तू केकरा से प्यार करेलू हो....बोल न...काहे डेरा तारू....मनोज तिवारी प्रतियोगियों से इसी ज़ुबान में बोल रहे थे। प्रतियोगी सहमे हुए लेकिन सहज भी लग रहे थे। अपनों के बीच भी सहम जाता है। रांची की रीमा सिंह का वीडियो प्रोफाइल चल रहा था। बिस्तर पर उनके पांव बिखरे पड़े थे। कैमरा पांव पर था। वॉयस ओवर कहता है कि पांव पर ही फिदा हो गए थे रीमा के पति। शादी कर ली। अब चाहते हैं कि रीमा संगीत की दुनिया में नाम करे। अपने संबंधों की निजता को लेकर सार्वजनिक होने का मौका अपनी बोली में जितना मिलता है उतना किसी में नहीं। रीमा खुलने लगती हैं। पहली बार वैसे कपड़ो में मंच पर हैं, जो शायद उनके पहनावा का हिस्सा न होगा। लेकिन जैसे ही माइक हाथ में दी जाती है...उनका सुर भोजपुरी के शब्दों को स्मृतियों की ऐसी दुनिया में ले जाता है, जहां से लौटने के लिए भोजपुरी प्रदेश के लोग तीन सौ साल से बेकरार है। नौकरी ने हम सबसे कितना छीना है। हमारे सारे गानों में, कलकत्ता, मॉरिशस, अफ्रीका, वेस्ट इंडीज़, न जाने कितने प्रदेश और कितने मुल्क आते जाते रहते हैं। विस्थापन की सतत प्रक्रिया में रहने वाले भोजपुरी समाज को एक लिंक मिल गया है। महुआ टीवी का।
रीमा गा रही हैँ। छुट्टी ले कर घरे आईं तनि रहीं बलम जी। कुछ इसी तरह के बोल हैं। छुट्टी आने की बेकरारी और उसका इंतज़ार जितना भोजपुरी बोलने वाली औरतों ने किया है उतना शायद ही किसी भाषा बोली की औरतों ने झेला होगा। संगीत और शब्द की मिठास से इतना अच्छा माहौल बनता चला गया कि चैनल बदला ही नहीं गया। इसके तुरंत बाद जो संवाद होता है वो काफी बोल्ड हो जाता है। भोजपुरी समाज के उस हिस्से से टकराने लगता है कि जो रिश्तों को जात-पात के चश्मे से बिना देख ही नहीं सकता।
मैं सिर्फ प्रेम करने वाला पति नहीं हूं। संगीत में रीमा को सम्मान दिला कर रहूंगा। रीमा मुझसे कम जात की है। आज तक मैं उसे अपनी मौसी के अलावा किसी और रिश्तेदार के घर नहीं ले जा सका। उसे सम्मान नहीं दिला सका। रीमा के पति के ये अल्फाज़ टीवी से चिपके हुए भोजपुरिया क्लास को झकझोरने लगे। भावुक माहौल में एक पति समाज की बेहूदगी के आगे अपनी ही नाकामी स्वीकार कर रहा है। सुर संग्राम का मंच एक ऐसा आईना में बदलता है जिसमें दो चेहरे दिखने लगते हैं। एक पुराना और एक नया। नया चेहरा वो है जिसमें आज हम अपने संबंधों को लेकर सार्वजनिक तौर पर बात करने की हिम्मत दिखाने लगे हैं।
बीच बीच में मऊनाथ भंजन के चंदन-नंदन के गीत लाजवाब थे। मज़ा आ गया। गोपालगंज की लड़की ने भी खूब गाया। हमका हऊ चाहीं...हमका हऊ चाहीं और मिस्ड कॉल दे तारू...किस देबू का हो टाइप के तीनपतिया गाने नहीं हैं। सुर संग्राम में भोजपुरी के अच्छे गानों को जगह मिल रही है। पता चल रहा है कि संगीत को लेकर हमारे मां बाप कितना संघर्ष कर रहे हैं। भोजपुरी समाज में तमाम संस्कारों के गीत हैं। जिधर देखिये कोई गाता हुआ चला जा रहा है। मेरी बहनें कॉपी में गीत लिखती थीं। कहीं शादी में जाती थीं तो वहां से गीत बटोर लाती थीं। गीतों के ज़रिये भोजपुरी समाज आपस में बात करता रहा है। अब एक चैनल आया है तो उम्मीद की जानी चाहिए कि वो पेशेवर होगा। ईमानदार होगा, ठेकेदार नहीं बनेगा।
