फिर याद आई है...दीवाली आई है

दूर गहरे नीले आकाश में
ढूंढने की एक कोशिश
बीच शहर के शोर शराबे में
सुनने की एक कोशिश
सजे धजे लोगों की भीड़ में
मिलने की एक कोशिश
अधूरी मुलाकात की तड़प में
पूरी होने की एक कोशिश
वक्त बेवक्त आ जाने की ज़िद में
ग़ायब होने की एक कोशिश
पुकार कर तरंगों के बीच में
धड़कनें बन जाने की एक कोशिश
सुने जाने के लिए,ढूंढे जाने के लिए
पिता को पाने की फिर एक कोशिश
यादों के बस्ते से निकल कर उनकी
फिर से याद आई है
दीवाली आई है....

5 comments:

  1. tyoyhaar hume yaad dilate hain bahut kuch...hum bhul chuke hain wo bachpan ke diye bachpan ke rang gulaabi thanadk jo ab nahi milti.........
    wo ravan j hum jalaaya karte the ab sab formality lagta hai

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  2. सुंदर कविता! शहर बहुत कुछ छीन लेता है।

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  3. पिताजी की मुझे भी याद आ रही है, इस दीवाली में घर नहीं जा पाया..

    अच्छी कविता..

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  4. SACHIN
    पिता को पाने की फिर एक कोशिश
    यादों के बस्ते से निकल कर उनकी
    फिर से याद आई है
    दीवाली आई है....
    एक वो दीवाली थी जब नाना-नानी से पटाखा खरीद देने की जिद करता...
    ना अब नाना-नानी रहें और ना ही अब जिद करता हूं...

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  5. SHEHAR MEIN TO HAR DIN EID... HAR RAAT DIWALI HOTI HAI..
    MERE GAON KI PAGDANDI HAR LAMHA SOONI REHTI HAI.. KACHHE GHAR BETHI MAA BHI AANHEN BHARTI REHTI HAI.... HAPPY DIWALI...

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