सेवा में,
सचिव,
कार्मिक विभाग
भारत सरकार,
(सितंबर १९४७)
मैं,सफ़दर अली ख़ान भारत की सेवा करना चाहता हूं। मैंने पाकिस्तान जाने का फ़ैसला किया था क्योंकि मेरे दोस्तों और सह कर्मचारियों ने दबाव डाला था लेकिन अब मुझे अपने फ़ैसले पर अफ़सोस हो रहा है। मेरी बूढ़ी मां बहुत बीमार है। वह भी मुझे पाकिस्तान जाने नहीं देना चाहती। मैंने पाकिस्तान का पक्ष लेकर एक बड़ी भूल की है। मैं सच कह रहा हूं। मेरा अपना फ़ैसला नहीं था। दबाव में फ़ैसला किया था। मैं पहले भारतीय हूं और आखिर में भी भारतीय हूं। मैं भारत में रहना चाहता हूं।भारत में ही मरना चाहता हूं। इसलिए मुझे अनुमति दी जाए कि भारत में रहूं।
मुरादाबाद में तैनात गार्ड सफ़दर अली ख़ान भारत में रहना चाहते थे। उनकी इस चिट्ठी की सिफ़ारिश शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल क़लाम आज़ाद ने की थी। मगर गृह मंत्रालय ने कलाम की इस चिट्ठी को अस्वीकार कर दिया। जवाब मिला कि पार्टिश काउंसिल का फ़ैसला है कि जब एक बार फ़ैसला कर लिया तो उस पर कायम रहना चाहिए। गृहमंत्री सरदार पटेल आज़ाद को लिखते हैं कि आपने जिसकी व्यक्ति की बात की है, मुझे नहीं लगता है कि उसे फैसला बदलने की अनुमति मिल पाएगी।
नवंबर १९४७। ठीक ऐसा ही मौसम रहा होगा। थोड़ी सर्दी अधिक होगी। सफ़दर अली ख़ान उन पांच हज़ार रेलवे कर्मचारियों में शामिल थे,जिन्होंने पाकिस्तान जाने का अपना फ़ैसला बदल दिया था। वो अब वहीं रहना चाहते थे जहां वो रहते आए थे। लेकिन सांप्रदायिक हो रही राजनीति ने इन पर पाकिस्तान के एजेंट होने का लेबल लगा दिया। लखनऊ रेलवे स्टेशन पर हिंदू कर्मचारियों ने हड़ताल की धमकी दे दी। कहा कि अगर इन्हें अब भारत में रहने दिया गया तो ठीक नहीं होगा। नतीजा रेलवे के अफसर भी इन कर्मचारियों पर दबाव डालने लगे कि वो पाकिस्तान जाने का अपना फ़ैसला न बदलें।
फॉल्टलाइन्स ऑफ नेशनहुड (रोली बुक्स)। इस किताब में विभाजन और राष्ट्रवाद पर शोध करने वाले इतिहासकार प्रोफेसर ज्ञानेंद्र पांडे सफ़दर अली ख़ान की इस कहानी के बहाने बता रहे हैं कि कैसे एक भ्रम की स्थिति बन गई थी। हर कोई एक दूसरे को हम और वो की ज़ुबान में पुकारने लगा था। यहां तक कि नेहरू भी कहते हैं कि सिर्फ उन्हीं हिंदू मुसलमान को यहां रहना चाहिए जो इसे अपना मुल्क समझते हैं। पांडे बता रहे हैं कि कैसे हिंदू और मुसलमान होने को राष्ट्रवाद की कैटगरी से जोड़ दिया जाने लगता है।
जब दिल्ली में पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी ने कहा कि हर पाकिस्तानी में थोड़ा हिंदुस्तानी रहता है तो मुझे सफ़दर अली की बहुत याद आई। सोचता रहा कि कितना बेमन से सफ़दर पाकिस्तान गए होंगे। कितना रोया होगा। कितना कोसा होगा खुद को। क्यों किया दोस्तों के दबाव में पाकिस्तान जाने का फ़ैसला। कितना दिल टूटा होगा उस भारत सरकार से जिसने सफ़दर को उसके पुराने मोहल्ले में रहने का मौका नहीं दिया। कहीं सफ़दर अली ख़ान और आसिफ़ अली ज़रदारी के बीच कोई रिश्ता तो नहीं है। वो एक दूसरे को जानते तो नहीं होंगे। उम्र का काफी फ़ासला रहा होगा। फिर भी क्या पता सफ़दर के मोहल्ले में ही आसिफ ने अपना बचपन बिताया हो और सफ़दर की बातें उसके दिलों में उतर गईं हों।