सुर-संग्राम में कई मौके आए, जब मैं भावुक हो गया। आंखे छलक गईं। लोगों को फोन करने लगा कि देखो न इस चैनल को। शानदार प्रोग्राम आ रहा है। भोजपुरी ही मेरी मातृभाषा है। जब हम गांव से पटना आ गए तो हिंदी बोलते बोलते दांत बजने लगते थे। धीरे धीरे आदत होने लगी। गांव जाते थे तो हिंदी बोलने लगे। बड़ी अम्मा कहने लगती थी कि बड़का अइले अंग्रेज़ी बोले वाला। अंग्रेजी कम भांज ए बबुआ। हमने हिंदी को अंग्रेजी समझ कर सीख लिया, शायद इसीलिए अंग्रेज़ी सीख ही नहीं पाए। पहली बार मेरे दोस्त ने गंगा के किनारे वॉकमैन पर मैडोना या किसी का गाना सुनाया तो घबरा गया। सहम गया कि बाप रे कितने बड़े विद्वान होते होंगे। अंग्रेज़ी में गाना भी होता है। मेरी बात सुनकर अविनाश हंसने लगा था।
हिंदी ने इतने सालों में हमसे काफी भोजपुरी छीन ली है। बहुत सारे शब्दों को हटा कर अपने शब्द रख दिये हैं। अच्छा ही है कि दो भाषाएं आती हैं लेकिन दोनों समान रूप से नहीं आतीं, इसका कभी कभी अफसोस रहता है। कितना बदलता रहे कोई। और बदलने की परिभाषा में पुराने को खत्म हो जाना ही क्यों हैं। पुराना भी रहे और उसमें नया जुड़ जाये तो क्या उसे बदलना नहीं कहेंगे। पता नहीं।
कुछ साल पहले जब भोजपुरी पर स्पेशल रिपोर्ट बना रहा था तो इतना आनंद आया कि पूछिये मत। बहुत मन कर रहा था कि एक पीटूसी यानी रिपोर्टर संवाद में भोजपुरी बोल ही दूं। महुआ के रिपोर्टर जब भोजपुरी में साइन ऑफ करते हैं तो घोर जलन होती है। अच्छा लगता है। अपनी भाषा कभी कभी क्षेत्रिय बना ही देती है। अपनी बेटी को बांग्ला, हिंदी और फ्रेच( नाना सीखाते हैं) के बाद भोजपुरी के शब्द सीखाते रहता हूं। अंग्रेज़ी का नंबर बाद में आएगा। सरदार पटेल एक ऐसा स्कूल है जहां भोजपुरी को लेकर कोई दुराग्रह नहीं है। बल्कि जब पिछले साल सालाना जलसा हुआ तो नर्सरी के बच्चों ने भोजपुरी में गाना गया। मज़ा आ गया था। मेरी बेटी खुश हो गई और टीचर को बोली कि मेरे पापा भोजपुरी बोलते हैं।
बहरहाल रविवार की रात एक घंटे तक घोर भावुक हो गया था। हम और मां बहुत खुश थे। घनबाद से भाईसाहब ने फोन कर मां से कहा था कि महुआ ही देखा करो। मां घबरा गई कि भोजपुरी में चैनल आता है। कभी पूरा चैनल देखूंगा। एक ही बात कि चिंता रहती है कि कहीं महुआ भौंडा न हो जाए। लेकिन बिंदास और बोल्ड तो होना ही चाहिए, जैसा कि हमारा भोजपुरी समाज है।
10.30 या 11 बजे के आसपास 'पारा गरम' आता है...वो भी देखिए.....भोजपुरी को लेकर सारी भावुकता खत्म हो जाएगी..... आधे घंटे के शो में भड़काऊ गानों का वो 'जयमालाकरण' होता है कि पूछिए मत....
