सिर्फ शौचालय ही नहीं रेल की भी ज़रूरत है । यह तस्वीर पिछले साल छठ के मौक़े पर बिहार जानो वाली रेल गाड़ी में खिंची थी । सोचिये यह यात्री शौचालय में यात्रा करने को मजबूर है । बाक़ी यात्रियों के बारे में भी सोचिये जो इस ट्रेन में यात्रा कर रहे थे । उन्हें तो शौचालय जाने का मौक़ा भी नहीं मिला होगा ।
तस्वीर मे जिस ट्रेन के टॉयलेट को दिद्काया गया है वोह ट्रेन बिहार संपर्क क्रांति है. इस ट्रेन में लखनऊ से हाजीपुर तक महीने में एक या दो बार आना होता है. अभी २ ocotobar को आना हुआ ट्रेन को Gorakhpur में नॉन इंटरलॉकिंग के वजह से वाया बनारस कर दिया. ट्रेन ७ घंटे लेट हो गयी.इस ट्रेन में टॉयलेट तक पहुचना ही अपने आप में एक यात्रा है. ४ नवम्बर को हाजीपुर आना है. लखनऊ में कैसे कोच में इंटर करूँगा सोचके अभी से पसीना आ रहा है. एक बात कहनी है की पिछले 26 सितम्बर से ६ October तक गोरखपुर में इंटरलॉकिंग का कम चल रहा है ९०% तक ट्रेनों को कैंसिल कर दिया गया है यह किस युग में हम jee रहे है जहाँ यह ट्रेन्स का ऑपरेशन और इंटरलॉकिंग साथ साथ नहीं हो सकता है. पूर्व रेल mantri बंसल साहिब को ghoos dekar promotion वाले रेल ऑफिसर ने निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन की इंटरलॉकिंग को २४ घंटे में कह्तम कर दिया था. इसके बारें में कुछ लिखिए.
ReplyDeleteरेल हमारे देश के सभी लोगों के लिये एक लाइफ लाइन है, में अहमदाबाद से हु , यहां से भी दिवाली के समय पर उत्तर प्रदेश,बिहार के लिए एसी ही परेशानी रेलवे मे होती है,इस का एक विकल्प बस सेवा है, पर मैंने देखा है कि वहाँ पर भी ५० यात्री की केपसिटि में बस वाले १५० यात्रियों को ठुस ठुस कर भरते है, तो मेरे ख्याल से हमें इस के बारें मे बहुत अधिक सोचने की जरूरत है
ReplyDeleteलालू जैसे "मैनेजमेंट गुरु " तोह जेल में बैठे है ,अब रेल कोन चलाएगा माँ की 'ममता' या भगवन की 'पवन' ?
ReplyDeleteRavish ji Even no toilet facility to train driver or guard. In Indian railway - Passenger to express train
ReplyDeleteमैंने कोई संजीव मिश्रा करके LStv के CEO है शायद-उनका पूर्व रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी से interview देखा था
ReplyDeleteD.Trivedi कह रहे थे,"रेल मंत्री बनते ही मैंने पुरे कारोबारी स्टाफ मीटिंग एंड विजिट भूटान मैं राखी-उन लोगों को आश्चर्य हुआ ऐसा क्यूँ? क्यूंकि हमारे इलाके मैं तो रेल घट के 20Km se 8Km हो गई है!तो मैंने कहा इसी लिए मेरा कर्त्तव्य है मैं यहाँ ज्यादा ध्यान दूँ"
यह शब्द मेरे नहीं है ravishji :) तो आप समझ ही जाओ जब रेल मंत्री का काम करने के बावजूद ये हाल है तो आप दुखी होकर कोई तोप नहीं मार रहे हो
जरुरी तो शुद्ध हवा पानी खोराक कपडे और समाज सब है-लेकिन मज़बूरी मैं भी खुद्दारी और इमानदारी का level कब कहाँ और कितना हो या कह लो है वाही साम्प्रत समाज और उसकी व्यवस्था का तत्कालीन चित्र भी बनाके दे देता है--(एक बात कान मैं कह दूँ-गुजरात मैं UP बिहार के लोगों की सख्त छवि तो यही है की वें टिकेट खरीदते नहीं ऊपर से सुविधा को नुकसान पहुंचाते है चाहे रेल की खिड़की हो या wc का mug)
यह पब्लिक awareness लेनेके इंकार को आप क्या कहेंगे? भोलापन?मजबूरी?गुस्सा?या फूहड़ पसंदगी?
लालुजि बहुत ही अच्छे रेलवे मंत्री थे मेरे ख्याल से एक मिथक है, उनके कार्य काल के दौरान मुनाफा बढ़ाने के गलत तरीके का खामियाजा हमारी रेलवे अब भी भुगत रही है जो इस क्षेत्र के साथ जुड़े सभी लोग जानते हैं
ReplyDeletesir wwakayee aapka koi jawab nhi, jo bhi photo aap dalte ho apne aap me alag aur ek kahani liye hota hai..har photo kucch kehta hia humse, such me aapka soch aur dekhne ka nazariya auro se bahut alag aur dil ke pass hai.....hum khusnaseeb hai ki es daur mai hai jaha aap ka post dekhne ko aur padhne ko milta hia varna india me to bahut se logo ko marn eke baad hi name aur fame milta hai...hats off to you!!
ReplyDeleteजनरल डिब्बों में उपर की सीटों पर पहले लकड़ी के पट्टे लगे थे, जो सामान रखने से ज्यादा बैठने के काम ही आते थे।अब लकड़ी की जगह स्टील के पाइपों ने ले ली है, जो बैठने पर चुभते है।आश्चर्य की बात नहीं की जिसने डिज़ाइन किया है वो कभी जनरल डब्बे में नहीं बैठा।स्टील के गोल पाइपों कि जगह स्टील के ही चौकोर पाइप काम में लिए जा सकते थे।शायद रेलवे अनुशासन चाहती हो कि लोग सामान रखने की जगह पर बैठे ना।
ReplyDeleteहमारा देश विसंगतियो से भरा हुआ हैं जिस रुट पर भारत मे सबसे ज्यादा ट्रेनो का संचालन होता हैं उसी मे सबसे ज्यादा बुरा हाल हैं रवीश जी
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