नवंबर की इस सर्दी में सफ़दर अली ख़ान, गार्ड मुरादाबाद, की बहुत याद आ रही है। मज़हब के चश्मे से राष्ट्रवाद को देखते देखते हमने शक की तमाम इमारतें खड़ी की हैँ। जहां एक साधु स्वाभाविक रुप से राष्ट्रभक्त होता है और एक मुसलमान देशद्रोही हो जाता है। सुदर्शन कहते हैं आतंकवाद का मज़हब नहीं होता, तो फिर आडवाणी क्यों विदिशा की रैली में कहते हैं कि साध्वी को फंसाया जा रहा है। पुलिस सबको फंसाती है। आडवाणी जानते हैं। कश्मीर टाइम्स के पत्रकार गिलानी को भी आतंकवादी बना दिया गया था। मेरे शो में जेल ले जाते हुए अपनी पुरानी तस्वीर देख कर गिलानी की आंखें भर आईं थीं। तब आडवाणी ने क्यों नहीं कहा था कि गिलानी को फंसाया जा रहा है। वो गृहमंत्री थे।
बहरहाल आप प्रोफेसर ज्ञानेंद्र पांडे की इस किताब को ज़रूर पढ़ियेगा। दस्तावेज़ों के साथ पांडे बताते हैं कि कैसे पाकिस्तान का मतलब कोई मुल्क नहीं था। सभी तरफ एक भ्रम की स्थिति थी। अलग पाकिस्तान को अलग मुल्क समझा गया। पंजाब और बंगाल में लीग के कई समर्थकों और नेताओं में इस बात को लेकर आपत्ति थी कि पूरे महाद्वीप के हिंदुओं और मुसलमानों को अलग कर दिया जाएगा। बंगाल मुस्लिम लीग के सचिव अबुल हाशिम कहते हैं कि आज़ाद भारत में यहां रह रहे सभी मुल्कों को रहने की पूरी आज़ादी मिलनी चाहिए। अप्रैल १९४७ में जिन्ना ने माउंटबेटन से गुज़ारिश की थी कि बंगाल और पंजाब की एकता से खिलवाड़ मत कीजिए। इनका चरित्र,संस्कृति सब साझा है। बंगाल मुस्लिम लीग के नेता हुसैन सुहरावर्दी ने वायसराय ने कहा था कि वो नवंबर १९४७ तक विभाजन के फैसले को रोक दें। फ़ज़्लुल हक़ ने १९४० में लाहौर में पाकिस्तान घोषणा पढ़ा था। फ़ज़्लुल हक़ ने भी कहा था कि देश को बांटने से तो अच्छा है कि अंग्रेज़ थोड़ा और रुक जाएं।
नवंबर में ही आसिफ अली ज़रदारी ने क्यों कहा कि हर पाकिस्तानी में थोड़ा हिंदुस्तानी और हर हिंदुस्तानी में थोड़ा पाकिस्तानी रहता है। क्यों मुस्लिम लीग के नेता नवंबर तक ठहरने की बात कर रहे थे। क्यों रेलवे के पांच हज़ार लोग नवंबर में ही पाकिस्तान जाने के फ़ैसले को बदलना चाहते थे। क्यों हिंदू कर्मचारी इनके रुकने के फ़ैसले का विरोध करने लगे। आडवाणी, सुदर्शन और प्रज्ञा का राष्ट्रवाद धर्म की इन गलियों से क्यों गुज़रता है? गेरुआ राष्ट्रवाद गेरुआ आतंकवाद का विरोध क्यों कर रहा है? एक बेकसूर साध्वी का बचाव हो रहा है या फिर किसी सफ़दर अली ख़ान को धमकाया जा रहा है।
सफ़दर अली ख़ान। अपनी कब्र में न जाने किस मुल्क में होने का ख़्वाब देखते होंगे। ऐसे बहुत से सफ़दर थे जो डर से, दबाव में इधर से उधर हो गए। सफ़दर अली ख़ान को कोई लौटा लाता। मुरादाबाद के उस घर में...जहां वो अपनी बूढ़ी मां की तीमारदारी कर लेता और दिल्ली जाने वाली रेलगाड़ियों को हरी झंडी दिखा देता। कोई है हिंदुस्तान में जो उठ कर कह दे कि मेरे भीतर भी थोड़ा पाकिस्तानी रहता है। सुना है सिंध से आए हैं आडवाणी जी।
रविश जी, पहले तो एक 'भूल' को ठीक करें. शुरू में तो आपने सफ़दर अली खान लिखा है, लेकिन बाद में सिकंदर अली खान.
