दीपक को अंग्रेज़ी नहीं आती थी। वो यह जानता था। दोस्तों को भी मालूम था। लेकिन जब भी वो आती दीपक की ज़बान से अंग्रेज़ी छलकने लगती। ऐन वक्त पर जहां वाक्य खत्म होता..वहीं शब्द की अचानक पैदा हुई कमी से उसके वाक्य लड़खड़ा जाते। लड़की जल्दी से सर हिला कर इशारा कर देती कि जितनी भी अंग्रेजी बोली गई है उसका अधिकांश समझ लिया गया है। आगे कोशिश न हो तो ठीक। रिलैक्स। पता नहीं लड़की को देख हज़ारों बिहारी लड़कों में अंग्रेज़ी बोलने की तड़प क्यों पैदा हुई। आशीष नंदी से लेकर योगेंद्र यादव सब इस बेचैनी को मिस कर गए। फालतू के राजनीतिक विवादों को समझाने में लगे रहे।
दीपक टाइम्स आफ इंडिया मंगाने लगा। किसी ने कहा कि संपादकीय पढ़ने से अंग्रेजी बेहतर होती है। एक दोपहर उसने वसंतकुंज के प्रिया सिनेमा का पता पूछना शुरू कर दिया। दोस्तों ने मज़ाक उड़ाया कि वहां क्यों जाएगा, उधर तो अंग्रेज़ी सिनेमा लगता है। दीपक ने कहा वही देखना है। दोस्तों ने हंस तो दिया मगर उसके जाने के बाद सबने कहा कि कम से कम कोशिश तो कर रहा है। हमें भी करनी चाहिए। इंटरव्यू या वायवा में अंग्रेजी बोलेंगे तो चांस बन जाएगा। और लड़की भी। दिल्ली की लड़की तो बिना अंग्रेज़ी के बात ही नहीं करती।
दीपक वायवा के लिए नहीं उस लड़की के लिए अंग्रेज़ी सिनेमा देखने लगा।जो बरसाती की खिड़की से दिखती रहती थी। हवा में सूखते उसके कपड़े। किस दिन क्या पहनती है सब मालूम था। फिल्म का नाम था- गॉन विद द विंड। चार घंटे की फिल्म देखते देखते वह बीमार हो गया। फिल्म का एक भी प्लाट समझ नहीं पाया। अमेरिकन सिविल वार। क्या करें इसका। बिहार का सिविल वार छोड़ अमरीकन वार। जो हवा के साथ चला गया उसे देखने में इतनी तकलीफ। मगर जो हवा के साथ आने वाली थी उसके लिए ज़ुबान कहां से लाऊं। इंटरवल में उसने भुने मक्के का नाम पूछा। जवाब मिला पॉप कॉर्न। दाम पूछा तो जवाब मिलते ही कह दिया रहने दो। नहीं चाहिए। प्रिया सिनेमा की लॉबी में वो सबको देख रहा था। एक बार लगा कि कोई लड़की देख तो नहीं रही। धीरे धीरे वो सब लड़कियों को देखने लगा। उनके कपड़े। स्कर्ट, टॉप, जीन्स और ग्रे टी शर्ट। दिल्ली की लड़कियां सासाराम की लड़कियों से कितनी अलग।पास से गुज़रती हुई उस लड़की के डियोड्रेंट ने ताज़गी से भर दिया। वो अब इन सबके जैसा होना चाहता था। उसे पता चल रहा था कि एक दोस्त लड़की भी होनी चाहिए। दोस्ती और प्रेम के बीच वह संबंधों को तौलता रहता।
मधुकर का संकट कुछ और था। वह भागलपुर के प्रोफेसर का लड़का था। अंग्रेजी आती थी। मधुकर सिविल सर्विस की बात नहीं करता। उसका लक्ष्य कैट निकालना था। जब भी वो लड़की से मिलता चारों लड़कों( इनका नाम धीरे धीरे आएगा) के नेता के रूप में बोलने लगता। अंग्रेज़ी में। दीपक मधुकर से चिढ़ता था। इम्प्रैस करने के चांस में किसी का कूदना ठीक नहीं लगता। मगर हताश मधुकर भी था। कोई इम्प्रैस नहीं होती। हारकर कहता एक बार कैट क्लियर हो जाए हज़ार लड़कियां पीछे पीछे आ जाएंगी।
