वो आने वाली थी। गोविंदपुर के कमरे में। आने का इंतज़ार रोमांच पैदा कर रहा था।खुल कर बातें करने का मौका मिलेगा। उसका आना गंगा पट्टी के इन चार राजकुमारों को उत्साह से भर रहा था। पहली बार इन्हें अपना कमरा किसी कबाड़खाने जैसा लग रहा था। बैठने की कुर्सी नहीं। बाथरूम का दरवाज़ा टूटा हुआ। कमरे के दरवाज़े के पीछे स्टेफी ग्राफ और अरांता सांचेज की तस्वीर। उड़ती हुई स्कर्ट और ताकत से खिंच कर मारे जा रहे शार्ट्स। उसके आने की ख़बर ने नज़र बदल दी। राजकुमारों को लगा कि ये अश्लील हैं। स्टेफी की तस्वीर के ऊपर सरस्वती की तस्वीर डाल दी गई और सांचेज के ऊपर पतलून टांग दी गई। ये सब क्रिकेट के शौकिन थे मगर सचिन की तस्वीर नहीं थी। सांचेज और ग्राफ की थी। दीपक के सहरसा वाले घर में पिताजी ने गांधी की तस्वीर बैठकखाने में लगा रखी थी। वहां उसने एक चाय की दुकान पर स्टेफी ग्राफ की तस्वीर देखी थी। कचहरी के वकील उसे निहारते अपने मुवक्किल की जेब में देखने लगते। कभी सोचा नहीं कि ये कौन है और क्या खेल रही है। खैर कमरे का हाल ठीक हो रहा था। बिहारी छात्रों के कमरे का दरवाज़ा उनके सामाजिक यथार्थ से कितना दूर था। उनकी पतलून के पीछे सांचेज झांक रही थी। बिहार में लालू पिछड़ावाद चला रहे थे। तो भूमिहार ब्राह्मण छटपटा रहे थे। दिल्ली आए ज़्यादातर लड़के सवर्ण और पिछड़ी जाति के थे। दिल्ली इनके भीतर के बिहार को बदल रही थी। कमरे में लड़की आ रही थी।
बिखरी हुई चादर झाड़ कर बिछा दी गई। तकीये के बगल में मौर्य सम्राज्य के पतन वाला चैप्टर खोल दिया गया। लगे कि पढ़ ही रहे थे कि तुम आ गई।
शक होने लगा कि कहीं मकान मालिक अन्यथा न ले ले। नीचे राशन की दुकान वाले गुप्ता जी पता नहीं क्या सोचें। यही कि अब इनके कमरे में लड़कियां आने लगी हैं। हमारे समाज में यह एक मुहावरा जैसा है जिसका एक खास मतलब होता है। लेकिन यहां तो लड़की सिर्फ उन चारों से मिलने आ रही थी जो उसे इम्प्रैस करने के चक्कर में गोलाबाज़ होना चाहते थे। कैट होना चाह रहे थे। हिंदुस्तान के कई लड़के लड़कियों के कारण कैट हुए हैं। कैट होना पता नहीं क्या होता है। जीन्स, लोटो का जूता और जनपथ का टी शर्ट जिसपर लिखा हो...आई डोंट केयर। कमीज़ से मन नहीं बदलता। भाई लोगों को टेंशन हो रहा था कि लोग क्या कहेंगे।
सोनिया नाम था उसका।उसने बस यही कहा था कि वो आ सकती है।देखना चाहती है कि उसके बिहारी दोस्त कहां और कैसे रहते हैं।बस इतनी सी बात थी। लेकिन उसके आने की ख़बर ने बिहारी लड़कों के कमरे का यथार्थ बदल दिया। रसोई में चाय के लिए दूध और समोसा आ चुका था।कुछ खास नोट्स छुपा कर रख दिए गए थे। छुपाने की आदत तो हमारी संस्कृति में है।सब नहीं बताया जाता।दीपक ने अपने बालों को बिखेर दिया।प्रमोद जी की कमीज़ चकचक लग रही थी।बाकी दो बिहारी। दोनों ही अच्छे कपड़ों में।लेकिन इंतज़ार नहीं कर रहे थे।दरअसल वो नहीं चाहते थे कि ऐसा लगे। कोई जान पाए कि उनके मन में सोनिया पहले ही आ चुकी है।दरअसल अलग अलग मौकों पर सोनिया सबके मन संसार में आ चुकी थी। बस कोई बोलना नहीं चाहता था। प्रमोद जी अक्सर कहा करते थे..का रे..सेंटी हो गया है। बिहारी लड़कों का यही संस्कार बड़ा मर्दाना लगता है। लड़की को चाहेगा मन ही मन लेकिन कहेगा नहीं। बस इस डर से कि कोई यह न कह दे का रे..सेंटी हो गया। ख़ैर सोनिया ने काल बेल बजा दिया था।.....
क्रमश.....