ReplyDeleteये बात बिलकुल ठीक है कि हिंदुस्तान का बंटवारा राजनीति से प्रेरित था न कि अवाम से प्रेरित. मुसलमानों की जो इमेज बनाई जा रही है, वो भी राजनेताओं की ही देन है. आज भी गांवों में हिन्दू मुस्लिम बड़े प्यार से साथ साथ रहते हैं.
हमारी दादीजी बताया करती थी कि बंटवारें के समय जब गाँव के मुस्लिम लोग पाकिस्तान जाने के लिए अपना बोरिया बिस्तर बांधना लगे, तो पूरे गाँव ने उन्हें जाने से रोका था. और उनकी सुरक्षा का पूरा इंतजाम भी किया था. आज वे ही मुस्लिम इज्ज़त की ज़िन्दगी जी रहे हैं. ऐसा ही पाकिस्तान में भी हुआ होगा.
शुक्रिया मुसाफिर जाट साहब
ReplyDeleteभूल सुधार हो चुका है। सफदर अली खान ही हैं।
शुक्रिया मुसाफिर जाट साहब
ReplyDeleteभूल सुधार हो चुका है। सफदर अली खान ही हैं।
कोई है हिंदुस्तान में जो उठ कर कह दे कि मेरे भीतर भी थोड़ा पाकिस्तानी रहता है।......................
ReplyDeleteहम अपने मन के अंदर एक ऊंची दीवार बना चुके हैं....
kafi dino se qasba par naya blog nahi dekha to dekhna chod diya tha... aaj ek sath 3 dekhakar achchha laga... thanks
ReplyDeleteyahan log vaudhaiv kutumbkam ki baat karte hain par pakistaniyon se ko hi nahi apna pa rahe hain... aaj ka mahaul ajeeb se hai jisme vaishvik vyavsaikaran ko hamne vasudhaiv kutumbkam maan liya hai....hum Pakistan se rishtey sudhaarne par bhi isi farmule ko apna chahte hain....lekin ye kitna kargar hoga ye dekhna hoga? khair apka article dil ko choo gaya hai..bahut badhai ho is ke liye
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ReplyDelete"कोई है हिंदुस्तान में जो उठ कर कह दे कि मेरे भीतर भी थोड़ा पाकिस्तानी रहता है।"
ReplyDeleteमेरे कस्बे में एक थे शौकत चाचा . वो हर सुबह दुनिया भर के मौसम का हाल पूछते, फ़िर पाकिस्तान का - उस हिसाब से ख़ुद को तैयार करते, गरमी का पता चलता तो बनियान पर हो जाते, जाडे में अपनी चद्दर निकाल लेते, बरसात का पता चलता तो छाते को हमराह बना लेते . वो कहते थे ,वो दो बार रोये -
पहली बार पाकिस्तान बनने पर, दूसरी बार दिलों के बंटवारे पर; लेकिन मैंने उन्हें तीसरी बार रोते देखा इस दुनिया से विदा होते वक्त 'पाकिस्तान अलविदा' न कह पाने की असहायता में . नवाज शरीफ के देश निकाले से वे परेशाँ हुए और बेनजीर भुट्टो की मौत से व्यथित. आखिर दोनों उनके बेटे,बेटियों की तरह थे
शौकत चाचा अकेले ऐसे आदमी थे जिनके पास रहने से हमें उस पराये-से भाई का अपनापन बहुत पास से महसूस होता था. मुझे लगता है शौकत चाचा हिन्दुस्तान थे , हमशक्ल की तरह पाकिस्तान भी थे.
