माइक थेवर के बारे में बहुत पहले लिखा था। माइक अमरीका में एक सफल उद्योगपति हैं। पांच सौ करोड़ रुपये की कंपनी है।
माइक पैसा कमाने के लिए उद्योग नहीं चला रहे। माइक और उनकी पत्नी हर साल भारत से तीस दलित युवकों को अपने साथ अमरीका ले जाते हैं। उन्हें अपने घर में रख कर प्रशिक्षण देते हैं। अंग्रेज़ी सीखाते हैं और अपनी कंपनी में काम करने के लिए मौका देते हैं। इन युवकों को पूरी छूट होती है कि वो चाहे तो दूसरी कंपनी में भी नौकरी कर सकते हैं। इस तरह से माइक ने मौके की तलाश में भटक रहे कई दलित युवकों को एक नई ज़िंदगी है। उनके पास बताने के लिए बहुत कुछ है। मेरी कल उनसे मुलाकात होगी। आप भी चाहे तो माइक से मिल सकते हैं।दिल्ली के सांगरिला होटल में ठहरे हैं।
क्या मिलने के लिये दलित होना जरूरी है ?
ReplyDeleteवैसे आप और ये इन्सान से कब मिले थे ,जरा सोचियेगा दलितेश्वर बाबा :)
जी दलित होना बिल्कुल ज़रूरी नहीं है। दूसरी बात का जवाब देने का मन नहीं कर रहा क्योंकि लगता है कि आप किसी बात से आहत हैं। फिर भी कोशिश करता हूं। इंसान से भी मुलाकात होगी अगर आप मथुरा के सनी ठाकुर से मिल पाते जिन्होंने परसो एक छह या नौ साल की दलित लड़की को कूड़े के जलते ढेर में फेंक दिया। क्योंकि वह मासूम ठाकुरों के रास्ते से गुज़रने की हिम्मत कर गई।
ReplyDeleteमेरी राय में आप इन लोगों से मिलें और जानने की कोशिश करें कि आखिर उनके मन में किस वजह से चिढ़ पैदा होती है जब वो एक दलित को देखते हैं। फिर इंसान या मानवीय होने के रूमानी ख्यालों से भी मुलाकात होती रहेगी।
इन्हीं सब संदर्भों में अरूण जी इस तरह के व्यक्ति की कोशिश महत्वपूर्ण हो जाती है। थेवर जातिवाद बनाए रखने के लिए किसी दलित को नहीं ले जा रहे हैं बल्कि उन सवर्णों के बीच से रास्ता बनाने के लिए उन्हें तैयार कर रहे हैं। ताकि वो उन लोगों के बराबर हो सकें जो उन्हें कभी बराबर होते देखना तक नहीं चाहते।
सामाजिक बदलाव के तमाम पहलु हैं। थेवर ने इंसानियत का ही काम है कि वो उस तबके के लोगों को ले जा रहे हैं जिनके लिए यहां का समाज रास्ता तक नहीं दे सकता।
अब यह मत कहियेगा कि सवर्णों में गरीब होते हैं। या फिर सारे सवर्ण जातिवादी नहीं होते। यह भी सच्चाई है तो क्या इस भरोसे सनी ठाकुर जैसे से लड़ना बंद कर दें या इसी भरोसे किसी को आगे बढ़ाने का काम रोक दिया जाए।
मैं तो मिलने नही जा पाउँगा लेकिन उन्हें मेरी और से कहियेगा की वो जो करते हैं उसे दूसरो को भी बताये इसलिए नही की प्रचार हो बल्कि इसलिए की उससे और कई थेवर बन सके और वही काम कर सके जो वह करते हैं. थेवर का मार्ग हमेशा सुगम बना रहे
ReplyDeleteरवीश जी ऎसा क्यो होता है कि जब कोई दलित कि बात करता है, उनके विकास कि बात करता है तो अरुण जेसॆ लोग इस तरह का रियेक्सन क्यो दिखाते है, क्यो वो इस तरह कि भाषा का इस्तेमाल करते है ।
ReplyDeleteदेवेन्द्र कुमार
हमारी ओर से भी एक नमस्ते कह मारियेगा..
