दि इंडियन एक्सप्रेस की पहली ख़बर ने परेशान कर दिया है। एक नौजवान इस्पेक्टर की हंसती हुई तस्वीर छपी है। अंदाज़ा नहीं था कि भीतर की ख़बर इतनी बदसूरत होगी। इंस्पेक्टर शब्बीर अली सैयद,गुजरात एंटी टेररिस्ट स्क्वाड का सदस्य। वो चिल्लाता रहा कि सर मैं आतंकवादी नहीं हूं। फिर भी डीसीपी सुभाष त्रिवेदी उसे अपनी बाज़ुओं और अफसरी की ताकत से मरोड़ता रहा। यह सोच कर डर लगता है कि त्रिवेदी के भीतर ताकत का गुरूर और सांप्रदायिक पूर्वाग्रहों का ज़हर कितना भयानक होगा कि उसने सैयद पर गोली दाग दी। सैयद चिल्लाता रहा- सर मैं आतंकवादी नहीं हूं। मैं तो ऑब्ज़र्वर हूं। एक्सप्रेस के रिपोर्टर कमाल सैयद को इंस्पेक्टर बता रहा है कि मैं त्रिवदी की जकड़ से बाहर आने के लिए तेजी से छटपटाने लगा,तभी उसने अपनी सर्विस रिवॉल्वर निकाली और दो गोली दाग दी। मैं बेहोश हो गया।
चौबीस फरवरी की घटना है। शहर सूरत,राज्य गुजरात। देश का एक विकसित राज्य। मौका-मॉक ड्रील। डीसीपी त्रिवेदी इस ड्रील में डॉक्टर बना था। किसी अफसर को हथियार ले जाने की इजाज़त नहीं थी। ड्रील की पूरी योजना बनाई गई थी। सारे अफसरों को उनकी भूमिका के बारे में साफ-साफ बता दिया गया था। सैयद को काम दिया गया था कि वो देखे कि आतंकवादी ऑपरेशन के दौरान किस तरह की चूक होती है। डीसीपी सुभाष त्रिवेदी,जो बारोट का एसपी है और उनके कुछ साथियों को डाक्टर की टीम की भूमिका मिली। सीन तय हुआ कि आतंकवादियों ने बस यात्रियों को बंधक बना लिया है। सैयद बताते हैं कि त्रिवेदी बस में घुसता है और मुझे पकड़ लेता है। कंफ्यूज़न का सवाल ही नहीं पैदा होता क्योंकि ऑब्ज़र्वर बनने का काम सिर्फ मैं कर रहा था। डीसीपी को यह काम भी नहीं दिया गया था कि वो आतंकवादियों को पकड़ेगा। सूरत के पुलिस कमिश्नर शिवानंदन झा ने इसकी पुष्टि भी की है।
झूठी पुलिस कहती है कि ग़लती कैसे हुई फिलहाल इसका कोई जवाब नहीं है। हम इसकी निष्पक्ष जांच कर रहे हैं। इस मामले में किसी निष्कर्ष पर पहुंचना मुश्किल है। हमने कई लोगों का बयान ले लिया है। इसके अलावा शिवानंदन झा ने इंडियन एक्सप्रेस के संवाददाता को कुछ भी कहने से इंकार कर दिया। पुलिस ने सिर्फ शिकायत दर्ज की है। एफआईआर नहीं।
कमाल लिखते हैं कि शुरूआती जांच के बाद पता चला है कि यह एक दुर्घटना थी।जानबूझ कर नहीं किया गया। अंतिम रिपोर्ट का इंतज़ार हो रहा है।
दोस्तों, इस घटना से आप परेशान नहीं हुए तो और परेशानी की बात है। मुसलमानों को लेकर सुभाष त्रिवेदी के भीतर कितनी घृणा होगी जिसके भड़क उठने पर उसने सैयद का गट्टा पकड़ लिया। त्रिवेदी को सैयद आतंकवादी नज़र आ गया। त्रिवेदी ने सैयद को कितनी ज़ोर से जकड़ा होगा कि उसे अंदेशा हो गया होगा कि कुछ गड़बड़ है और वो चीखने लगा होगा कि सर मैं आतंकवादी नहीं हूं। इस बात पर त्रिवेदी और भड़क गया होगा। उसका गुस्सा पूर्वाग्रह के ज़हर से लाल होने लगा होगा। आप बस कल्पना कीजिए। त्रिवेदी के भीतर के ज़हर के उफान को। आप आसानी से समझ जाएंगे। शिवानंदन क्षा को इतनी सी बात समझ में नहीं आई है। पुलिस हिंसक होती है। हो जाती है लेकिन अपने ही अफसर के खिलाफ हिंसा और कुंठा ऐसी बर्बरता तक ले जाएगी कि उस पर गोली चला दें।