आपका धन्यवाद, बस आख़िरी पंक्ति के लिए - "सुना है सिंध से आए हैं आडवाणी जी।" हां ! धिक्! कैसी irony है .
किताब पढने लायक लग रही है... बटवारे को लेकर अभी तक कुछ फिल्मों और 'फ्रीडम एट मिडनाईट' जैसी गिनी-चुनी पुस्तकें ही पढ़ी हैं. पर ऐसे मामलों में निष्पक्ष लेखक कम ही मिलते हैं जो Neutral होकर Third Point view से लिखें.
ReplyDeleteआपकी बातों का शत प्रतिशत समर्थन करता हूं। बचपन में दादा जी जब लाहौर के किस्से सुनाया करते थे...मन में बहुत ललक थी लाहौर घूमने की। अगर बंटवारा नहीं हुआ होता तो जैसे कि शिक्षा के लिए हम दिल्ली का रुख करते हैं, उत्तरी राज्यों के लोग लाहौर का भी रुख करते। लेकिन मेरे मन में दो शंकाएं हैं। पहली ये कि अगर वंटवारा न हुआ होता तो क्या तब भी दोनों सम्प्रदायों के लोग शांति से रह रहे होते? दूसरी ये कि जिस तरह से आप वर्णन करते हैं उससे एक अलग सा पक्षपात सा कुछ झलकता है। कृपया अन्यथा न लें। मेरा मतलब है कि आप हिन्दू-मुस्लिम एकता की बात करते हैं अच्छा है। मैं भी इसका हिमायती हूं। और इस बात को भी स्वीकार करता हूं कि मुस्लिमो की दशा ठीक नहीं है। लेकिन उनके पक्ष में लिखने के लिए आप जितने भी तर्क देते हैं वो कुछ हद तक एकतरफा होते हैं। खैर इस पर तो आपसे पहले ही चर्चा हो चुकी है। इस पुस्तक के लेखक ने भी सफदर अली खान के बहाने उस वक्त की परिस्थितियों का बखान किया है। पाकिस्तान में भी तो ऐसा हुआ होगा। आप क्यों बार-बार ये जताना चाह रहे हैं कि देश में मुस्लिमों पर भीषण अत्याचार हुआ है। अगर किसी को लगता है कि वाकई ऐसा हुआ है तो कृपया तर्क और उदाहरणों सहित लिखिए कि कहां-कहां, किस-किस स्तर पर उनको आगे बढ़ने से रोका गया है? दरअसल मुस्लिमों का वैज्ञानिक शिक्षा से न जुड़ पाना इसके लिए सबसे बड़ा कारण है। हिन्दू आदि धर्मों में अच्छी बात ये रही कि इसके कुछ पढ़े लिखे लोगों ने अपने धर्म में प्रचलित कुरीतियों को सुधारने का प्रयत्न किया, जैसे कि राजा राम मोहन राय। लेकिन इस्लाम में ऐसा नहीं हुआ। इस्लाम में जितने भी विचारक रहे उन्हें या तो कट्टरपंथियों ने झुका दिया या तो वो खुद मैदान छोड़कर भाग गए। लोग खुद शिक्षित हो जाने के बाद खुद तो आज़ाद हो जाते हैं लेकिन अपनी कौम की बेहतरगी के लिए कुछ नहीं करते। हर बार पीढ़ियां कट्टरपंथियों और पुरातनपंथियों के हाथ में ही थमाई जाती हैं जिससे नव सूचना का प्रवाह नहीं हो पा रहा। हर देश में अल्पसंख्यकों की यही दशा है। ज़ाकिर नायक जैसे विचारकों से अल्लाह बचाए। लेकिन हिन्दुस्तान में मुस्लिम कहां अल्पसंख्यक हैं। उनसे ज्यादा कम संख्या में तो ईसाई, सिख और पारसी आदि हैं। क्यों नही वो शिकायत करते कि उनके साथ अन्याय हो गया ? ये मात्र फालतू का हौ-हौव्वा है। सरकारों की गलतियां हैं कि उन्होंने इस धर्म के विचारकों को अपने साथ नहीं जोड़ा। आपकी पुरानी पोस्ट्स पढ़कर ऐसा लगा कि आप जानकर भी अनजान बन रहे हैं कि मात्र