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ReplyDeleteagar unke prashikshit dalit bandhu bhi waisi hi unchaiyon par pahuch jayen, aur we bhi thewar jaisa hi kaam karen to kya mushkil hai maansikta badal jana... lekin aksar log dusron se ummid karte hain, aur jab khud dusroon ki madad karne ki halat me hote hain to kanni kaat jate hain.... aisa kyon hota hai....
ReplyDeleteravish ji namaste, main mike ji ke bare mein kadmbani patrika mein pada tha, koi contact address or email address mil sakta hai mike thewar ji ka.
ReplyDeleteक्या करें रवीश जी,इतने बड़े संसार में कुछ लोग आप और सनी ठाकुर जैसे भी हैं जो हर अच्छे या बुरे काम, दोनों में जातियां ढूंढते हैं.अब ऐसे लोगों को निकाल कर बाहर तो नहीं किया जा सकता ना.
ReplyDeleteमाइक जी बहुत अच्छा काम कर रहे है. हम भी अपने गाव मे वैसा हि काम करते है. अपने खेतो मे काम के लिये हमेशा मौका देते है. खेत भी देते है ऊनको खुद के लिये अपने मन के अनुसार खेती करने के लिये. हार्वेस्टर का विरोध करते है उनके लिये. उनके हर दुख सुख मे सामिल होते है. काम नहि जानते है तो ट्रैनिन्ग भी देते है (उदाहराण के तौर पर ट्रैक्टर चलाना). छुट भी देते है कि अगर दुसरा ट्रैक्टर और ज्यादा पैसा मिले तो जा सकते है. ऐसा लगता है कि हम, माइक और राज ठाकरे (वो भि अपनी कम्पनी मे विशेश लोगो को हि रखना चाह्ते है) ज्यादा नोबुल काम कर रहे है. फिर हम सवर्ण के नाम पर क्यो बदनाम किये जाते है. माइक जी को अपना गाव ले जाना चाहुन्गा और दिखाउन्गा कि कैसे हम अपनी औकात के अनुसार आपके जैसा काम करता हु. वैसे माइक जी का काम काबिले तारिफ़ है. रविश जी ऊन्हे बिहार के गावो से प्रतिभा खोजने का सलाह दिजियेगा. बहुत अच्छे अच्छे (दलित) प्रतिभा गावो मे हि रह जाती है.
ReplyDeleteकिसी के भावना को ठेस पहुचे तो क्रिपया गाली ना दे. दिल मे आया लिख दिया.
-सर्वेश
अपने देश मे भी बहुत लोग माइक जी जैसा अच्छा काम करते है. ऊन्हे भी प्रोत्साहित करना चाहिये.
ReplyDeleteप्रसन्ग को देखते हुए पटना के आइ पि एस अभयानन्द जी कि याद आती है. बहुत लोगो खास कर समाज के गरिब तबके के लोगो का आइ आइ टी का सपना पुरा करते हुए अमेरिका का भी सपना पुरा किये. कहि घर कि मुर्गि दाल बराबर वाली हाल तो नहि? आप उनका भी कभी वर्तालाप प्रकशित किजियेगा. अगर पहले से होगा तो लिन्क दे दिजियेग.
मथुरा वाली खबर सुनकर मैं थोड़ा आहत हो गया था लेकिन अब थोड़ा कम परेशान हू क्योंकि लड़की के माँ ने आरोप लगाया है की उसके पति ने लड़के के पिता के खिलाफ वोट दिया था. अगर आपसी रंजिश में यह किया गया है तो यह थोड़ा कम परेशां करने वाली घटना है बरक्स इसके की उसे जाती के नाम पर जलाया गया
ReplyDeleteAnd now finaly Ambani step on Mr Thevar Path. Read this Newshttp://www.zeenews.com/articles.asp?aid=440228&sid=BUS&ssid=50
ReplyDeleteसर्वेश जी रवीश जी पटना के आईपी एस का नम नही दे सकते काहे कि वो गरीबो की मदद करते है दलित के नाम पर राजनीती नही ना ही दलित नेताओ और समाज के दलित अमीरो की मदद
ReplyDeleteराजेश जी मथुरा वाली खबर का सच रवीश जी भी जानते है पर बोलेगे नही ,इन्हे दलित कांड बता कर अपनी टी आर पी जो बढानी है
काहे रवीश भैया सच सुन कर मिरची लगी ?