ReplyDelete'अब एक चैनल आया है तो उम्मीद की जानी चाहिए कि वो पेशेवर होगा। ईमानदार होगा, ठेकेदार नहीं बनेगा।'
ठेकेदार तो भरे पड़े हैं रवीश जी.....जामिया में
30 मिनट का टीवी प्रोडक्शन बनाया था....सारी मुश्किलों के बावजूद खालिस भोजपुरी में...इसी विस्थापन के थीम पर....भिखारी ठाकुर के बिदेसिया पर आधारित.....महुआ लेकर गया दिखाने कि एक्ज़क्यूटिव प्रोड्यूसर खुश होगा, शाबासी देगा....मगर, महाशय बोले कि सिखा तुम्हारी नज़र में कोई लड़की हो जो थोड़ा-बहुत भी भोजपुरी जानती हो तो उसको भेज दो....बाकी हम सिखा देंगे....तुम्हारा बाद में देखते है...अभी तो ऐसा कुछ नहीं है...तो, ऐसे लोग भी हैं...
लेकिन, बाद में महुआ न्यूज़ गया तो बहुत सुकून हुआ...मिट्टी से जुड़े लोग...भोजपुरी बोलने वाले, टीवी की बेहतरीन समझ रखने वाले....उनके साथ काम करने में बहुत मज़ा आया....
ओपी (ओमप्रकाश, महुआ न्यूज़ में मेरे सीनियर)जी, अंशुमान जी के साथ अक्सर टीवी पर हेडर में इस्तेमाल होने वाले शब्दों के प्रयोग पर बहस होती थी....किसी भले मानुस ने लिख दिया.....'युवक महतारी के मार दिहलस', या फिर कपरबत्थी, कूटाई जैसे शब्द देखकर हंसी आती थी....भोजपुरी का टीवी मानक तय होना चाहिए...
इस पर बहुत कुछ लिखना चाहता था....आपने लिख दिया तो मन मचल गया...विस्तार से फिर कभी....
सुंदर आलेख। और मजेदार भी-
ReplyDeleteहमने हिंदी को अंग्रेजी समझ कर सीख लिया, शायद इसीलिए अंग्रेज़ी सीख ही नहीं पाए।
महुआ के रिपोर्टर के भोजपुरी में पीटूसी से जब तक आप जैसे लोग जलन महसूस करते रहेंगे, समझे भोजपुरी का भला हो रहा होगा...
ReplyDeleteबढ़िया जानकारीपूर्ण आलेख...
Badhiya alekh hai...apki bhavnayen bhi apni jagah sahi hain.
ReplyDelete"Shabd-Shikhar" ki or par hamne Barish ke mausam ka mano ek package hi de rakha hai, kabhi gaur farmayen in lekhon par-
ReplyDeleteबारिश का मौसम और भुट्टा
मेघों को मनाने का अंदाज अपना-अपना
सावन के बहाने कजरी के बोल
Itne channel aane ke baad ab bhojpuri channel bhi aa hi gaya, acha hai, log chahe kuch bhi kahe ki 'bihari' bolta hai per shayad isiliye hi log laluji ko sunne ke liye aatur rehete hai ..... chalo isi bahane hum bhi thori bhojpuri seekh lenge....
ReplyDeleteअच्छा याद किया.
ReplyDeleteSach men bhojpuri samaaj ka aaina hai MAHUWA.