मेरी सांसें चलने लगीं इस ख़बर को पढ़ कर। बार बार आग्रह करता हूं कि ये हिन्दू मुस्लिम का पूर्वाग्रह छोड़ो। नरेंद्र मोदी की सरपरस्ती में इतने अंधे न हो जाओ कि किसी को मार दो। अगर आप सब के भीतर कोई सुभाष त्रिवेदी है तो प्लीज़ पहचानिये। उसे बाहर निकालिये वर्ना एक दिन आप अपने किसी मुसलमान दोस्त को इसी तरह मार देंगे। किसी मुसलमान पड़ोसी को यह कह कर गोली मार आएंगे कि आतंकवादी है। इसीलिए माइ नेम इज़ ख़ान एक साधारण फिल्म होते हुए भी असाधारण हो जाती है। वो हमारी पूर्वाग्रहों के ठिकानों का पता बताती है।
चौबीस फरवरी की घटना पर कोई हंगामा नहीं। देश का मुस्लिम नेतृत्व वाकई तीन नंबर का है। महिला आरक्षण को लेकर कई मुस्लिम नेताओं से बात हुई। सब सोनिया और नीतीश के साथ अपना जुगाड़ बिठा रहे हैं। वो इतने गिर गए हैं कि उनसे निजी राय भी नहीं कही जाती है कि हम तो चाहते हैं कि मुस्लिम औरतों को आरक्षण नहीं मिले लेकिन कोई साथ नहीं दे रहा। इतना भी नहीं कहा जाता। सब सत्ता की मलाई चाटना चाहते हैं। इन नेताओं को पता नहीं कि वे अपने ही समाज के भीतर हाशिये पर जा रहे हैं। मुस्लिम मध्यमवर्ग इन्हें उखाड़ कर फेंक देगा जैसी हालत बुख़ारियों की हुई वैसी ही हालत अनवरों और खुर्शीदों की होने जा रही है। और गुजरात का मुख्यमंत्री क्या कर रहा था। उसने क्या किया इस घटना पर। बीस दिन तक यह मामला सुर्खियों में आने से कैसे रह गया। यह एक संगीन साज़िश है।
अगर हम सहनशील समाज नहीं बनायेंगे तो हमारे बीच का कोई आदमी अपने भीतर दबी कुंठा को लेकर अफसर बनेगा और एक दिन इस तरह के किसी सैयद पर गोली चला देगा। टीवी से तो आप मत ही उम्मीद रखिये कि ऐसी ख़बरें आयेंगी क्योंकि टीवी के लोगों की रणनीति आप समझिये। वो गंदगी फैलाते हैं। गंदगी पर लेख लिखते हैं। गंदगी पर लिखे लेख का पैसा भी मिलता है वैसे। वहीं गंदगी पर होने वाले सेमिनारों में जाते हैं। वही गंदगी को रोकने के उपाय बनाते हैं। सबसे कम प्रसार संख्या वाले अख़बार की ऐसी झकझोर देने वाली ख़बर। पाठक को ऐसे हंगामे में फेंक देती हैं जहां सिर्फ सन्नाटा सुनाई देता है। आज आप इंडियन एक्सप्रेस खरीदिये और पढ़िये।
बात ने वाकई झकझोर दिया। लगता है इस चश्मे से सब दिखाई देते हैं सिर्फ इंन्सान नहीं। खुद भी भेड़िया ही दिखाई देता है।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteअगर हम सहनशील समाज नहीं बनायेंगे तो हमारे बीच का कोई आदमी अपने भीतर दबी कुंठा को लेकर अफसर बनेगा और एक दिन इस तरह के किसी सैयद पर गोली चला देगा।
ReplyDeleteekdam sahi keha sir..aur ek din isi kuntha ka shikar hokar koi aatankwadi bhi banne ko majboor bhi hoga.......!
घटना तो वाकई झकझोरने वाली है.....पर इस पोस्ट का शीर्षक थोङा अटपटा सा है....आप भी वही कर रहें है जो त्रिवेदी जी ने किया
ReplyDeleteरविश जी .......
