न्यू भगवान शनि

शनि महाराज कहे जाते थे। इनकी वक्र दृष्टि से भय खाये लोग महाराज कह कर बुलाया करते थे। देव की श्रेणी में नहीं माने जाते थे इसलिए इन्हें महाराज कहकर काम चलाते रहे। मगर ज़माना बदला है। बल्कि कहें कि शनि का ज़माना आया है। शनि महाराज से भगवान हो गए हैं। हमारी धार्मिक आस्था
परंपरा में शनि की कभी स्वतंत्र हैसियत नहीं रही। उनकी नाराज़गी का बटन हनुमान के हाथ में माना जाता रहा। मसलन शनि खराब हैं...या शनि ढैया या साढ़े साती नुमा कोई चाल रहा है तो हनुमान जी की शरण में जाओ। शनि से कोई बचा सकता है तो सिर्फ हनुमान ही। मगर शनि हनुमान के बराबर हो रहे हैं। वो लोकप्रिय हो रहे हैं।

शनि अमावस्या नया त्योहार बन रहा है। लोग उस दिन व्रत रख रहे हैं। दिल्ली के शनिधाम में शनि पूजा की अलग विधि है। वहां के कार्यकर्ता ने बताया कि चूंकि लोग नए भक्त बने हैं इसलिए पूजा कैसे और कहां करनी है उसे बताने के लिए जनसंपर्क अधिकारी रखा गया है। कार्यकर्ता ने कहा कि लोग पहचाने भी नहीं कि शनि की मूर्ति या तस्वीर कैसी होती है। लिहाज़ा प्रसाद कहीं और चढ़ा देते हैं। शनि के भक्त काले लिबास में घूमते नजर आते हैं। वो समझा रहे हैं कि शनि शत्रु नहीं है। वो तो दोस्त है। उससे भागो मत उसके पास जाओ। एक कैंपेन यानी अभियान चल रहा है कि शनि के प्रति नज़रिया बदलने का।

हमने दिल्ली के शनिधाम के संस्थापक पंडित मदन लाल राजस्थानी से पूछा कि शनि की पूजा होने लगेगी तो हनुमान जी का क्या होगा। वैसे हनुमान की पूजा कई कारणों से होती है। मगर एक बड़ा कारण तो शनि भी है। अक्सर ज्योतिष भय दिखाते रहे हैं कि शनि नाराज़ है, हनुमान की पूजा करो। अब कहा जा रहा है कि शनि नाराज़ है तो शनि की ही पूजा करो। राजस्थानी जी से हमारा सवाल यही था। उनका जवाब साफ नहीं था। उन्होंने कहा कि भई मेरे शनिधाम में हनुमान की पांच प्रतिमाएं हैं। दोनों साथ साथ रह सकते हैं। दरअसल ठीक ही कर रहे होंगे। याद कीजिए उन फिल्मी दृश्यों को जिसमें रावण एक कोठरी में शनि को बांध कर रखता था। शनि की वक्र दृष्टि के कारण ही उसका नाश हो गया। डर की व्याख्या यहीं से शुरू होती है। तो क्या शनि ने हनुमान जी का काम आसान कर दिया? रावण की ग्रह दशा खराब कर। तभी राजस्थानी जी कहते हैं कि शनि और हनुमान में टकराव नहीं है। वो एक दूसरे की मदद करते हैं।

हमारी आस्था संसार रचना में करोड़ों देवी देवताओं के लिए जगह है। भक्त सारे भगवानों से बना कर रखता है। उसका दिल बड़ा है। इसलिए शनि जैसे नए देव को हनुमान का कंपटीटर नहीं समझा जाना चाहिए। राजस्थानी जी ज़ोर देते हैं। वैसे भी टीवी पर काले लिबास में शनि के प्रवक्ता के रूप में राजस्थानी जी ही दिखते हैं। कोई दस साल से वो शनि को दोस्त बनाने के लिए अभियान चला रहे हैं।

