi aam bhasha me taki aam log ise aasani se samjh sake.isake liye aapako bahut bahut dhanywad sir
ReplyDeleteजब दलित सत्ता के शीर्ष पदों पर पहुँच रहे हैं, फिर उनके लोग अनुसरण क्यों ना करें..बेहतरीन पोस्ट.
ReplyDelete___________
'शब्द सृजन की ओर' पर आतंकवाद की चर्चा.
आपकी वह रिपोर्ट देखी थीं। बहुत शानदार रिपोर्टिंग लगी।
ReplyDeleteइस तरह की खबरें अब न्यूज चैनलों पर नहीं के बराबर दिखतीं हैं।
एक अलग ही रौ और एक अलग किस्म की साफगोई के लिये बधाई स्वीकारें।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeletegr8
ReplyDeleteInspirational Post....Ye DALIT shabd zaroori hai kya ? Avinash ne to apne karmo se mukhyadhara se judkar is shabdo ko kabka peeche chod diya...fir aap kyon pakde hai abhi tak? ‘दलित’ शब्द का अर्थ है- जिसका दहन और दमन हुआ है, दबाया गया है, उत्पीड़ित, शोषित, सताया हुआ, गिराया हुआ, उपेक्षित, घृणित, रौंदा हुआ, मसला हुआ, कुचला हुआ, विनिष्ट, मर्दित, पस्त-हिम्मत, हतोत्साहित, वंचित आदि। क्या उच्च जाति में दलित लोग नहीं ? जब आप मीडिया कर्मी ही ऐसा भाषाई प्रयोग करेंगे तो औरो का क्या ? हमारे राज्य की मुख्यमंत्री मूर्तियाँ लगवा कर और करोडो की माला पहन कर भी खुद को दलित कहती है .......वाह रे! जातिवादी समीकरण जिनसे राविश आप अछूतेनहीं
ReplyDeleteरविश जी में धन्यवाद् देना चाहूँगा प्रिया जी को 'दलित' के अन्य पर्यायवाची शब्द उपलब्ध कराने के लिए, क्यूंकि मेरे पास किसी ज़माने में अपनी लड़की के स्कूल का लगभग ३० वर्ष पुराना हिंदी शब्दकोष ही है,,,जिससे उनके शायद 'आदि' में समाया एक शब्द मुझे और मिला: 'विदीर्ण'!
ReplyDeleteऔर, मेरे ख्याल से शायद, 'अनादि काल' से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त नादबिन्दू ही सबसे दलित रहा है सदैव, जो शून्य से अनंत शून्य ही बन सका: एक बक्से के सामान जिसमें 'कभी ख़ुशी कभी ग़म' (के३जी, यानी कृष्ण के तीन रूप, + ० -?) समान शून्य से करोड़ रुपये तक शायद आता जाता रहा हो समय समय पर!
फिर भी वो तथाकथित 'परमानन्द अवस्था' में बताया जाता है! कमाल है!
रविश जी, अपकी यह रिपोर्ट पड़ कर अच्छा लगा, लेकिन आज भी हमारे देश में दलितॊ के साथ क्या हो रहा है यह एक डो्क्युमेन्ट्री देख कर पता चला । यह डो्क्युमेन्ट्री मैने अपने ब्लाँग http://kausis.blogspot.com पर भी अपलोड की है । शयद आपने यह देखी हो, लेकिन देखने के बाद लगतात है कि आज भी दलित समाज गुलामी की जिन्दगी जी रहा है । यह डो्क्युमेन्ट्री आप http://www.hindilinks4u.net/2010/04/india-untouched-documentary.html#axzz0k8b78VUH लिंक पर भी देख व डाऊनलोड कर सकते है ।
ReplyDeleteरवीश जी आपका शुक्रिया. आपके दलित शब्द के प्रयोग ओर कुछ दोस्तों की आपतियों के सन्दर्भ में कुछ कहना चाहता हू. दलित होने के नाते दलित शब्द का दर्द समझता हू. लेकिन आप भी जानते है की शब्दों का अपना कोई अर्थ नहीं होता . उसमे अर्थ भरा जाता है. हम सब दलित शब्द में वह अर्थ भरना चाहते है जिसपर आने वाली पीढ़ी गर्व से कह सके की जिसे समाज ने दलित कहा उसमे भी बेहतरीन उद्यमी , विद्वान रोलमॉडल मौजूद है जो देश को नई दिशा देने में सक्षम है. आपका दलित शब्द का प्रयोग सही है इससे समाज की पारम्परिक सोच को बदलने में मदद मिलेगी. हमें अपने दलित होने पर गर्व है.
ReplyDeleteडॉ. राजेश पासवान
sir,karyog se kya kuch nahi paya ja sakta hai.bahut acha laga padh kar.hamri bahut subh kamana hai avinash jee ko....
ReplyDeletethanks a lot
very impessive story
ReplyDeleteआज कुछ अच्छा पढ़ा और बस पढता ही रहा. अविनाश काम्बले की दास्तान वाकई चौंकाने वाली है . यह फ्रंचिज़ी सिस्टम ही ऐसे ऐसे बढता है की लोग हैरान हुए बिना नहीं रहते हैं
ReplyDelete