एक हिंदू का आत्ममंथन

आत्ममंथन सिर्फ मुसलमानों का एकाधिकार नहीं है। हिंदू का भी है। फर्क सिर्फ इतना है कि मुसलमानों को आत्ममंथन से थोड़े दिनों के लिए आराम मिल गया होगा। इन दिनों हिंदू भाई लोग बिज़ी हो गए हैं आत्ममंथन में। रमेश उपाध्याय और ले कर्नल पुरोहित जैसे नामुराद देशभक्तों ने अपने ऊपर पुलिसिया आरोपों का चादर ओढ़ मुझे परेशान कर दिया है। कई दिन से आत्ममंथन किये जा रहा हूं। कम्पलीट हिंदू आत्ममंथन। एक दो मुस्लिम भाइयों को भी पुकारा। आइये न आप भी मेरे ही साथ आत्ममंथन कर लीजिए। मना कर दिया। गरम हो गए और बोले कि क्या आप हिंदू ने मेरे साथ आत्ममंथन किया था। अपना अपना आत्ममंथन होगा अब से।

साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर पर लगे आरोपों को हिंदू आतंकवाद नहीं कहा जाना चाहिए। इस दलील से मैं एकदम सहमत हूं। सभी हिंदू आतंकवादी नहीं होते। इससे आहत हो सकते हैं। लेकिन मालेगांव धमाके में पकड़े जा रहे सभी लोग हिंदू ही क्यों हैं? ज़रूर सारे हिंदू आतंकवादी होंगे। जब मैं यह लिख रहा था तो एक मुसलमान रोने लगा। कहने लगा भाई गृहमंत्रालय से आंकड़े तो ले आइये। पचासों धमाके में मरने वाले दो ढाई हज़ार लोगों के साथ हम पंद्रह करोड़ मुसलमान भी मारे जा चुके हैं। आतंकवादी बता कर। क्योंकि सारे आतंकवादी मुसलमान ही होते हैं। अच्छा है आप आत्ममंथन कर रहे हैं।

अभिनव भारत। हिंदू जागरण मंच। इंडियन मुजाहिदीन। मुझसे एक मौलाना ने कहा था कि हो सकता है कि कोई और धमाका कर रहा हो। मुस्लिम आतंकवादी मस्जिद पर क्यों करेगा जब इस्लाम के नाम पर धमाका करेगा। कहीं कोई हिंदू तो नहीं। तब मेरे एक हिंदू मित्र ने कहा कि हिंदू आतंकवादी नहीं हो सकता। सनातनी हो सकता है। हम सहिष्णु लोग है। इस्लाम तलवार से फैला है और हिंदू धर्म संस्कार से। हमने अपने संस्कारों के दम पर ही दलितों को नालियों के किनारे रहने पर मजबूर कर दिया। इस्लाम भी तो इन्हीं नालियों के किनारे फैला। दलितों की हिम्मत जो हमारे रास्ते से गुजर जाएं। डरपोक दलित तलवार से डर गए। कुछ इस्लाम की तरफ चले गए। और हम कुछ नहीं कर पाए। सहिष्णु हैं। अब कुछ करना चाहते हैं इसलिए सांप्रदायिक हो रहे हैं। अभिनव भारत बना रहे हैं। साध्वियों को काम पर लगा रहे हैं।

तो गप्प बंद करता हूं। आत्ममंथन कर रहा हूं। उपाध्याय और पुरोहित को नहीं जानता। साध्वी से नहीं मिला। तो क्या हुआ। तीनों हिंदू तो हैं। आरोप साबित नहीं हुआ तो क्या हुआ। आरोप तो हैं। जब आरोपों के दम पर पंद्रह करोड़ मुसलमान आत्ममंथन करने पर मजबूर किये जा सकते हैं तो सनातन और सहिष्णु हिंदुओं को खुद से करना चाहिए। आत्ममंथन के लिए सबसे ज़रूरी है अपना घर बेचकर जामिया नगर में मकान खरीदना चाहिए। मुसलमानों से घुलमिल कर रहना चाहिए। आखिर सारे हिंदू जामिया नगर से अलग क्यों रहते हैं। क्यों ग्रेटर कैलाश और फ्रैंड्स कालोनी में रहते हैं। एक जगह क्यों रहते हैं। एक जगह रहने से घेटोआइजेशन होता है। एक तरह की मानसिकता बनती है। आतंकवादी मानसिकता को बढ़ावा मिलता है। मैं कुछ नहीं कर रहा। बस पुरानी दलीलों और विश्वेषणों को साध्वी और पुरोहित के करतूत के बहाने वृहत हिंदू समाज पर अप्लाई यानी लागू कर रहा हूं। एक शब्द मे आत्मंथन कर रहा हूं।

