नीतीश कुमार ने एऩडटीवी इंडिया से कहा है कि नरेंद्र मोदी को बिहार आने की ज़रूरत नहीं। बिहार में बीजेपी के कई बड़े नेता हैं जिनकी बदौलत एनडीए फलफूल रहा है। अब इस बात से सब खुश हो गए कि नीतीश बाबू सेकुलर हैं। समाजवादी के साथ एक एडिशनल बेनिफिट भी है इनके साथ कि भाई जी सेकुलरो हैं। जब गुजरात में दंगे हुए तो ममता बनर्जी ने वाजपेयी मंत्रिमंडल छोड़ दिया। नीतीश कुमार ने नहीं छोड़ा। वे आज तक एनडीए में बने हुए हैं। फरवरी २००५ के विधानसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी बिहार का एक फेरा लगा चुके थे। सिर्फ अक्तूबर के चुनावों से नरेंद्र मोदी को बिहार बदर कर रखा है। फ्राड नेता लोग और बुरबक सेकुलर लोग। मुसलमानों को भी ये नेता लोग अपने जैसा बुरबक बूझते हैं।
बिहार में बीजेपी किस तरह से नरेंद्र मोदी वाली बीजेपी से अलग है नीतीश बता देते तो अच्छा रहता और ये नरेंद्र मोदी,छद्म धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ दुकानदारी चलाते हैं। नीतीश से पूछते न कि क्या ये आपकी छद्म धर्मनिरपेक्षता नहीं है। मेरी ही पार्टी के साथ सरकार चलाते हैं और उसी के एक बड़े नेता से परहेज़ कर सेकुलर बन जाते हैं। क्या सेकुलर बनना इतना आसान है।
नरेंद्र और नीतीश में कोई दुश्मनी नहीं है। सिर्फ दूरी है। नरेंद्र कोसी बाढ़ के बाद राहत लेकर बिहार आने चाहते थे, नीतीश ने कहा मत आना। बट सामान भिजवा दो। सो नरेंद्र ने नीतीश के बिहार को थरिया लोटा ट्रेन से भिजवा दिया। बिहार के पीड़ित लोगों ने राहत सामग्री को सहर्ष स्वीकार भी किया। नीतीश की तरह अनादर नहीं किया।
अब सवाल यह है कि मुसलमानों का वोट ही लेना है तो नौटंकी क्यों करते हैं? बीजेपी के साथ मत रहिए न। क्या बीजेपी ने कहा है कि नरेंद्र मोदी हमारे नेता नहीं है। नरेंद्र मोदी तो सबसे महत्वपूर्ण नेता हैं। दरअसल इन्हीं सब बातों के कारण सेकुलर पोलिटिक्स और इसे स्यूडो बताकर चुनौती देने वाले नरेंद्र मोदी टाइप के संघी नेताओं का तेल हो रहा है। सब एक दूसरे से मिले हुए और एक दूसरे के लिए एडजस्ट करते रहते हैं। नीतीश ने मना कर दिया और ताकतवर और गुजरात का शेर कहलाने वाला नेता पतली गली से कट लिया। मुंह छुपा कर भाग लिये कहेंगे तो ज़्यादा अपमान हो जाएगा।
अब सवाल यह है कि जिस दिन नरेंद्र मोदी बीजेपी में आडवाणी की जगह लेंगे उस दिन क्या नीतीश बिहार बीजेपी को बाय बाय कर देंगे या फिर उसी दिन के लिए इस तरह के बयानों से बुनियाद डाल कर छोड़ दे रहे हैं ताकि बाद में इमारत बनायेंगे कि देखिये हम तो शुरूवे से मोदिया के खिलाफ रहे हैं। बिहारवा में घुसने ही नहीं दिये न ओकरा रे। मोदी कोई अछूत नहीं है। उनसे डर लगा है का। आने दीजिए। ये अलग बात है कि नमो भाई नीतीश भाई से डर गए। ऊपरे ऊपरे उड़ीसा से निकल लिए। पता नहीं हवाई मार्ग के रास्ते में बिहार पड़ता है कि नहीं।
सड़क बनाकर विकास विकास कह कर नीतीश भी सुविधानुसार सांप्रदायिक राजनीति के साथ एडजस्ट कर रहे हैं और सड़क बनाकर दंगों के बाद शान से मोदी खुलेआम राजनीति कर रहे हैं। विकास के बहाने सांप्रदायिकता का यह चेहरा देखना होगा।