ReplyDeleteजाहिर है घटना दुर्भाग्य पूर्ण है .शायद एक अफसर के अतिरेक उत्साह का परिणाम है .....ओर सम्बंधित अफसर के कड़े दंड का भागी है ....पर यकीन मानिये ...ऐसी कई घटनाएं रोज हर प्रदेश में हो रही है .बस वहां नाम सैयद नहीं होता.राजेश होता है या सुनील....बागपत ओर देहरादून में हुई घटनाएं अभी पुरानी नहीं है जहाँ लडको को अपराधी कहकर उदा दिया गया फिर गलती की लीपापोती में उन्हें हार्ड कोर अपराधी घोषित किया गया ..........
यानि कुल मिलाकर ये एक सिस्टम का फेलियर है .जिसे आप धर्म से क्यों जोड़ रहे है मेरी समझ से बाहर है ठीक वैसे ही जैसे किसी लड़की से बलात्कार की खबर के बाद अखबार में खबर आती है ...के दलित किशोरी से बलात्कार ........
आपका शीर्षक मुआफ कीजिये मै इसे भी सेंसलिज्म का एक हिस्सा मानता हूं.....
जरुरत कुछ .कुछ खास विभागों को ओर अधिक संवेदनशील बनाने की है ......इसके लिए न केवल ऊपर के अफसर बल्कि नीचे की पोस्ट पर मौजूद सभी बन्दों को एक विशेष ट्रेनिंग की दरकार है ......इसमें हम ओर आप दोनों के क्षेत्र भी आते है
ReplyDeleteडॉ अनुराग से सहमत हूं…। इसमें धर्म का मामला बीच में लाकर आपने साबित किया कि आप पर NDTV का गहरा असर है और मोदी से घृणा…। मैं आपकी मानसिक स्थिति समझ सकता हूं…। सहानुभूति है… (आपसे नहीं… सैयद से) :)
ReplyDeleteBahut hi acchi bat kahi hai aapne, main sahmat hun aapse. magar aap ki bhi annkhe kai jagah band rahti hai. Godhara main Train ki Bogi ke andar kitne Hindu mare gaye the , iska koi hisab hai aap ke pas.
ReplyDeleteऐसे त्रिवेदियों और बुखारियों की तादाद दिनोंदिन बढती जा रही है.आप अपने यहाँ कमेन्ट में देख ही रहे होंगे.लोग यह भूल जाते हैं जर्मन कवि की उस पंक्ति को कि लोग जब तुम्हें मारने आयेंगे तो कोई नहीं होगा तुम्हें बचाने वाला.
ReplyDeleteअच्छा ही हुआ कि इसे आपने पोस्ट किया गर मैं लिखता तो लोग कहते कि अपनी ख़ास आँख से देख रहा हूँ.
आपकी बेबाकी को सलाम!
Jahan tak mujhe maaloom hai aap bhee shayad NDTV mein kaam karte hai ? :)
ReplyDeleteKeep it up !!
सामान्यत: आपसे सहमति होती है पर यहॉं पाठ आपके हमारे पूर्वग्रहों निकला ज्यादा लग रहा है। एक दोस्त स्पेशल ब्रांच में इंस्पेक्टर है यानि एन्कांउटर करने वाला, उसने बताया कि नफरत को उनके पेशे में जरूरी माना जाता हे उसके बिना 'काम' हो ही नहीं सकता। हमारे-आपके लिए उसे समझ पाना थेड़ा कठिन होगा। इसलिए उस नफरत को जो पंथीय पाठ किया है वह अतिरंजित है। दरअसल इस मसनसिकता के बाद उनकी घरेलू हिंसा या पड़ोसी से लड़ाई तक इसी रूप को अख्तियार कर लेती होगी। धर्म कोई घटक है ही नहीं ऐसा नहीं पर वह हिंसा के मातहत केवल एक घटक है।
ReplyDeleteमुझे नहीं लगता कि इसे समझने के लिए इण्डियन ऐक्सप्रेस पढ़ने की ज़रुरत है। अपने आस-पास कहीं भी आप बस ज़रा-सा कुरेद दीजिए और यह बाहर आ जाएगा। कभी गुजरात दंगो के तुरंत बाद लिखी कहानी ‘हंस’ में छपी थी। जहां रोज़गार था वहां बहुत से लोग मुसलमान समझते थे, कुछ जान-बूझकर कहते थे। और भी बहुत कुछ देखा। लेकिन यह सोचना कि यह बीमारी सिर्फ़ किसी एक संप्रदाय से जुड़ी है, निहायत ही बेतुकी और बचकाना सोच है। जब आस्ट्रेलिया में हमारे बच्चे पिटें तो हम नस्लवाद