माफ कीजिएगा। देर हो गई। आत्ममंथन की तरह अमृतमंथन के इतिहास से डर रहा था। अमृत मिला नहीं कि देवता और असुर आपस में भिड़ गए। तिकड़म करने लगे। जब से यह कहानी जानता हूं किसी भी तरह के मंथन से डर लगता है। कहीं कुछ मिल न जाए और लोग भिड़ न जाएं। लेकिन कोई बात नहीं। तिकड़म भी की जाएगी। पहले आत्मंथन तो कर

34 comments:

  1. गनीमत है आपको 'मुटभेड़' की जाँच की माँग नहीं करनी होगी ।
    - अफ़लातून

    ReplyDelete
  2. ये कहना ज्यादा अच्छा होगा कि आतंकबाजी और बारूदबाजी पर अब मुसलमानों का एकाधिकार नही रह गया।

    ReplyDelete
  3. रवीश जी आत्ममंथन करना सिखाएगा कौन?

    ReplyDelete
  4. kya is nafrat ki koi intaha bhi hai??

    ganesh rawat

    ReplyDelete
  5. kya is nafrat ki koi intaha bhi hai??

    ganesh rawat

    ReplyDelete
  6. यह बहुत सटीक व्यंग्य है। अक्सर मैं और सुधीर विद्यार्थी भी आपस में इस प्रकार का आत्ममंथन कर लिया करते हैं।
    सब कुछ मंथन की जद में बह चुका है।

    ReplyDelete
  7. डरपोक दलित तलवार से डर गए। कुछ इस्लाम की तरफ चले गए।......शायद इतिहास थोङा और पढें तो ठीक रहेगा.....अधिकतर उच्च वर्ण के लोगों ने ही इस्लाम को स्वीकारा था..तथाकथित निम्न वर्णों के मुसलमान फिर भी कम थे....और सब तलवार के बल पर ही गये थे ...किसी ने स्वेच्छा से नहीं स्वीकारा..कोई उदाहरण हो तो ज्ञान वर्धन करें

    ReplyDelete
  8. आत्ममंथन होना ही चाहिए, आखिर हिन्दुओं को हार कर गलत रास्ता क्यों अपनाना पड़ रहा है, समय रहते रोकना होगा.