इसीलिए मेरी राय में नरेंद्र मोदी को लेकर नौटंकी करने की ज़रूरत नहीं। उन्हें बिहार आना चाहिए। भाषण देना चाहिए। फिर बिहार की जनता तय कर ले,गुजरात की तरह कि किसके साथ रहना है। प्रतीकों की भी सीमा होती है। इसी के सहारे राजनीति बहुत दूर तक नहीं चलेगी। नीतीश मुख्यमंत्री हैं। रोड वोड बनवाना काम तो है ही, राजनीति की दिशा भी तय करना एक काम होता है। नाली खडंजा बिछवा कर कोई अहसान थोड़े कर रहे हैं। लालू ने बिहार को धंसा दिया वर्ना सांप्रदायिकता को सड़क का सहारा लेने का मौका ही नहीं मिलता। बिहार की पब्लिक वैसे ही अपने वोट से नरेंद्र मोदी को खदेड़ देती। इसलिए नीतीश जी नौटंकी मत कीजिए। हम भी आपके सड़क और कानून व्यवस्था ठीक करने के कायल हैं मगर तारीफ करने का मतलब नहीं कि कपार पर कूदने लगियेगा। भागिये इहां से त।
दुनिया के बुरबक सेकुलर एक दिन जग गए न भाई जी उसी रोड से भागना पड़ जाएगा जिसे बनवा रहे हैं। विकास किये हैं तो इसी पर टिके रहिए न। बिहार की पब्लिक आपका साथ देगी न नीतीश बाबू। नहीं किये हैं तो और बात है। तब तो इ ड्रामा कर लीजिए। हम का कर सकते हैं। बौद्धिक जुगाली के अलावा। एसी इंटेलेक्चुअल हूं। चुअल बानी आसमान से। तू बाड़ नूं ज़मीन में। सेकुलर। मोदी के रोकले रहिए। ढुके मत दिए बिहार में।
लालू के वरुण सम्बन्धी बयान पर भी कुछ लिख देते…, या सिर्फ़ नीतीश को गरियाने का ही पैसा मिला है? बिहार को गहरे गढ्ढे में धकेलने वाले "सेकुलरों" का गुणगान आप जैसा व्यक्ति ही कर सकता है… लगता है इस बार के चुनाव में आप गुजरात नहीं जा रहे? पिछली बार तो पूरी कोशिश कर लिये फ़िर भी… एक "मुस्लिम टीवी चैनल" में काम करते-करते आप भी पूरे "सेकुलर" हो गये लगते हैं…
ReplyDeleteमियां, सभी को आज़ादी है सोचने और कहने की, सो नीतीश कुमार ने भी वही किया। पहले गद्दी देखेंगे फिर मोदी को बुलाना है कि नहीं। आज़ाद तो सभी हैं जैसे कि आप भी, खाते-खाते कंकड़ आजाए तो कैसा लगता है, वैसा ही जैसे पूरे हिंदी आर्टिकल में किसी क्षेत्रिय भाषा का आ जाना और वो भी इस संदर्भ में कि समझना भी मुश्किल है।
ReplyDelete"दुनिया के बुरबक सेकुलर एक दिन जग गए न भाई जी उसी रोड से भागना पड़ जाएगा जिसे बनवा रहे हैं।"
ReplyDeleteये बात आपने सही कही ! बिहार के असली सेकुलर जग गए तो हमारे लालूजी और रबरी मैडम को तो उस उबड़ खाबड़ वाला रोड से ही भागना पड़ा था ! बिहार में सेकुलर और कमुनल कभी मुद्दा नहीं रहा है और ना रहेगा ! इसलिए नीतिश जी को सेकुलर के मुद्दे पर बेकार में आप घेर रहे हैं ! वैसे बिहार के कौन नेता सेकुलर हैं? भागलपुर का दंगा और उसमे शामिल लोग (जिनको सजा मिली) आपको याद ही होगा ! खाली सेकुलर का चोंगा पहन मोदी और अडवानी को गाली देने से कोई सेकुलर नहीं हो जाता है ! टी वि चैनल पर आपसे ऐसे मुद्दे पर ऐसे विचार सुनना महशुश होता है की वो आपकी नौकरी है और मज़बूरी हो सकती है ! लेकिन व्यक्तिगत ब्लॉग पर ऐसे विचार आपके व्यक्तित्व को उजागर करते हैं ! वैसे भाषा और शैली मुझे बहुत पसंद आयी !
जब से एक पत्रकार ने Bush पर जूता फेंका, तब से पत्रकार उसकी नक़ल कर नेताओं पर जूते फ़ेंक रहे हैं!