लेकिन शाम होते ही चारों की कल्पनाओं में कोई न कोई लड़की आती थी। रात का खाना बनाते वक्त, प्राचीन इतिहास के पन्नों को अंडरलाइन करते वक्त तो शाम को खाने के बाद टहलने के बहाने। उन्हें अक्सर लगता कि पर्सनाल्टी तभी बनेगी जब अंग्रेज़ी आएगी। मधुकर कभी कभी कह देता कि मुझे तो आती मगर क्या वो आती है नहीं न। ये सब काम्प्लैक्स है। सक्सेस से लड़की मिलती है। दीपक ज़ोर देकर कहता...नहीं दिल्ली में लड़की अंग्रेज़ी से मिलती है।बिहार के
पतनशील राजनीतिक समाज ने युवाओं को अपने राज्य के क्रांतिकारी विरासत से दूर कर दिया था। उन्हें लगता था कि आखिर वो क्यों नहीं दिल्ली की इन खुशहाल लड़कियों के हमसफर बन सकते हैं। आखिर भरी महफिल में लड़कियां उनका हाथ पकड़कर डांस के लिए क्यों नहीं बुलाती। मधुकर अक्सर मिरांडा हाउस के होस्टल डे की पार्टी का ज़िक्र करता रहता। उसी ने बताया कि मेन्स क्लियर करके कई लड़के यहां बुलाये गए। सब खाने के बाद डांस कर रहे थे मगर ज़्यादातर अपने ही ग्रुप में। यानी कमलेश सर, प्रकाश जी और दिलीप बॉस। आपस में ही टांग भिड़ाकर जादू तेरी नज़र...खुश्बू तेरा बदन .तूहां..कर...या ना कर.. गाने की धुन पर दिए जा रहे थे। दिए जा रहे थे मतलब झूमे जा रहे थे। कोई लड़की उनके साथ डांस नहीं कर रही थी। पटना की सुप्रीया भी सेंट स्टीफेंस के राजेश के साथ डांस करती थी। मधुकर ने कहा आईएएस अफसर का बेटा राजेश बहुत बड़ा गोलाबाज़ है। दीपक और उसके तीन दोस्त यानी रुममेट चुप। हल्के से पूछा कि ये गोलाबाज़ क्या होता है? क्या कोई अंग्रेज़ी का उस्ताद होता है?
क्रमश.....
ओह, बिहारी गोलाबाज़ लड़के! मिरांडा हाउस में फिर आगे क्या हुआ?..
ReplyDeleteदिलचस्प!!
ReplyDeleteGolabaZ KA warnan jara taphsil se de jiega....
ReplyDeletemere hisab se bara marak sabd hai...
haan dusri kist bhi pahli ki tarah hi mazedar hai..
रवीश बाबू आप हमहूं नरभसिया दिए. पहले पर कछु कहते कि दूजा दाग दिए. एकदम धांय से. वैसे लिखे बढि़या हैं. बधाई
ReplyDeleteबहुत दिलचस्प। आगे का इंतजार है!
ReplyDeleteये वो कहानी जिसका शायद ही अंत हो.. जो पटकथा उपर वाले ने तिनके-तिनके जोर के न लिखी बल्कि आंधी से जमा हुए 'कूड़े' से बन गई हो.. खैर उम्मीद है कि इस कहानी में लड़कियां तो नहीं मिलेगी लेकिन शायद इस कहानी का थोड़ा भी असर उनलोगों पर पड़े जो अभी उन गलियों का रूख करने वाले हैं.. और न जाने कितनी ही एलीट क्लास की लड़कियां टकराने वाली हैं... बहरहाल ये भी सार्वभौमिक तथ्य हो ही गया है कि इस 'लेवल'पर लड़कियां 'पट'नहीं पाती.. लेकिन रविश जी, इसकी उम्मीद भी की जा सकती है कि इस हाईटेक युग में बाजी पलट जाए!!
ReplyDeleteकहानी की रोचकता बरकरार है और हम जैसे पाठकों के लिए पास ही हुई घटना का ऐसा दर्दनाक अंत सुनना है जिसके बाद हम शायद सर झटक कर अपनी रोजी-रोटी की तरफ निकल पड़ें....
shayad apane anubhav se aapane kuchh likha hai ! Waqt badal gaya hai een 10 saalon me ! BIHARI sabhi taraf hain ! haan , Prannoy Roy aur rajdeep Sardesai banane ke liye to ANGREZI GYAN jaruri hai !
