इलेक्शन के आइटम स्लोगन

((जैसा कि मैंने कहा कि जब से पत्रकार होने का बोझ सर से उतर गया है मैं सस्ता शायर से होते हुए चीप टाइप स्लोगन राइटर भी बन रहा हूं। टीवी में काम करने से प्रतिभाओं को निखरने का बहुआयामी एभेन्यु मिलता है। गौर फरमाएं। फ्री है। इस्तमाल कर सकते हैं। सारा माल फ्री टू एयर है। अब आप कहेंगे कि क्या ये मेरा काम है? क्यों नहीं है? इलेक्शन में मजा लेने और उसका आनंद लेने का हक मुझे भी है। कृपया चीप स्लोगन की रेटिंग ज़रूर करें ))

पूरे बिहार के लिए कामन स्लोगन

१. बाबाजी न ठाकुर न हउवें इ बनिया
चलले ओबामा इलेक्शन लड़े पूर्णिया

२. बिहार का इ माइनस फैक्टर है
डेबलेपमेंट नहीं कास्ट फैक्टर है

३. जात-पात है खरपतवार
काटो इसको, बचाओ बिहार

४. इलेक्शन में अब यही काम बच गया है
लालू का एंटी था कांग्रेसी हो गया है


लालू के लिए स्लोगन

१. लालू पासवान का है रेल सेल
नीतीश को मिलके देंगे ठेल

२. देगा सबको तगड़ा फाइट
लालू करेगा सबको टाइट

३. आलू नहीं ये चालू है
लड़ने आया लालू है

४. हार्वड में जाकर आया है
लालू बदल कर आया है

५. एमबीए में होती पढ़ाई
लालू ने कैसे रेल चलाई

6. लालू में आया चेंज है
बढ़ गया इसका रेंज है

नीतीश के लिए

१. रोड बनाकर,लाइट लगाकर
नीतीश जीतेगा काम दिखाकर

२. चल बिहार तू छोड़ जात
नीतीश अपना ज़िंदाबाद

३. तू जात जात
मैं विकास विकास

४. नीतीश बाबू नीतीश बाबू
कहां गए चोर डाकू

कांग्रेसियों के लिए

१. राहुल बाबा का है ज़ोर
कांग्रेस पार्टी का है शोर

२. नीतीश का तगड़ा सेटिंग है
आडवाणी पीएम वेटिंग हैं

३. बचे खुचे हैं हम सारे
ज़ोर लगाके दम मारे

४. डूबते को तिनके का सहारा
कांग्रेस को राहुल का सहारा

17 comments:

  1. मेरे इस टिपण्णी को आप जरूर पढ़े
    नमस्ते सर जी ..
    आपकी रचनाओं का जवाब नहीं ..AAPNE बड़ी अच्छी तुकबंदी की है ...
    सही कहा है AAPNE टीवी में काम करने से थोडी सी रचनात्मकता तो आ ही जाती है
    और सही कहे तो सर आप प्रिंट से गए प्राणी है तो आपकी रचना मौलिक रहती है .नहीं तो जो खालिस टीवी से शुरुआते किये है वह तो खाली लाफ्फजिये मारते है एक ही शब्द को १० बार बोलकर २० मिनट का बुलेटिन खत्म कर देते है ...
    कुछ महिला एंकर को छोड़ दे (मुश्किल से २ या ३ )तो अधिकतर हिंदी चैनल पर महिला एंकरों की के ज्ञान का पता चल ही जता है .
    रविश जी अगर आप मेरी टिपण्णी पढ़े तो कृपया ये बताने का कष्ट करे की नए लोगो के लिए मीडिया में क्या इस्थिति है ,मै भी एक मीडिया का स्टुडेंट हूँ. जिसके सामने रोज़ ये बात आती है की मंदी की वजह से मीडिया में नए लोगो के लिए कोई जगह नहीं है ..
    आब तो पत्रकार बन्ने की हसरत छोड़ ही देनी चाहिए .क्योकि अब मीडिया मजदूरों की जरूरत है पत्रकारों की नहीं ..कही भी बायोडाटा देने पर दो बाते पूछी जाती है की इसके पहले कही काम किया की नहीं अगर नहीं तो हमारे यहाँ कोई जगह नहीं ..दूसरा की किसके रेफरेंस से आये हो ...
    आब ये बताइए की जब कोई नए लोगो को रखेगा ही नहीं तो काम का अनुभव कहा से प्राप्त होगा..और फिर सबके पास तो रेफरेंस होता नहीं है ..सर दरअसल बात ये है की पूरी मीडिया को कुछ लोगो ने कैप्चर कर लिया है जो दुसरो को आगे बढ़ने का मौका नहीं देते है.रविश जी आप इतने वर्षी से पत्रकारिता में है आप सच बताइयेगा पूरी ईमानदारी से जो लोग मीडिया में आने का सपना देख रहे है उन्हें कितनी सावधानी बरतनी चाहिए क्या उन्हें किसी दुसरे विकल्प पर भी विचार करना चाहिए ..वास्तविकता सबको पहचाननी चाहिए क्योकि सभी विनोद दुआ और रविश कुमार और बरखा दत्त नहीं बन सकते ...
    मेरे इन प्रश्नों का उत्तर आप जरूर देंगे मै आशा करता हूँ.
    विवेक राय
    एक मीडिया विद्यार्थी ..

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  2. चीप स्लोगन का कोई रेट नहीं होता। अनमोल की तरह यह भी 'अनरेटेबल' होता है। बूझ रहे हैं ना !