को रोएं, जब हम यहां दलित को पीटें तो छुपाने की कोशिश करें ? तसलीमा लिखें कि बांगला देश में हिंदू कैसे मरा तो हम यहां शाबाशी दें और रवीश कुमार सैयद के पक्ष में लिख दे ंतो बुरा मान जाएं। मगर यही सब होगा। जब तक धर्म, संप्रदाय, देश, कुल, गोत्र, नस्ल आदि हैं तब तक क्या कर लेंगे आप ? आप अपने घर से बाहर निकले बिना दुनिया को ठीक से कैसे देख सकते हैं ? अपने डेरों और घेरों को बंदरिया के बच्चे की तरह छाती से चिपटाए लोगों को शांति और अमन की बातें बंद कर देनी चाहिएं। कोई दुनिया का गुरु नहीं है यहां। दुनिया की छाती पर हमेशा से अहंकारी और अंधे बैठते आए हैं और बैठते रहेंगे।
ReplyDeleteयह भी सही है कि पुलिस की रगों में नफरत एक प्रोफेशनल पाठ की तरह पढ़ाई जाती है और यह भी कि धर्मान्धता के अपने-अपने पूर्वाग्रह हैं । ऊपर से तुर्रा यह कि सरपरस्ती भी मौजूद है -- श्रीमान नरेन्द्र मोदी की ! हिन्दुस्तान की न्याय-प्रणाली अपनी लाख खामियों के बावजूद इतनी तो मजबूत जरूर है कि मीडिया में उछलने के बाद कई मामलों में उसने लाजवाब ढंग से फैसले दिए -- कब्रों तक से मुर्दे उखड़वाकर ! इन्डियन एक्सप्रेस ने अपना काम कर दिया है , अब बारी है मीडिया के शेष संसार की ..... ।
ReplyDeleteसबसे जरूरी तो है अपने-अपने पूर्वाग्रहों से निपटने की । गाँधी को हमने भुला दिया है और कोई दूसरा गाँधी भी नजर नहीं आता -- दूर-दूर तक ।
रवीश जी , बात पूर्वाग्रहों की चल पडी है तो आग्रह है कि ज़रा आज के ही हिन्दुस्तान में महाश्वेता देवी के निबन्ध पड़ भी एक नजर डाल लें । क्या नक्सलियों को मिटाने के नाम पर उन लोगों को ही नहीं मिटा दिया जा रहा है -- विशेष कर बंगाल पुलिस के द्वारा ( सी० आर० पी० एफ़० के सहयोग के साथ ) -- जो किसी भी सूरत में नक्सलवादी नहीं हैं , बल्कि एक साथ कई-कई तरह के शोषकों के शिकार है ? क्या उन आदिवासियों की स्थिति भी कुछ ऐसी नहीं जो सी०पी०एम०, तृणमूल कांग्रेस और नक्सलियों के मध्य फुटबाल की तरह ठोकरें खाने को प्रतिबद्ध है ? क्या चिदंबरम महोदय उस बारीक फर्क को महसूस नहीं कर सकते जो निर्दोष आदिवासियों और दोषी नक्सलियों के बीच है और उस राजनीतिक रोटी को भी जो सभी सम्बंधित पक्ष अपने-अपने स्वार्थ के लिए भुना रहे हैं ?
रवीश जी कभी हिन्दूओ के ऊपर हो रहे अत्याचारो पर भी लिख दीजिये … या ऐसा करने से NDTV से हाथ धोना पडेगा ??? यदि आप के पास नही हो तो नये मे बरेली वाले फ़ुटेज भिजवाऊ,कि आप इसमे से भी मोदी की भूमिका निकाल लीजियेगा ???
ReplyDeleteसैयद से सहानुभूति है…
हिन्दूओं की पीड़ा के वारे में क्यों लिखेगा वेचारा देश के दुशमनों के हाथों विका हुआ जो ठहरा। विकाऊ माल से आप इसके सिवा और उमीद भी क्या कर सकते हैं
ReplyDeleteहम सभी पूर्वाग्रह से ग्रसित लोग हैं. जांच अभी चल ही रही है इस केस की, परन्तु रवीश जी ने अब तक के अर्जित ज्ञान के वशीभूत होकर डी सी पी त्रिवेदी को सांप्रदायिक घोषित कर दिया. उनका यह कृत्या गलत और निंदनीय है, और इस घटना के पीछे कई और वजहें हो सकती हैं (साम्प्रदायिकता उनमे से एक है), परन्तु मामले को जाने बिना सीधे सीधे साम्प्रदायिकता का आरोप लगा देना, आप जैसे विज्ञ जनों से अपेक्षित नहीं है. भारतीय संविधान भी कहता है "Not Guilty, Until Proven Otherwise".