शनि के नए भक्त कहते हैं शनि इफेक्टिव है। असरदार हैं। दिल्ली के एक करोड़पति व्यावसायी ने बताया कि शनि से अच्छा कोई भगवान नहीं। वो सबसे अच्छा है। दोस्त है। वो सारे भगवानों की छुट्टी कर देगा। वो शनि फ्रेड्स के नाम से एक वेबसाईट बनाने की योजना बना रहे हैं। मैंने स्पेशल रिपोर्ट के सिलसिले में इन भक्तों से बात की थी। जो हाल के दिनों में शनि की पूजा करने लगे हैं।

एक विद्वान ने कहा कि शनि का भय दिखा कर उसे लोकप्रिय किया जा रहा है। शनि की पूजा तो होती रही है। दान दिया जाता रहा है। हमने भी शनिधाम में एक निरतंर घोषणा सुनी। शनि अगर प्रसन्न हो जाए तो रंक को राजा बना देता है। शनि अगर प्रतिकूल हो जाए तो राजा को रंक बना देता है। भला बताइये कौन जोखिम लेगा। एक तो शेयर बाज़ार का ठिकाना नहीं ऊपर से शनि को और दुश्मन बना लो। भक्ति करेंगे कि नहीं। लेकिन शनि पुजारी की दलील भी कम दिलचस्प नहीं। वो कहते हैं ज्योतिष भी तो शनि का भय दिखाता है। साढ़े साती आ गई तो नाश हो जाएगा। यानी सब एक दूसरे के भय का दोहन कर रहे होंगे।

अब कारोबार भी हो रहा है। हर तरफ शनि मंदिर खुल रहे हैं। करोलबाग के एक मंदिर प्रबंधक ने बनाया कि हाल के दिनों में बाकी भगवानों के लिए मंदिर में आने वाले भक्तों की संख्या कम हुई है। भक्त मांग कर रहे थे कि शनि मंदिर बनाओ वर्ना वो दूर के दूसरे मंदिर में जाने लगेंगे। प्रबंधक के कहा कि अपने मंदिर की लोकप्रियता को बनाए रखने के लिए अलग से शनि का कमरा बनवाना पड़ा। लेकिन बना मंदिर के दरवाजे के बाहर। भीतर नहीं जहां दुर्गीजी, गणेश जी और शिवजी की प्रतिमाएं हैं। इसीलिए अब शनि के नए मंदिर बन रहे हैं। जहां आने वाले भक्तों की भीड़ हनुमानजी के भक्तों से अधिक होती जा रही है।

शनि जागरण जागरण संस्कृति में नया आइटम है। शनि के कैसेट चालीसा सब निकल रहे हैं। राजौरी गार्डन के एक आयोजन ने बहुत अच्छी व्याख्या दी। पहले हमारे देश में लकड़ी का इस्तमाल होता था। लकड़ी की बैलगाड़ी, रथ, दरवाज़े। अब लोहे का इस्तमाल होता है। मकान, पुल, कार, दरवाजे सब लोहे के बने होते हैं। और लोहे का संबंध शनि से है। इसलिए भी लोग शनि के भक्त हो रहे हैं। मनमोहन की उदार आर्थिक नीतियों का कमाल होगा कि शनि को जगह मिल रही है।


एक ज़माना था जब प्रशासन हनुमान जी से ड़रा करता था। हनुमान शत्रुनाशक देव के रूप में भी प्रतिष्ठत हैं। दफ्तरों में शत्रु ही शत्रु होते हैं। लिहाज़ा दफ्तर जाने वालों में हनुमान के प्रति असीम भक्ति देखी जा सकती है। कई लोग भगवान के ज़रिये शत्रुओं को निपटाने की अभिलाषा रखते हैं। दिल्ली के पुष्प विहार में एक हनुमान का मंदिर है। दिल्ली नगर निगम वाले जब तक अतिक्रमण के नाम पर तोड़ देते थे। मंदिर के पुजारी ने बताया कि बनवाते बनवाते परेशान हो गया। बस बगल में शनि का मंदिर बनवा दिया। नतीजा नगर निगम वालों ने रास्ता बदल लिया। ध्यान कीजिए कि हाल के दिनों में कई शहरों में सड़क चौराहे से हनुमान मंदिर गिरा दिया जाता है। अफसर हनुमान से कम डरते हैं। लगता है कि वर्षो की भक्ति के बाद दफ्तरों में शत्रु उत्पादन में कमीं नहीं आई। लेकिन शनि मंदिर के पास फटकने की किसी की हिम्मत नहीं होती। पुष्प विहार के मंदिर में अब हनुमान को शनि का सहारा मिल गया है। भक्तों की संख्या बढ़ने लगी है।

