आतंकवाद पर अनगिनत शब्द लिखे जा चुके हैं। अनगिनत नेताओं को गरियाया जा चुका है। आतंकवाद से हारने वाले मुल्क के तौर पर हम खुद को देखने लगे हैं। अभी तक आतंकवाद के नाम पर अपनी अपनी पसंद की पार्टियों को वोट देते थे। लगता है इस बार वो पसंद भी जाती रही। एक मामूली साध्वी के बचाव में राजनाथ सिंह से लेकर आडवाणी तक बावले हो गए थे। दिल्ली के विजय कुमार मल्होत्रा एटीएस के अफसरों का नार्को टेस्ट कराना चाहते थे। उसी एटीएस के अफसरों ने गोली खा ली। ज़ाहिर है आतंकवाद को वो भुगतते थे और वही कीमत भी चुका गए। बयान देने के लिए बच गए हमारे ओरिजिनल लौह पुरुष सरदार पटेल की फोटोकापी आडवाणी और मोदी। और एक खराब ज़ेरॉक्स पेपर की तरह बचाव के लिए बच गए मनमोहन सिंह। विलासराव देशमुख और आर आर पाटिल जोकर लग रहे थे।
आतंकवाद की राजनीति में इस बार नेता नंगा हो गया। टीवी चैनल और अखबारों में आ रही प्रतिक्रिया से लगने लगा कि इस हमले का सबसे अधिक शिकार इस बार नेता हुआ है। जिस वक्त नरेंद्र मोदी केंद्र के पांच लाख रुपये के मुआवज़े को एक करोड़ की राशि से छोटा बता रहे थे उसी समय आतंकवाद और राष्ट्र्वाद के महाप्रतीक इस महापुरुष को स्वर्गीय हेमंत करकरे की पत्नी अपने घर आने से मना कर रही थीं। मना कर चुकी थीं फिर भी मोदी पहुंचे। राज ठाकरे करकरे के अंतिम संस्कार की तस्वीरों में दिखे। कहीं कोने में दुबके हुए। बंगलौर में मेजर उन्नीकृष्णन के पिता ने केरल के मुख्यमंत्री को दरवाज़े से लौटा दिया। दिल्ली में महेश चंद्र शर्मा की पत्नी से बीजेपी के टिकट दिए जाने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
हमारे नेताओं के लिए यह सबसे मुश्किल वक्त है। इस बार के हमले में किसी नेता को टीवी स्टुडियो में आकर भाषण देने का मौका नहीं मिला। वोट चाहिए था कि इसलिए जिस वक्त एनएसजी के जवान ताज होटल के अंदर लड़ रहे थे उसी वक्त दिल्ली में बीजेपी के रणनीतिकार स्लोगन रच रहे थे। दिल्ली के तमाम अखबारों में मतदान से एक दिन पहले छपा भी। भाजपा को वोट दो। वसुंधरा राजे ने आतंकवाद पर अपने विज्ञापन की बारंबारता बढ़ा दी। हमारा नेता सिर्फ वोट ही मांग सकता है। थोड़ा तो बता देती कि वसुंधरा ने आतंकवाद से लड़ने के लिए क्या किया है? क्या राज्य में पुलिस को अलग ट्रेनिंग दी है? क्या नए संसाधन जुटाये हैं? इत्तफाक और संयोग पर हमले की दुकानदारी चल निकली थी। बीजेपी को वोट मिल जाएंगे।
शिवराज पाटिल अब कभी अपनी कार से उतर कर पान नहीं खरीद सकेंगे। अगर खाते हो तों। एक सबक भी मिला है। साईं कृपा से मठों की दुकानदारी चलती है। तकदीर और तदबीर नहीं बदलती। शिवराज को जाना पड़ गया। विलासराव देशमुख रात भर फोन करते रहे टीवी चैनलों को। रामगोपाल वर्मा को साथ लेकर ताज भ्रमण पर निकले देशमुख। कांग्रेस आतंकवाद से निपटने में एकदम फटीचर पार्टी निकली।