ReplyDeleteऔर हाँ, अगर आप सब को मोदी के गुजरात से फुर्सत मिले तो माया के यू पी भी जाइएगा, जहाँ के बरेली में जो नाटक चल रहा है उसके भी सांप्रदायिक पहलुओं को उजागर करने का कष्ट कीजिये. मैं चिपलूनकर साहब की पोस्ट की प्रतीक्षा कर रहा हूँ, सही खबर के लिए. आप सारे बुद्धिजीवी लोगों से तो सच खबर आएगी नहीं.
एक बात याद रखें, हर व्यक्ति सांप्रदायिक है इस देश में. तभी तो हम आम जनता के मुद्दों से इस देश की जनता को नहीं जगा पाते पर किसी भी धार्मिक मुद्दे पर करोडो को धर्मांध किया जा सकता है. सरकार और आप जैसे विज्ञ जनों से अपेक्षित है की गलत को गलत बोलने का साहस रखें. यदि छद्म- धर्मनिरपेक्षता दिखाते हुए आप एक-तरफ़ा रिपोर्टिंग करेंगे, तो एक दिन इस समाज में जो ध्रुवीकरण होगा (जाहिर है धर्म पर आधारित) वो कतई देश के लिए अच्छा नहीं होगा. आखिर कब तक आप एक ही वर्ग विशेष को सारी साम्प्रदायिकता का कारण बताते रहेंगे. कभी तो खबर लिखें, जो सच बताये.
Muslim leadership hai kahan. Kya Anwaron ya Khurshidon wakai musalmanon ke leader hain. ye Mullaon se bhi zaya andhe aur bahre hain. Sirf mahila bil hi nahin har tarah se yeh apne AAqa yani party supremo ko Khush karne lage rahte hain.
ReplyDeletebtayen kis aatnkvadi ne kha hai ki vh aatnk vadi hai yh bat to ksb bhi nhi manta ki vh aatnki hai jb ki use to sre aam logon ne dekha hai
ReplyDeleteaap bhi use aatnki nhi mante honge kypn ki abhi to us pr kes chl rha hai aur aap ki han me han milane vale bhi nhi mante honge
to fir to koi aatnki hai hi nhi ye jo log mare ja rhe hain ve to yun hi mr rhe hai kasmir me bhi kuchh nhi ho rha vhan bhi amn chain hai simaon se bhi faoj hta leni chahiye
aatk vad nam ki to koi chij haihi nhi
aap mhan hai kyon ki aap bhi to bina nayayaly ke ki nrny krke fainsla de rhe hai kyon ki desh me koi kanoon to hai hi nhi aap ka kanoon hi sb kuchh hai hindo to aap ki bhs me bs mrne ke liye hai use to jine ka bhi adhikar nhi hai aap kshmiri pnditon ke liye kr hre hain pr us se aap ko koi labh thodi hai jo kuchh krengec
dr.ved vyathit
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteहमारे किसी मित्र ने टिपण्णी दी है कि "जब तक धर्म, संप्रदाय, देश, कुल, गोत्र, नस्ल आदि हैं तब तक क्या कर लेंगे आप ?"
ReplyDeleteमेरा यह कहना है कि सदियों पुरानी इस व्यवस्था को शाश्वत रूप से गाली देने से कुछ भी नहीं होगा अच्छा हो कि हम अपनी एक नई व्यवस्था बनायें.....
हम क्यों नहीं एक ऐसी व्यवस्था के निर्माण में अपनी उर्जा लगाते हैं जिससे इस तरह कि तथाकथित घटनाओं पर रोक लगा की है कि "बरेली पर क्यूँ कुछ नहीं लिखते....वहां पर भी एक मोदी का मीडिया अविष्कार कर लीजिए.....रवीश जी बताएं कि वहां किसकी सरकार है? दलित नेत्री मायावती की और वह भी तथाकथित सांप्रदायिक दलों के सहयोग से नहीं बनी है....पूरी बहुमत की सरकार है......