रवीश जी,
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, सजीव चित्रण है। 'कैट होना' मेरे समय में प्रचलित नहीं था, कालेज़ में। 'सेन्टी होना' क्या 'सेन्टीमेन्टल' के लिये है?
ravish ji ... dilli ki ladkiyon ke bahaane aap jo nostalgia enjoy kar rahe hain saaf jhalak raha hai :)
ReplyDeleteaapko jaankar sukhad aashcharya hoga ki charcha paricharcha mein zindagi kharchaa karne waale vijay nagar/mukharjee nagar waasi addon par in blogs ke kaside padh rahe hain ....aur dilli ki kuchhek (blogan) ladkiyaan behti ganga mein haath dhone ko bechain hain :)
ravish ji ... dilli ki ladkiyon ke bahaane aap jo nostalgia enjoy kar rahe hain saaf jhalak raha hai :)
ReplyDeleteaapko jaankar sukhad aashcharya hoga ki charcha paricharcha mein zindagi kharchaa karne waale vijay nagar/mukharjee nagar waasi addon par in blogs ke kaseede padh rahe hain ....aur dilli ki kuchhek (blogan) ladkiyaan behti ganga mein haath dhone ko bechain hain :)
रवि जी आप ने युवा दिल को हौले से छुआ है कभी हमारे स्थान भी पधारें
ReplyDeleteperahan.blogspot.com
सही जा रहे हैं. मैं भी इसी तरह रहता था दिल्ली में तीन और फेलो बिहारियों के साथ. ऐसा शानदार जा रहा है कि पूछिए मत, डर है कि हज़ारों लोग आपके ऊपर उनकी सच्ची कहानी छापने के लिए मानहानि का मुकदमा न कर दें.
ReplyDeleteआप भी भूमिहार जाति से नफ़रत करते है !
ReplyDeleteaapaka 'Part-4' padh kar Farookh Shekh wala "Chasm-e-baddur" cinema yaad aa gaya !
ReplyDeletekal MEDIA MANTRA ka Vimochan huaa , INVITATION LETTER me aapaka NAAM dekh seena thoda chauda ho gaya :)
Pramod Bhai jee ne AZDAK me kuchh baatien batayeen hain , NDTV INDIA me kuchh Change - wange ka ! Kya Khabar hai ?
http://daalaan.blogspot.com
ranJan rituraJ sinh , NOIDA
कूल जी
ReplyDeleteमैं किसी भी जाति से नफरत करता हूं। खासकर उन जातियों से जिन्हें आप सम्मिलित रूप से सवर्ण कहते हैं। खुद भी सवर्ण हूं। इस जाति फाती का जितना जल्दी नाश हो जाए उतना ठीक रहेगा।
वैसे भूमिहार जाति का ज़िक्र प्रसंगवश आया है। इसे सवर्ण जाति के पर्याय के रूप में ही पढ़ा जाना
बहुत खूब...
ReplyDeleteसर..
कमाल...
मैं आपकी तारीफ में कसीदे नहीं गढ़ रहा..
लेकिन बस इतना ही कह सकता हूं..
कि अगर आप अपना प्रोफेशन बदल लें तो कईयों की दुकान बंद हो जाएंगी....
कुछ शब्द.. और भाव तो ऐसे लगे कि मानो बस सब कुछ सामने हो रहा है...
इसे कहते हैं 'विजुअली स्ट्रांग'... खैर अब तो बस क्लाइमैक्स का इंतजार है...
जल्दी लिखिएगा
log kuch bhi kahen..
ReplyDeletemain to ab aur bhi apka murid ho gaya hun..
lagta hai uday prakash ko satark ho jane ka waqt aa gaya hai..
naisehar
mai suru se is KRAMSHa wali report ko padh rha hun...
ReplyDeletekhone ka maaan karne lagta hai..
sach much jeewant lagtee hai..
aur haan aab dekhna hai ladkiyan ghar me aa kar kya saab kartee hai.........?
waise NDTV par aapka BATUNI cheara aur bhi pasand aaya.
sir aap to fiction par uttar aaye...samajik vivado par sirf aapke comments ki jaroorat hai...print ki "bhingti uvtiyo" jaisa comment
ReplyDeletei dont think this is now situation of NRBD(not resident bihari of dilli).jamana badal gaya hai ravish jee pata nahi kiss jamane ki story likh rahe ho....prakash
ReplyDeletethis not condition of nrb means non redident bihari.iow bihari like us started talking mai in place of hum...they also say elder tum istead of aap.and ladkiyo ka frustation kam hi logo ko hai.... because u have soo many migrated bihari girl also who r competing with dilli billi--dr prakash
ReplyDeleteरवीश जी,
ReplyDeleteआप जो लिख भर देते है वह हमारे जैसे मूक लोगो को खुशी देता है. यथार्थ का सजीव चित्रण ! मध्यप्रदेश के छोटे से शहर देवास का रहने वाला लेकीन आपका मुरिद हूं.सूचना क्रांति के कारण आपको देखना-सुनना-पढ़ना मयस्सर हो पा रहा है . क्या मुझे आपका ई मेल पता दे सकते है? आपके अमूल्य विचार एक लेख के सन्दर्भ चाह्ता हूं आपको परेशान करने का कोई इरादा नहीं हैं
प्रकाश जी
ReplyDeleteजमाना बदल गया है। मैं उस जमाने पर लिख रहा हूं जब बिहार से लड़कों का आना शुरू हुआ था। ९० के दशक की बात है। तब से अब तक तो बदला ही है। कहानी में लालू का ज़िक्र समय की जानकारी देता है। मैं आज के दिल्ली पर नहीं लिख रहा।
मेरा ईमेल है-
ravishndtv@gmail.com
bhai ravish ji,
ReplyDeletebojpuri me likhat bani. ab ta e kahaniya ke eke baar mein pura kar din. e kramash wala chakkar bada tarpawat ba. waise bahut barhia visay ya bahut hi sundar likhawat.
kuch motihari ke baare mein bhi likhin.