अब मिर्ची लगी तो मै क्या करू :)
वैसे आपका मन तो अब बिलकुल भी जवाब देने का नही कर रहा होगा,सच आप बोल नही सकते
और झुठ के पाव नही होते,वैसे हम आप की मजबूरी समझते है जी,हमे भी गोयबल्स से सच सुनाने की कोई आशा ना आज है ना तब थी जब आपको सवालो के जवाब के लिये वक्त नही था जी, वैसे सच बताना ,सवालो के जवाब थे बहुत मुश्किल आप जैसे झुठ जुगाडू लोगो के लिये है ना ? , कोई बात नही मस्त रहो नोट कूटॊ झूटः बोलो आग लगाओ देश को खड्डॆ मे धकेलॊ,तुम जैसो से और कॊइ उम्मीद भी नही की जा सकती
सर नमस्कार मेरा कद आपके सामने बहुत छोटा है मगर फिर कुछ कहने की कोशिश कर रहा हूँ , ऐसा नहीं लगता की दलित होना इस देश मैं अब वरदान सा हो गया है सिर्फ जाती कई आधार पर लोगों को उनकी काबलियत से ज्यादा मोके मिल जाते हैं ,मैं एक उद्धरण देना चाहूँगा मेरे घर के बगल मैं एक मीना जी रहते हैं जो रेलवे मैं आरक्षण कई कारन अधिकारी से निवृत हुए ,उनके बड़े लड़के को कस्टम मैं नौकरी मिल गयी और अब उनके छोटे लड़के को भी आरक्षण कई आधार पर नौकरी मिल गयी ,,यह परिवार अब करोड़ पति हो गे है मगर दलित होने का फायदा उन्हें आज भी बदुस्तुर मिल रहा है ,,यह कहाँ का इन्साफ है ???मैं भी एक राजपूत माध्यम वर्गीय परिवार से हूँ मैंने अपने परिवार मैं कितने होनहार बच्चों को देखा है जो सिर्फ मौका न मिलने कई कारन इस देश और व्यवस्था से नाराज़ हैं इसमें उनका क्या दोष ??हमारे पूर्वजों ने गलतियाँ की होंगी उसकी सजा हमें क्यूँ ???आप भी बिहार से हैं सर वहाँ कई अगडे और पिछडों मैं कितना अंतर रह गया है आप भी जानते हैं ,,,सवाल सुविधाओं का नहीं है बल्कि इससे समाज बाँट रहा है और अगडों और पिछडों मैं अंतर और बढ़ रहा है ,,आपसे एक बार फ़ोन पर बात भी हुई है और मैं आपका बड़ा प्रसंसक हूँ मगर मेरे मन मैं बचपन से यह सवाल उमड़ रहा है क्या आपके पास इसका कोई सटीक जवाब है की मेरी और मेरे कई साथियों की व्यथा शांत हो सके ???
ReplyDeleteरवीश जी हमारे देश में लीडर्स का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता है, शायद इसीलिए चीयर लीडर्स का भी कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता है। आप इस बारे में क्या कहते हैं?
ReplyDeleteNamaskar Ravish ji, aapka phone number aur email id meel sakta hai mujhe. 'lall_raj@hotmail.com'
ReplyDeletedhanywad.
अरुण जी, यदि कोई दलित इस प्रकार से किसी ब्राह्मण को विदेश ले जाये तब भी रवीश जी बहुत-बहुत खुश होंगे। रही बात देखने-दिखाने की, तो लोगों को सेवा भारती और विद्या परिषद के दलित गाँवों में किये काम नहीं दिखते, न ही संघ के बौद्धिक मे दलित,राजपूत, ब्राह्मण एक साथ एक पंगत में बैठकर खाते दिखाई देते हैं, असल में संघ बगैर प्रचार के कई अच्छे काम कर रहा है, लेकिन उसके कार्यक्रमों में "नकली पत्रकारों" का आना निषिद्ध है…
ReplyDeleteDear Ravish
ReplyDeleteSaurabh told me about the meeting, and that you were also there.