गुजरात की यह घटना अफ़सोस जनक है...परन्तु इसे या किसी भी ऐसी घटना को साम्प्रदायिकता या धर्म से जोड़ने से पहले हमें उसकी पूरी पड़ताल करनी चाहिए...हो सकता है कि पुलिस वाला दोषी हो....लेकिन मीडिया को नयधिश बनाए का अधिकार नहीं है..उसका काम "सही ख़बरों" को प्रकाश में लाना है...खबर बनाना नहीं....... मीडिया की शक्ति प्रयोग सामजिक समरसता, धार्मिक सहिष्णुता एवं मानवता को बढ़ावा देना होना चाहिये न की सनसनी फ़ैलाने के लिए.....अफ़सोस कि कुछ पूर्वाग्रही आज मीडिया में अपनी ऊँची पहुंच का प्रयोग केवल और केवल जातीय विषमता एवं धार्मिक उन्माद को बढ़ावा देने में कर रहे हैं.......इन्हें कश्मीर से निर्वासित मनुष्यों एवं परिवारों का दर्द नहीं दिखता. इनकी आत्मा केवल गुजरात तक ही सीमित रह गयी है.....
मैं सिर्फ़ इंसान होकर रहना चाहता हूं। मुझे इसमें तकनीकी (जैसे कि नया नाम क्या होगा...वगैरह)के अलावा कोई दिक्कत नहीं लगती। इस संदर्भ में मधुकर जी व अन्य सभी लोगों के सुझावों और विचारों का स्वागत है।
ReplyDeleteएक भयंकर मानवीय लापरवाही को किस तरह साम्प्रदायिक रूप दिया जाता है दिखाई दे रहा है. इस भयंकर लापरवाही के दोषी को निश्चित रूप से सजा मिलना चाहिये, लेकिन इस भयंकर लापरवाही को क्या रूप दे दिया गया! यदि सैयद की जगह कोई हिन्दू होता तो निश्चित रूप से इस घटना को कहीं जगह नहीं मिलती. जो कानपुर में राकेश सिंह की थानेदार द्वारा की गयी हत्या के मामले से संपुष्ट होता है, क्योंकि उसमें कहीं सेन्सेशन नहीं है, क्योंकि बहुसंख्यक की जान जान नहीं होती. इसी प्रकार बरेली के दंगों के लिये भी बड़ी खूबसूरती से दबा दिया गया, जबकि उसमें एक अल्पसंख्यक पुलिसवाले की भूमिका संदिग्ध रही है. लेकिन इन सबमें सेन्सेशन कहां है, यह तो साम्प्रदायिक फैलायेगी, इसलिये सब हजम और गुजरात में हुई इस माकड्रिल में घटित भयंकर दुर्घटना को ऐसा रूप. क्या उस आईपीएस अफसर के पास इतनी अकल नहीं होगी कि वह आब्जर्वर का गला पकड़ लेगा और उस पर गोली चला देगा. माकड्रिल में रिवाल्वर खाली होती है. त्रिवेदी बस में घुसा और आब्जर्वर को पकड़ लिया फिर गोली चला दी! क्या अजब-गजब सीनेरियो है! त्रिवेदी को मारना था तो वह इतने गवाहों के सामने मारेगा, अपने लिये फांसी का फन्दा तैयार करेगा. बहुत बढ़िया!
ReplyDeleteएक भंयकर लापरवाही से अधिक कुछ नहीं था, मगर आपने साम्प्रदायिक चश्मा लगा रखा है, आप इससे ज्यादा कुछ नहीं देख सकते. भगवान आपके ज्ञानचक्षु खोले.
ReplyDeleteMai Bhi Mr Sanjay Begani and Indian Citizen se sahmat hoon.Ravish ji aapse aise ummeed nahi thi.But aap bhi to NDTV se hain. Aapki bhi majburi hai roj sensation paida karne walon ki sangati hai aapki. Yadi aap sab main insaniyat ya siddhant jaisi koi chhese hai to likhiye un hinduon ki detail unke parivaron ke bare main jo train ki bogi me jalaye gaye, unke bare me jo kashmir se bhagaye gaye aur apne hi desh me sarnarthi ban gaye, jo radhanpur (gujrat) ke pass ak gaon se bhagaye gaye aur hindu hone ki wajah se unhe koi madad nahi milee. Kya bahusankhyak hona gunah hai. Anyway..