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  3. sirji dhyan denge
    slogan likh kar kab tak kam chalayenge
    thodi masti, thodi shayari
    ab blog par kya nahi rahi waisi bekarari
    acha raha slogan jan kar
    nitish aur laloo ko
    pahchan kar

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  4. एक अप्रैल की शुभकामनाओं के साथ

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  5. एनडीटीवी पर पिछले दिनो कई शायर देखने को मिले थे.. एक बडे शायर दुआ साहब भी हैं, उनका प्रभाव है क्या रविश बाबु? :)

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  6. खूब स्लोगन्स लिखे हैं आपने! चनावों में जरुर इस्तेमाल होने चाहिए ये.

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  7. ये बढिया है, अब स्लोगन राइटर भी

    लेकिन स्लोगन मस्त है, हंसे बिना नहीं रह सकते

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  8. इनका उपयोग हो गया तो जीत पक्की समझिये ....

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  9. मिजाज मस्त हो गया सर जी...

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  10. यह कापी राईट तो नहीं ?

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  11. विवेक राय

    आपके सवालों का एक ठोस उत्तर है कि टीवी में कोई भी पत्रकार नहीं है। हां कहते ज़रूर हैं कि पत्रकार हैं। कथाकार कह सकते हैं। अब तो टीवी पर अखबारों से खबर उठाई जाती है। नेताओं के यहां दौड़ दौड़ कर अगर पत्रकार होने का भ्रम पालना है तो आपकी मर्ज़ी। आप भी बता दीजिए कि पत्रकारिता कौन कर रहा है। मेरी राय में वो भी नहीं कर रहे हैं जो अपने आप को गंभीर या किसी किस्म का पत्रकार कहलाना पसंद करते हैं। इसमें एकाध मेहनती लोग होंगे जो पत्रकारिता करते होंगे लेकिन ज़्यादातर लोग रीसाइक्लिंग करते हैं। पुनर्उत्पादन करते हैं। उसमें भी क्रेडिट लेते चलते हैं कि देखो मैं कितना काम कर रहा हूं। सूचना जुटाना और खबर लाने में फर्क है।

    रही बात कुछ लोगों के कब्जा करने की तो जवाब सिम्पल है। इन्हें भी नौकरी कर जीवन चलाना है।
    ये किसके लिए और क्यों सबकुछ छोड़ कर चलें जाएं। पत्रकारिता मिशन तो है नहीं। नौकरी है और नौकरी रिटायर होने तक की जाती है।

    अब रही नए लोगों की बात तो हां मौका मिलना चाहिए। लेकिन मौके बहुत कम हैं। जो अनुभव आपका है वही अनुभव कमोबेश सबका है। जब जगह नहीं होगी तब वो कहेगा ही कि नहीं हो सकता।

    रही बात महिला एंकरों की योग्यता की तो इसमें मुझे परेशानी है। इनसे ज़्यादा खराब आपके पुरुष एंकर हैं। जिसमें एक मैं भी हूं। बोलने की तमीज नहीं। उनके पास भी वही दो चार वाक्य हैं। काबिलियत की बहुत ही खराब हालत है। इस टीवी को सिर्फ महिलाएं ही बचा सकती हैं। पुरुष सिर्फ उग्रता लायेंगे और उदंड और निर्लज्जता लायेंगे क्योंकि सामाजिक रुप से पुरुष इस कला में महिलाओं से बेहतर प्रशिक्षित हैं।

    चौथी बात। निराश मत हो। अपनी मिसाल खुद बनो। कोई भी पत्रकार अनुकरणीय नहीं है। अपवादों से नियम नहीं बनते। लगे रहो।

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  12. निराश मत हो। अपनी मिसाल खुद बनो। कोई भी पत्रकार अनुकरणीय नहीं है। अपवादों से नियम नहीं बनते। लगे रहो।

    bahut badhia kaha, sir. aaj kal har koi turant bada patrakar banna chahta hai. kisi ki safalta ke piche ka sangarsh koi nahi dekhna chahta.

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  13. प्रभात गोपाल जी ..
    अगर मीडिया से है तो समझते होंगे ..नहीं है तो मै आपसे एक बात कहना चाहूँगा ..पहली बात AAPNE शायद मेरे और रविश जी के प्रश्न और उत्तर को ठीक से नहीं पढ़ा .मैंने रविश जी से जो पूछा उन्होंने वह बताया .लेकिन AAPNE बिना समझे अपने विचार को प्रेषित कर दिया ...
    रही बात मेहनत करने की तो इस फिल्ड में वही टिक सकता है जो मेहनत करेगा .पहले मौका तो मिले और मौका कौन देगा? शायद आप जैसे बड़े लोग ही दे .जो एक वाक्य में कह देंगे की कोई मेहनत ही नहीं करना चाहता ..हम भी जानते है की आज प्रभाष जोशी ,रविश कुमार विनोद दुआ अरुण शौरी शेखेर गुप्ता आदि बड़े पत्रकार कई सालो की मेहनत के बाद अपने मुकाम पे है और लोग उन्हें जानते है ..जबकि देश में पचासों हज़ार लोग जो टीवी और अख़बार में कम करते है अपने को पत्रकार कहते है ...
    धन्यवाद...

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  14. ४. हार्वड में जाकर आया है
    लालू बदल कर आया है

    sab se beahtar hai

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  15. ravish ji aapne vivek rai ji k question ka ak tarkik ans dekar kafi rahat phunchane wala kaam kiya hai umeed hai issae hum jaise naye patrkaro ko kafi sambal milega
    patrkarita mai aane k baad log shayad thode bahut shyar ho jate hai shyad ye vikas k charno main se ak hai bus vivek ji ki baat pr ak sher kehna chanuga(mera nahi hai)

    "kyo ghabraata hai ki kya hoga
    kyo ghabraata hai ki kya hoga
    kuch nhi hoga to tajurba hoga"

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