भाई बरसात है ही बड़ी अनप्रोडक्टिव। इसमें कोई कमाई ही नहीं होती। गांव में लोग सन की रस्सी बनाते हैं। या फिर चौपाल पर पूरा दिन गुजार देते हैं। ऐसे में तो किसी आधुनिक लड़की से बचे रहना ही भला है। आमदनी का कोई साधन नहीं होता चौमासे में। इसलिए मेले, ठेले और मॉल में घूमने वाली महबूबा से दूर ही भले। बड़ा मौज़ूं है।
तुम्हारी यादों में भींग चुका हूं
ReplyDeleteतुम आना इस बरसात के बाद
किस्सों में तेरी डूब चुका हूं
तुम आना इस बरसात के बाद
bahut dard hai
हमीं से आबाद है दिल्ली
ReplyDeleteहमीं से बर्बाद है दिल्ली
सही फ़रमाया है आपने....मेरे नजरिए से तो.मैं इस को चुनाव से जोड़कर देख रहा हूँ
लेकिन है तो जोरदार !
ReplyDeletegood ..to aap shayar bhi hain..keep it up :)
ReplyDeleteभाई बरसात है ही बड़ी अनप्रोडक्टिव। इसमें कोई कमाई ही नहीं होती। गांव में लोग सन की रस्सी बनाते हैं। या फिर चौपाल पर पूरा दिन गुजार देते हैं। ऐसे में तो किसी आधुनिक लड़की से बचे रहना ही भला है। आमदनी का कोई साधन नहीं होता चौमासे में। इसलिए मेले, ठेले और मॉल में घूमने वाली महबूबा से दूर ही भले। बड़ा मौज़ूं है।
ReplyDeleteहमीं से आबाद है दिल्ली
ReplyDeleteहमीं से बर्बाद है दिल्ली