जय श्री राम रमेश बनाम डीएमके के राम

जय राम रमेश तो बिल्कुल जय श्री राम रमेश के अंदाज़ में बोले। ऐसा लगा कि राम के अस्तित्व न होने की बात को वो अपने दिल पर ले बैठे। उन्हें लगा कि पार्टी को उनके भी मंत्री न होने का ऐतिहासिक प्रमाण नहीं मिल रहा है। वो नज़र आते ही नहीं हैं। बेचारे रमेश जी। जब कांग्रेस विपक्ष में थी तब तमाम तरह के आंकड़े जमा कर राजनीतिक का आर्थिक विश्लेषण कर रहे थे। उन्हें लगा कि सरकार बनेगी तो पार्टी महत्व देगी। बड़ी मुश्किल से मंत्री बने तो मन आहत हो गया। पढ़े लिखे होने के बाद भी राज्य मंत्री का दर्जा। इतना सब होने के बाद भी जयराम रमेश राजनीति में चुप रहने या मीठा बोलने के कारण जाने जाते हैं।

चुनौती अब दी है। जब राम सेतु को लेकर सियासी दल और नेता दौड़ रहे हैं। अंबिका सोनी मां अबे की तरह बता रही थी कि अफसर ने गलती कर दी। कानून मंत्रालय ने देखा नहीं। राम की आस्था के खेल में दो अफसरों का घर इस वक्त राम को कितना याद कर रहा होगा...वही जानते होंगे। वे लोग राम को कैसे याद कर रहा होगा इस पर चुप रहूंगा। बहरहाल बात जय राम रमेश की हो रही है। उन्होंने जय और राम के बीच श्री जोड़ लिया। एलान कर दिया कि अगर मैं मंत्री होता तो नैतिकता के सवाल पर इस्तीफा दे देता। राम रमेश ने मान लिया है कि राम के प्रमाण न होने की बात से नैतिकता का उल्लंघन हुआ है।


पलटकर अंबिका ने भी कह दिया कि मैं जय राम नहीं हूं। वो अंबे आप जय राम। हिंदू धर्म में हर देवी देवता अपना अलग प्रसार करते हैं। उनका अलग महत्व है। सब मिल कर सामूहिक प्रचार नहीं करते। सबके भक्तों को अलग सेना है। सबके लिए पूजा के अलग दिन है। तो अंबिका जयराम कैसे हो जाती। और जय राम जय श्री राम कैसे हो गए? इसका जवाब देखना होगा। आखिर इस अर्थशास्त्री नेता को क्या हुआ है। उम्मीद थी कि वो सेतुसमुद्रम प्रोजेक्ट को लेकर कुछ आंकड़े पेश करेंगे। बतायेंगे कि भारत की आर्थिक प्रगति होगी इस सेतु से। राजनीति नुकसान होगा। लेकिन वो तो सेतु स्वर में बोलने लगे। बाबा रे। सियासत में कब बुद्धि पर चादर पड़ जाए पता नहीं। राम के नाम के कारण सियासत पवित्र तो होती नहीं अलबत्ता गंदी हो जाती है। बल्कि किसी भी मज़हब के आते ही सियासत गंदी हो जाती है।

इसलिए दोस्तों। बोलो। चुप मत रहो।बोलो कि भगत सिंह ने जब कहा कि मैं नास्तिक हूं तो क्या उन्होंने किसी की आस्था को ठेस पहुंचाई थी।समाजशास्त्री और दलित लेखक कांचा इलैया ने किताब लिखी कि मैं हिंदू नहीं हूं तो क्या किसी को ठेस पहुंची थी। इन जैसे तमाम लोगों ने तमाम तरह की आस्थाओं को एकमुश्त नकार ही दिया।

हमारी संस्कृति में ईश्वर की सत्ता को हमेशा चुनौती दी गई है। लोगों ने महात्माओं से पूछा है और बहस भी हुई है। गीता में अर्जुन को कृष्ण आत्मा के वजूद के बारे में बताते हैं। इसे कोई मार सकता है न छेद सकता है न जला सकता है। यह कोई जवाब है भला। हम भी इसे सत्य मान कर बैठे हैं। जब बता रहे थे तो दिखा ही देते। अब कोई इसे अधूरा जवाब मानकर आत्मा की तलाश करने निकलेगा तो क्या करेंगे। उसे मार देंगे कि कृष्ण ने जब बोल ही दिया है तो अब आत्मा पर अनुसंधान क्यों? हिंदू सनातन परंपरा में ईश्वर पर सवाल उठे हैं और कहानियों में भी आता है कि किस तरह से ईश्वर ने भेष बदलकर अहसास कराया कि मैं हूं। ऐसी हज़ार कहानियां हैं।


