कार्टून सरल और आसानी से समझ आने वाले होने चाहिए। ऐसे नहीं कि एक विश्लेषक और बुद्धिजीवी ही समझ सके। हरिओम तिवारी जी के कार्टून भी सटीक रहते हैं। एक बार अवश्य देखें। ये रहा लिंक http://pyala.blogspot.com/2008/11/blog-post_18.html
अगर आदर्शजी ये कह रहे हैं कि पवन के कार्टून आसानी से समझ में नहीं आ पा रहे हैं तो झोल बात कर रहे हैं,जिन लोगों के लिए ये कार्टून बनाए गए हैं उनके लिए इससे कोई आसान भाषा नहीं हो सकती है.आंचलिकता है तो संभव है कि दिल्ली में बैठे कुछ लोगों को परेशानी हो जाए औऱ वो डिक्शनरी पलटने के बजाय बिहारी खोजने लगें।एम ए में मैला आंचल पढ़ते हुए लोगों ने यही कहा था कि इस उपन्यास को समझने का बेस्ट आइडिया है कि किसी बिहारी को पकड़ लो। लेकिनयकीन मानिए यह भाषाई समस्या से ज्यदा सॉफ्टवेयर की समस्या ज्यादा है और इसे शार्टआउट किया जा सकता है। रवीश सर, पटना दो ही बार गया,रांची से गांधी मैंदान किताबें खरीदने और रेणु,शिवपूजन और यात्रीजी के शब्दों से शहर को समझने की कोशिश करता रहा। अबकि जाना होगा तो आपके शब्दों के हिसाब से समझने की कोशिश जरुर करुंगा। बहुत सही किया आपने कार्टून पेश करके।
विनीत जी, मैंने पवन जी के कार्टून्स पर टिप्पणी नहीं की। वे निस्संदेह बेहतरीन और सुगम हैं। कार्टून में कार्टून से ज्यादा होता है वाक्य का प्रयोग जो आपके उद्देश्य को सार्थक करता है। जिस तरह रवीश जी को पवन के कार्टून गुदगुदा गए, उसी तरह मुझे हरिओम तिवारी जी के कार्टून्स ने गुदगुदाया था। इसीलिए उसका उल्लेख किया।
मजा आ गेल. जब जब बिहार में जाते है तब हिंदुस्तान जरुर देखते है और उसमे पाहिले पन्ना पर टॉप में पवन जी के कार्टून. उनकर सुशाशन बाबु बिहार में बहुत मसहुर है...
कार्टून सरल और आसानी से समझ आने वाले होने चाहिए। ऐसे नहीं कि एक विश्लेषक और बुद्धिजीवी ही समझ सके। हरिओम तिवारी जी के कार्टून भी सटीक रहते हैं। एक बार अवश्य देखें। ये रहा लिंक
ReplyDeletehttp://pyala.blogspot.com/2008/11/blog-post_18.html
अगर आदर्शजी ये कह रहे हैं कि पवन के कार्टून आसानी से समझ में नहीं आ पा रहे हैं तो झोल बात कर रहे हैं,जिन लोगों के लिए ये कार्टून बनाए गए हैं उनके लिए इससे कोई आसान भाषा नहीं हो सकती है.आंचलिकता है तो संभव है कि दिल्ली में बैठे कुछ लोगों को परेशानी हो जाए औऱ वो डिक्शनरी पलटने के बजाय बिहारी खोजने लगें।एम ए में मैला आंचल पढ़ते हुए लोगों ने यही कहा था कि इस उपन्यास को समझने का बेस्ट आइडिया है कि किसी बिहारी को पकड़ लो।
ReplyDeleteलेकिनयकीन मानिए यह भाषाई समस्या से ज्यदा सॉफ्टवेयर की समस्या ज्यादा है और इसे शार्टआउट किया जा सकता है।
रवीश सर, पटना दो ही बार गया,रांची से गांधी मैंदान किताबें खरीदने और रेणु,शिवपूजन और यात्रीजी के शब्दों से शहर को समझने की कोशिश करता रहा। अबकि जाना होगा तो आपके शब्दों के हिसाब से समझने की कोशिश जरुर करुंगा।
बहुत सही किया आपने कार्टून पेश करके।
बहुत खूब मजा आ गया|
ReplyDeleteमजा आ गया इन्हें देख-पढ़कर. पवन जी के इन कार्टूनों के लिये धन्यवाद.
ReplyDeleteशानदार कार्टून ! कार्टूनिस्ट को बधाई !
ReplyDeleteविनीत जी, मैंने पवन जी के कार्टून्स पर टिप्पणी नहीं की। वे निस्संदेह बेहतरीन और सुगम हैं।
ReplyDeleteकार्टून में कार्टून से ज्यादा होता है वाक्य का प्रयोग जो आपके उद्देश्य को सार्थक करता है। जिस तरह रवीश जी को पवन के कार्टून गुदगुदा गए, उसी तरह मुझे हरिओम तिवारी जी के कार्टून्स ने गुदगुदाया था। इसीलिए उसका उल्लेख किया।
ई त बहुते मज़ा दे गई.
ReplyDeleteभाई.. लिखते रहि.
मजा आ गेल. जब जब बिहार में जाते है तब हिंदुस्तान जरुर देखते है और उसमे पाहिले पन्ना पर टॉप में पवन जी के कार्टून.
ReplyDeleteउनकर सुशाशन बाबु बिहार में बहुत मसहुर है...
wah kya khoob bhasa ka prbhav hai..
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