ReplyDeleteये क्या लिख दिया...महज़ आत्मसंतुष्टि या मजबूरी
ReplyDeleteLagta hai aap congress ke agent ho gaye hain
ReplyDeleteMahendra singh
बिहार का ग़लत डेवेलपमेंट हो रहा है. बिहार मे सेकूलरिस्म बहुत ज़रूरी है. क्योकि गुजरात तो एक डेवेलप स्टेट है ही बिहार का डेवेल्पोमेंट होकर
ReplyDeleteक्या होग.बिहर के सारे सेक्युलर मजदूर उसमे डॉक्टर और पत्रकार मजदूर भी शामिल है . देल्ही या पंजाब या मुंबई मे गाली सुनते है तो हमे
कितना अच्छा लगता है
इसलिए नीतीश ग़लत कर रहे है
रविश को बिहार का मुखामंत्री बनाया जाय सेकूलरिस्म के लिए
ekra kahal jala analysis. lekin lalu yadav ke upar bhi likhe ke jarut ba.
ReplyDeleteekra kahal jala analysis. lekin lalu yadav ke upar bhi likhe ke jarut ba.
ReplyDeleteLets keep aside the secular or non-secular argument...I am happy as long as the leader is doing some developmental work in his/her constituency. The other day I watched two parts of "Kings and Queens" on CNN-IBN featuring Sharad Pawar and Lalu. The part on Pawar talked about the development done by him in his constituency (and it really shows) and, on Lalu, talked about his mannerisms. Thats the difference. This post may sound off-tangent but what I want to say is if every leader(irrespective of his/her party) thinks of development of his region and works on it, lets appreciate it and high-light it. Let his/her initiatives reach people, the positive pressure from media might help them seriously thinking about doing good to society. Doesn't matter what I think of BJP as a party but that should not discourage me to appreciate Nitin Gadkari's "Kaya-palat" of Nagpur( I was in India at that time and I know what he's done for Nagpur...things might have changed now). If media can hammer cast-religion based stories 24*7 why not hammer what good leaders did or did not? Lets make them answerable for the developmental work they've/havn't done for their constituencies. Its really not that difficult if media decides to put positive-pressure on our leaders...I know its a slow process but it surely has potential of yielding positive results. Lets get over the negative journalism. I don't want to end my post saying "may be I am day-dreaming...is desh mein aisaa kuchh nahi honewala." Why not give it a try?
ReplyDeleteरवीश भाई...ज़्यादा तारीफ़ करूंगा तो लोग कहेंगे तेल लगा रहा है रवीश जी को...पर चापलूस कहलाने का ख़तरा झेलते हुए भी उतनी तारीफ़ करना ज़रूरी समझ रहा हूं, जितना करना मेरे अंदर बची-खुची ईमानदारी को ज़िंदा रखने के लिए अहम है...। सबसे पहले नितीश राज जी की टिप्पणी से असहमति जताऊंगा...क्षेत्रीय भाषा (या बोली) कभी हिंदी के लिए कंकड़ का काम नहीं करती. वैसे भी, हिंदी अपने में शुद्धतर या मौलिक नहीं है...ये भी खड़ी बोली ही तो है...तमाम आंचलिक शब्दों और परदेसी-आयातित शब्दावली को मिलाकर ही हिंदी का स्वरूप बना है...मेरा ज्ञान तो यही कहता है, जानकारों की राय वे जानें. दूसरी बात...सुरेश जी...रवीश जी जब ये कहते हैं--भागिये इहां से त। तो वो अपनी बात, अपना अंदाज़ और अपनी त्वरा का प्रदर्शन करते हैं...उन पर पैसा मिला है और एनडीटीवी को मुस्लिम टीवी चैनल कहना आप ही बताइए कितना नैतिक और सही है...ख़ैर, जिस तरह कुछ भी कहने के लिए आप आज़ाद हैं, मेरी समझ में रवीश जी या फिर कोई और भी उतना ही स्वतंत्र है. इस आलेख में व्यक्त विचारों से मैं पूरी तरह सहमत हूं, ऐसा भी नहीं है. मैं स्वयं नरेंद्र मोदी को पसंद करता हूं, लेकिन नीतीश जी का ...डिरामा...खुलकर सामने आना ही चाहिए, इसमें कोई बुराई नहीं है और ऐसा करके रवीश कुमार ने कोई जघन्य जैसा अपराध नहीं कर दिया है, जो उन्हें कांग्रेस का एजेंट और पता नहीं क्या-क्या कहने को सारे धार्मिकता के कर्णधार खड़े हो गए हैं. (रवीश जी...क्षमा करेंगे, इन आरोपों को एक बार फिर उद्धृत करके मैं भी शायद ठीक नहीं कर रहा)
ReplyDeleteबात कांटीन्यू.....