    ReplyDelete
  9. मालेगांव और मोदासा बम विस्फोट में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और उसके कुछ साथियों की संलिप्तता के बाद जो लोग इसे हिन्दू आतंकवाद कह रहे हैं, वह गलत कह रहे हैं। इस बात को बार-बार दोहराया जा चुका है कि आतंकवाद को धर्म से जोड़ना गलत ही नहीं, खतरनाक भी है। सिमी, इंडियन मुजाहिदीन, हुजी या लश्कर-ए-तोयबा के लोग न तो सभी मुसलमानों के नुमाइन्दा हैं और न ही संघ परिवार और उससे सम्बन्ध रखने वाली साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर सभी हिन्दुओं का प्रतिनिधित्व करती है। विडम्बना यह है कि जो लोग आतंकवाद को इस्लाम से जोड़ने का विरोध कर रहे थे, वही अब हिन्दू आतंकवाद की रट लगा रहे हैं। और जो आतंकवाद को इस्लाम से जोड़ रहे थे, वे अब सफाई देने की मुद्रा में कह रहे हैं कि हिन्दुत्व में आतंकवाद के लिए कोई स्थान नहीं है। अपने गुलाम से भी बराबरी का सलूक करने की सीख देने वाला इस्लाम, दया और सहिष्णुता को प्राथमिकता देने वाला हिन्दुत्व आतंकवाद की पैरवी नहीं कर सकता। समस्या न तो इस्लाम है और न ही हिन्दुत्व। समस्या वे कट्टरपंथी हैं, जो अपनी दुकानदारी चलाने के लिए अपने-अपने धर्मों के कुछ लोगों को गुमराह करके बम धमाकों में मासूम और बेगुनाह लोगों की जान लेने के लिए उकसाते हैं।
    संघ परिवार ने हिटलर के सहयोगी गोएबल्स की तर्ज पर इस्लामी आतंकवाद का प्रचार करके आतंकवाद को इस्लाम और मुसलमानों से जोड़कर जहरीला प्रचार किया। जब मुसलमानों और धर्मनिरपेक्ष लोगों की तरफ से यह कहा गया कि कुछ सिरफिरे लोगों की हरकत के लिए इस्लाम और देश के सभी मुसलमानों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता तो शब्दों का मायाजाल बुनने में माहिर संघ परिवार ने यह कहना आरम्भ किया कि 'ठीक है सभी मुसलमान आतंकवादी नहीं हैं, लेकिन सभी पकड़े गये आतंकवादी मुसलमान ही क्यो हैं ?÷ क्या संघ परिवार प्रज्ञा सिंह के पकड़े जाने के भी यही कहना जारी रख सकेगा ? क्या अब यह नहीं कहा जा सकता कि मालेगांव और मोदासा के बम धमाकों में लिप्त पाए गए सभी लोगों का सम्बन्ध संघ परिवार से ही क्यों है ? संघ परिवार अपनी स्थापना (१९२५) से ही किसी भी बहाने मुसलमानों और ईसाईयों को निशाना बनाता चला आ रहा है। उसने गुजरात नरसंहार को गोधरा की स्वाभाविक प्रतिक्रिया बताया तो कंधमाल में धर्मांतरण को मुद्दा बनाकर ईसाईयों के पीछे पड़ा हुआ है। संघ परिवार की हरकतों की आलोचना करने वालों को पूरा संघ परिवार एक स्वर में छदम धर्म निरपेक्षवादी प्रचारित करता है।
    संघ परिवार की रोजी-रोटी मुसलमानों और ईसाईयों के अस्तित्व पर ही चलती है। दिल्ली से प्रकाशित एक हिन्दी दैनिक की एक रिपोर्ट के मुताबिक खुफिया संगठनों ने प्रज्ञा सिंह ठाकुर की गिरफतारी के बाद सरकार को एक साल पहले दी गयी अपनी एक रिपोर्ट की ओर ध्यान आकृष्ट किया है। रिपोर्ठ में खुलासा किया था कि देश में दस से अधिक ऐसे हिन्दु कट्टरपंथी संगठन चल रहे हैं, जिनके द्वारा संचालित स्वयंसेवी संस्थाओं को अमेरिका, कनाडा और अन्य यूरोपीय देशों से लोक कल्याण के नाम पर भारी आर्थिक मदद मिल रही है। लोक कल्याण और सेवा कार्यो के लिए प्राप्त किए गए इस धन का प्रयोग देश में साम्प्रदायिक तनाव भड़काने और अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने के लिए किया जा रहा है। रिपोर्ट में गुजरात की तरह ही कर्नाटक और उड़ीसा में भी हिंसा होने की आशंका व्यक्त की गयी थी। ख्ुफिया संगठनों ने सरकार को यह रिपोर्ट एक साल पहले ही दे दी थी।
    यह सही है कि देश में गुजरात हुआ। बाबरी मस्जिद का विध्वंस हुआ। और भी बहुत कुछ हुआ। इसके लिए देश के सभी हिन्दु जिम्मेदार नहीं हैं। न्याय नहीं मिला, यह भी सही है। सच यह भी है कि गुजरात मुद्दे पर हर्षमन्दर और तीस्ता तलवार जैसे हिन्दु संघ परिवार के सामने सीना तान के खड़े हो जाते हैं। सैकुलर मीडिया भी गुजरात नरसंहार पर मजलूमों के साथ खड़ा था। यही लोग मजलूम मुसलमानों की पैरवी करते रहे हैं। हर्षमंदर वो शख्स हैं, जिन्होंने गुजरात दंगों के विरोध में अहमदाबाद शहर के जिलाधिकारी के पद से इस्तीफा दे दिया था। याद करें, क्या कभी किसी मुस्लिम सांसद या विधायक ने बाबरी मस्जिद विध्वंस और गुजरात दंगों के विरोध में इस्तीफा दिया था ? सिमी, इंडियन मुजाहिदीन और लश्करे तोयबा जैसे संगठनों द्वारा किया गया प्रत्येक बम धमाका संघ परिवार को मजबूती प्रदान करता है तो संघ परिवार की कारगुजारियां सिमी जैसे संगठनों के कृत्यों को तर्क प्रदान करती हैं। दोनों को एक दूसरे का पूरक कहना सही होगा।

