देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती....ये देश है वीर जवानों का अलबेलो का मस्तानों का...इस देश का यारो क्या कहना....वतन की राह में नौजवां शहीद हो...नन्हा मुन्ना राही हूं देश का सिपाही हूं...बोलो मेरे संग जय हिन्द...जय हिन्द...जय हिन्द। वंदे....मातरम....वंदे मातरम...।
पंद्रह अगस्त आ रहा है। गांव गांव में ये सारे गाने फिर से गूंजने वाले हैं। इकसठ साल की आज़ादी के जलसे के दो तिहाई से भी ज़्यादा हिस्से में यानी पंद्रह अगस्त को देशभक्ति के ये गीत बजे होंगे। ये बजते हैं तो स्मृतियां भी अपनी कोठरियों से बाहर निकलने लगती हैं। झांकने लगती हैं। उस झंडे वाले को,जलेबी वाले को और पंतगबाज़ों को देखने के लिए। स्कूल दुकान,शराब से लेकर मांस तक दफ्तर सहित सब बंद। मुख्यमंत्रियों की सलामी और प्रधानमंत्री का राष्ट्र के नाम संदेश।
आज़ाद भारत बहुत बदल गया। नहीं बदला तो पंद्रह अगस्त। थोड़ा बहुत बदलाव आया भी तो पंद्रह अगस्त के जलसे के दायरे से बाहर। आज़ादी के हैंगओवर से मुक्त शराब के हैंगओवर या टीवी सीरीयल के हैंगओवर से जागे भारतीयों के लिए बिग बाज़ार का मेगा सेल। इंडिपेंडेंस धमाका। एक दो साल तो खूब भीड़ मची। सस्ते एक्सचेंजों में गैस के चूल्हे बदल गए। लेकिन इससे भी पंद्रह अगस्त नहीं बदला।
शायद इसीलिए हम सब के ज़हन में पंद्रह अगस्त तमाम तरह की यादों का दिन है। स्कूल की टीचर से जलेबी मिलने का दिन हो या पिता जी के साथ बजाज स्कूटर पर बैठकर शहर के बड़े मैदान में होने वाले जलसे में शामिल होने का दिन..या फिर खाली सड़क पर तेज साइकिल या स्कूटर चलाने का दिन। पंद्रह अगस्त देशभक्ति के गीतों के शोर में डूबा रहने वाला दिन है। अख़बारों के पन्नों पर आज़ाद भारत की तमाम कहानियों का दिन होता है। ग़रीबी की कहानी, कामयाबी की कहानी। विडंबना की कहानी।
लेकिन पंद्रह अगस्त अपने आप में कहानी। अब तो हमारी हाउसिंग सोसायटी के चबूतरे पर चंद लोग झंडा फहराते हैं। कुछ गायक किस्म के बच्चे गाना गा देते हैं। लड्डू बर्फी मिल जाती है। आज़ादी को याद करने का रस्म भी है। मगर वो पंद्रह अगस्त नहीं जो हम सब के ज़हन में है। बिना बदले हुए । हर बार की तरह देशभक्ति गीतों के ज़रिये हुंकार भरता हुआ आता है। ऐ मेरे वतन के लोगों..ज़रा याद करो कुर्बानी...लता की यह आवाज़ जैसे जैसे मद्धिम होते हुए तेज होती है..पंद्रह अगस्त रोम रोम में उतरने लगता है।
ditto. You say independence day and the first thing that comes to my mind is Jalebi :)
ReplyDeleteGeet to nahin badale... Mithai ki jagah TOffee aur Chocolate jaroor ho gaye hain !
ReplyDeleteदिल्ली के अंग्रेजी अखबार वैसे ही रोज घर में कुछ ज्यादा कूड़ा भर देते हैं १५ अगस्त को कूड़ा और आता है.... सारे बैंक जो किसानो को लोन नही देते किसानो के हाथो में एक तिरंगा देकर बड़ा सा लिख देते हैं Happy Independence Day..
ReplyDeleteअब लोग छुट्टी की इंतज़ार करते है ,चैनल वाले देशभक्ति की फिल्म दिखाते है....ऊँचे लोग जे हिंद बोलते हुए शर्माते है....स्कूलों में लड्डू शायद अभी भी मिलते हो....बस एक बेचारा दूरदर्शन अभी तक वैसा ही है....
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ReplyDeleteaaj bhi lagta hai school ke dino mein wapas chale jao.....15 august aate hi wo sare desh bhakti geet miss karte hu jisse ga ke garv hota tha apne bharat ke aajad hone pe usske peeche ki kurbani ka ehsaas hota tha lekin aaj aajadi ka din simat sa gaya hai. jalebi khane se tiranga fahrane se geet gane taak saab kuch badal badla sa lagta hai yu lagta hai charo taraf formality ho rahe hai kae log esse chutti ka din samajh kar ghar se bahar kaak nahi nikalte, bache 15august what a big deal samajh kar school taak nahi jate sochte hai jalebi khane ke liye school jane ki kya jarurat hai.aaj jadatar log pm ka speech faltu ki bakwas samajh ke nahi sunte.ho har baat jo ajadi ke din ko yaad karne ke liye celebrate karne ke liye hua karte the dhudhle se hote ja rahe.ajad bharat ke saal jaise jaise badhte ja rahe hai waise waise eska jashan kaam hota ja raha hai.
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है। सच में देशभक्ति केवल कुछ ही दिन की होती है यहाँ।
ReplyDeleteपंद्रह अगस्त ना होता तो शायद हमसे से कई लोगों को अपना झंडा पहचानने के लिए अपनी अक्ल पर ज़ोर देना पड़ता... ज्यादात्तर लोगों के लिए पंद्रह अगस्त के मायने अनिवार्य छुट्टी के सिवा कुछ नहीं रह गए हैं... हां उन नेताओं का काम पंद्रह अगस्त के दिन जरुर बढ़ जाता होगा... जिनके हाथ अपनी गंदी राजनीति के केसरिया और नीले झंडे उठाने के आदी हो चुके हैं...
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