नोट- उत्तर प्रदेश के ज़िला ग़ाज़ियाबाद के वैशाली स्थित मार्केट सेक्टर फोर से यह तस्वीर ली गई है। रविवार की दोपहर अविनाश से बातचीत करते हुए अचानक इस पर नज़र गई। डा हरि नाम का यह दर्ज़ी इस दौर में नए आइडिया के साथ हाज़िर है। वो एक डाक्टर है। तुरपई नहीं करता बल्कि जख्मों की सीलता है। जख़्म शब्द को डा हरि ने ख़ून से रंग दिया है। जो हमारे कपड़ों के इधर उधर से फट जाने की व्यथा कह रहा है।
मान गए रवीश भाई...एन आईडिया कैन चेंज़ योर लाईफ़....है न।
ReplyDeleteऐसे ही मुंबई में एस.एन.डी.टी. हॉस्टल के बाहर एक सैंडविच वाला था, वो खुद को सैंडविच का डॉक्टर कहा करता था। लड़कियां ठिठोली करतीं, अरे भईया, कहीं मेरा टोस्ट जल न जाए तो वो भी लडि़याते हुए जवाब देता था, जब तक डॉक्टर के हाथ में है, सैंडविच खराब नहीं हो सकता। और जेएनयू कैंपस का एक लेडीज टेलर खुद को टेलरिंग का शाहरुख खान बताता था, था क्या, अभी भी होगा। जैसे शाहरुख बॉलीवुड का सितारा है, हम टेलरिंग के सितारे हैं।
ReplyDeleteसेक्टर चार से कभी सेक्टर तीन होते हुए डाबर की तरफ़ बढिये तो आपको एक बोर्ड मिलेगा--"ईमानदार प्रॉपर्टी डीलर". अच्छा है आपने इस दिलचस्प बोर्ड की तस्वीर ली वरना ये दृश्य बस थोडे दिनों के मेहमान हैं.
ReplyDeleteरवीश जी इसे ही सही मार्केटिंग कहते हैं.नाम ऐसा रखिये के लोगों को याद रहे.और इसे कौन भूल सकता है.
ReplyDeleteमोलिक ब्लॉगिंग, अच्छा ताड़ा
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ! जबर्दस्त आइडिया है । इन्हें तो अपनी दुकान की विश्व भर में चेन चला देनी चाहिये । बहुत चलेगी ।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
ऐसे कई उदाहरण मिल जाएगे। एक है भोपाल में। न्यू मार्केट जाते वक़्त रास्ते में जूतों के डॉक्टर का क्लिनिक है जो जूतों की बिमारियों को ठीक करने में खुद को बेस्ट मानता है। इस छोटी-सी मोची की गुमटी पर शायद किसी न्यूज़ चैनल में 90 सेकण्ड का पैकेज भी चला है। राहत की बात ये है कि जूतों की किडनी नहीं होती है।
ReplyDeleteदीप्ति।
कपड़े लेडिज़ के ही जख्मी होते है? दहलाने वाला सत्य है. तस्वीर दूबारा देखें.
ReplyDeleteबाकि सही पकड़ा.
जब बोर्ड में बयां ख़ून इंसानी जज़्बातों को बहतरी के साथ परोस सके तो कहना ही क्या?
ReplyDeleteआज जब हर कोई कुछ अलग करना चाहता है तो ऐसे में ये दर्ज़ी भी इससे अलग नहीं है। आख़िर वो भी तो एक इंसान है,एक प्रगतिवादी ज़िन्दा इंसान।
इस फोटो को अपने इस ब्लॉग में शामिल करके श्रीमान रवीश ने भी ये साबित कर दिया कि उन्हें भी अनोखी या उटपटांग चीज़ें ही भाती हैं। आख़िर आप भी तो एक इंसान हैं।
(इस ब्लॉग में मैने एक पत्रकार और रवीश के व्यक्तित्व को अलग रखने की पूरी कोशिश की है)
स्मृति
जब बोर्ड में बयां ख़ून इंसानी जज़्बातों को बहतरी के साथ परोस सके तो कहना ही क्या?
ReplyDeleteआज जब हर कोई कुछ अलग करना चाहता है तो ऐसे में ये दर्ज़ी भी इससे अलग नहीं है। आख़िर वो भी तो एक इंसान है,एक प्रगतिवादी ज़िन्दा इंसान।
इस फोटो को अपने इस ब्लॉग में शामिल करके श्रीमान रवीश ने भी ये साबित कर दिया कि उन्हें भी अनोखी या उटपटांग चीज़ें ही भाती हैं। आख़िर आप भी तो एक इंसान हैं।
(इस ब्लॉग में मैने एक पत्रकार और रवीश के व्यक्तित्व को अलग रखने की पूरी कोशिश की है)
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