ज़ाहिर है अभी तक यही हो रहा था कि हर आतंकवादी हमले पर देश की एकता और अखंडता पर भाषण दिया जा रहा था। हम एक हैं। हम एक रहेंगे। लेकिन मरते रहेंगे। अभी तक लोग यही समझ रहे थे कि ये नेता ठीक नहीं।उस दल का नेता ठीक है। सख्त है। सख्त की परिभाषा यह थी कि उस दल वाले मुसलमानों के खिलाफ सख्त हैं। जब तक मुसलमान आतंकवादी है देश को पोटा चाहिए। जब साधु या साध्वी पकड़े जाएंगे उनके लिए यही नेता बचाव करेंगे। मुशीरुल हसन और लाल कृष्ण आडवाणी में यही फर्क है कि मुशीरुल पुलिस पर सवाल नहीं उठा रहे थे, सिर्फ बेकसूर साबित होने का एक और मौका देना चाहते थे।आडवाणी जी( या उनकी पार्टी) तो न्याय से लेकर एटीएस तक को नेस्तानाबूद करने में लगे थे। साध्वी हिंदू प्रतीक है। हिंदू आतंकवादी नहीं हो सकता। कह रहे थे कि इसे हिंदू आतंकवाद का नाम मत दो। बतायें तो वे साध्वी का बचाव किस लिए कर रहे थे। क्या इसलिए कि वो इस देश की नागरिक है या फिर इसलिए कि वो हिंदू है। इससे पहले भी पुलिस ने कई बेकसूर मुसलमानों को फंसाया। क्या उनके बचाव में आडवाणी कभी उतरे। कभी नहीं उतरेंगे। बाटला हाउस के बाद जिसतरह अमर सिंह लग रहे थे उसी तरह साध्वी का बचाव करने के कारण बीजेपी मुंबई हमले के बाद लग रही थी। किसी में कोई फर्क नहीं।
जब तक इस देश में मज़हब के हिसाब से राजनीति तय होगी हमारी दलीलें पुरानी पड़ेंगी। पब्लिक जान गई है मैं नहीं मानता। फिर भी मुंबई हमले की तुरंत प्रतिक्रिया से तो यही लगता है कि इस बार नेताओं की साख गिरी है। टीवी पर अरुण जेटली की बौखलाहट दिख रही थी।कह रहे थे कि आप ठीक नहीं कर रहे हैं। नेताओं के खिलाफ नैराश्य फैलाकर। जेटली त़ड़प रहे थे कि इस बार उनके सामने माइक इसलिए नहीं लग रहे थे कि वे नैतिक मास्टर की तरह आतंकवाद पर लेक्चर दें। इसलिए लग रहे थे कि वे नेता होने पर सफाई दें।
इस बार राजनीति का यह आइडिया पिट गया। आतंकवादी एक बार फिर कामयाब हो कर चले गए। नेताओं की दुकानदारी अभी बंद नहीं हुई है। लोकतंत्र में बंद भी नहीं होनी चाहिए। नेता एक ज़रूरी अंग है। सिर्फ खराब नेताओं और राजनीति की दुकान बंद कर एक नया शापिंग सेंटर बनाने की ज़रूरत है। जहां कुछ नया माल बिके। नई दुकान दिखे।
अच्छा लगा आपका लिखना मगर आपकी हर बात से सहमती नहीं है..
ReplyDeleteवाकई,कितने बौने लग रहे हैं ...हमारे नेता जी...किसी की मौत के बाद घर मे आने वाले उन रिश्तेदारों की तरह जो ज़मीन और घर के बंटवारे की बात करने राख ठँडी हो जाने का भी सब्र नहीं करते।
ReplyDeleteमंत्री बदलो या बदलो सरकार
ReplyDeleteनहीं थम पाएगा ये नरसंहार,
चूहे बन बैठे हैं अब हम
करना होगा सबको स्वीकार...
