लीक सी पतली थी जब तुम
सदियों तक कुछ लोग चलते रहे
लीक से हटकर
चौड़ी होती चली गई होगी
अपने आप
बहुत दूर दूर तक निकले होंगे
सफ़र पर, सड़क तुम्हारे साथ
कितने रिश्तों की तुम डोर बनी
गांवों को गांवों से जोड़ा तुमने
फिर मुल्कों के कब्ज़े की बागडोर बनी
बादशाहों के हुक्म से बनने के दौर में तुम
सत्ता और ताकत की छोर बनी
इसी बीच
कहारों के कंधे पर बैठी बेटियां
ससुराल जाने के रास्ते
भींगाती रही तुम्हें अपने आंसुओं से
याद है जब तुम
कब्ज़े में रहकर ज़मींदारों के
कितनों को आने जाने से रोका करती थी
कितनी लड़ाई लड़ी है सबने
कि तुम सबकी हो
दरअसल, तुम जब तक अपने आप बनी
तुम सड़क थी
जब से सत्ता तुम्हें बनाने लगी
हर लीक को मिटाने लगी
अब तुम उसी के कब्ज़े में हो सड़क
कितने नाम, हुक्मरानों ने दिये तुमको
जीटी रोड से जीबी रोड
सिंगल रोड
फिर
वन वे रोड
उसके बाद
टोल रोड
हर योजनाओं का हिस्सा बनी रही
तुम्हें बनाने के नाम पर
कितनों ने घूस खाये, पीडब्ल्यूडी में
तुम खाने कमाने के दौर में भी
फोर लेन से गोल्डन क्वाड्रेंगल होती रही
अब तो तुम बीआरटी कोरिडोर कहलाती हो
अंबेडकर नगर से आईटीओ पहुंचने के रास्ते में
डिफेंस कॉलनी फ्लाईओवर पर उड़ने लगती हो
ओबेराय होटल से पुराना किला होते हुए
प्रगति मैदान तक
तुम सिर्फ किसी की योजना का नमूना हो
गलियां भी साथ छोड़ गईं हैं तुम्हारा
जगदेव पथ से तुम केनिन लेन होने लगी हो
नाम तक तय करने का अधिकार नहीं तुमको
अकबर रोड,औरंगजेब रोड से होते हुए
रिंग रोड होने तक,तुम अंसारी और मेहता हो जाती हो
मरने वाले और नेताओं के नाम चढ़ेंगे तुम पर
तुम कौन हो सड़क
लीक से हटकर, क्या अब भी हो सड़क
तोड़ लिया है नाता तुमने
पगडंडियों औऱ फुटपाथों से
डिवाइडर से अपनी मांग बना ली है
बालों को संवारती ज़ेबरा क्रासिंग से
बिंदी सजती है माथे पर तुम्हारे
लाल,पीली बत्तियों से
नीचे भीख मांगते बच्चे
तुम्हारी औलाद लगते हैं
सड़क
तुम सरकारी योजनाओं से निकलना छोड़ दो
फिर से बनने लगो अपने आप
पहले लीक
फिर लीक से हटकर
रवीश जी
ReplyDeleteउम्दा लिखते हैं आप, सोच और संवेदना की जड़ें गहरे तक ज़मीन से जुड़ी हैं। मुझे याद है एनडीटीवी पर सिंगल स्क्रीन थिएटर की स्पेशल स्टोरी...उफ...कमाल का विजुअल इफ़ेक्ट शब्दों में लाते हैं आप...कलम से कैमरे का काम...बहुत बधाई. कभी चौराहे (www.chauraha1.blogspot.com) पर भी आएं और अपना आशीष दें.
मैं भी सड़क हो रहा हूँ -शानदार श्लेशाभिव्यक्ति !
ReplyDeleteरवीश , प्रधानमंत्री भी सड़क हो गये हैं . योजना के रूप में. गाँव गया था. पुरानी सड़क चमचमा गयी और वह प्रधानमंत्री सड़क हो गयी //////
ReplyDeleteफ़ालो करें और नयी सरकारी नौकरियों की जानकारी प्राप्त करें:
ReplyDeleteसरकारी नौकरियाँ
बहुत ही उम्दा रचना .....सड़क और उससे से जुड़े वो हालात ...
ReplyDeleteमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
सड़क
ReplyDeleteतुम सरकारी योजनाओं से निकलना छोड़ दो
फिर से बनने लगो अपने आप
पहले लीक
फिर लीक से हटकर
बिल्कुल सही संदेश दिया है आपने.
Sadak ke liye dhara ka hona avasyak hai jo swayambhu hai - Gangadhar evam Chandrasehekhar adi Shiva!
ReplyDeleteबहुत अच्छा जी
ReplyDeleteसमयचक्र: चिठ्ठी चर्चा : चिठ्ठी लेकर आया हूँ कोई देख तो नही रहा है .
E Sadak
ReplyDeleteE Sadak Tu thi surabhit apsaraaon si patli
Thi jab tu pagdandiyo si kusumit taruni,
Yowankaal me bharne ke liye god me,
Aur dher Pathik sishuon ko aanchal dene
Ki khaatir kiya tune kayawistaar
Gali ban hoti gayi kai gaaon ki naate-ristedaar.