ReplyDeleteमुखिया जी
ReplyDeleteअरे ये दस साल पुरानी बातों पर है। मालूम है कि वक्त और बिहारी बदल गए हैं। आस पास कुछ देखा है उसी से उठाकर लिख रहा हूं। दूसरे जगहों के लडको के साथ हुआ होगा बल्कि होता ही है वो भी शामिल है।
are sir ji ab to bihari expert ho gaye hai......ab to aankho se dekhte hi nahi unke sath batra, sarojini nagar aur lajpat nagar me hatho me hathe dal k baithte hai....ab garam masala ka akshay kumar bihar k hi ladke hai...haan shadi k mamle abhi kam huye hai par pyar ka mamla apne peak ki taraf badh raha hai.......lekin abhi bhi kafi mazedar lag raha hai wo yaadein
ReplyDeleteमैं इसे कहानी कह सकता हू? कहानी में तारतम्य तो है लेकिन वास्तविकता से बहुत तो नही थोडा दूर जरुर है । स्क्रिप्ट थोड़ी बदलनी होगी ...पूर्णता मेरा विचार है ।
ReplyDelete'मोहिनी' ने समस्त-सुर-असुरों को मोहित/नियंत्रित कर 'अमृत'/'सुरा' पान करवा दिया था, क्या भूल गए... फिर ये बिहार के बच्चे क्या हैं?
ReplyDeleteRavish Bhai !
ReplyDeleteSach puchhiye to Mera DIL aaj bhi karata hai ki mere BULLET MOTORCYCLE par koi Fatar - Fatar Angrezi bolane wali Kanya baithe :) aur hum ekdum 120 ke speed me DELHI me ghume :)
Waise hum ta ekdum TYPICAL HINDI School "Patliputra" , Kadam Kuan ke PRODUCT hain , 1987 Model !
yeh problem wahan bhi hai , aaj tak kisi NDA / St Joseph / Mount Carmel ka BHAV humako nahi mila :(
waise aap ta LOYALA ke product hain so aapako kabhi dikkat nahi hui hogee !
Thanks
Ranjan R Sinh , NOIDA
kya likhte hai aap. agar main galat nahi hu to aapne to un sabhi bihariyon ko apne chapet me le liya ja delhi me aa kar barsati main rahne ko majbur hain. mast bahot mast. baicheni ho rahi hain aage ki kahani janne ko. rabis ji jara jaldi kare.
ReplyDeletedheek hai ravishji aap sahi kah rhe hai lekin apke samne kai gambhir masle hai udhane ke liye ..gam or bhi hai zamane mein sunane ke liye.. ab kramsh ko viram bhi de do
ReplyDeleteसिर्फ दिलचस्प ही नहीं बल्कि एक दर्द भी है इसमें। अच्छा लिखा है आपने
ReplyDeleteRavish ji,
ReplyDeletekabhi MUMBAI ki larkiyon ke baare mein bhi likhiyega.
सही गोले पर गाड़ी घूमाया है... ब्रेक न लगे...
ReplyDeleteबहुत रोमांचक तरह से लिखा है अपने लेकिन अन्रेज़ी कहीं न कहीं बहुत जरुरी है , लड़की के लिए नही तो अपने लिए ,इसको सीखने का विचार उठाना ही चाहिए | अभी भी बहुत सारी अच्छे विमर्श अंग्रेज़ी तक ही सीमित हैं और बहुत जरुरी है हम सब के लिए कि अपने को एक से ज्यदा भाषाओं मैं व्यक्त कर पाएं | plot बहुत अच्छा उठाया अपने , मैंने ख़ुद भी ये महसूस किया है , जहाँ तक भी मेरा विस्तार सीमित है !!!
ReplyDeleteदिव्य प्रकाश
रवीश,
ReplyDeleteकभी उस भारतीय जनसंचार संस्थान के अनुभवों में आई लड़कियों पर भी लिखो- जहां की पढ़ाई तुमने अधूरे छोड़ दी थी। तुमसे एक साल पहले इसी संस्थान से पढ़ाई करने के बावजूद मैं-तुम एक ही साथ कुछ जगहों पर नौकरी मांगने भी गए थे।
उमेश चतुर्वेदी