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
वाकई महुआ सिर्फ भोजपुरी भाषी लोगो को चैनल नहीं रहा, बल्कि अब ये अवधी, बुंदेलखंडी, मैथिली, मगही या यूं कहें कि हिंदी पट्टी में जितनी भी ग्रामीण भाषाएं और बोलियां हैं उन सबका चैनल बन गया है। इस हिसाब से इसके दर्शकों की संख्या तकरीबन 50 करोड़ है जिसे अभी डिस्ट्रीव्यूसन माफिया सबके घर तक जाने नहीं दे रहा हैं। मैं ऋषि के घर पर था उसका बुंदेलखंडी रसोईया अपना काम छोडकर महुआ देख रहा था। मेरी मां भी महुआ देखती है। महुआ जल्द ही मुख्यधारा के चैनलों के लिए खतरा बन जाएगा। मै बहुत जल्ह दूसरी भाषाओं में भी इस तरह के चैनल का उदय देख रहा हं। आखिरकार लगता है कि बोलियां और छोटी भाषाएं आडयो विजुअल मीडियम में ही अपना असितित्व बचा पाएगी। लिखने का प्रचलन तो बहुत तेजी से खत्म हो रहा है।
ReplyDeleteरवीश जी,
ReplyDeleteराउर भोजपुरी भाषा के ले के विचार अच्छा लागल। रउवा सब लोगन के अगर एही तरह से आपन भाषा के लेके अभिमान होई त एहमें कौनो शक नइखे की भोजपुरी विलुप्तप्राय त नहिए होई। राउर लेख अगर भोजपुरी में रहित तो अउरो नीमन लागत अउर रुउरा के इ जलन की रउरा भोजपुरी में पीटूसी नइखे दे पावेनी यहू कुछ हद तक दूर भईल रहत। बाकिर शायद समय के तकाजा भी यही रहल होखी। बुझाता राउर कलम से शनि देव के प्रकोप शांति हो ही गईल। जहां तक बात महुआ के बा त इ चैनल हमनी के अपना भाषा पर गर्व करे के मौका त दे ही रहल बा। महुआ के लाख लाख बधाई
बहुत नीक लिखलीं। लेकिन कब्बो-कब्बो फूहर-पातर देखावे लगाला। एकरे अलावां जोकरअई अइसन देखावाला कि बेइज्जती महसूस होले।
ReplyDeleteजइसे सुर संग्रामअ में देखीं। ऑडीशन वाले एपीसोड में एकदम ओरिजिनालिटी देखउलस। तनी एक रंगि-पोति के देखावत, थोड़अ स एडिट कई देत त ठीक रहत। खैर अनगढ़ता क भी आपन एक अलगअ टेस्ट होला।
मन के बात कही दिहनी.
ReplyDeleteRavish zee Mahua ki mithi khusboo jo apne bikheri hai woh achcha hai. mai Chandigarh mein hoon Aur yahan ke punjabi log bhi bade chao se is channel ko dhekhte hain. Apko dhanyabad.Mere Blog per bhi pedharein.
ReplyDeleteacha likha sirji
ReplyDeleteAAPAKA POST PADH KAR MAIN BHAI EMOTIONAL HO GAYA. ACHCHA LIKHA HAI AAPANE.
ReplyDeleteमेरी दादी कई ऐसे ठेठ शब्दों का प्रयोग करती थी जो मेरी माँ नहीं कर पायी और पत्नी उससे भी कम. क्या ये छीजत स्वाभाविक रूप से पीढीयों के अंतराल में होती आई है या इस सदी में ही रेत के हाथ से फिसल जाने जैसा कुछ है? पता नहीं पर लगता है मीठे पानी की ये धाराए तेजी से दुबली होकर हिंदी की महानदी में मिलती जा रही है.
ReplyDeleteये वाचाल बोलियाँ दादी- नानी के पास ही सहजता से बैठी दिखाई देती है. बहु और पोते के पास आने पर इनमे दयनीय सकुचाहट आ गयी है.
रवीश जी, महुआ की शराब के बारे में पहले सुना करते थे...पहली बार इस छोटे से सफेद फूल को देखने का सौभाग्य कोई बीस वर्ष पहले कोंडागांव, बस्तर में, 'गाँव-बूढा' के घर, देखने को मिला...और स्वाद चखने को भी (बिना कोई नशे के :) इस कारण आपका सुंदर लेख पढ़ लगता है असली नशा केवल सुन कर ही प्राप्त हो सकता है...किसी पुराण में भी पढ़ा था कि आदमी पहले सुन कर ही तृप्ति प्राप्त कर लेता था, किन्तु दानवों ने इस मानव इन्द्री को भी अन्य इन्द्रियों समान बिगाड़ दिया और तब से मानव दुखी रहने लगा :)
ReplyDeleteओह उमड़ती घुमड़ती भावनाएं !