लोकतंत्र का मजबूत स्तंभ है
आधारशिला है भ्रष्टाचार,
हर क्षेत्र में, हर दफ्तर में
रिश्वतखरी है नैतिक अधिकार
पंगु बन बैठी है व्यवस्था
नपुंसक बन मौन है सरकार
फिर भी हमको है गौरव
लोकतंत्र में रहने का अहंकार
राजनेताओं की साख थी भी कब? थी तो अब मटियामेट हो गई. मोदी अपनी भद पिटवा कर आ गए.
ReplyDeleteअडवाणीजी करकरे को शहीद बनाने पर तूल गए, और दोनों पाटिल घर में बैठने को मजबूर हो गए.
मनमोहन, सोनिया सबकी लगी पडी है. उन्हें अहसास हो गया है कि अगले चुनाव के बाद वे संसद में दूसरी तरफ बैठने वाले हैं.
लेकिन रविशजी, साख आपकी (सेक्यूलर? पत्रकारों) की भी गिरी है. यकिन नहीं आएगा आपको पर सच है.
padhane me to achha laga. Lekin aisa ehsas hua ki ees aatankwad ke lekh me BJP word bahut baar padhane ko mila. Congress ka kuchh nahin? Aisa malum hota hai ki BJP ki aisi ki taisi ho gayee ees terrorist attack me. Sonia madam ka eetna terror hai ki unake party ke chamche to chamche journalist tak ek shabd nahin likhate. Ek jagah padha ki unhone bahut kada message bheja hai and now she wants to see the result. Jees party me unake eesaare ke bina ek patta tak nahin khatakata wahan ees tarah ki draamebaji par hasi aati hai. Attack par attack hote jaa raha hai lekin TV channel walon ke nazar me abhi bhi congress ke prati sahanubhuti kyon?
ReplyDeleteपूर्णतया सहमत नहीं हूँ, पर राजनीति की दुकानदारी तो सच में पिट गयी .
ReplyDeleteइतनी प्रभावकारी पोस्ट के लिए धन्यवाद .
कलई तो उतर ही गई ।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
राजनीति की दुकानदारी तो सच में पिट गयी!!!!
ReplyDeletetheek hai..magar iss baar bhi kuuchh nahi hoga,, hamesha aisa hota hai..aur hota rahega
ReplyDeleteआप बिल्कुल सही कहते हैं. वास्तव मैं आतंकवाद की परिभाषा ही होती है कि राजनीति और अपरधजगत के मजबूत गठजोड़ को आतंकवाद कहते हैं . हमारे ब्लॉग पर भी पधारिए हम अपने विद्यालय की पोल खोलते हैं.
ReplyDeleteआप बिल्कुल सही कहते हैं. वास्तव मैं आतंकवाद की परिभाषा ही होती है कि राजनीति और अपरधजगत के मजबूत गठजोड़ को आतंकवाद कहते हैं . हमारे ब्लॉग पर भी पधारिए हम अपने विद्यालय की पोल खोलते हैं.
ReplyDeletent agree totally!
ReplyDeletesome que?
why news channels after netas
there dhandha depends on neta
may b some congrass supportive news channels dont want to corner congress so showing generalsed anger against all neta, this make bjp less prominant
after some day ravish jee will eat chuda dahi at laloo home! disgusting
iam not supportive of neta but this kind of bycott diffusing matter
all say unite but how can urban people fight who r only concerned ab there own life
life commentry of terrorist attack
was scary and useless
ravees jee neta ke bina ap log ka dukan band ho gayega phir bihar laut kar ka kigiyega
talk some constructive yar!
कई बातों से सहमती नहीं है... शायद ये घटना नहीं हुई होती तो सहमती होती. पर इस घटना ने मेरे जैसे कईयों को बदला है !
