कस्बा qasba
कहने का मन करता है...
कविता
तुम जो छुरी चलाते हो। हमारी पीठ झुक जाती है।
हम जो उफ करते हैं । तुम्हारी छुरी पार हो जाती है।
रिश्तों का शायर है वो। रिश्ते तो कायर हैं।
मुनव्वर से पूछो । पीठ पर कोई रिश्ता रहता है ?
अक्सर भरोसे वाला ही क्यों भोंकता रहता है
रवीश कुमार
1 comment:
Unknown
February 14, 2010 at 11:14 PM
sahi baat kahi aapne ..ke "bharose wala hi hamesha bhokta rehta hai"
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sahi baat kahi aapne ..ke "bharose wala hi hamesha bhokta rehta hai"
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