*----------------------------
adhikaaron ke wigrah ko dalit-sawarn Pooton ke
Jhelaa tumne apne inhi sukomal panjariyon par ,
Aur Bida leti siskan-bhari betiyon ke asrujal se
Bhiga aachal, Pasijaa hriday tera bhi drawit hokar.
*----------------------------------
Ab bhi aakarsit karti thi praayah
sabko Tumhaari ramani kaaya ,
ho bhale fate paridhaano me,hariyaali sringaaron me
chalaktaa rehta tha tumse ajar yovan ka lawanya.
*---------------------------------
Naalaayak bete kar naa sake tumhaara pratirakshan
tumhaara dushman banaa tumhaara hi aakarshan,
fir bhi jamindar, badsaahon to kabhi angrezon ke aage
beto ki praanbhikshuk ban karti rahi tum samarpan.
*---------------------------------
Aaj bhi Sabne kiyaa tumhaara dohan
-----------------------------------
Kutniyon ke haathon bik-bik kar na jaane kitne
Shilaon par kai naamo ke saath roj humbistar hoti rahi tum,
Chit kar aabhushit kiya na jane kitne bhrastachaari patito ne
tripti ke waaste,aur wiwash ho bich-bichhkar roti rahi tum.
---------------------------------
Ab kaafi badal gayi ho
Zebra se kanghi kar ,divider se maang sajaaye
Pasaanhriday le khadi ho Laal-hari bindiyaan lagaye.
Par bahut sundar lagti ho
sambhraant lagane lagi ho un galiyo-pagdandiyon se
jinse tumne muh mor liya hai,
gaon,dehaat,naate,rishtedar,un apne hi bachhon se
jinko tumne chor diya hai.
-------------------------------------------------
Aaj fir khadi ho tum saj-dhaj ke apne
binbaap ke bhikchuk bacchon ko kar kinaare,
par maa ab tum fir se bachpan ki pyari maa ho jaao
jaa reha hoon ab badalne mai samay ko isiliye.
----------------------------------
bachpan me mila Tumhaara aanchalaamrit
Ab mera paurush ban chukaa hai,
Maa tumhaara ye naajaayaz
Ab purushottam ban chukaa hai.
-----------------------------------
Vijaytilak laga Ab mujhe aashirwaad do maa
Baandh kafan sir par Apni aan par mar mitaney,
Jaa reha hoon mai un kalmuhe-bhrastaachaari baapon
Ki Biki aatmaaon ke khokhon ka sanhaar karney.
-----------------------------------
--ye aapke bhav hain,
भाई रवीश जी ,
ReplyDeleteलग रहा है इन दिनों पूरी तरह से आपके अन्दर बैठा कवि जग उठा है.तभी तो धडाधड कवितायें niकलती आ रही हैं सड़क के मध्यम से अपने देश ,समाज ,गली ,मुहल्लों के बदलते परिवेश ,
संस्कृति सभी को रेखांकित किया है .पूरी कविता बढ़िया है ,लेकिन दिल को छूने वाली पंक्तियाँ तो ये हैं ......
कितने रिश्तों की तुम डोर बनी
गांवों को गांवों से जोड़ा तुमने
फिर मुल्कों के कब्ज़े की बागडोर बनी
बादशाहों के हुक्म से बनने के दौर में तुम
सत्ता और ताकत की छोर बनी
इसी बीच
कहारों के कंधे पर बैठी बेटियां
ससुराल जाने के रास्ते
भींगाती रही तुम्हें अपने आंसुओं से
याद है जब तुम
कब्ज़े में रहकर ज़मींदारों के
कितनों को आने जाने से रोका करती थी
कितनी लड़ाई लड़ी है सबने ....
बधाई.
हेमंत कुमार
पगडंडी : कब बदलोगे ?
ReplyDeleteराही के पदचिन्हू की छाप , पगडंडी ही जाने ।
पक्की होके सड़क बने जब , किसी की छाप न पहचाने ।
जहाँ वो बोले मुडती जाए , राही राह बनाए रे ।
सड़क बनते ही धीट हो जाए , अपनी चाल चलाये रे ।
गाव गाव पगडंडी जोड़े , पर वो नक्शों से गायब ।
सड़कें जो नक्शों पे छापी थी , वो धरती पे ही थी कब ।
यही कहानी उपर जाती , इन्हें बनाने वालों मे ।
क्या पगडंडी , कोन सड़क है , यही कहानी इंसानों मे । ।
इसी बीच
ReplyDeleteकहारों के कंधे पर बैठी बेटियां
ससुराल जाने के रास्ते
भींगाती रही तुम्हें अपने आंसुओं से
याद है जब तुम
कब्ज़े में रहकर ज़मींदारों के
कितनों को आने जाने से रोका करती थी
कितनी लड़ाई लड़ी है सबने
कि तुम सबकी हो
दरअसल, तुम जब तक अपने आप बनी
रवीश जी बहुत ही कमाल का लिखते हैं आप.......बहुत बहुत बधाई...!!
