(इरफ़ान अली सॉफ्टवेयर प्रोफेशनल हैं। नौजवान हैं। काम के सिलसिले में अमरीका गए थे। इस आशंका के साथ कि अमरीका में मुसलमान शक की नज़र से देखा जाता होगा। इस आशंका के साथ कि हिंदुस्तान में अमरीका की जितनी बुराई सुनी है..वैसा ही होगा। इरफ़ान ने जो भी देखा जितना भी देखा, लिखा है। तीन महीने में अमरीका को सिर्फ देखा ही जा सकता है)
आजकल हर न्यूज़ चैनल पर एक ही ख़बर देखता हूं। हर तरफ एक ही मुद्दा है। अमरीका के साथ परमाणु करार की। देश को अमरीका के हाथों बेचने की बात हो रही है। वैसे ही हम हिंदुस्तानी अमरीका के बारे में अच्छी बातें सुनकर नहीं बड़े होते। खुद पर ही गर्व करते रहते हैं। अपनी अच्छाई में अपनी गलती छुपा लेते हैं और दूसरे की बुराई में उसकी अच्छाई ढंक देते हैं। हमारी हालत कुएं के मेढक जैसी हो गई है।जिसके लिए कुआं ही संसार है।
मैं अमरीका में अपने तीन महीने के अनुभव के बारे में दो चार बातें लिखना चाहता हूं। ज़ाहिर है थोड़ी बहुत हिंदुस्तान से तुलना भी होगी। हम हिंदुस्तानी लोग पता नहीं क्यों अमरीका के बारे में इतना बुरा क्यों सोचते हैं। मैं भी बुरा ही सोचता था। इसी सोच के साथ अमरीका गया था। मगर धीरे धीरे मेरी सोच में कुछ बदलाव भी आया।
अमरीका एक अलग दुनिया है। जहां एक बेहतर व्यवस्था है। हर आदमी अपनी ज़िंदगी में व्यस्त और खुश है। हर शख्स अपनी मर्जी से जीता है। कोई किसी की ज़िंदगी में
दखल नहीं देता। अमरीका को लेकर कई राजनीति सवाल हैं जिनपर बहस चलते रहती हैं। मगर राजनीति से अलग अमरीका का एक समाज भी है। जिस पर चर्चा कम होती है।
सामाजिक रूप से अगर दुनिया में किसी भी धर्म का आदर है तो अमरीका में होता है। मैंने देखा कि जैक्सन हाइट्स की सड़क पर एक मौलाना साहिब माइक पर तकरीर कर रहे थे। हैरान होना लाज़िमी था। तकरीर का उन्वान था- दुनिया पर इस्लाम की हुकूमत कायम होने वाली है। दिन के वक्त। बीच सड़क पर। आने जाने वाले ठहर कर सुन रहे थे। मौलाना के लगाए पोस्टर को कोई नहीं फाड़ रहा था। फिर भी न्यूयार्क की पुलिस तैनात थी। लेकिन तकरीर में कोई व्यावधान नहीं था। लोग मौलाना को गौर से सुन रहे थे। सवाल जवाब का दौर भी चला। मैं ये सोच रहा था कि अगर यही तकरीर कोई मौलाना हिंदुस्तान की सड़क पर देता तो कैसी प्रतिक्रिया होती । अमरीका में यह काम बिना मुश्किल के हो रहा था।
मेरे दफ्तर में भी सारे कर्मचारी अमरीकी थे। वो मेरे दोस्त भी बने। कभी भेदभाव महसूस नहीं किया। हम सब सामान्य रूप से दोस्त बने। अक्सर चर्चा होती थी। एक दिन किसी चर्चा में मैं गर्व के साथ बता रहा था कि हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह दुनिया से सबसे पढ़े लिखे राजनेताओं में से एक है। वहीं किसी अखबार में जार्ज बुश और मनमोहन सिंह की तस्वीर छपी थी । मुझे केविन के उस जुमले पर हंसी आई जब उसने कहा कि एक तरफ सबसे पढ़े लिखे तो दूसरी तरफ बेवकूफ इंसान खडा है। हम सब हंस रहे थे। हिंदुस्तान में आजादी ोत सिर्फ शिवसेना बजरंग दल और वीएचपी जैसे सांप्रदायिक दलों को ही है। हम अमरीका को इस्लाम का दुश्मन बताते हैं।
एक कहावत है कि काम जम के करो और पार्टी भी जम कर करो”..ऐसा नहीं है कि वो लोग बहुत अमीर हैं। वहां भी भीखारी होते हैं। लेकिन उनके मांगने का तरीका अलग होता है। करीब आकर हंसते हैं और कहते हैं क्या आप उनकी थोड़ी मदद कर सकते हैं। अगर आप नहीं करना चाहते तो कुछ नहीं बोलेंगे। मुस्करा कर कहेंगे हैव अ गुड डे?
अमरीका वैसा नहीं है जैसा कहा जाता है। उसकी बुराइयां सब जानते हैं। लेकिन एक मुस्लिम होने के कारण मुझे कभी नहीं लगा कि कोई मेरा पीछा कर रहा है। मुझे ख़ास नज़र से देख रहा है।
आपके लेख से शायद बहुत से लोगों की ऑंखें खुल जाएँगी, हमे हर मुल्क से उसकी अच्छी बातें ग्रहन करनी चाहिए
ReplyDeleteतो फ़िर शीर्षक में ये उफ़ क्यों?
ReplyDeleteइरफ़ान भाई, जब भी किसी नई जगह जाओ तो वो जगह बहुत अच्छी लगती हे, वहा के लोग भी खुब अच्छे लगते हे,
ReplyDeleteअमेरिका की सही तस्वीर पेश करने के लिए शुक्रिया. लेकिन हम क्या अमरीका की नीति को भूल सकते हैं.
ReplyDeleteअभी भी हम शीतयुद्ध के दौर वाले मानसिकता से नहीं निकल पायें हैं कि अमेरिका, हमारे दोस्त रूस का दुश्मन है. उस लिहाज से दोस्त का दुश्मन तो हमारा भी दुश्मन हुआ. लोकतांत्रिक लिहाज से पश्चिमी देशों में अधिकार सब को मिले हैं. हमारे देश जैसे कुछ चंद लोगों को नहीं. बहुत खूब लिखा और सरलता से इरफान भाई आपने.
ReplyDeleteकुछ अच्छी बातें और ज्ञान तो रावण से भी प्राप्त हो सकता है , आशीष जी. ले सके तो क्या हर्ज़ हैं?
Mai hanuman nahi hu ,
ReplyDeleteJo apna sina chir ke dikhlau,
Ki mere sine me Ram (Aap) baste hai.
Kayoki is kalyoug mai har jagah Ravan puje jate hai,
Bhaile har Ghar–Mandir mai Ram Baste hai.
Aapke kasbe ka naya bashinda
Aap ke har ada ka divana
-Ramesh Ranjan Singh,9971225589