आठ विचारक और एक एंकर
भन्न भन्न भन्नाते हैं
कौन बनेगा पीएम अबकी
बक बक बक जाते हैं
ज़रा ज़रा करते करते
जब सारे थक जाते हैं
वक्त ब्रेक का आ जाता है
साबुन तेल बिक जाते हैं
घंटा खाक नहीं मालूम इनको
बीच बीच में चिल्लाते हैं
हर चुनाव में वही चर्चा
चर्चा के पीछे लाखों खर्चा
कौन बनेगा प्रधानमंत्री सनम
क्या कर लोगों जान कर
कहते हैं सब बिन मुद्दे की मारामारी
इस चुनाव में पीएम की तैयारी
भन्न भन्न भन्नाते हैं
माइक लिए तनिक सनम जी
गांव गांव घूम आते हैं
पूछ पूछ कर सब सवाल
दे दे कर सब निहाल
अपने जवाबों पर इतराते हैं
फटीचर फटीचर फटीचर है
टीवी साला फटीचर है
अंग्रेजी हो या हिंदी हो या फिर गुजराती
घंटा खाक नहीं मालूम
झाड़े चले जाते हैं बोकराती
बंद करो अब टीवी को
टीवी साला खटाल है
दूध जितना का न बिकता
उससे बेसी गोबर का पहाड़ है
( कृपया मुझसे न कहें कि मैं क्या कर रहा हूं। मैं गोबर पाथूं या गोइठा ठोकूं, आप बस कविता पढ़िये)
कविता कहां है
ReplyDeleteयह तो आपने
पोल खोल दी है
अपनी भी
चैनलों की भी
आजके लिए
पोल खोलना ही
कविता है
कविता के साथ
यह अच्छा फजीता है
पर देखेंगे हम
पी एम की कुर्सी
अबके कौन जीता है
या जीतेगा ?
जो जीतेगा
गोबर के पहाड़
का मालिक
वही होगा।
बढ़िया है. मज़ा आ गया
ReplyDeleteसही कहा आपने....
ReplyDelete"आठ विचारक और एक एंकर
ReplyDeleteभन्न भन्न भन्नाते हैं
कौन बनेगा पीएम अबकी..."
'Satya' vachan hain
Manav jiwan ka satva hai
Yogiyon ne bhi asht-chakra
Aur Navgraha ka khel bataya
Anant manav jiwan chakra ko...
Aur yeh ki Yogiraj Krishna hi hein
Her ek ke bhitar bhi
Jis karan her koi
Khuda samajhta hai khud ko
Jab tak Parameshwr ko na paale
Ya parameshwar khud hi
'Ravan' ko 'Ram' se na milade
(Ya 'Kansa' ko 'Krishna' se:)
Lage raho
Hausla rakho:)
sahi kaha aapne
ReplyDeleteye kataksh kaash log samajh sake aur labh utha sake.
I thought you might be interested in reading this web page too: http://hindi.1.forumer.com/index.php?act=ST&f=3&t=3
ReplyDeleteबहुत दिनों, बल्कि सालों बाद बोकराती शब्द पढ़ना नसीब हुआ। पापा अक्सर कहा करते थे- आजकल बहुत बोकरात हो गया है।
ReplyDeleteकोई जीते, कोई हारे?
ReplyDeleteबदले जाजम
या बिछी रह जाए
या झाड़ पोंछ कर
फिर बिछ जाए
किस को है मतलब
इन सब से
मतलब बस इतना सा है
चूल्हा अपना जलता रह जाए
वोट बहुत दिया रामू ने
पीले झंडे वालों को
सपना देखा
बदलेगा कुछ तो
जीवन में, पर
कुछ ना बदला
वही किराए का
रिक्षा खींचा
हफ्ता वही दिया
ठोले को
फुटपाथी रसोई की
वही रूखी बाटी खाई
दाल वही बेस्वाद साथ
नींद न आई रातों
इक दिन भी
बिन थैली के साथ
कुछ ना बदला
ये था रामू का हाल
शामू से पूछा तो
थी वही कहानी
रंग बदला था
बस झण्डे का
बाकी सब कुछ
वैसा का वैसा था
कुछ ना बदला
बदल गए हैं
बस रामू शामू
नहीं देखते अब वे
झण्डों के रंगों को
करते हैं सवाल सीधा
क्या दोगे बाबू?