ReplyDeleteरवीश जी आपके अपने चैनल में संजय दत्त को दिखाया जाता है आतंकवाद का विरोध करते हुए ऐसा व्यक्ति जो 1993 के बम ब्लास्ट का आरोपी है आपके अपने चैनल में गांधीगिरी का पैरोकार बना हुआ है। मीडिया में ऐसे दोहरे मानदंड क्यों। साथ ही हमले में लोग मर रहे हैं और एनडीटीवी के लिए अहम खबर होती है कि इंग्लैंड से मैच नहीं होंगे क्या हमारे लिए अपना मनोरंजन इतना अहम है कि हम देश में आई हुई इस गंभीर आपदा के वक्त भी इसे याद रख सकते हैं।
ReplyDeleteरोष है, गुस्सा है, खीझ है....सिवाय इसके अभी न कोई तर्क नजर आ रहा है और न वितर्क....पोस्ट से कुछ हद तक सहमत हूँ...पूरी पोस्ट से नहीं।
ReplyDeleteआतंकवाद से लड़ने के लिये रीड की हडडी से मजबूत देश, नेता...सरकार और आम आदमी चाहिये...सब कुछ राम भरोसे छोड़ने की आदत सी पड़ गयी है...गलती किसकी,जिम्मेवार कौन..बस यही किताबी,अखबारी,टीवी और ब्लागी बहस के अलावा कुछ नहीं..छोटी सी बात,बस,रेलवे स्टेशन,गली मौहल्लों,घर दुकान पर ईमानदारी से साल में कितने दिन,कितने महीने चेकिंग होती है ,अगर 15 अगस्त,26 जनवरी के आस-पास या किसी आतंकी हमले के बाद चेकिंग होती भी है तो बस खानापूर्ति के लिये,बसों और रेल में चेकिंग के नाम पर पुलिसवाला एक या दो बैगों में बाहर से हाथ मारता है,और चलता बनता है,अगर किसी ने गलती से,ड्यूटी का अहसास रखते हुए किसी सज्जन की तलाशी ले ली,तो समझिये इज्जत चली गयी जनाब की,मुझे कैसे उठा दिया,मेरी गाड़ी को रोकने की हिम्मत कैसे हुई,मै फलाना हूं,बड़े-बडे स्टीकर लगी गाड़ियां,लालबत्ती,साइरन बजाती निकलती गाड़ियां....सौ किलो मीट खाकर,दस या पंद्रह आतंकवादी ना सिर्फ मुंबई, बल्कि पूरे देश को अपने कब्जे में ले लेते हैं,दो सौ से ज्यादा कमांडो को जंग जीतने में तीन दिन लग जाते हैं...इसकी गलती थी,उसकी गलती थी,हमने तो पहले ही सूचना दी थी,दिल्ली ने सुना नहीं,राज्य सरकार ने सुना नहीं,आपसी जुत-पतरम के अलावा कुछ नहीं...छोड़िये ये सब...अगले धमाके,अगली गोली के शिकार होने के लिये तैयार रहिये..अगर अपनी और अपनों की जान बच गयी तो हनुमानजी को इक्यावन रूपये के लड्डू चढाने की तैयारी, बस और कुछ नहीं..ये निराशा नहीं,खींझ भी नही लेकिन कुछ है,क्या है पता नहीं...हम सभी समस्या हजार गिनवा सकते हैं,रायसाहब की तरह एक लाख राय दे सकते हैं फ्री में,लेकिन समस्या का हल,बीमारी का इलाज किसी के पास नहीं..जहां तक बात बीजेपी या कांग्रेस की सरकार में हुए आतंकवादी हमले औऱ दोषी कौन,की कि जाये..तो बस यही कहना है कि चोर-चोर मौसेरे भाई..
ReplyDeleteगुस्सा नेताओं के प्रति है. पार्टी अब गौण है.