सामाजिक धार्मिक राजनीतिक प्रक्रियाओं में समय समय पर भगवानों का ज़ोर बढ़ा है। लेकिन शनि का उदय इन सबमें अलग है। जो तिरस्कृत था वो आज समादरित है। अब दो ही बात होने जा रही है। आने वाले दस साल में। शनि के भक्तों की संख्या बढ़ेगी। शत्रुनाशक हनुमान की कम होगी। शनि शत्रुनाशक के रूप में प्रतिष्ठित किये जा रहे हैं। लाखों लोग अब शनि की पूजा करने लगे हैं। यह भी ठीक है। शत्रुओं का विनाश करने के लिए साप्ताहिक, दैनिक और स्थायी देव तो हनुमान ही हैं। एक हनुमान जी पर कितना दबाव रहता होगा। अब शत्रुविनाशक के रूप में शनि के आ जाने पर दो दो भगवान हो जाएंगे।
यानी दुनिया भर के दुश्मन सावधान हो जाएं। उनके नाश के लिए शनि और हनुमान दो दो भगवान आ चुके हैँ। हमारी भक्ति की कोई सीमा नहीं। इसी खूबी के कारण देर से ही सही शनि प्रतिष्ठित हो रहे हैं। बस आप शनि को शत्रु न समझें। उसके करीब जाइये। आस्तिक है तो ठीक। नास्तिक हैं तो कोई बात नहीं।

12 comments:

  1. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  2. रविशभाई...
    इस बिगडैल समय में शनि जैसा डर देने वाला देवता होना ज़रूरी है.श्रमजीवी को न शनि का भय है और न उनकी अढै़या का.मुझे लगता है शनि की पीड़ा का सबसे ज़्यादा भय उन्हें लगता है जो ग़लत साधनों से पैसा बनाते है.जिन्हे हर वक़्त यह संशय रहता है कि आज फ़ँसे और अब गया ये पैसा.और एक बात बता दूं..शनि देव अब एक बडी़ इंड़्ट्री हैं साहब.मेरे गृह नगर इन्दौर की ओर कभी तशरीफ़ लाईये..एक स्टोरी करने वाला मसाला है आपके लिये..नज़दीक में ही बसे एक छोटे से गाँव में एक नवगृह शनि मंदिर की बड़ी चर्चा है ...कामधंधे में नाक़ामयाब होने के बाद एक परिवार ने बाक़ायदा एक वैल डिज़ाइंड मंदिर बनवाया है...साहित्य,तिल,तेल,पूजा सामग्री सभी चीज़ों का पूरा नेटवर्क है...कामकाज तो पिट गया था...शनि मंदिर चल पड़ा है..शनिदेव प्रसन्न हैं..जैसी उनकी चेती सबकी चेते.जय शनि महाराज!

    ReplyDelete
  3. shani ko lekar bhi caste war chal raha hai.shani ji bhi dalit haih,isiliye apne astitva ke liye unhe aur unke bhakton ko lagatar struggle karna pada hai aur ab jakar 21st century mein unhe pehchan mili.shayad is sadi ka dalit andolan nahi hota to ye bhi nahi hote.beherhal shaniji ki popularity se brahman devta ka naraj hona lajimi hai.SHANIJI ne pujari ki jagah PRO ko lakar puja path ka modernisation bhi shuru kar diya hai,aachi baat hai,. ek baat aur,transparent daan-patra ko dekh kar lahata hai wakai shani denta imandar hain,isiliye dalit rajniti ka chunav chinh hona chahiye..........TRANSPARENT DONATION BOX.......hai ki nahi. ANYWAYS EXELLENT STORY.