मानो तो देव न मानो तो पत्थर। यह मुहावरा आया कहां से। किसी ने देव मानने से इंकार किया होगा तभी तो यह मुहावरा जन्मा होगा। अब लोग कहते हैं कि यही सवाल अल्लाह और ईसा के बारे में करेंगे। क्यों नहीं करेंगे। होता रहा है। पूरी दुनिया में नास्तिकों की परंपरा है जो ईश्वर अल्लाह और ईसा के वजूद को नकारता है। नकारने की आज़ादी होनी चाहिए।

ये ठेस का पहुंचना सिर्फ राम के रास्ते से ही क्यों गुज़रता है। जय श्री राम रमेश और मां अंबिका को पता होगा। उन्हें डर लग रहा है कि कहीं आडवाणी जी इस बार वोल्वो रथ से देशाटन पर न निकल जाएं।निकल जाएंगे तो क्या हो जाए।यूपी में ब्राह्मण अपना कमंडल ले गया दलितों के द्वारे। उन्ही के साथ सत्ता भजन में लगा है। सब राम को ढूंढ रहे हैं। राम हैं कि अयोध्या से निकल कर रामसेतु पहुंच गए हैं।


यही नहीं डीएमके नेता करुणानिधि तो राम के अस्तित्व को ही नकार रहे हैं। तो क्या करेंगे आप उत्तर भारत से कार सेवकों को लेकर जाकर दक्षिण पर हमला कर देंगे। करुणानिधि ने कहा है कि द्रविड़ संस्कृति पर आर्य संस्कृति थोपी जा रही है। वो बार बार कह रहे हैं बल्कि टीवी पर सीधा प्रसारण में आकर कह रहे हैं कि न राम हैं न सेतु है। दोनों काल्पनिक बाते हैं। करुणानिधि के इस बयान से सांप्रदायिक तनाव क्यों नहीं हो रहा है। सिर्फ कांग्रेस के बयान से ही क्यों भड़कता है? यह समझ में नहीं आता। अभी तक आडवाणी ने नहीं कहा कि करुणानिधि करोड़ों की आस्था का अपमान कर रहे हैं। एक अरब की आबादी में कितने करोड़ हैं राम के साथ। इसकी गिनती हो जानी चाहिए। फिर करोड़ों का भ्रम भी टूट जाएगा। ज़ाहिर है करुणानिधि के हमले पर वीएचपी, संघ और बीजेपी की चुप्पी बताती है कि राम दक्षिण में नहीं हैं।उधर के लोग नहीं मानते हैं। ज़ाहिर है राम को लेकर संघ परिवार चुनाव करता है। जब कांग्रेस राम के खिलाफ होगी तभी मुखालफत करेंगे। जब डीएमके वाले राम के बारे में बोलेंगे तो चुप रहेंगे। उसे ईशनिंदा नहीं कहेंगे। आडवाणी जी तो ईशनिंदा करने वालों को मृत्यु दंड दिलवाना चाहते हैं। करुणानिधि के बारे में क्या राय है भाई। ज़ाहिर है भारत के हिंदू होने का भ्रम इलाकाई है। खासकर उत्तर और पश्चिम भारत तक। जय श्री राम रमेश करुणानिधि को क्या कहेंगे कि यूपीए छोड़ दें नैतिकता के आधार पर। इस बार ऐसा बोलेंगे तो लिख लीजिए बेचारे भूतपूर्व मंत्री हो जाएंगे। सरकार जाएगी सो

5 comments:

  1. जय श्री राम जय श्री राम
    हो गया सबका काम
    चुनाव में फिर याद आएंगे
    हमारे राम
    बेरोजगारों को भी मिल जाएगा
    राम के नाम पर कुछ काम

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  2. यही तो हमारी सरकारों और मंत्रियों की दिक्कत है। जिस विषय पर बोलना चाहिए उस पर तो चुप्पी साध लेंगे और जिस पर कुछ कहने की जरूरत ही नहीं है उस के बारे में बात करेंगे। खासतौर पर जब इकोनोमिस्ट इस तरह की बात करे तो कुछ समझ में नहीं आता।

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  3. uper likhe dono comments ekdum sach hain. aaj ke netaon ke pas gala fadne ke sivay koi kam nahi hai. wo bhi aise mudde par jiska aamjanta se koi seedha vasta nahi hai. ise bajay agar sadak banane aur desh ke vikas par kuchh kam karein janta ka bhi bhala hoga aur desh ka.

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  4. जी बिल्कुल ... आपने एक मुहावरा लिखा है मानो तो देव नहीं तो पत्थर ... जवाब भी दिया है हिन्दू धर्म में सवाल दागने वालों की परंपरा पर ... सो पत्थर को पूजने वाले तो हैं !!! सो इस देश में अगर गांधी के राम को बचा रहने दिया जाए तो हर्ज नहीं होना चाहिए ... बाकि दागते रहें सवाल।

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  5. जय श्री राम और जयराम तथा अंबिका और मां अंबे वाली बात बढ़िया रही।
    बाकी तो अपने राम नें पूरा लेख पढ़ लिया, हर बार की तरह एक नंबर है।

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