मुस्लिमों की ही दशा ऐसी नहीं है। देश में जितने प्रतिशत पिछड़े हुए मुस्लिम हैं उससे कहीं ज्यादा प्रतिशतता पिछड़े हुए हिन्दुओं की है। लेकिन हमें न जाने क्यों मुस्लिम ही दिखते हैं। सरकारें और नेता तो राजनीति करते ही हैं, दुख की बात ये है कि हम भी इस पर राजनीति करने लग गए हैं। हम वर्गीकृत करके विकास और योजनाएं बनाते हैं। क्यों नहीं हम समस्त नागरिको के विकास का लक्ष्य बनाते हैं। अगर 100 प्रतिशत जनता का विकास होगा तो उसमें 60-70 प्रतिशत हिन्दू भी होंगे, 20-30 प्रतिशत मुस्लिम भी। ज़रूरत है समस्त जन के विकास की। आतंकवादियों, वोटर्स आदि का वर्गीकरण नहीं करना चाहिए। उन्हें एक दृष्टि से देखा जाना चाहिए। अर्थात न कोई हिन्दू मतदाता हो न कोई मुस्लिम मतदाचा, न दलित न सवर्ण। किसी के दुख-दर्द को बढ़ा चढ़ा कर दिखाना उचित नहीं। मुझे देश की जनता में कोई हिन्दू-मुस्लिम नही दिखना चाहिए, एक आदमी दिखना चाहिए....
ReplyDeleteमुझे पिछड़े हुए मुस्लिमों की ही चिंता नहीं है, मुझे पिछड़े दलितों की भी चिंता है। मुझे साध्वी आदि से लगाव नहीं है, मुझे धमाकों मे रहे बेकसूर नागरिकों की फिक्र है। और ये फिक्र इसलिए नहीं है कि मैं कोई महापुरुष या विचारक हूं। बल्कि मैं डरपोक हूं। मैं इन समस्याओं का हल जल्दी चाहता हूं। क्योंकि मुझे डर है कि कहीं अगला निशाना मैं न हो जाऊं।
बहुत बढ़िया है.
ReplyDeleteरविशजी
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी लेख है आपका
कभी कभी बांये हुए कायदे कानून कितने क्रूर और निर्दयी होते हैं की देशभक्त आजाद की सिफारिश भी लौह पुरूष को विचलित नहीं कर पाती हैं. हाय रे विधि का विधान .भगवान जनाब सफ़दर अली साहब की आत्मा को शान्ति दे.वो इस खुश्फामी में रहें की वे मुरादाबाद की सरजमीं में हिन् चैन की नींद सो रहें हैं.
रही बात सिंध वाले छोटे सरदार की तो अब शायद राजनैतिक अवसरवादिता का उदाहरण देते हुए ये भी बोल दें
अंत में एक आग्रह की ब्लॉग पर अपने पोस्ट की संख्या बढ़ाई जाए.
सादर
रविश जी आपकी लेखनी काबिलेतारीफ है .यह तो सच है की आतंकवाद का कोई मज़हब नहीं होता . इस बात को सभी बुद्धिजीवी मान रहे है .आपकी एक लाइन की "गेरुआ राष्ट्रवाद गेरुआ आतंकवाद का विरोध क्यों कर रहा है " अगर आप मेरे इस कमेन्ट को पढ़े तो जरा और विस्तार से बताये.क्या बिना कोई परिणाम आये हम मान सकते है की मालेगांव की घटना एक हिन्दू आतंकवाद या गेरुआ आतंकवाद का रूप है..
ReplyDeleteआशिफ ज़रदारी ने तो दो दिन पहले ही कहा की 'हर पाकिस्तानी में हिन्दुस्तानी बसता है ' लेकिन हम भारतीय तो सन ४७ से ही कह रहे है की पाकिस्तान हमारा सगा भाई है '
ज़रदारी तो कुटनीतिक कार्ड खेल रहे है जिसका विरोध खुद हर पाकिस्तानी कर रहा है .जैसे आज पुरे विश्व को लग रहा है की हिंदुस्तान एक उभरती आर्थिक शक्ति है .वैसे ही ज़रदारी यह समझ गए है की हमारी खस्ता हाल अर्थव्यवस्था को भारत ही उभार सकता है ..