It is because of men like Mike that at least a few are able to escape burning at the stake set up for them in Mathura, Muzaffarpur and, may be, Malviya Nagar as well.
A handshake in thoughts
r
If Ravish jee agrees to what Rahul Pandita has said then let me put this way. Because of him (Mike), some of them are escaping from being marauders because of the trap set by Jaati ki Dalals. Many are taking Naxalism (so called) as a profession to earn quick bucks and kill people. Rahul your thinking is such poor. I laugh on your thoughts.
ReplyDeleteYou folks are covering a story of such a gentle person and making it dirty by relating his story with some goons act (some thakur)
मै सुरेश जी से सहमत हूँ, आज देश सेवा बस्तियों में संघ के विभिन्न संगठनों के द्वारा इतने सेवा कार्य चल रहे है कि यह विश्व का सबसे बड़ा सामुदायिक कार्यो में एक होगा। कि आज कल के कुछ पत्रकारों को मलाईदार आदमी की मलाई खाने और उनकी कवरेज करने के आदी हो रहे है। यही कारण है कि आज मीडिया गर्त में जा रहा है।
ReplyDeleteइन सब का कारण स्पष्ट है कि इनकी कवरेज करने पर फाईफ स्टार होटल में फ्री में नश्ता पानी की व्यवस्था होती है और संघी कार्यक्रमों के कवरेज में जमीन पर बैठ कर दलितों के मध्य भोजन। तो इन पत्रकारों को काहे न विदेशी करतब दिखेगा।
जहॉं तक ठाकुरो वाली बात है तो भाड़े की मीडिया के भाड़े के टट्टूओं को अराजक न्यूज ही प्रकाशित करनी आती है। अगर मीडिया आपना दायित्व समझे और सही अर्थो में समाज में जो अच्छे काम हो रहे है उसे उजागर करें तो शायद ही मथुरा जैसी घटना घटे।
रवीश जी अरुण जैसे लोगों को ही reactionary कहा जाता है. आप अच्छा काम करते रहिये. पता नही अरुण जी पत्रकार हैं की नही, अगर पत्रकार होते तो पता चलता की दलित उत्पीरण की खबरों से TRP नही बढ़ती. कमसकम रवीश जी और NDTV पर कोई ये आरोप नही लगा सकता की TRP के लिए ऐसा करते हैं. कल रात आपने जो माइक थेवर की भोज में बातें कही, वो सच साबित हो रही है. दिल ये सोच के कचोटता है की अगर माइक ऐसे निर्मम वक्तव्य पढेंगे तो कितना आहात होंगे. अरुण जी और मित्र जो इन्तेग्रेशन और इंसान की बात करते हैं उनके लिए एक लिंक है. जरूर पढिएगा. बिल कॉस्बी अमेरिका के अफ्रीकन अमेरिकन कोम्मुनिटी को क्या नसीहत दे रहे हैं. http://www.theatlantic.com/doc/200805/cosby
ReplyDeleteसौरभ शाही
सर्वेश जी
ReplyDeleteमाइकल थेवर ने बिहार के दलितों को भी अमरीका ले जाने का विचार किया है। पहले महाराष्ट्र से ही ले जाते थे क्योंकि वे उसी राज्य के हैं। लेकिन उन्होंने उत्तर प्रदेश और बिहार से भी दलित नौजवानों को ले जाने का फैसला किया है।
अरुण जी
मैं जाति नहीं ढूंढता हूं। आप इतने भी भोले मत बनिये। जाति आपकी सोच में है। लोगों की हरकतों में हैं। अगर वो दिन आ जाए कि वाकई जाति ढूंढनी पड़े तो इससे अच्छा दिन कोई नहीं होगा।
सर्वेश जी अच्छी बात है कि आप आज़ादी दे रहे हैं मज़दूरों को कि वो ज्यादा मज़दूरी के लिए दूसरों की खेत पर चले जाए। वैसे आप नहीं देंगे तो भी चले जाएंगे। वो अधिक मजदूरी कमाने के लिए आपसे आज़ादी नहीं मांगेंगे। इसलिए आप कोई अहसान तो नहीं कर रहे। रही बात प्रशिक्षण की तो अच्छा है।
मज़दूरों को कुशल बनाने का काम सराहनीय है।
यह जो बहस है वो जाति को ढूंढने के लिए नहीं हो रही है। न ही इसकी ज़रूरत है। आप भले ही जातिवाद के खिलाफ हों लेकिन सब तो नहीं हुए है। वैसे प्रतिक्रिया देखकर लगा नहीं कि आप जातिवाद के खिलाफ हैं।
मैं इस विषय पर लिखता हूं। क्योंकि मैं इसी के बारे मे पढ़ता लिखता रहता हूं। शायद इस वजह से आपको लगा होगा कि मैं बार बार जाति की बात क्यों करता हूं। अब इतनी आज़ादी तो मुझे है ही।