ReplyDeleteSayed ke saath hua haadsa police ki laparwahi aur gamand ka behuda example hai. Trivedi se IPS chhen lena chahiye aur use kadi saja milne chahiye parantu nispaksh janch ke bad.
Mai Bhi Mr Sanjay Begani and Indian Citizen se sahmat hoon.Ravish ji aapse aise ummeed nahi thi.But aap bhi to NDTV se hain. Aapki bhi majburi hai roj sensation paida karne walon ki sangati hai aapki. Yadi aap sab main insaniyat ya siddhant jaisi koi chhese hai to likhiye un hinduon ki detail unke parivaron ke bare main jo train ki bogi me jalaye gaye, unke bare me jo kashmir se bhagaye gaye aur apne hi desh me sarnarthi ban gaye, jo radhanpur (gujrat) ke pass ak gaon se bhagaye gaye aur hindu hone ki wajah se unhe koi madad nahi milee. Kya bahusankhyak hona gunah hai. Anyway..
ReplyDeleteSayed ke saath hua haadsa police ki laparwahi aur gamand ka behuda example hai. Trivedi se IPS chhen lena chahiye aur use kadi saja milne chahiye parantu nispaksh janch ke bad.
रवीश जी,
ReplyDeleteविभूति नारायण राय का एक शोध-प्रबंध है--'सांप्रदायिक दंगे और भारतीय पुलिस'. इसमें भारत के सबसे पुराने हिंदू-मुस्लिम दंगे का उल्लेख एक प्रत्यक्षदर्शी खाफी खान के हवाले से किया गया है.जानना चाहेंगे इसका स्थान और वर्ष? वर्ष था- १७१३ और स्थान था- अहमदाबाद. जी हाँ यही अहमदाबाद. तीन सौ साल का पला-पुसा हुआ ज़हर है इतनी जल्दी कहाँ खतम होने वाला.
'आप तो एन डी टी वी से हैं' ऐसे कहा जा रहा है जैसे अल कायदा का छोटा भाई हो. जारी रखें. बस अतिवाद को हावी न होने दें.
ravish ji, porvagrah se to aap grast hain. aap aur aapka chanal subah se anty hindutav ki khabare talash te hain aur chindi ka chadar banate hain...hamari haat to aisi hai ki alpsankhyak(jo ki 25 caror ke paar pahunch gaye hain)ke khilaf bolna chod soch bhi nahi sakte. aur be rok tok bharat me rahkar har hindu ko din bhar gali bakte hain. kabhi mazhab ke khilaf bolkar dekhiyega, kya hota hai.
ReplyDeleteनिशब्द.
ReplyDeleteकई लोगों ने कमेन्ट किये. कुछ लोगों ने इस पोस्ट का विरोध भी किया है. पर जरा सोचिये, क्या ब्लेम गेम से या साम्प्रदायिकता ख़त्म हो सकेगी. त्रिवेदी गलत करता है तो वो सजा का हकदार है, उसे पलने वाले सजा के हकदार हैं. बुखारी, अनवर या कोई कुरैशी या खान ऐसी ही हरकत करता है तो वो भी सजा का हकदार है. इसे इंसानी तौर पर देखिये. हिन्दू और मुस्लिम का चश्मा उतारकर रख दीजिये बंधुओं. पाप कोई भी करे, वो पापी है, हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई नहीं. हम खुद ही ये सोच नहीं डेवलप कर पा रहे हैं तो दूसरों से क्यूँ उम्मीद करते हैं. ज्ञान बघारने से कुछ नहीं होता. खुद बदलो, देश बदलेगा.
bhai mujhe lagta ke ye jaldbazi hoge.... abhi se faisla sunana...hamen thoda intezar karna chaheye...shak hona lazmi hai wajana saaf hai ye gujrat main hua hai...jahan modi ka rak hai jise kasai kahna zayada behter hoga
ReplyDeleteमुझे भी लगता है कि तीव्र प्रतिक्रिया में सीमा को लांघ गया। मैं बस त्रिवेदी के मनोभाव को समझने की कोशिश कर रहा था। बहुत समझने के बाद लगा नहीं कि ऐसी जगह पर दुर्घटना हो सकती है। एक गोली तक तो ठीक है..लेकिन दूसरी गोली...। आखिर सैय्यद चिल्लाया क्यों कि छोड़ दीजिए। मॉक ड्रील में इतनी ताकत से गर्दन क्यों पकड़ी को सैय्यद को चिल्लाना पड़ा।
ReplyDeleteठीक है। आलोचना में भावुक नहीं होना चाहिए।
bhai ravish jee, mai aapka Fan hi nahi Pankha hu lekin ise padhne ke bad lagaa ki kahi na kahi atirek me likha gaya hai. khair. mai dharma ke muddo se door hi rahna psand karta hu.