हर एक हिन्दुस्तानी अतिथि सेवा जानता है और उसने दिल खोलकर हर पाकिस्तानी का स्वागत किया है .उसे यह सिध्ध करने की ज़रूरत नहीं है की हर हिन्दुस्तानी में पाकिस्तानी बसता है ..
भारत में तो चुनाव विकास के मुद्दों पे लड़े जाते है लेकिन पाकिस्तानी नेता तो भारत विरोधी बयानों से जीतकर आते है .गाँधी एक हिन्दू भारतीय होने के बाद भी पाकिस्तान के हितों के बारे में सोचते रहे और यही उनके मौत का कारन बना .हम सब गाँधी के देश के ही है .मगर सन ४७ के समय के पाकिस्तानी नेता और आज के पाकिस्तानी नेता कितनी बार इमानदारी से भारत के विषय में सकारात्मक सोच रखते होंगे ... हर बार हमने ही दोस्ती का हाथ बढाया .हर मुस्लिम हमारा भाई है यह हर ये सोच हर हिन्दू भारतीय रखता है लेकिन हर मुस्लिम पाकिस्तानी पाकिस्तान के चाँद हिन्दुओ को अपना भाई नहीं समझता है ..
पाकिस्तान के हिन्दू घुटन भरी जिंदगी जी रहे है ..
लेकिन फिर भी जहा तक मै समझता हूँ हिन्दुस्तानी और पाकिस्तानी के नस्ल एक है खून एक है जड़ एक है तो ज़ाहिर सी बात है की एक हिन्दुस्तानी में एक पाकिस्तानी और एक पाकिस्तानी में एक हिन्दुस्तानी ही बसेगा कोई अंग्रेज नहीं बस सकता .ज़रदारी ने कोई बड़ी बात या नई बात नहीं कही .बस इस विचार पे जो धुल पड़ी थी उसको झाड़ने का कम किया है ..वह अन्दर से इसको कितना निभायेंगे ये वक़्त बताएगा . विवेक राय
धमॆ के नाम पर शुरू हुई राजनीति आज तक देश को भटका रही है। इतिहास को न ही छेड़े तो अच्छा है। क्योंकि ये वो घाव हैं, जो कभी भरे नहीं। जो बंटवारे के समय थे, वे अब बूढ़े हो चले। आज जो हम युवा हैं, उन्होंने उस वक्त के पाकिस्तान को देखा नहीं। वतॆमान में जो स्वरूप है, उसमें पाकिस्तान का नाम जुबान पर आते ही एक अजीब चेहरा उभरता है। कमजोर, अंदरूनी हिंसा से पीड़ित और भटका हुआ। अभी मुझे नहीं लगता है कि हिंदुस्तान में कोई उठ कर कह देगा कि उसके भीतर भी थोड़ा पाकिस्तानी रहता है। क्योंकि दूरियां इतनी बढ़ गयी हैं कि उसे मिटाने के लिए लंबा समय चाहिए।
ReplyDeleteमैं कहता हूँ कि मेरे अंदर एक मुसलमान और पाकिस्तान रहता है.
ReplyDeleteRavish Ji,
ReplyDeleteApke Blog padhkar kabhi kabhi nirasha hoti hai. Ap aur apki so called "secular" media. Apne to bade pyar se sadhvi ko atankwadi bana dia aur ek shabd bata dia "Hindu Atankwad". Jab amar singh ne Batla house pe prashn uthaya tha tab ap chup kyun the. Main nahi janta Pragaya aur unke sathi gunehgar hain ya nahi lekin ye dekhkar dukh hota hai ki el muslim ke atankwadi hone pe ham majahab ka nam na istemal karne ki hidayat dete hain aur ab ham Bhagwa atankwad ka dhindhora pitte ghum rahe hain. Kya Mumbai ki ghatna ko ap Islami ya har atankwad kahne ka sahas rakhte hain. Kya kabhi ap apne news channel pe Chand sitare ko atankwad ke chinh ke taur pe dikha sakte hain jaise apne Trishul ko dikhaya.
Aj pakistan bolta hai Bharat ne pahle bhi ghantnao me pakistan aur ISI ka nam bola jo bad me unke hi log andar ke hath ki bat karte hain. kya apko nahi lagta ki Mumbai ATS ka Samjhauta Blasts ke bare me dia gaya gair jimmedarana bayan kahi na kahi is shak ko majboot karta hai ki sab sach nahi hai.
