जूते मारूं या छोड़ दूं

जैसा नेता वैसी जनता । झांसी के एक गांव में गया कैमरा लेकर । गांव वाले बोले भई पत्रकार साहब इधर आइयेगा । गए भी । बोले कि रिकार्ड कीजिए कि हम वोट नहीं डाल रहे हैं । क्यों भई ? मेरे इस सवाल पर जवाब सुनिये ।
मुखिया बोलता है कि इस उम्मीदवार को बोलिये कि हमारे गांव में पानी का इंतज़ाम करे । यहां से बूचड़खाना हटाए । मैंने पूछा आप मुखिया किस लिए हैं ? आपने क्या किया है ? मुखिया बोले एमएलए जैसा असर नहीं है । मैंने कहा जनाब दबाव तो डाल सकते हैं । मुखिया बोला सुनते नहीं । मुझे गुस्सा आया कि आप वोट नहीं देना चाहते हैं या उम्मीदवार से यही सुनना चाहते हैं कि वो पानी बदबू के लिए कुछ करेगा । मुखिया बोले यही चाहते हैं । यानी मुखिया भी ढोंग कर रहा था । जनता भी अपना हक बेचना चाहती है । मैंने कहा वोट नहीं देने के फैसले पर कायम रहिए । तो कई लोग बोलने लगे । शोर में यही सुनाई दिया कि इस उम्मीदवार से हमें बहुत गुस्सा है । लेकिन नेता जी को क्यों सजा दें । यानी वो नेता जी जो गंध में सड़ रही जनता की जाति के हैं । क्या खेल है भाई । भारत की आत्मा गांवों में रहती है। एनसीईआरटी कि किताबों का यह सबक भी सड़ गया है । भारत के गांव मर गए हैं । उनकी आत्मा मर गई है । ऐसे वोटरों का क्या करें पाठक लोग । लेख लिखूं या जाकर उनको जूते मारूं ।

15 comments:

  1. अरे भैया रवीश!
    बहुत हुआ . छोड़ दो . गुस्सा थूक दो . और ब्लॉग लिखो क्योंकि वही सुगम है . काहे लफ़ड़ा मोल लेते हो .

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  2. sir ji
    aapse poori tareh se sehmat hain hum lekin koi aisi jugat bataiye ki sab theek ho jaae.

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  3. रंगबाज भाई, गुस्सा थूकने की सलाह मत दीजिये... शायद इस गुस्से से ही कोई रास्ता निकल आये। रवीश के गुस्से में मुझे उम्मीद दीखती है। (अभी कुछ दिनों पहिले भी ये खिसियाये से थे... रेलवे अधिकारियों पर... नेताओं पर... समझौता में हुई दुर्घटना के बाद) - शशि सिंह

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  4. रवीश जी जूते जरुर मारिएं लेकिन मुखिया, उम्‍मीदवार और नेताजी तीनों को। जब जूते मारने जाएं तो पहले मुझे एक ईमेल कर दें ताकि मैं भी कुछ लोगों को लेकर पहुंच सकूं। रागदरबारी में लिखा है कि जूतियाने से पहले जूतों को पानी में भीगोकर कुछ दिन रखना चाहिए ताकि जब जूतियाया जाए तो उसकी आवाज दूर दूर तक सुनाई देती है और आसपास के गांव वाले भी समझ जाते हैं कि कहीं जूतियाया जा रहा है। बताना पहले ताकि मैं कुछ जोड़ी जूते पानी में भीगने के लिए रख दूं और आप जब कहें तब उन्‍हें लेकर अमुक स्‍थल पर पहुंच जाऊं।

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  5. अब लिख दिया तो क्या जुतियाना! छोडो़ अगली पोस्ट लिखो रवीश भाई!

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  6. Yahi durbhagya hai hamare desh ka. Upar se lekar neeche tak sab kharaab hain. Gussa to mujhe bhi aa raha hai lekin kya juta marne se samadhan ho jayega. Agar ha tab to marna hi chahiye lekin nahi to phir hame solution par dhyaan dena chahiye. Kuch likh paye to isi par likh de!! dekhte hain logo ki kya rai hai?

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  7. आपका काम लिखना है. लिखें. जूते मारने का काम किसी और का है, उसे करने दें. कोई नहीं करेगा वह काम तो समय करेगा.

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  8. ऐसे ही वोटरों की निष्क्रियता या गलत उम्मीदवार को वोट देने की वजह से संसद- विधान सभाओं में अपराधी भरे पड़े हैं।
    यकीनन उन्हें जूते मारने चाहिये, पर जूते मारना आपका काम नहीं। जूते वही नेता इन्हें पाँच साल तक मारते ही रहते हैं जिन्होने उन्हें चुनकर कुर्सी पर बिठाया था।
    nahar.wordpress.com

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  9. Ravishji,
    sach to yahi hai ki pure kuyen me bhaang padi hai.BHANERIYON ka nasha jute marne se kaise utrega?

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  10. dosto

    aapki raay parhi. jute maarnaa meraa kaam nahi hai. ye salaah pasand aayee...lekin hum react to karen...jab ise rule hi maankar chalte rahenge to kisi samay ke aane ka intezaar karte hi zindagi beet jaayegee...par sahi hai...aise samay ko ek din to aanaa hi parhegaa...raag darbaari ka formula dimaag se utar gaya tha. aage se khayal rakhunga. ravish

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  11. Ravish,

    This is a follow up to your earlier post for Shakira...
    That time I had remarked that Times of India had given huge coverage to Celina's dog's death.
    Here are more instances:
    a) Star News actually discussing who will attend the Abhi ASH wedding... this was a detailed program with pictures of guests.. Amitabh ji ka time bach jayega... seedhe Star news walo ko wedding planners banaa do...
    b) Aaj Tak had, before the world cup, bought in tarot card readers who said utter nonsense -- yeh ballebaaj chamkega.. bijliya girayenge team India... now... call the same tarot card readers and hit them publicly...

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  12. ravishji please write soemthing about the broadcast journalists.....we have became just visual providers....pata nahi stories kaha se laaaye...nikaaama ho gaye ya phir kuch aur..

    akula

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  13. थोडा सब्र करें.सब कुछ ठीक हो जायेगा.वैसे आप उस इलाके में हैं जहां जाति ही सब कुछ है...लेकिन उम्मिद कि किरण बाकी है

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  14. ye to thik hai lakin ham patarkar log jo aisi khaberoan ko bhara chara kar dikhate hain to kiya ham par bhi jute nahi parne chiaye

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  15. Ye mukhiya khud ko 'aam aadmi' nahin samajhta.Theek waise hi, jaise MLA nahin samajhta.Chunaav ke mausam mein voter bhi aam aadmi nahin rahta.

    To bhaiya jab koi aam aadmi hai hi nahin, phir shikaayat kisase?Khaas hain sabhi.Shaayad samay in logon ko baari-baari se khaas bana deta hai.

    Samay aapko bhi zaroor mauka dega, inhein joote maarne ka.Tab tak jooton ko paani mein bhigokar rakhein aur samay ka intezaar karein.

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