    ReplyDelete
  10. सिद्दकी जी...इतना निष्पक्ष लेख मैंने आजतक किसी का लिखा हुआ नहीं पाया था-चाहे वो बड़े हिंदू बुद्धिजीवी हों,मुस्लिम विद्वान। सभी कहीं न कहीं मन में पक्षपात लिए रहते हैं। लाख धमाकों के बावजूद इस मुल्क में हिंदू और मुसलमान साथ-साथ रहना चाहते हैं। अगर दिक्कत है तो नेताओं में। इतना विपरीतगामी, पिछड़ा और दकियानूसी नेतृत्व हिंदूस्तान के अलावा किसी मुल्क में नहीं है। और बुद्धिजीवी तो और भी माशाल्लाह है-उनके पास सिर्फ सेमिनारों ,क्लासरुमों और न्यूज चैनल स्टूडियो का ज्ञान रह गया है। ये सही है कि जिस तरह सैकड़ों धमाकों से पूरा मुसलमान समुदाय आतंकवादी नहीं हो जाता, उसी तरह साध्वी और उसके कुछ चेलों से पूरा हिंदू समाज कैसे आतंकवादी हो सकता है। बिवेचना इसकी नहीं हो कि कौन आतंकवादी है-फोकस इसपर हो कि उन्हे कड़ी से कड़ी और त्वरित सजा मिले और मुकदमा लंबा न खिचे।

    ReplyDelete
  11. इस्लाम तलवार से फैला है और हिन्दुधर्म संस्कारों से ,सारे घपले हद दर्जे तक कुछ ओढ़ने छिपाने की तरह है,ये आत्ममंथन सार्थक है और सलीम भाई की दूध पानी जैसी टिपण्णी भी ,दोनों को साधुवाद .

    ReplyDelete
  12. बेगानी जी की बात से सहमत हूँ की आत्ममंथन होना ही चाहिए, आखिर हिन्दुओं को हार कर गलत रास्ता क्यों अपनाना पड़ रहा है, समय रहते रोकना होगा.

    ReplyDelete
  13. मुसलमानों का नैतृत्व सलीम अली सिद्दकी जैसे लोगो के हाथ में हो यह देश व मुसलमानों के हित में होगा, कम से कम उन्होने जो लिखा है उसके आधार पर यही कहा जा सकता है.

    मैं संघी नहीं हूँ अतः उस पर कुछ भी कहने का मुझे अधिकार नहीं, बेहतर है शाखाओं में जाकर देखा जाय.

    ReplyDelete
  14. Atma-manthan ke liye pehle atma aur paramatma mein anter khojna hoga...

    ReplyDelete
  15. जरुरत है जी बिल्कुल जरुरत है ....नही सोचेगे तो ये देश गृहयुद्ध की आग में जल जायेगा ..वैसे इस शब्द ने आपको बड़ा परेशान किया है लगता है ......