ReplyDeleteमहुआ के कुछ कार्यक्रमों को मैं भी पसंद करता हूँ। लेकिन सब नहीं। कुछ में फूहडता है।
ReplyDeleteहालांकि भोजपुरी मुझे बहुत ज्यादा समझ तो नहीं आती, लेकिन आपका लेख पढ़कर थोड़ी-थोड़ी समझने की कोशिश करूंगा। महुआ की जो पॉपुलेरिटी बढ़ी है, वो यकीनन इस बात की और इशारा करती है, कि अंग्रेज़ी को तवज्जो देने वाले लोग अब अपनी ज़ुबान को भी तवज्जो देने लगे हैं। हां निखिल भाई की बात से इत्तेफ़ाक रखता हूं.. पारा गरम प्रोग्राम वाकई देखने लायक नहीं है।
ReplyDeleteएक दो बार देखा है महुआ, बहुत थोड़ा समझ आता है, क्योंकि भोजपुरी जानते नहीं हैं, लेकिन इतना तय है कि भाषा में मिठास है। फिर अपनी भाषा से लगाव तो होता ही है। मेरे साथी मुझसे हमेशा कहते हैं कि कब तक अपनी खड़ी बोली बोलते रहोगे। साले तुम पर फिल्म ओमकारा का असर हुआ है, लेकिन वो ये नहीं समझते कि ओमकारा का निर्देशक उसी मिट्टी से है जिसमें मैं बड़ा हुआ हूं। ओमकारा की बोली मैं नहीं बोलता, बल्कि ओमकारा हमारी बोली में बनाई गई है।
ReplyDeleteRaam raam ravish baabu,
ReplyDeletehumesha ki tarah bahot khoob likha...sachmuch maja aa gaya padh kar.kitne din se aapki post ka intejar kar ra tha....agar thoda samay mila kare to thoda jaldi jaldi likha karieye humni k itna intejar na bhavela........
Ashish Kedia
ekbaat kehna bhool gaya..... aapse prerna lekar maine bhi kuch thoda bahot likhna shuru kiya hai...... agar kabhi fursat mile to jarur tasrif laiyega.....
ReplyDeleteaazaadpanchi.blogspot.com
aapki pratiksha mein
Ashish kedia
lekh bahut acchha baa par...
ReplyDeletesorry बुरा न मनिहss , जरा एकरो जरूर देखल करिहss please ...भारतीय समाज का वास्ते इंगरेजी में ..."pate naikhe chalat ki e arthshaastra par tarkshaastra key jeet ha kaa?"
भारत के कूटनीतिक उपलब्धि और भावी पीढी खातीर तोहफा...भावुक हो गया aah...
1)http://economictimes.indiatimes.com/PoliticsNation/Experts-seethe-over-Balochi-blunder/articleshow/4791531.cms
2)http://economictimes.indiatimes.com/PoliticsNation/Pakistan-media-praise-New-Delhi-Islamabad/articleshow/4791533.cms
3)http://economictimes.indiatimes.com/PoliticsNation/Rising-disquiet-in-Congress-over-PMs-Pak-line/articleshow/4791733.cms
4)http://economictimes.indiatimes.com/PoliticsNation/PM-faces-political-storm-over-NAM-concession/articleshow/4791748.cms
5)
http://economictimes.indiatimes.com/PoliticsNation/2611-queries-an-endless-exercise-PC/articleshow/4791763.cms
मिटटी की खुशबू आपको अपनी मातृभाषा परकुछ लिखने को मजबूर कर दी ! आप बधाई के पात्र है ! कुछ पैसा का जुगाड़ कीजिए और खुद का एक चैनल खोलिए - जब राजदीप खोल सकते हैं फिर आप और हम क्यों नहीं ! पैसा जहाँ से आता है वहां आपकी बहुत इज्जत है ! कब तक नौकरी कीजियेगा ?
ReplyDeleteमजेदार आलेख, जब से महुआ आया है भोजपुरी में कुछ जान आयी है वरना इसको खराब नजरो से देखा जाने लगा था
ReplyDeleteसुर संग्राम देख के मजा आ जाता है. इसबार औफिस से देर से आया तो शनिवार को नहीं देख पाया था. मन कुलबुला रहा था. पेपर देखने लगा कि कही रिपिट टेलीकास्ट मिल जाये. मन में इसे देखने की तीव्र ईच्छा थी. सो पुरी हो गई. अचानक से मिल गया. बडे अच्छे और सधे हुए गायक है. शब्दों की ऐसी मिठास की लगा पान में गुल्कन्द डालके खा रहे है. दो-तीन साल पहले जब घर रहता तो पिताजी ई.टीवी बिहार पे ऐसे ही प्रोग्राम देखते थे. उस समय उतना मजा नहीं आता था. फ़िसलल टाईप का गाना तो हर भाषा में लिखी जाती है. माकिर सुर संग्राम एक अच्छी कोशिश है. उम्मीद है ये स्तरहीन नहीं होगी. और एक बात भोजपुरी के लिये कुछ और लिखिये.