इंतजाम करोगे?
कितनी रातों की नींदों का?
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ReplyDeleteवाह! मेरा दिमाग भी गोबरों से भर पड़ा है ,, इन्ही चैनलों द्वारा प्रसारित गोबर होंगे :-/
ReplyDeleteद्विवेदी जी बहुत अच्छे
दूध पर तो मेनका जी ने माँसाहार का लेबल जड़ दिया है । गोबर के पहाड़ बड़े काम की चीज़ हैं । वैसे आप कंडे पाथने की ज़हमत क्यों उठाते हैं , यू ट्यूब और इंडिया टीवी के कोलेबरेशन से जो काम कर रहे हैं आप ,उसमें सीधे जैविक खाद का विकल्प खुला है ।
ReplyDeleteI object Raveesh! Say 'news channels'or better wud be 'Indian news channels'. The same Idiot box brings Discovery and NGC as well .
ReplyDeleteThe channels u r referring to may also be called 'tatti ke pahad'.
सही है आपने पहले ही स्पष्टीकरण दे दिया। शत प्रतिशत सहमत,
ReplyDeleteआलोचना का मौका नहीं मिल रहा इन दिनों
बहुत सुंदर। सचमुच पोल-खोल है आपका यह पोस्ट। बधाई।
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteइस बेबाक रचना के लिए बधाई खासकर तब जब आप खुद इसी प्रोफेशन से जुड़े हैं। एकदम सही चित्रण। कहते हैं कि-
ReplyDeleteऐसी वैसी बातों से तो अच्छा है खामोश रहो।
या फिर ऐसी बात करो जो खामोशी से अच्छी हो।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
आह, अपना शब्द मिल यहां- बेसी। पढ़ने को मिलात नहीं है यह शब्द। बस सब मुझसे यही कहते हैं बेसी स्टाइल मत झाड़ो....। अब आपेन भी कह दिया-
ReplyDeleteदूध जितना का न बिकता
उससे बेसी गोबर का पहाड़ है
ये टीवी वाले मेढ़े लड़वाते हैं जैसे पहले सांडों की लड़ाई होती थी। एक दूसरे को उकसा-उकसा कर तमाशा देखते हैं और ब्रेक में अपने नून तैल बेच लेते हैं। इस चौथे पाये ने तो सारे ही पाये उखाड़ दिए हैं बस खुद अंगद के पैर की तरह जम गए हैं। बढ़िया रचना है, शुभकामनाएं।
ReplyDeleteमेरे तो नाम में ही कुछ गोबर जैसा घुसा है। मैं इससे अलग कैसे होऊं ? पीछा ही नहीं छोड़ता !
ReplyDelete-संजय (गोबर) ग्रोवर
Bharat jo India bhi kahlata hai
ReplyDeleteArambh mein Jambudweep tha
Sambhavatah Sri Lanka saman
Jab sagar ke garbha se
Uttar disha mein janmaa
Gober ke pahard jaisa Himalaya
Ek parvat shrankhala
Hindukush se uttar-purva ke
Chhote chhote pahardon tak
Hajaron mile lambi
Jisne khalbali macha di hogi
Uttari Samudra ka khara jal
Bah chala dakshin ki ore
Vidhyachal ko langhte
Aur sama gaya Indian Ocean mein
Jise Agastya muni bhi kaha gaya
Jo ki Vindhya Parvat ko
Ruke rahne ka adesh de gaye
Kehkar ki phir lautenge wo!
Bardh raha hai jal-star
Sagar ka bhi
Himalaya adi ki barf pighalne se
Sambhavtah lakshan ho pralaya ke
Aur Agastya muni ke lautne ke...
Treta mein Sita maiyya
Dharti mein sama gayi thi
Kya gober ke pahar jaisa
Himalaya bhi usi prakar
Sama jayega dharti ke garbh mein?