अरुण जी आपने मीणा जाति के अफस के बारे में लिखा है। फिर आप आरक्षण पर बहस करने लगते हैं। वो जो भी हैं आरक्षण की बदौलत ही हैं। वरना तो सवर्ण समाज ने सामने से गुजरने की इजाजत ही नहीं दी। और माइकल थेवर की बात के संदर्भ में आप आरक्षण को लेकर क्यों कूद पड़े।
एक बात समझ में आती हैं वो ये कि आप आरक्षण के घोर समर्थक हैं। आपको आपत्ति इस बात से है कि आईपीएस के बेटे को क्यों मिल रहा है। यह बहस का अलग मसला है। सभी जाति के लोगों को संसाधनों में आरक्षण मिला है। वरना तो गांव में एक ही ज़मींदार के पास पांच सौ एकड़ ज़मीन हुआ करती थी। उद्योगपतियों ने सरकारी ज़मीन से लेकर नीतियों में अपने लिए आरक्षण मांगे हैं। आईआईटी की पढ़ाई के लिए सरकार सब्सिडी देती है। फीस से ज़्यादा। जब वह बाकी नैसर्गिक प्रतिभाशाली छात्रों को सब्सिडी दे सकती है तो दलित छात्रों को क्यों न दें। आरक्षण का लाभ सिर्फ दलित नहीं लेता है। वो उसका हक है। सुविधाओं में तमाम तरह के आरक्षण का लाभ तो सवर्णों को अधिक मिलता है।
विवे्क
ReplyDeleteअभी जल्दी में हूं लेकिन आपकी बातों का जवाब ज़रूर दूंगा।
Chiranjeev, I think you need some fresh air. Go to the nearest park and open up. You don't know a fig about Naxalism. Some of the country's best minds are battling it out in the jungles infested with malaria and what not!
ReplyDeleteYou may not beliieve in their ideology but you have no right to make sweeping statements which lack any ground.
Meanwhile, I can live with my 'poor' thinking. The question is: can you?
Rahul,
ReplyDeleteThe other way round is also true. From both sides there are best minds who are working for best causes like Ravishjee etc (being Sawarn). Yaa I am not aware of fig of Naxalism but the guy who holds gun is not best of the minds. He is spoiling his and his kids life by killing people on behalf of so called best minds. I wish if this best mind couldn't have used fooled him then today he also could have been part of Mike's trip. I challange you if you can oppose any of my words logically rather bluntly suggesting for fresh air. I am very much aware of level of best minds.
Hi
ReplyDeleteDearest Ravish, keep doing the incredible work you have been doing. There are some people- some times majority of them, who will question you.But,we ought to take a humanitarian view and sympathize with them.The Caste arrogance can some time be without any motives as the caste regulated person may not be doing things as per any plan. It is often a socio-psychosomatic problem where sense of the caste superiority gets into the very Central Nervous System
CNS]. For instance, there may be dinner party where guests are relishing goat meat, but all of a sudden, news breaks that the meat supplier had served dog-meat. Many guests can immediately develop nausea and start omitting all over. But, as a matter of fact,
the meat was of goat and that of dog. How do we explain this? There was no problem with the meat, the
problem was with an idea- that of dog meat. It was that idea which disturbed the Physiological condition of the guests as for ages our CNS has stored the idea
of rejecting dog meat.
Likewise, those who hate Dalits may not be actually anti-Dalit as they are victims of the age long caste system where Dalits are seen in a certain way.
So, instead of developing any negative feeling about such people, we ought to sympathize with them, and offer Dalit Therapy as the remidy.
Cheers
chandra bhan prasad