ReplyDeleteरबिश भैया इ आपन भाषा क त्रासदी या जवन अपने लोगन के योग्यता के कसौटी पर खरा न उतर पाइल.पर अब लागल मनोरन्जन जगत एकरा के अपने सही जगह पहुचाइ
ReplyDeleteaapka aalekh bahut achcha laga.. raveesh ji aap jis andaaj me likhte hai wah apne me laajvaab hai ... yahi karan hai aapki har post par pathako ki dilchaspi rahti hai
ReplyDeleteबाह रबीश भईया करेजा जूडा गइल राउर लेख पढिके............एही तरह जमवले रही........साधुवाद
ReplyDeleteWishing "Happy Icecream Day"...aj dher sari icecream khayi ki nahin.
ReplyDeleteSee my new Post on "Icecrem Day" at "Pakhi ki duniya"
रविश सर आपके पहल से मीडिया की लाज बच गयी एन0डी0टीवी0 पर खबड़ चलते ही दो दिनों से डेक्स पर बहस का मुद्दा बना पिंकी मामला हमारे चैनल पर भी चलने लगा और चला तो ऐसा चला की 44बुलेटिन तक यह खबड़ हेडलाईन बनी रही ।मुख्यमंत्री सचिवालय भी जागा और अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए कई टीम छापामारी कर रही हैं।वही पूरे मामले के जांच का जिम्मा सूबे के सख्त माने जाने वाले ए0डी0जी0पी0 वी0 नरायनन को दिया गया हैं।इस अभियान को जारी रखा जाए जब तक बिहार में वैश्या की मंडी चलाने वाली गीता देवी गिरफ्तार नही हो जाती ।हलाकि इसका बेटा गिरफ्तार हो गया हैं और दरभंगा के न्यायलय ने इसकी जमानत याचिका भी खारिज कर दी हैं।गीता देवी का नेटवर्क नेपाल,बंगलादेश,बंगाल,उत्तर प्रदेश और दिल्ली तक फैली हैं।महिने में दस पंद्रह लड़किया इसी तरह लाती हैं।बेगूसराय जिले के बखरी में स्थित इसके मंडी पर पुलिस ने जब छापामारी की तो सैकड़ो झोपड़ पट्टी के बीच एक आलीशान भवन गीता देवी का हैं ।खाने के लाले हैं लेकिन सभी झोपड़ पट्टी में खुबसुरत पंलग हैं जो बताने के लिए काफी हैं की आखिर यहां होता क्या हैं।इसे सामने लाने में आपके पहल की आवश्यकता हैं।
ReplyDeletesir,Pranam
ReplyDeleteAap ki quality ka jabab nahi hai. Aapko padhne se jyada sunne me maja aata hai. Rahi bat is lekh ki to abhi bhi mai ise padh kar aap ki hi aavaj ko graps kar raha tha. Aapki is sunder aur dil ko chhoni vali lekh ham bhojpuriya samaj ka shir aur uncha kar diya hai.
main bhi bhojpur ka wasi he hoon,but pahle padhai likhai aur ab kamai ke chakkar mein ab bhojpuri bhool chuka hoon..magar koi baat bhojpuri ki karta hai to ek connection ka ehsaas ho jata hai
ReplyDeleteAAPAKA POST ACHA HAI.
ReplyDeleteEk serial BAHUBALI BHI AATA HAI.ISE BHI LOG DEKH SAKTE HAI
बढ़िया लेख बा भिया| भोजपुरी नाम लेत ही बचपन याद आ जायेला, अब त अंग्रेजी से फुर्सते नइखे बाकी गाना ओना सुनके मन बहला लेहिला|
ReplyDeletebhaiya charan sparsh. hamra vishwas naikhey hot ki desh ke ek gambhir patrakar jo aaj bahut bara celebrity ho gailban wo aaj bhi hamar bhasha se etna pyar karelan. ravish bhaiya tahar safar bahut lamba ba. bhagwan hamar ravish bhaiya ke itna tariqi des ki tum hmi ke samaj ke icon ban ja. abhi bhi lagbhag ban gaeel bara.