वैसे भी...सेकुलर होने की परिभाषा भाईलोग क्या समझ रहे हैं. क्या सुबह घर में जागकर तुलसी के बिरवे में पानी देने वाला सेकुलर नहीं हो सकता. यहां बहस करने की ना तो जगह है और ना ही मूड लेकिन रवीश जी की मंशा समझनी ज्यादा ज़रूरी थी, उन पर आरोप लगाने की जगह. मुझे पता है कि अब मुझे गालियों की बौछार सुनने को मिलने वाली है, लेकिन बिहार को विकास के रास्ते पर ले जाने की कोशिश करने वाले नीतीश को सचमुच डेवलपमेंट के ज़रिए ही अपने लिए कुर्सी पक्की करने की कोशिश में जुटना चाहिए, तमाम तरह की नौटंकियों के सहारे नहीं...नहीं तो रवीश जी की आशंका सच साबित हो जाएगी कि....या फिर उसी दिन के लिए इस तरह के बयानों से बुनियाद डाल कर छोड़ दे रहे हैं ताकि बाद में इमारत बनायेंगे कि देखिये हम तो शुरूवे से मोदिया के खिलाफ रहे हैं।
सुंदर, फ्लो-पूर्ण भाषा और एकदम ईमानदारी और निर्भीकता के साथ अपनी बात कहने के लिए रवीश जी को मैं पर्सनली...(फ़िलहाल, टिप्पणी लिखने तक बिना किसी स्वार्थ के भी) बधाई दूंगा और नाराज़गी के एक्स्ट्रीम का बिना धैर्य के प्रदर्शन करने वाले टिप्पणीकार भाइयों को थोड़ी सहजता और संयम दिखाने की अपील भी करूंगा. आप सबसे बुद्धि और वय में छोटा हूं. यदि मेरी बात भी कहीं शालीनता के बाहर लग जाए, तो माफ़ कीजिएगा...क्षमा बड़ेन को चाहिए, छोटन को उत्पात.
chandiduttshukla@gmail.com
www.chauraha1.blogspot.com
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ReplyDeleteभैया नमस्कार।जी,सर आदि नहीं ऴिखूँगा,आपका आदेश मानकर।आज आपके कई ब्ऴाग पढे। मज़ा आ गया।
ReplyDeleteचण्डीदत्त शुक्ल ji ki baat se sehmat hote hue नितीश राज ji ki tippani se main bhi asehmat hoon....
ReplyDeleteविद्वान चिपलूनकर जी की भले ही कई बातें कड़वी सच हों ,पर उनकी बार-बार सारे मुसलामानों को एक ही भीड़ में ठेल देने की चेष्टा कहीं भारत की विघटन की नीव न मज़बूत कर रही हो.इनकी बात बात पर हिन्दू-मुसलमान वाली हरकत और कटुता का वृहतीकरण अच्छों को भी बुरा बनने के लिए प्रेरित करने वाली है .
ReplyDeleteकिसी ने कहा ही है कि भगवा अतिवादी बुद्धिमान भले ही हों पर अदूरदर्शी भविष्यद्रष्टा और अकुशल रणनीतिकार होते हैं .इनकी एक हाथ की तलवार पाकिस्तान को चीरने के लिए होती है तो दूसरी भारत को दो फाड़ कर "मज़बूत" करती रहती है .ये सिर्फ भूत को सुधारने-पलटने की कोशिश में में मशगूल हो देश का वर्तमान और भविष्य को नज़रंदाज़ कर रहे हैं .
और रवीश जी पता नहीं आज कल सारे न्यूज़ का धंधा करने वाले लोग किसी ख़ास राजनैतिक दल के मीडिया पार्टनर नज़र आने लगे हैं.खैर आपके एक तरफ वाली पारखी सेकुलर आँख के साम्प्रदायिक दृष्टिकोण की प्रशंशा करता हूँ जिसने बिहार को पटरी पर लाने वाले नीतिश के व्यहार में बीजेपी का सांप्रदायिक इन्फेक्शन डाईग्नोस कर लिया . आपकी दूसरी बंद आँख से काला बुरका और लादेनी हमशक्ल लेकर घूमने और नुमाइश करने वाले बिहार -विध्वंसी नेताओं पर दृष्टिपात की अपेक्षा है.