टट्टी किसी सहिष्णु संस्कृति की तरह होती है। हर तरह की विचाराधाराओं का समा वेश उसमें संभव है। आप मुंह से दुनिया की बढ़िया से बढ़िया या घटिया से घटिया चीज़ खा लीजिए, निकलेगी वो टट्टी बनकर ही। इस तरह टट्टी सबको अपने में समाहित कर लेती है। टट्टी जैसी उदारता और परिपक्वता अन्य किसी विचारघारा में देखने को नहीं मिलती।
ReplyDeleteमेरे मामले को देखिए। 1992-93 में जब मैं अमर-उजाला में नारी-मुक्ति पर लिख रहा था, तो कोई अत्यंत विचारशील, तर्कशील, उदारतावादी पुरुष/महिला मेरे घर के बाहर वाले आंगन में मल से भरी पौलीथिन, अत्यंत सुसंस्कृत ढंग से फिंकवा दिया करता था। तब मुझे समझ में आया कि टट्टी एक उच्च-स्तरीय तर्क है। जो लोग कुतर्क से बचना चाहते हैं और फालतू लोगों के मुंह नहीं लगना चाहते वही इस तरह के परिष्कृत तरीके अपनाते है। हांलाकि उनकी इस विधि से मैं यह तो नहीं समझ पाता था कि उन्हें मेरे लेख का कौन सा हिस्सा पसंद नहीं आया। लेकिन मैं अंदाज़े लगाने की मानसिक स्थिति में तो पहुंच ही जाता था। कभी मैं यह मान बैठता कि उन्हें मेरा पूरा लेख ही नहीं पसंद आया तो कभी इस निष्कर्ष पर पहुंच जाता कि उनका असल संदेश यह है कि लिखते क्यों हो ? हमारी तरह टट्टी करो और ुफेंको ! टट्टी एक भर-पूरा विचार है, अच्छी-खासी टिप्पणी है, ताबड़-तोड़ तर्क है, नैसर्गिक निबंध है।
इसलिए मित्रों टट्टी को हल्के में मत लें। पीले में भी मत लें। इसके अभी और भी कई रंग हैं।
संजय ग्रोवर
पर यदि यह गोबर कण्डे के काम आ रहा है, तो अच्छा है। वैसे इस गोबर के बीच में कभी कभी सुगन्धित पुष्प के रूप में आपकी स्पेशल रिपोर्ट सुनने देखने को मिल जाती है। तब यह गोबर भी सार्थक लगने लगता है।
ReplyDeleteGrover ji ke 'Thaile mein tatti ('मल से भरी पौलीथिन') phenkne ne' ek school ke dinon ke purane joke ki yaad dila di...
ReplyDeleteEk sajjan Bharat ke ek gaon se seedhe New York pahunch gaye.
Wahan unhein ek paanch-sitara gagan-chumbi hotel ke sauveen manzil per rukne ka saubhagya prapt hua...
Subah jab tatti karne lage to apne gaon ke mukable sitaron se chamakte pot ki safai dekh unhone moje main hi tatti karne ka nirnaya le liya jise unhone socha khirdkee se bahar phenk denege - kaun dekhega! (Waise bhi yeh ham Bharatiyon ki ek adat bhi ban gayi hai ki ham apna ghar saaf ker pardosi ke ghar ke samne koorda-kachra dal dete hain)...
Jab natija samne aya to dar gaye:
chamakti diwaron mein 7-8 feet uper peele dhabbe pard gaye the!
Unhone room service ko jamadar ko bhejne ko kaha aur uske ane per usko bole ki 10 dollar denge un dhabbon ko mitane ke!
Karmchari bola wo 20 dollar dega agar wo batadein ki kaise sambhav hua itni unchayi per charon deevaron per tatti ker pana!
****
Ek satya katha ke anusar, jo hamne kisi se suni, azadi ke adhik varsh nahin huve the, ek tribal MP ko Dilli mein Ashoka Hotel mein thahraya gaya...