    ReplyDelete
  16. सलीम सिद्दीकी से सहमत कि नेता लोग ही सब कुछ करवाते हैं, लेकिन फ़िर मुस्लिम और हिन्दू मिलकर कांग्रेस नाम की इस बुराई को जड़ से समाप्त क्यों नहीं कर देते, जो हर समस्या के लिये सबसे अधिक दोषी है…

    ReplyDelete
  17. संघ कुछ हद तक पथभ्रष्ट हो चुका है। संघ में अब वो लोग आने लग गए हैं जिनका उद्देश्य राष्ट्रवाद के नाम पर इस्लाम का विरोध करना है। जिन लक्ष्यों के साथ संघ की स्थापना हुई थी आज संघ में वो बात देखने को नहीं मिलती। गोलवलकर जी के समय से ही इस तरह के उग्र हिंदुत्ववादी विचार धारा पोषित हुई जो आज इस तरह से रंगं दिखा रही है। जन सेवा और राष्ट्र निर्माण के लक्ष्य से बना संघ आज गलत दिशा में जा रहा है। इसका कारण वो चं लोग है जो मूर्ख औक धर्मांध हैं और इस संगठन में ऊंचे स्तरों तक पहुंच गए हैं। और किन्ही एक दो के कारण पूरे संगठन को बदनाम करना सही नहीं है। कौन आदमी कैसा है इसके बारे में कोई भविष्यवाणी नहीं कर सकता।
    मालेगांव में मुस्लिम बहुल इलाके में हुए धमाकों में तो हिन्दुओं का हाथ पाए जाने पर मच रहे हाहाकार पर मैं एक सवाल और उठाना चाहता हूं। ये बताएं कि दिल्ली की जामिया मस्जिद और हैदराबाद की मस्जिद में हुए धमाकों का दोषी कौन है? क्यूं नहीं उसका पता करके आरोपियों को पकड़ा गया। इस सिलसिले में एक पत्रकार के सवाल पूछने पर उसे जो तमाचा मारा गया था, आज भी मुझे विचलित करती है। किसी भी नतीजे पर पहुंचकर कोई राय बनाने से पहले इन सवालों का जवाब ढूंढना ज़रूरी है।

    ReplyDelete
  18. आत्ममंथन होना ही चाहिए, आखिर हिन्दुओं को हार कर गलत रास्ता क्यों अपनाना पड़ रहा है, समय रहते रोकना होगा.

    ReplyDelete
  19. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  20. घेटोआइजेशन हो रहा हैं
    आप के इस आत्ममंथन के चक्कर में चक्कर आ रहे हैं अच्छा हुवा मेने खड़े होकर आत्ममंथन नहीं किया नहीं तो गिर जाता उसी तरह जेसे सामाजिक मूल्य गिर रहे हैं रविश जी अब तो अमृत के बगैर ही रोजाना अमृत मंथन हो रहे हैं आप समझे न किस अमृत के लिए कलाली के सामने रोजाना मंथन होते हैं बस फर्क इतना हैं की इस मंथन में देवता हैं न असुर...
    बहुत खूब आप ने लिखा हमने पड़ा और आपकी शैली में कमेंट्स करने की कोशिश

    ReplyDelete
  21. आतंकवाद का कोई मजहब नहीं होता ..सिमी,लश्कर,इंडियन मुजाहिदीन,बब्बर खालसा इंटरनेशनल,सेवा के नाम पर गरीब लोगों को धर्म बदलने का लालच देने वाले सफेद लोग,या फिर नफरत का नया नाम जो साध्वी प्रज्ञा और उसके सहयोगियों के रूप में हिंदू आतंकवाद के नाम में सामने आया है...ये सभी देश के दुश्मन हैं कोई भी इनकी पैरवी करता है..इन्हें सही ठहरता है वो सच्चा नहीं है..भारतीय नहीं है...लेकिन आरोप चाहे बटला हाउस एनकाउंटर मामले में आजमगढ़ के जामिया में पढ़ने वाले छात्रों पर लगे हों..या साध्वी प्रज्ञा पर...जब तक कोर्ट सजा नहीं दे देता किसी को भी आतंकवादी नहीं कहा जा सकता..लेकिन सबसे चिंता वाली बात मालेगांव धमाके के मामले में सेना के सेवारत और एक रिटायर अफसर की गिरफ्तारी से है..इससे सबसे ज्यादा कष्ट पहुंचा है..एक आम हिंदुस्तानी को जिसे अब भी भारतीय सेना की निष्ठा,निष्पक्षता,ईमानदारी और कर्तव्यपरायणा पर सबसे ज्यादा भरोसा है..किसी हिंदू के आतंकवादी होने से ना तो मुस्लिम समुदाय के चेहरे पर हंसी आने होने के जरूरत है..और ना ही कुछ मुसलमान युवकों के आतंकवादी होने से पूरी मुस्लिम कौम को आतंकवादी समझने वाले हिंदूओं को..जो गलत है..वो गलत है.चाहे वो किसी भी मजहब का हो..जाति या क्षेत्र का हो..लेकिन जो लोग बम और धमाकों से ज्यादा खतरनाक, नफरत की बोली औऱ जहर घोल रहे हों..उन्हें कौन सा आतंकवादी कहेंगे..क्या जाति-बिरादरी,के आधार पर वोट मांगने,भ्रष्टचार,लूट खसोत,बेईमानी,अपराध में शामिल होने के बावजूद चुनाव का टिकट पाने..और जीतकर..देश चलाने वाले उन लोगों के बारे में आत्ममंथन.ब्लगमंथन. की सबसे ज्यादा जरूरत लगती है..