ReplyDeleteगुस्सा मात्र नेताओं के प्रति नहीं है. संवाददाताओं को कौन पूजता है?
रवीश जी आपके अलावा विपिन देव त्यागी की बात में भी दम है। इसके अलावा, जिस देश में 500रु. मे घर बैठे राशन-कार्ड बनकर आ जाता हो, वहाँ कहाँ-कहाँ से छेद बंद करेंगे आप ? भ्रष्टाचार और बेईमानी भी बहुत बड़े सहायक हैं आतंकवाद के। और इसके ज़िम्मेदार कहीं न कहीं हम सब भी हैं।
ReplyDeletebahut khoob ravish ji. aina dekha diya hai aapne
ReplyDeleteसही कह रहे है रवीश जी हमे नो वोट का विकल्प चाहिये !! सारी पार्टी के चिन्हो के नीचे एक विकल्प और होना चाहिये कि उपरोक्त मेसे कोई नही और अगर यह विकल्प जनता चुनती है तो उसे यह माना जाना चाहिये कि इसे संविधान कानुन और इस मुफ़्त्खोर नेताओ पर फ़िर से सोचने के लिये दिया गया है !!
ReplyDeleteरविश जी आपका कहना सही है की इस बार की घटना से लोगो का आक्रोश नेताओ के प्रति अधिक है .लोगो का धेर्य अब जवाब देने लगा है .सरकार अपने नीतियों में पुरी तरह से विफल रही है .और अहि सही कसर नेताओ की उल जलूल बयान बाजियो ने पुरा कर दिया .इस समय लोगो का गुस्सा चरम पे है .
ReplyDeleteLagta hai 'adhunik Hindu' ne bhi kabhi nahin koshis ki jan-ne ki swayam apne gyani logon ne kya samay ki gahrai mein ja ker paya - ki Kaal Satgyuga se Tretayuga ka nazara dikha Dwaperyuga aur phir Kaliyuga ke drishya dikhata hai. Aur, unhone yeh bhi bataya ki Kaliyuga sabse gaya-gujra samay hai jab aadmi nimnatar shreni mein pahunch jata hai...Mirabai ne bhi Krishna ko shaitan balak saman samjha aur unki leela per ascharya jataya ki unhone Raja moorkha ko banaya aur pardhe-likhon ko bhikari!
ReplyDeleteमुंबई की घटना के बाद नेताओं पर चौतरफा हमला हो रहा हैं मैं भी अपने ब्लांग पर नेताओं की ऐसी की तेसी करने से परहेज नही किया।लेकिन इस हमले से ब्यथित कुछ अच्चे पोलटीसीएन से जब इस मसले पर हमारी बात हुई तो वाकई लगा की जिस तरीके राज नेताओं पर हमला हो रहा हैं देश के लोकतंत्र के सेहत के लिए अच्छी नही हैं। राज ठाकरे या अन्य राजनेताओं की दुकानें इस लिए चल रही हैं कि जनता का एक वर्ग इसके साथ हैं।सारी जवाबदेही नेता पर थोप कर आज देश के तमाम वर्ग जबावदेही से मुक्त हो रहे हैं ऐसे हलात मैं ही सेना देश के सत्ता पर काबिज होने की बात सोचने लगता हैं।इस मसले पर हम सभी को गम्भीरता से सोचने की जरुरत हैं। मेरे ख्यालात में यू टर्न के लिए माफी चाहते हैं।आप से भी उम्मीद करते हैं थोङी गम्भीरता से सोचे और इस विषय पर बहस होनी चाहिए। आप अपनी राय दे सकते हैं।ई0टी0भी0-पटना
ReplyDeleteWaseem Barelvi ne kaha hai jo netao par sach hai
ReplyDelete"Bare saleeqe' se is daur-e-badgumaani mein,
Kisi ka bojh, kisi ne, kisi pe daal diya...."