( यह तस्वीर दक्षिण दिल्ली के मूलचंद फ्लाइओवर के नीचे ली गई है। आप जब आश्रम की तरफ से मूलचंद आते हैं तो फ्लाइओवर के नीचे से बायीं तरफ चिराग दिल्ली जाने के लिए मुड़ते हैं। मोड़ से कुछ मीटर पहले श्रीरामशरणम करके एक संस्था लोकप्रिय होती जा रही है। शनिवार और रविवार को काफी भीड़ रहती है। इस साइनबोर्ड पर एक साल से नज़र थी। आज कार रोकी और मोबाइल से तस्वीर ले ली। समझ में नहीं आया कि सीधी सड़क के किनारे बने रामशरणम स्थल तक पहुंचाने वाले इस बोर्ड में तीर के निशान में मोड़ क्यों हैं। शायद राम तक पहुंचने का रास्ता टेढ़ा होगा)
sahab , aapki paini nazar ki daad deni hogi . kya tasveer dhund laate hain !bhai waah !
ReplyDeleteशायद भगवान् राम का सन्देश हो -
ReplyDelete"ज़िन्दगी की सीधी सड़क पर परेशानी का मोड़ कभी भी आ सकता है, ज़रा संभल के"
Yes it is not easy to reach Him ! Have u not ever heard that Sufiana Quawwali--'' Bahut kathin hai dagar panghat ki .....''.
ReplyDeleteThe panghat in this Quawwali is 'Raam' or Eeshwar.It has never been an easy way to Him.
हां सुनी है।
ReplyDeleteरवीश जी....ज़रा गौर ते देखिए..तीर का अगला हिस्सा उपर की ओर इशारा कर रहा है...यानि राम नाम सत्य है...सच भी है, दिल्ली कि सड़के कब उपर का रास्ता दिखला दे, कोई नहीं जानता है। तीर कह रहा है, संभल कर चलो, नहीं तो....।
ReplyDeleteराम का मार्ग सीधा होता तो लीला कैसे अनंत होती?
ReplyDeleteअंग्रेजों के राज्य में हम 'भारतीय' आज के मुकाबले अधिक 'हिन्दू' थे...जब कोई आत्मा शरीर से बिदाई ले लेती थी तो उसे सुनाई पड़ता था "राम नाम सत्य है" , जो उस पार्थिव शरीर को चार कन्धों में धर पैदल श्मशान घाट की ओर (जो शिव को प्रिय है उनकी अंग-भस्म के लिए) चलती रिश्तेदार और मित्रों की भीड़ दोहरा रही होती थी...
'चार कंधे' द्योतक थे ब्रह्मा के चार मुंह, अथवा चार युगों के जिनमें प्रथम युग (सतयुग) शिव पुराण दर्शाते हैं, दूसरा (त्रेता) रामलीला, तीसरा (द्वापरयुग) कृष्ण लीला, चौथा (कलियुग) जैसा आज हम सब देख ही रहे हैं, मिला-जुला जो घोर अन्धकार की ओर बढ़ रहा है - बद से बदतर, किन्तु फिर भी टीवी वाले ही शायद उसमें भी 'भागते भूत की लंगोटी' समान आनंद ढूंढ रहे हैं...
समय यानि काल के कारण अब चार कन्धों की जगह चार पहियों ने ले ली है...सब जल्दी में हैं कहीं पहुँचने के लिए, किन्तु आत्मा का गंतव्य मालूम नहीं शरीर को...
और भी ग़म हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा,
ReplyDeleteराहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा।
नमस्कार। आपको हम क्या समझाए ?
ReplyDeleteये तिरछा निशान वास्तव में रिंग रोड से सर्विस रोड की ओर जानें का इशारा करता है।
और अगर आशय पर गौर करें तो यह बोर्ड बताता है कि " राम और हमारे बीच की दूरी सदैव समानांतर ही रहेगी।"
क्या बात है...
ReplyDelete:)