Us seedhe sadhe MP ne lautne per kisi hamare bujurg rishtedar ko bataya ki wo aise pot mein - jismein wo khana bhi kha sakta tha - tatti karne ka sahas nahin juta paya...aur lautne per hi wo nivrit hua:)
Bharat Mahan kehna hi hoga:)
बहुत बढिया ...
ReplyDeleteवाह गुरु मान गए
ReplyDeletewah wah..kya baat kahi..
ReplyDeleteGrover ji Hum jab bachche the to hamein ek aur 'tatti' ka pata chala.
ReplyDeleteDilli mein bahut garmi hoti thi, 'loo' chalti thi, to kisi ne Babuji ko sujah diya ki 'Khus-khus ki Tatti' lagalo. Hum sab bachche yeh sun muskuraye:)
Kintu jab 'Tatti' laga di gayi aur us per pani chhiradak diya gaya to anandit hue jab garam havaa, a/c jaisi, thandi thandi aur khus-khus itra jaisi khusbudar hava mein badal gayi:)
Barsat mein kintu use nikal dena parda..."Char dinon ki chandni/ Phir andhiyari raat," keh gaya koi 'gyani':(
Sujhav achcha tha. Thandi hava bhi mili jab tak pani tatti per sookh nahin jata, aur pani ka chhirdkav phir se karna pardta...kintu ek kahavat aur hai, "Tu bhi rani / Mein bhi rani / Kaun bharega pani?"
ReplyDeleteTatti ka thorda hi labh mila:(
Adhunik baccha, jisne 'desert cooler' dekha, ya ab shayad air conditioner ki hava mein - ghar mein aur (lal batti wali) car mein aur office mein bhi - pal raha ho, wo yadi 'haath ke pankhe' ko dekh muskurata ya kurdhta ho hamare poorvajon ke 'agyan' per, use shayad yeh na pata ho ki, "Privartan prakriti ka niyam hai," aur yeh ki hamari 'sunder prithvi' arambh mein kabhi 'aag ka gola' thi,
"Saas bhi kabhi bahu thi" saman.
Aur 'Hindu' bhi
Kabhi sabse adhik gyani the:)
'Kaal chakra' shayad ghoore, gobar ke bhi, din badal dene ki kshamta rakhta hai - jo ajke 'sceincedan' yani vaigyanik bhi yada kada kahte dikhai pardte hein kintu apne pracheen Yogiyon ki likhi baaton ko kahani jaise pardh jate hain, na ki usmein chhipe hue 'satya' athva 'satva' yani nichord ko samajhne ki:)
Aaj 'adhunik school' ka bachcha bhi America (paschim) ki nakal ke chakkar mein baithta hai a/c school mein aur bandook daagta hai apne hi saathi per - aur sab usko 'Gandhi' se paath lene ki salah dete hein (2 oct aur 30 jan ko:)...aur wo kahta hai ki kya mein bhi langoti aur lathi leker janmabhar ghoomoon aur ant mein goli bhi khaoon? Kisi ne kaha bhi hai ki 'might is right'!
Wo bhi koi 'patrakar' hi shayad rahe honge jinhone hajaron saal pehle 'Gita' likhi...
Aur maja yeh hai ki naujawan 'Varun' uski kasam khaata hai (jaise Bharat ke court mein her koi jhoot bolne se pehle khata dikhai deta hai filmon mein - ki wo kewal 'satya' hi bolega) aur uski 'young cousin sister', 'Priyanka', usko phir se Gita pardhne ka sujhav deti hai:)
Hamare 'gyani poorvaj' keh gaye ki is sansar mein manav ko drishta bhav se anand lena chahiye - Krishnaleela ka:)
Kintu 'natkhat Krishna' anand lene hi nahin deta:)
"Mein kambal ko laat maarta hoon/ Kintu kambal hi mujhe nahin chhordta!":)
Yadi 'brahmin', yani pardhe-likhe satyanveshi, ko khane aur khilane dono ka adhikar mana gaya to usi prakar Ravishji kavita sunane wale ko (jo jiwan ka sar prastut karne ka prayas karta hai) sun-ne ka adhikar bhi mana gaya hai (aur beech-beech mein daad bhi deneka:)
ReplyDeleteJis prakar favvare ka pani 'nozzle' athva muhane (?) se kachra/ gober hatane se uchhal marta hai, aur bhiga bhi deta hai, usi prakar shabd bhi nirantar bahne lagte hain...phir yadi koi dosh hai to wo kachra hatane wale ka hi hai:)
kya baat hai. antatah piste ham common man hi hain.