साथ ही यह भी जानना चाहूंगा कि आपकी सेकुलर दृष्टि, बटला हाउस के एनकाउंटर में शहीद हुए इंसपेक्टर मोहन चंद शर्मा की शहादत पर शंका और सवाल उठाने वाली पार्टी से गठजोड़ करने वाली सज्जन और टाईटलर की "धर्मनिरपेक्ष" कांग्रेस पार्टी में किस प्रकार का इन्फेक्शन देखती हैं ?
पहले चर्चा होती थीं गंगा तट पर
ReplyDeleteऔर आम आदमी तक
पहुँच जाती थीं उनकी ही भाषा में.
अब होती हैं ब्लोग्स पर
और युद्ध होता है भाषा पर:)
आईने का दूसरा रूप भी सामने आना ही चाहिए, साथ ही टिप्पणियों की भाषा भी संतुलित होनी चाहिए. यह ब्लौगिंग है राजनीति नहीं. गूगल पर देखा 'नई सड़क' पर 1,59,000 सर्च हो चुकी हैं. इस उपलब्धि के लिए भी बधाई.
ReplyDeleteब्लोग्स में यदि अपने अपने विचार समाचार पत्रों में प्रकाशित होने वाले विश्लेषण अदि से हट कर प्रस्तुत किये गए हों तो शायद वे उद्देश्य में सफल हों. नहीं तो समाचार पत्र की भांति ही शायद किसी निजी स्वार्थ के कारण सही दृष्टिकोण आम आदमी को नहीं मिल पायेगा. बस 'टाइम पास' भर ही रह जायेगा. सड़क पर भीड़ उसके सही होने का मापदंड नहीं होगा. मदारी भी भीड़ जमा कर लेता है :)
ReplyDelete'राजनेता' अब आम आदमी को या तो लाचार दीखते हैं या दुष्ट...
बाबा रामदेव को तो बोलने नहीं देते हैं। बात-बात पर उनपर बीजेपी की भाषा बोलने का आरोप लगाया जाता है। लग रहा है आप खुद सेकुलर होने के भ्रम में कांग्रेस की भाषा बोलने लग गए हैं।
ReplyDeleteरवीश जी आपकी बहुत अच्छी छवि है लोगों के बीच। भले ही आपने कह रखा है कि आपके इस ब्लॉग को आपके पेशे से जोड़ कर न देखा जाए लेकिन हकीकत ये है कि आप जैसे निजी जिंदगी में होते हैं, उसी का अक्स आपके काम में भी दिखाई देता है। इसलिए आपको इन बातों का ध्यान रखते हुए निष्पक्ष लिखना चाहिए। आप हमेशा एकतरफा लिखते हैं। हालांकि आपके लिखे पर सवाल उठाना मेरा मकसद नहीं। आप जो मन लिखिए लेकिन ऐसा भी कैसा संयोग कि आपकी हर पोस्ट बीजेपी और एनडीए के विपक्ष में होती है। क्यों नहीं आपको कांग्रेस के खेल में झोल दिखता है? लालू तो आपको विशेष पसंद हैं, सच्चर कमेटी के माध्यम से या धर्म निरपेक्षता के नाम पर जो कुछ भी कांग्रेस,आरजेडी,समाजवादी पार्टी और ढेरों नाम हैं....करते आ हैं....कर रहे हैं.....वो भी गलत है....
ReplyDeleteउन पर भी लिखिए ना जनाब.... क्यों ऐसा संयोग है कि इन विषयों को आपके टिपटिपयाने का सौभाग्या नहीं मिला। मालिक ये विषय इंतज़ार कर रहे हैं कि कब आपके ब्लॉग पर इनको जगह मिले।
वरुणवा को काहे बख्श दिये उसको भी तो नीतीश चाचा ने प्रचार के लिए बिहार आने से मना किया है....
ReplyDeleteBihar me vikas ho raha hai eesme kisi ko do rai nahin hai. ees vikas ki ghadi me bhi nitish ke sarkar ko sampradayeek kahna aur unke vikas ke mudde ka makhaul oodana achha nahin deta hai. Aapki baat anshatah satya bhi hai ki nitish jee Gud khaaye aur gulgule se parahej :). Jagarnath mishra evam bahut saare unake jaati ke log khafa hain Nitish se ki brahmin ko ek bhi seat nahin diye Nitish ne.
ReplyDeleteChiploonkar ji aap asehmat ho sakte hain kisi vichar se.. but aap ko kisi ko kisi ka agent kehne ka adhikar nahin banta.. hope u ll be more responible
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