अशोक चक्रधर जी के पांव में चक्कर लगे हैं। कविता से लेकर बबिता के पीछे पड़े हैं। अशोक चक्रधर जी अब ब्लॉगर बन चुके हैं। कविता कम अब ब्लॉग का पाठ ज़्यादा करने लगे हैं। आरंभ हो चुका है। समापन बाकी है। पहले पाठ में मुझे भी बुला लिया। नाम के आगे श्री बाकी था, सो लगा दिया। आलोक पुराणिक,बालेन्दु,और प्रत्यक्ष थीं प्रत्यक्षा। संगीता मनराल और अविनाश वाचस्पति। सबने अपनी अपनी ब्लागचनाओं का पाठ किया। तालियां बजीं और गुलस्दता भेंट किया गया।
अगर इसी तरह युवा ब्लॉगकारों को कोई प्रोत्साहित करने वाला मिल जाए तो एक आइडिया है। ज़िंदगी भर युवा ही रहा जाए। हमेशा प्रोत्साहित होते रहिए और मंच पर आसीन होकर ब्लॉगचनाओं का पाठ करते रहिए। अशोक जी के इस ग़ैर सरकारी प्रयास की सराहना करता हूं। सम्राट अशोक, अशोक वृक्ष, अशोक होटल की तरह अशोक चक्रधर जी को बहुत सम्मान से देखता हूं।
हम सबने पाठ किया। बकायदा माइक दिया गया। तालियां बजी फिर हम बजे। पाठ खत्म होते ही लोग उठे। चक्रधर जी ने कहा आते रहिएगा जैसी आज आपके लिए ताली बजी है, औरों के लिए भी बजाते रहिएगा।
सुंदर प्रयास। सक्रिय साहित्यकार। व्यंग्यकार। तमाम प्रकार के कारों की भीड़ में ब्लॉग पाठ का यह आइडिया हिंदी के इस मशहूर शख्स को ही आ सकता था।
मेरे लिए उनका बुलाना विशेष था। ९४-९५ की बात है। कास्टिट्यूशन क्लब सभागार गया था। अशोक जी की एक रचना रिकार्ड कर लाया था। सोचा था कि इतनी बड़ी हस्ती हैं। रिकार्ड कर लो क्या पता मौका ही न मिले। कब तक पेज नंबर बासठ पर बुकमार्क लगाते रहेंगे। रिकार्डेड रहेंगे तो अशोक जी को घर में बजाते रहेंगे। गा रहे थे अशोक जी- मनमोहना बड़े झूठे झूठे....। मनशास्त्र की व्यंग्यशास्त्र से आलोचना की जा रही थी। इस बार हैबिटेट सेंटर में उनके साथ मंचासीन होकर लगा कि रिकार्ड करने की ज़रूरत नहीं है। ये वो यादगार है जो स्मृतियों के सर्वर में हमेशा के लिए स्टोर हो चुका है।
अशोक जी एक और बड़ा काम कर रहे हैं। चाहते हैं कि हिंदी के कार-वर्ग(साहित्यकार,पत्रकार,कलमकार वगैरह)कंप्यूटर तकनीक में माहिर हो जाएं। साल दो साल कविता भले न लिखें लेकिन टाइपिंग में टाइपस्त हो जाएं। ये ठेका उठा कर जाने किस घड़ी में सरदर्द मोल ले लिया है, यही क्या कम है कि कुछ दर्द डाउनलोड कर लिया है। अशोक जी के इस प्रयास को साधुवाद। आभारी हैं और वजन से भारी भी हैं। इसलिए थैक्यूं कह कर हल्का हो लेते हैं। आपको बुलायें तो ज़रूर जाइयेगा। नाम के आगे श्री मिलेगा और मंच।
Mujhe bhi shauk jaag gaya hai ki main bhi Kar-type ka ho jauoon...aur log guldasta bhent karein!!! Badhiya idea hai..ab main firak mein rahunga...dhanyawad ...
ReplyDeleteAshok Chakradhar Ji Hamesha se hi aise hain aur shayad rahenge bhi. Unki kavita sunte samay lagta hai jaise koi kose kose pani se badan sek raha ho jisseman bhi sik raha ho.
ReplyDeleteShelendra Kulshrestha
Dehradun
आप लोगों का काव्य पाठ सुने बिना ही कवि गोष्ठी का आनन्द आ गया। यह पोस्ट पढ कर आपको सुनने की लालसा मन में उग आई। अपनी कुछ रचनाएं, आपकी आवाज में उपलटध कराने पर विचार करें।
ReplyDeleteअशोकजी सचमुच में अत्यन्त आवश्यक और महत्वपूर्ण काम कर रहे हैं । काश ! हामरे 'कार' अशोकजी की दरकार समझें ।