ReplyDeleteRavish Ji,
ReplyDeleteU have oncegain expressed your connection with the soil of our land. Our culture is so diversified that u can smell it in every walk of our life. And to keep it afresh shows your great intimacy with it.
Thank U.
With regards,
Neelendu
Ravish ji,sur sangram main gaye jane wale lagbhag sabhi gane paramparik hote hain. yahi is programme ki mukhya baat hai.Jab main is programe ko sunta hoon to mujhe meri maa yaad aa jati hai. padhi likhi nahi nahi hone ke bavzood unhe loksangeet kee saree vidhaen aati thi jaise ki pachra,vivah,gari,bidai,kajri, sohar, uthan etc. Mujhe aisa prateet hota hai gaon main loksangeet ki yeh prajati lupt hotee ja rahee hai. Ise bachane ke liye mahua channel sadhuwad ka haqdar hai. Ant main apne sultanpur ki anamika ka bedesiya"purab purab hum bada din se sunat rahli, purab ke pania kharb ho bedesia"
ReplyDeleteRavish ji, is programme ne abhitak parambarikta bana rakhi hai.Is programe ko dekhne ke baad mujhe apnee maa ki yaad aa jati hai.Woh padhi likhi to nahi thee lekin gaon main gaye jane sare gane unhe yaad the. jaise ki pachra, vivah, bidai,kajri,sohar,uthan etc.Mujhe aisa mahsoos hota hai ki unkee mrityu ke baad gaon se woh prajati samapt hone lagee hai.Is kam main mahua channel ka prayas sarahneey hai. Ant main apnee sultanpur kee Anamika ka bidesia- Purab Purab hum bada din se sunat rahli, Purab ke pania kharab ho bidesia.
ReplyDeleteधीरे-धीरे सुर-संग्राम के मंच पर भी पार्शिएलिटी की झलक दिखाई दे रही है। खैर संगीत की बात है किसी को वही संगीत लुभाता है तो किसी के कानों को लगता है कि सुर से भटक गया है। क्या कहूं। बात बिल्कुल सही है कि महकती मिट्टी और सिसकती बोलियां दूर बैठे परदेसियों तक पहुंच रही है...लेकिन न जाने क्यों टीआरपी एक ऐसी भूख बन गई है कि लगता है(इस शो विशेष में) कि पर्दे पर इस शो में भी कंटेस्टेंट्स के निजी जीवन की नुमाइश कर उनके लिए संवेदना बटोरी जा रही है...कभी कभी ऐसा लगता है। मैं इस शो को बराबर देखती हूं...कई बार लगता है कि वाहवाही का पात्र वो नहीं जिसके लिए की जा रही है। लेकिन हां इतना ज़रूर है कि इस मोड़ पर आकर ये बेचैनी ज़रूर है कि सिरमौर आखिर बनेगा कौन!गाजीपुर के मोहन का जो स्केल है उसे देखते हुए कभी लगता कि वही होंगे सिरमैर...लेकिन कभी-कभी लगता है अनामिका हो सकती है फिर कभी चश्मे वाली प्रिंयंका। मैं यही कहना चाहती हूं कि कंटेस्टेंट्स को कंटेंस्टेंट्स की तरह देखा जाए तो ही बढ़िय. उनकी निजी ज़िंदगी के ज़ख्मों और बारीकियों को बार-बार कुरेदना वाकई एक रिस्पॉन्सिबल शो नहीं कहला सकता। मिट्टी की महक हम तक पहुंचाए, विरह की पीड़ा समझाए...बस इतनी सी जिम्मेदारी ले ले ये शो।
ReplyDeletemere blogs me ek bhoojhpuri program he please use dekhai aor coment den .vichannel.blogspot.com
ReplyDeletemere balog par ek naya bhoj puri progarm aap dekhai
ReplyDeletemere balog para mera ek bhojhpuri serial aap use dekhai aor mujhai rah dikhaen
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