ReplyDeleteन लीपने का न छाबने का... पूरा का पूरा बिल्ली का... रविश जी हमारे निमाड़ में कहावत हैं साला गोबर हैं न लीपने का न छाबने का... पूरा का पूरा बिल्ली का गु हैं अब आप ही बताये ये कोन सा गोबर हैं .... और पी. एम. इन वेटिंग कोन सा गोबर हैं ये भी पता लगाने की जरुरत हैं?
ReplyDeleteDear, Rabish jee lambe samay se aapke blog par sarsari nigah thi par aaj haar kar comment dene ke liye majboor hain.Hum patrakar logon ke liye acchha hai ki blog ke Zariye apni bhadas nikaaleain.
ReplyDeleteaapka karwan tarrakki kare is duaa ke saath... Meerut se shiv sagar.
सर अपने बहुत अच्छा लिखा । मै आपके प्रोग्राम स्पेशल रिपोर्ट की नियमित दर्शक हूँ ।
ReplyDeleteमाफी चाहता हूं कि गोबर को टट्टी करके विषयांतर कर दिया। पर अब कर ही दिया है तो क्या इतनी चर्चा पर्याप्त है !?
ReplyDeleteहमाम में सभी नंगे हैं चाहे आप हों या हम..पता नहीं हर कविता के युग में कविता से खुद को कवि अलग कर क्यों देखता है
ReplyDeleteKavita hai ya Shabdon ko zabardasti Ghaseeta hai?
ReplyDeletePEACE-TV dekho Phulon ka GULDASTA hai!
chalo aapne itni to himmat ki ki apne dhandhe men rah kar uski kamjoriyon ko swikar kiya.
ReplyDeleteyeh bokrati shabd bihar ki sondhi khushbu ka ehsas karata hai. arse baad media men iska istemal hua, jo hum log prayah bachpan men istemal kiya karte the. bawjood is ke, samay nikal kar aapne char line likhi, is ke liye badhai.
anand singh, gorakhpur-9936266226
sir bahut badhia laga agli kavita kab tak ayegi
ReplyDeleteहकीक़त है....पर अब हम बता के भी क्या करेंगे....सोचता मैं भी यही हूं, पर भाई मेरे मंदी के दौर में रोज़ी-रोटी का भी सवाल है....
ReplyDeleteहर्ष रंजन
लोकतंत्र के महासागर में,
ReplyDeleteलेकर चले सब अपनी नाव...
कोई जहाज तो, तो कोई बेड़ा,
कोई लगता कश्ती दांव
जाति-धर्म को चप्पू थामों,
पड़े फिर कैसे लहरी घाव
लोकतंत्र के महासागर में...
छोटे बड़े सारे घाघ
भिड़ेंगे ले के एक ही राग...
हम सच्चे है-हम सच्चे है
दोनों लेंगे वादे साज...
घोटालों के बड़े बवंडर,
जामै फसते नेता अंदर
जे ऐसों सागर है भैय्या,
जामै बनें नेता खिवय्या...
सभी जुतें है करने राज
हर कोई चाहे पहने ताज
ताज-राज की जे लड़ाई
जामै जन की शामत आई
नेताअन एक ही काम
भीड़े जो जनता सुबह-शाम
उन्है मिलैगो पांच साल को आराम...
ये लोकतंत्र को सागर ...
भर लो पांच साल की गागर
पग मैं पड़ैगों कैसे कांकर
ले लो वोट घर-घर जाकर,
अपनी-अपनी नैय्या संभाले
सगरै नेता लगे रिझाने
वोट दे दो, वोट दे दो
रोज लगैगो वोट को भाव
लोकतंत्र के महासागर में
लेकर चले सब अपनी नाव...
नवीन कुमार 'रणवीर'
बात तीखी है मगर सच है .....