Kash Ap log apni nazaro se chadm dharmnirpekshta ka chasma utar paenege kabhi.
क्या आपको लगता है कि दूसरा पाकिस्तान नही बनेगा. ६२ साल किसी इन्सान के लिए लंबा समय होता है देश के लिए नही. फिर जब बंटवारा होगा तो कोई अली खान उसका समर्थन ही करेगा. ऐसा नही है कि सभी ने समर्थन किया हो पर बंटवारा तो हुआ. विरोध हुआ था क्या. आप अगले २५ साल में देख लीजियेगा. अभी देश कि राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक सभी कि हालत ख़राब है.
ReplyDeleteरवीश जी लेख में सचमुच जीवटता है सचाई है और एक मक़सद से भरा है एक-एक शब्द। मैं आपकी इस भावाभिव्यक्ति की क़द्र करता हूँ। सफ़दर के बहाने कितना कोसा है आपने बेचारे आडवाणी को गेरुओं को और अच्छा ताना मरा है तमाम ऐंसे पूर्वाग्रहियों के मुँ पर, जो मोहम्मद देख पाकी....देशद्रोही..और भगवा देख राष्ट्रीय सोच में जीते है। आपको इस लेख के लिए साधुवाद। सचमुच अपने मानस के असंतोष को किसी कथानक में घोल लोगों को भावुक कर पिला दिया जाता है, ये आपसे कोई सीखे।
ReplyDeleteRavish ji,
ReplyDeleteaapke blog par सफ़दर अली ख़ान लौटना चाहते हैं"padhkar bahot hi immotion hone laga, abhi mai HAJ par hun, yahi par bhi ek family jo pakistan se aayi hai bata rahe hai HAME HAMARA INDIA YAD AA RAHA HAI.
yahan Allah ke ghar mai bhi vo HAMVATANO se milkar hamare HINDUSTAN ko yad kar rahe hai
thanks for your new Report
Rahi Masoom Raza said
ReplyDelete“Main Pakistan se mohabbat nahin kar sakta. Mujhe bahut bura lagta hai jab mujhe kewal Hindustani na keh kar Hindustani musalmaan kaha jata hai. Koi Hindustaani Hindu, Hindustaani sikh ya Hindustani isaai nahin kha jata , lekin main Hindustani musalmaan kah jaata hoon”
Suhaib
HindustaaniRahi Masoom Raza said
ReplyDelete“Main Pakistan se mohabbat nahin kar sakta. Mujhe bahut bura lagta hai jab mujhe kewal Hindustani na keh kar Hindustani musalmaan kaha jata hai. Koi Hindustaani sikh ya Hindustani isaai nahin kha jata , lekin main Hindustani musalmaan kah jaata hoon”
Rahi Masoom Raza said
ReplyDelete“Main Pakistan se mohabbat nahin kar sakta. Mujhe bahut bura lagta hai jab mujhe kewal Hindustani na keh kar Hindustani musalmaan kaha jata hai. Koi Hindustaani Hindu, Hindustaani sikh ya Hindustani isaai nahin kha jata , lekin main Hindustani musalmaan kah jaata hoon”
Suhaib
A PERFECT LETTER TO PM.
ReplyDeleteLETTER TO PRIME MINISTER
Dear Mr. Prime minister
I am a typical mouse from Mumbai. In the local train compartment which has capacity of 100 persons, I travel with 500 more mouse. Mouse at least squeak but we don't even do that.
Today I heard your speech. In which you said 'NO BODY WOULD BE SPARED'. I would like to remind you that fourteen years has passed since serial bomb blast in Mumbai took place. Dawood was the main conspirator. Till today he is not caught. All our bolywood actors, our builders, our Gutka king meets him but your Government can not catch him. Reason is simple; all your ministers are hand in glove with him. If any attempt is made to catch him everybody will be exposed. Your statement 'NOBODY WOULD BE SPARED' is nothing but a cruel joke on this unfortunate people of India .
Enough is enough. As such after seeing terrorist attack carried out by about a dozen young boys I realize that if same thing continues days are not away when terrorist will attack by air, destroy our nuclear reactor and there will be one more Hiroshima .
