अमिताभ वाले लेख को हटा रहा हूं । कई लोगों की राय है कि उन्होंने ऐसा नहीं सुना । इसलिए मैं एक बार और सुनिश्चित होना चाहता हूं । तब तक इस लेख को वापस लिया जाता है । कुछ का कहना है कि वो जूते मारो का इस्तमाल कर रहे हैं न कि असभ्य शब्द का । इसलिए महानायक को कटघरे में खड़ा करने से पहले विज्ञापन को एक बार और ठीक से सुनना चाहता हूं ।
लेख वापसी के लिए माफी.
मैंने भी सुना है..एक बार..दो तीन रोज़ पहले.. फिर नहीं सुना..सुनने की कोशिश की थी पर लगा कि शायद वो वर्ज़न मुझसे मिस हो रहा है.. मगर शायद आपसे पहले उन्होने भी भूल सुधार कर लिया है..अब उस शब्द के स्थान पर बेवक़ूफ़ का इस्तेमाल हो रहा है..
ReplyDeleteविज्ञापन में वही था जो आपने सुना. जो नहीं सुने वे शायद इसलिए कि अपने नायक के प्रति अतिरेक प्रेम और मोह की गंदगी कान में डाले हैं. वही सुन पाते हैं जो उनकी आत्मा सुनवाती है. अगर फिर से अपनी तसल्ली के लिए आप वह विज्ञापन लोकेट नहीं कर पाते तो वह आपका कसूर नहीं होगा, शायद सपा की ज़रा देर से जागृत वह समझदारी होगी जिसने विज्ञापन का वह विशेष्ा संस्करण मार्केट से उठवा लिया हो. वैसे भी उठवाने में वे सिद्धहस्त तो हैं ही.
ReplyDeleteउठवाने में सिद्धहस्त। प्रमोद जी ने तो नब्ज ही पकड़ ली सपा की। आजकल टिप्पणियाँ भी जोरदार हो चली हैं।
ReplyDeleteवैसे भी उठवाने में वे सिद्धहस्त तो हैं ही.
ReplyDeleteप्रमोद जी लाजवाब बात कही है आपने
अपनी श्रवण ॿमता पर मुझे पूरा भरोसा है... और आपको भी रखना चाहिए...सपा का विॾापन करने में सदी के महानायक इस कदर डूबे कि भूल ही गए क्या कह रहे हैं.. जूते का जिक्र उन्होने उसी अंदाज में किया था जैसे शहंशाह में वो कई लोगों से रिश्तेदारी जोड़ने वाला डायलाग बोलते नजर आए थे
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