    ReplyDelete
  22. neta chahe hindu ho ya muslim dono hi corruption karte hai.dono hi niji hit ke liye galat tarike se kaam karte hai.main apki baat se sahmat hoon par in netao ka kya kiya jay.AB NAGRIKO ko hi jagruk hona padega unke hi samajhne se kuck hoga.kab tak ek ek ko samjhaya jayega.jab aam janta jagruk ho jayegi tab kisi kattarpanthio ki dukaan nahi chalegi chehe wo hindu ya muslim

    ReplyDelete
  23. आत्‍मलंठन कहें?.. वेरी गुड गुगली है..

    ReplyDelete
  24. आपने सबसे पहले आत्मंथन किया और ये पाया कि अपने आप को धर्म निरपेक्ष पत्रकार साबित करने का ये बेहतरीन अवसर है ....अगर आपने इमानदारी से आत्म मंथन किया है तो ये बताइये कि आप जामिया नगर में रहने कब से जा रहे हैं औऱ वहाँ के मुसलमानों के दिलों में पहले से मौजूद हिन्दुओ के प्रति प्रेम को और बढाने के लिए आपके प्रयास की बहुत आवश्यकता है...............

    ReplyDelete
  25. हेंडिंग अगर हिंदू के जगह इंसान की बात करती तो और मजा आता... बाकि सब कुछ ठीक है.... हिंदू हिंदू ना हो गया आचार हो गया... पानी मत लगने देना सड़ जाएगा.....


    पता नहीं कितने बकवास हैं, जो होने बाकि हैं हिंदू और मुसलमान के नाम पर....

    ReplyDelete
  26. कुछ सत्य... कुछ असत्य।

    ReplyDelete
  27. Hindu aur muslim aatankvaad ko ,mahaz elections se pahle ,ek hi kathgare main kharaa karne kai liye saadhu vaad .manniya aatankvaad to aatankvaad hi hai .isme haraa aur kesariyaa ek samaan hai .kirpaa karke aatankvaad jaise vightan kaari mudde ko rango kai mayaa jaal se door rakhen .yeh desh aur deshvaasiyon ke liye uchit aur labhkaari hogaa.

    ReplyDelete
  28. हाँ!
    सही है !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
    आत्मा मंथन तो होना ही चाहिए !
    जितनी जल्दी हो ......उतना भला !!!!!!!!!

    ReplyDelete
  29. लेकिन इस मंथन से जहर निकलेगा की अमृत ?और अगर दोनो निकला तो कौन किसका?फ़िर जिन्ना और फ़िर गांधी फ़िर विभाजन वैगेरह....

    ReplyDelete
  30. Raveesh ji aap bhi hava ke jhonko ke saath ud chalen...aap se bebaakpan ki ummeed rahti hai

    ReplyDelete
  31. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  32. In the light of Mumbai event and the death of ATS and subsequent political mileage by Modi/Advani/Congress is crass and below the belt.

    sorry - have not the fluency of using the hindi keyboard yet

    ReplyDelete