We the people are left with only one mantra. Womb to Bomb to Tomb. You promised Mumbaikar Shanghai what you have given us is Jalianwala Baug.
Today only your home minister resigned. What took you so long to kick out this joker? Only reason was that he was loyal to Gandhi family. Loyalty to Gandhi family is more important than blood of innocent people, isn't it?
I am born and bought up in Mumbai for last fifty eight years. Believe me corruption in Maharashtra is worse than that in Bihar . Look at all the politician, Sharad Pawar, Chagan Bhujbal, Narayan Rane, Bal Thackray , Gopinath Munde, Raj Thackray, Vilasrao Deshmukh all are rolling in money. Vilasrao Deshmukh is one of the worst Chief minister I have seen. His only business is to increase the FSI every other day, make money and send it to Delhi so Congress can fight next election. Now the clown has found new way and will increase FSI for fisherman so they can build concrete house right on sea shore. Next time terrorist can comfortably live in those house , enjoy the beauty of sea and then attack the Mumbai at their will.
Recently I had to purchase house in Mumbai. I met about two dozen builders. Everybody wanted about 30% in black. A common person like me knows this and with all your intelligent agency & CBI you and your finance minister are not aware of it.. Where all the black money goes? To the underworld isn't it? Our politicians take help of these goondas to vacate people by force. I myself was victim of it. If you have time please come to me, I will tell you everything.
If this has been land of fools, idiots then I would not have ever cared to write you this letter. Just see the tragedy, on one side we are reaching moon, people are so intelligent and on other side you politician has converted nectar into deadly poison. I am everything Hindu, Muslim, Christian, Schedule caste, OBC, Muslim OBC, Christian Schedule caste, Creamy Schedule caste only what I am not is INDIAN. You politician have raped every part of mother India by your policy of divide and rule.
Take example of former president Abdul Kalam. Such a intelligent person, such a fine human being. You politician didn't even spare him. Your party along with opposition joined the hands, because politician feels they are supreme and there is no place for good person.
Dear Mr Prime minister you are one of the most intelligent person, most learned person. Just wake up, be a real SARDAR. First and foremost expose all selfish politician. Ask Swiss bank to give name of all Indian account holder. Give reins of CBI to independent agency. Let them find wolf among us.. There will be political upheaval but that will better than dance of death which we are witnessing every day. Just give us ambient where we can work honestly and without fear. Let there be rule of law. Everything else will be taken care of.
Choice is yours Mr. Prime Minister. Do you want to be lead by one person or you want to lead the nation of 100 Crore people?
Dear Hindustanio!
Assalam-o-alaikum!
Above is an open letter to Mr. PM by the editor of TOI/Mumbai.
As you all……., I am shocked, ashamed (ashamed ‘cause they claimed to be Muslims), confused….
But in this post independence era it has not been evident that we are from a society that is systemically emptied out by inequality, corruption, dogmatism and injustice.
The causal chain having two visible tracks:-
1. Congress stood Bhindrawale to counterbalance the Akalis
Bhindrawale creates terrorism
Mrs. Gandhi comes against terrorism
Terrorism killed Mrs. Gandhi
Slaughtering of faultless Sikhs in Delhi
Next 10 yrs: - killing of countless innocents, militants and security men
2. Incendiary rath-yatras by BJP
Pulling down of Babri Masjid by inflamed Kar sewaks
Ensuing of riots
Mumbai blasts by revengful Muslims
Decade after train compt. of kar sewaks burnt in Godhra
Result slaughter of 2000 Muslims
Retributory violence so on
Stop this for the sake of God
La ikrah fiddin
I’m writing this with all tears!
Aansuon ki jahan paimaali rahi
Who basti charaghon se khali rahi
Rahi Masoom Raza said
“Main Pakistan se mohabbat nahin kar sakta. Mujhe bahut bura lagta hai jab mujhe kewal Hindustani na keh kar Hindustani musalmaan kaha jata hai. Koi Hindustaani Hindu,Hindustaani Sikh ya Hindustani isaai nahin kha jata , lekin main Hindustani musalmaan kah jaata hoon”
Think and write, write and think beyond womb to bomb to tomb!!!
Allah Hafiz
Suhaib Ahmad Farooqui