ReplyDeletevaise bandhu nikhil shrivastava jee ki kahne se sehmat hu.
रविश जी, समाचार तो छपा है कि सैय्यद जी मरे नहीं हैं. वे अस्पताल में हैं.
ReplyDeletei dont understand...in whole story from where Narendra Modi comes. second...."Jiske pair na phate bewai...Vo Kya Jaane Peer Parai" have u tried to find why Mr. Trivedi did so before writing this. There must had some reason ..though killing cannot be justified. But alleast we expect complete story from ur side..not the half baked story.
ReplyDeleteरवीश जी अब ज़रा NDTV की बहन तीस्ता सीतलवाड़ के कर्मो का भी बखान कर दो या जेम्स गुस्सा हो जायेगा ???
ReplyDeleteमहाराज आप लोग जो कर रहे हो उसे "धर्मनिरपेक्षता" नही “शर्मनिरपेक्षता” कहते है !
शर्म... शर्म... शर्म...
'पंचतंत्र' की कहानियों में से एक कहानी किसी शक्की राजा के बारे में है जिसे अपने किसी भी सैनिक पर विश्वास नहीं था. उसे शक था कि जब वो दिन में सोया हो तो कोई उसको मार न दे,,,इसलिए उसने एक वफादार बन्दर (मानव जाती के पूर्वज) को ट्रेनिंग दे कर उसके हाथ में अपनी रक्षा के लिए तलवार पकड़ा दी और उसे सख्त हिदायत दी कि वो किसी को भी कक्ष में प्रवेश न करने दे...किन्तु उसके दुर्भाग्य से एक दिन एक मक्खी कक्ष में प्रवेश कर गयी और राजा के ऊपर इधर-इधर बैठने लगी...आरंभ में तो उसने उसे हाथ से उडाया, किन्तु मक्खी चंचल थी इस कारण वो केवल स्थान बदलती रही,,,यहाँ तक कि बन्दर सिपाही को बेहद गुस्सा आ गया, और जब वो राजा के नाक पर बैठी थी तो उसने उसे मारने के लिए तलवार ही चलादी! फल स्वरुप राजा नाक कटा बैठा!
ReplyDelete['नाक काटना' एक कहावत भी है, बेईज्ज़ती का पर्यायवाची, आज भी,,,जैसे कहा जाता है कि त्रेता युग में लक्ष्मण ने रावण की बहन, सूर्पनखा, की नाक काट दी थी! जो 'सीता हरण' (नरक के एक द्वार, क्रोध, के कारण उसके 'माथा गरम', या मानसिक असंतुलन?) का कारण बनी!...]
अपूर्ण ज्ञान के कारण संदेह आदि 'नरक के द्वारों' को सब ग़लतियों का कारण जाना प्राचीन ज्ञानियों ने और इस प्रकार मनोरंजक कहानियों के माध्यम से शब्दों द्वारा सत्य, अथवा सत्व तक पहुँचने का प्रयास किया...कि मानव भगवान् का ही एक प्रतिरूप है...
http://timesofindia.indiatimes.com/city/ahmedabad/Four-commando-trainees-suffer-burns/articleshow/5753228.cms
ReplyDelete13वीं पंक्ति पढ लीजिए.
are kameene laanat hai tuj jaise logo par jo aisi khabro ko saampradayikta se jod kar likhte hai....
ReplyDeleteत्रिवेदी ने सैयद को मार दिया..सैयद कहता रहा आतंकवादी नहीं है .... matlab kya hai tera aisi line likhne ka?
tuj jaise logo ki wajah se hi aaj bhaaratiya ekta khatre me hai
@ cakephp जी ! आपे से बाहर हो कर भाषा से नियन्त्रण खोना शोभनीय नही है! फ़िर भी राष्ट्रभक्ती एवम सच्चे धर्मनिर्पेक्षता की भावना आप को ठेले और आप गाली देना चाहे तो क्रपया "शर्मनिर्पेक्ष" और "कथित सेकुलर" शब्दों से नवाज दे दुनिया की सर्ववाचक चौरासी करोड गालियॉ इन दो शब्दों मे ही समाहित है इनके सम्बोधन के बाद और कुछ कहने की ज़रूरत नही है!
ReplyDelete