    ReplyDelete
  4. क्या बात है पर मुझे लगता है आपने 30 वर्ष पहले इसे लिख दिया है. यकीन मानिये हर दौर मे इस रचना को पढा और सराहा जायेगा। बधाई।

    ReplyDelete
  5. जिसके पास पैसा है केवल शनि उन्ही के लिए है। वैसे कारोबार कि दृष्टि से यह हित फार्मूला है । मैं भी राहू-केतु महाराज का दरबार खोलने कि सोच रह हू। वैसे क्या आपने शानिधाम के सामने रहने वालो से पूछा कि वो क्या सोचते हैं ? उत्तर जानकार आप चौंक जायेंगे ??? मैंने भी एक रिपोर्टिंग कि थी लेकिन दफ्तर कि पॉलिसी के चक्कर में वो पब्लिश नही हो पाई

    ReplyDelete
  6. रवीश जी आज तीसरी बार आपके ब्लाग पर आयी हू ।आज कारण थे शनि देव जिन्हे हम अपनी एक पोस्ट मे आज के सबसे पापुलर देवता घोषित कर चुके है ।कई टिप्पणियो मे हमे डराया भी गया कि शनि से पन्गा मोल न लो ! फ़िर इन्ही ओपर एक और पोस्ट लिखी ।आपके विचार देखे तो अच्छा लगा कि आप भी शनि से पन्गा ले रहे है :)कभी फ़ुर्सत हो तो हमारी वह पोस्ट देखियेगा ।

    ReplyDelete
  7. वैसे यह सोच कर भी आयी थी कि आपने हमे लिन्क किया होगा :(

    ReplyDelete
  8. मोहल्ला से पता चला कि आपको पत्रकारिता के लिये गोयनका पुरुस्कार मिला है। बधाई स्वीकार करें।

    ReplyDelete
  9. रवीश बाबू

    बढि़या लिखा आपने. एकदम दमदार. आपने ही कभी बताया था अपना अनुभव शनि पर रिपोर्टिंग करते वक्‍त आपको कैसे-कैसे पात्रों से मिलने का 'सुअवसर' मिला. भाईजान आपकी बातों में जोड़ने का मन कर रहा है -


    मेरे शहर मुजफ्फरपुर में एक अखाड़ाघाट पुल है बूढी गंडक नदी पर. मुख्‍य शहर की तरफ़ से पुल का जो सिरा है उसके दायीं ओर एक 'हनुमान प्रॉडक्‍शन सेंटर' है. मैं यही कहता हूं. वहां आपको आधा धूर से लेकर पांच बीघा तक ज़मीन कब्जियाने वाले हनुमान की प्रतिमा ऑर्डर पर मिल जाएगा. छोटे एन्‍क्रोचमेंट के लिए सेम डे वर्ना अगले दिन तो पक्‍का.


    माने कहना मैं ये चाह रहा हूं कि हनुमान ऐंड कम्‍पनी पर साढ़े साती हावी हो गया है आजकल. अब अगले एन्‍क्रोचर शनि प्रसाद ही होने वाले हैं. पर जैसा क हर बाद में आने वाले के साथ होता है, शनि सर को आउट्सकर्ट्स या फिर बिल्‍कुल बेमौक़े की ज़मीन से काम चलाना पड़ेगा.
    लेकिन सरजी ऐसे डिजिटल ज़माने में आए हैं जहां कोई भी नेटवर्क बड़ी आसानी से बन जाता है, और अगर नेटवर्किंग में आप मा‍हिर हैं तो आपकी प्रगति प्रकाश की गति से होगी. शनि सर की लेट एंट्री बेशक हुई है, पर सरजी सबसे आगे निकलेंगे.

    और भाईजान गोयनका घराने वाला पुरस्‍कार सुना है आज ही लेने वाले हैं, ढ़ेर सारी बधाई.

    ReplyDelete
  10. भाशनबाजी के अलावा कुछ और नही आता क्या। शनी के बारे मे जो कुछ भी लिखा है वो सब शास्त्रो के मुताबीक है न कि कोइ हवाबाजी जैसे तु कर रहा है। ज्योतिष एक विग्यान है न की मदारीगिरि। कुछ भी बोल्ने से पहले कुछ सोच लिया कर। अगर शास्त्र गलत है तो पूरा हिन्दु धर्म ही गलत है। मेरी बात पर सोचना।

    ReplyDelete