ReplyDeleteटीवी का ये ज़हर है या टीवी पर ये ज़हर है
लेकिन ज़नाब सच तो ये भी है की
इसी ज़हरीले समंदर के वाशिंदे हम भी है
खैर हम तो अभी आए है
सरकार आपने तो तमाम उम्र गुजर दी
फ़िर क्यों गोबर का पहाड़ बनाते है
अरे इन सियासी बंदरों को आप ही तो नचाते है
television ki dunia me atmashlagha ka jabardast daur chal raha hai aur sare channel apne tis mar khan reprters ko paroskar apni t r p badhane ki jugat me lage rahte hain. aise me apne nirmam atamalochana ki sateek banagi pesh ki hai. badhai.
ReplyDeletek k mishra
achchha hai,sachcha hai...par adha kachcha hai....aage bhi aisa hi kuchh aur apke blog par dekhne ki ichchha hai
ReplyDeleteबाकी सब ठीक है..
ReplyDeleteलेकिन ऊपर से निकल गया
समझ आते आते फिसल गया
बाकी सब ठीक है..लेकिन टीवी से खाकर ऊसे गोबर की संझा देकर यह क्या हो गया
बाकी सब ठीक है..लेकिन ऊपर से निकल गया
जय हो
wakai me aap ne lajawab likha hai. dhandhe me rahkar dhandhe ki bat ko ujagar karna himmat ki bat hai
ReplyDeleteअगर टी.वि इतनी ही बुरा है तो फिर आप वहा क्या कर रहे है...किसी की आलोचना करना से पहले अपने आप को बदले..आप भी तो आज कल वही कर रहे है...पहले ही दूसरो को गरिया देंते है ताकि कोई आप पर ऊँगली न उठा सके..और फिर यही करते है जो दुसरे करते है...पिछले दो महीने के अपने चैनल को देखे उस ने कोई कसार नहीं रखी है गोबर के पहाड़ बनने मे...
ReplyDeletesach kaha apne.lekin soche kitne sharm mein jee rahe hai ham.
ReplyDeleteajay
ye gobar kab tak dhoyenge ham.
ReplyDeletebhai ye gobar pathun goitha thonku wali baat badi jami. khalish maithli. hindi patti me ek to mardana hai.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteकसम से दद्दा मज़ा आ गईल ... गोबर पाथूं या गोइठा ठोकूं...
ReplyDeleteदादा... क्या करें आजकल तो गैस और माइक्रोवेव के ज़माने में गोबर पाथने वाले और गोइंठा ठोकने वाले कहाँ मिलते हैं? चमकते दमकते स्टूडियो में बैठ कर देश का हाल चाल लिखा और सुनाया जाता है. कल कर तो दिया था, प्रणव (रॉय) दादा ने इशारा NDTV 24X7 पर , अंग्रेजी अख़बार पढने और अंग्रेजी न्यूज़ चैनल देखने वालों को क्या खाक मालूम होगा, कि नरेगा क्या बला है... सामाजिक चूल्हे पर, थपेड़ों की फूँक से, वास्तविकता के गोइंठे पर पक कर,
अगर पत्रकार तैयार होते बात ही कुछ होती. अब तो पत्रकार रैंप पर कैट वाक कर के लॉन्च होते हैं ...
गोबर के गोइंठे पे पके माल का स्वाद और गर्मी दोनों लाजवाब होते थे, माइक्रोवेव के ज़माने में इसमें पका माल और इसमें पकी पत्रकारिता कब मुंह जलाकर सबकुछ बे-स्वाद कर दे कोई भरोसा नहीं ...
सादर
अनुराग
gobar path reporter bane,
ReplyDeletebane khabarinyo me veer.
gobarban rahit tv dikhlanye,
to bane ravish aap veer.
-kahiye-
sampurn gobar pathji maharaj ki jay
आठ विचारक और एक एंकर
ReplyDeleteभन्न भन्न भन्नाते हैं
भई बहुत खूब, मजा आ गया
So sweet of you, a man requires courage to have this tough view towards the work he does for his living-hood.
ReplyDelete