यह कहानी विष्णु सक्सेना की है। ६६ साल की उम्र में जेएनयू में टॉप करने वाले विष्णु सक्सेना की है। एम ए की प्रवेश परीक्षा में विष्णु सक्सेना ने छात्रों के वर्ग में टॉप किया है। अब कहानी लौटती है चालीस साल पीछे।
१९६३ में उज्जैन के विष्णु सक्सेना भारतीय सिविल सेवा में चुने जाने से पहले किसी प्रयोगशाला में लैब असिस्टेंट की नौकरी करते थे। पंद्रह साल की उम्र में विष्णु सक्सेना के पिता का देहांत हो गया तो अपनी और परिवार की ज़िंदगी का बोझ उनके कंधे आ गया। पंद्रह साल की उम्र में लैब असिस्टेंट की नौकरी करने लगे। इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई के बाद पढ़ने का काम बंद हो गया था। ये १९५० के दशक के आखिरी सालों की बात होगी। उस वक्त प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के पसंदीदा नौकरशाह एस के दे ने एक योजना चलाई थी,सामुदायिक विकास की। इसके तहत देश के कई इलाकों में ग्रामीण विश्वविद्यालय की स्थापना की गई थी।( इसी तरह का कुछ था)विष्णु सक्सेना को आगे की पढ़ाई का रास्ता दिख गया।मगर इस विश्वविद्यालयनुमा संस्थान में वादा किया गया कि प्रोविजनल स्नातक की डिग्री मिलेगी जिसे बाद में पूरी मान्यता मिल जाएगी। मान्यता नहीं मिली। एस के दे के निधन के साथ ही यह योजना बंद हो गई। लेकिन किसी तरह विष्णु सक्सेना उस ज़माने में जब सिविल सेवा में अंग्रेजी का वर्चस्व था, भारतीय पोस्ट एंड टेलीग्राफ सेवा में चुन लिये गए। १९९९ में ५८ साल की उम्र में रिटायर कर गए। अपने विभाग के ऊंचे पदों में से एक से रिटायर हुए सक्सेना कविता लिखने लगे और कई तरह के काम करने लगे। जवानी से ज़्यादा सक्रिय हो गए।
इस बीच भारत सरकार का ग्रामीण संस्थान कार्यक्रम अपनी बुनियाद ईंट गारे समेत जहां था वहां से नदारद हो गया। जेएनयू में एडमिशन के लिए उनसे माइग्रेशन मांगा गया। जब उन्होंने अपने इस आखिरी संस्थान का पता किया तो फाइलों में भी नहीं मिला। अब शायद उन्हें दाखिला मिल रहा है। इस उम्र में वो नौजवान विद्यार्थियों की क्लास में इस लिए गए क्योंकि उन्हें लिमका बुक में नाम दर्ज नहीं कराना था। बल्कि इतिहास का गहन अध्ययन करना था। प्राचीन भारत के इतिहास का। खास कर जैन और बौद्ध धर्म का। विष्णु अंकल अब छात्र हैं। इतिहास में लौटने की ललक उनकी किस मानसिक परेशानी की देन है वही जानते होंगे लेकिन उनका खुद का इतिहास काफी दिलचस्प रहा होगा। मैं बहुत नहीं जानता। सुन कर यह कहानी लिख रहा हूं। उनसे बिना पूछे मैं उनका नंबर दे रहा हूं। 09871382030। क्या पता कहानी इससे भी आगे बढ़
सक्सेना अंकल के जज्बे को सलाम!
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ReplyDeleteप्रेरक !
ReplyDeleteहमारे समाज में ऐसे अनेक उदहारण हैं जिन्होंने हार नही मानी।
ReplyDeletehttp://rajeshkamal.blogspot.com/2008/02/blog-post_18.html
prernaspad udahran...
ReplyDeleteबहुत प्रेरक प्रसंग है ..सक्सेना जी के जज्बे से सभी को सीख लेनी चाहिये। और हां इस पोस्ट में ऐसा क्या था जिसके कमेंट आपको डिलिट करने पडे।
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