हम हीन्दुस्तानीयो की ब्यथाये सडको पर पहुच गई.
ReplyDeleteबहुत िलन्क मार्गो का नीर्माण करवाया गया , पर जो
सपना बापु ने हमे दीखाया था हम वहा नही.
Khewali tak sadak nahi aati--Gyanendrapati ki ek kavita hai.Khewali 'sansad se sadak tak' ke kavi Dhumil ke gaon ka nam hai.
ReplyDeletePata nahi abhi waha tak sadak gayi ki nahi...! Kyoki waha nahi hai kisi mantri ka samdhiyana...
Baharhal,aap lage rahiye.
आप सड़क क्या गली मोहाल और न जाने किस किस पर क्या क्या लिख सकते हैं रविशजी एसा हैं आप की बात ही अलग हैं आपकी कलम में वो तासीर हैं की आप जिस पर भी लिखे वह नायब हो जाएगा
ReplyDeleteलीक से हटकर रचना प्रभु
ReplyDeleteशुभकामनाएं...
RAVEESH JEE,
ReplyDeleteSADAK KHUNEE BHEE HO CHUKEE HAI.YAH RAH DEKHATEE HAI TO JEENDGEE BHEE LE LATEE HAI. MEDIA KEE SADAK FEELVAKT KHUNEE HO CHUKEE HAI MANDEE KE IS DAUR MEIN. LAKEEN SAHAB APP CHAPEE RAHIYE SADAK SE SADAK TAK.
तुम कौन हो सड़क
ReplyDeleteलीक से हटकर, क्या अब भी हो सड़क
तोड़ लिया है नाता तुमने
पगडंडियों औऱ फुटपाथों से
डिवाइडर से अपनी मांग बना ली है
बालों को संवारती ज़ेबरा क्रासिंग से
बिंदी सजती है माथे पर तुम्हारे
लाल,पीली बत्तियों से
नीचे भीख मांगते बच्चे
तुम्हारी औलाद लगते हैं
सड़क
तुम सरकारी योजनाओं से निकलना छोड़ दो
फिर से बनने लगो अपने आप
पहले लीक
फिर लीक से हटकर
एसी अभिव्यक्ति शायद ही कहीं मिले। बधाइ रविशजी बहुत बहुत बधाइ। एक नइ पोस्ट के इंतेज़ार में।
तुम कौन हो सड़क
ReplyDeleteलीक से हटकर, क्या अब भी हो सड़क
तोड़ लिया है नाता तुमने
पगडंडियों औऱ फुटपाथों से
डिवाइडर से अपनी मांग बना ली है
बालों को संवारती ज़ेबरा क्रासिंग से
बिंदी सजती है माथे पर तुम्हारे
लाल,पीली बत्तियों से
नीचे भीख मांगते बच्चे
तुम्हारी औलाद लगते हैं
सड़क
तुम सरकारी योजनाओं से निकलना छोड़ दो
फिर से बनने लगो अपने आप
पहले लीक
फिर लीक से हटकर
एसी अभिव्यक्ति शायद ही कहीं मिले। बधाइ रविशजी बहुत बहुत बधाइ। एक नइ पोस्ट के इंतेज़ार में।
तुम कौन हो सड़क
ReplyDeleteलीक से हटकर, क्या अब भी हो सड़क
तोड़ लिया है नाता तुमने
पगडंडियों औऱ फुटपाथों से
डिवाइडर से अपनी मांग बना ली है
बालों को संवारती ज़ेबरा क्रासिंग से
बिंदी सजती है माथे पर तुम्हारे
लाल,पीली बत्तियों से
नीचे भीख मांगते बच्चे
तुम्हारी औलाद लगते हैं
सड़क
तुम सरकारी योजनाओं से निकलना छोड़ दो
फिर से बनने लगो अपने आप
पहले लीक
फिर लीक से हटकर
एसी अभिव्यक्ति शायद ही कहीं मिले। बधाइ रविशजी बहुत बहुत बधाइ। एक नइ पोस्ट के इंतेज़ार में।
ravish jee ki kalam se ab tak ki sarvsresht aur marmsparshi rachna.aap se aur bhi umeede hain .aaj anyaay ke khilaaf uth khade hone ke liye uttejit kar dene waali kavitaaon ki nitaant aawashyaktaa hai,desh ke khilaaf khatre kai hain aur unse ladne ki taiyaari to kya ikshaa shakti bhi nahi hai.rone kaa samay to kab kaa gaya kuwyawasthaa kaa shashakt wirodh karne kaa samay hai ye.
ReplyDeletebahut hi badhia likha hai Sir.aapke soch ke daayare ka koi jawab nahi.Mai MABJ ka student hu aur abhi NEWS 24 me internship kar raha hu.Kripya Margdarshan kare Sir..Om Prakash
ReplyDeleteगांव की पगडंडी को सड़क बनाकर फिर उस सड़क को शहर ले आए । शहर आकर उसके कितने नाम हो गए ..शानदार पेशकश है ।
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