तुम कहाँ हो प्यारे । लोग तुम्हें पुकार रहे हैं और तुम आ ही नहीं रहे हो । अनसुना कर दे रहे हो । आख़िर कब तक ऐसा होगा । कब तुम तभी दिये जाओगे जब तुम माँगे जाओगे । वे भी क्या दिन थे जब तुम अपने आप दिये जाते थे । नैतिकता के तक़ाज़े पर तो कभी अंतरात्मा की आवाज़ पर ही तुम दे दिये जाते थे । आज तरह तरह की आवाज़ें हो गई है मगर तुम नहीं दिये जा रहे हो । टीवी की आवाज़, ट्वीटर की आवाज़, बीजेपी की आवाज़, एंकर की आवाज़, लेफ़्ट की आवाज़ । आवाज़ ही आवाज़ । तुम को माँगने वाला और तुमको देने वाला, कौन है भाग्य विधाता । एक पार्टी जाने कब से तुम्हें मांग रही है, दूसरी पार्टी कब से तुम्हें नहीं देने दे रही है । देखना इस खींचतान में तुम्हें कोई फाड़ न दे । ख्याल रखना अपना ।
तुम्हारी लाइन क्या है । क्या तुम कभी माँगे जाने से दिये गए हो । कुछ चाहते हैं कि तुम दे दिये जाओ । कुछ चाहते हैं कि तुम्हें लिखवा दिया जाए । अच्छा है तुम नहीं दिये जा रहे हो । रोज़ रोज़ माँगने से भगवान भी भक्तों को नहीं देता है । माँगने दो जो मांग रहे हैं । इन्हें मांग कर खाने की आदत है । खुद देते नहीं और दूसरे से माँगते हैं । प्रिय इस्तीफ़ा तुम्हारी पोलिटिक्स सही है । तुम्हें माँगने के लिए कोई धरना देता है,कोई राष्ट्रपति के पास जाता है तो कोई अपने अपने परिवारों के मुखिया के पास जाता है । कई लोग ऐसे हैं जो तुम्हें जेब में रख कर चलते हैं । एक फ़िल्म में राजकुमार कलेक्टर बने थे । पूरी फ़िल्म में यही बोलते थे कि मैं अपना इस्तीफ़ा जेब में लेकर चलता हूँ । कभी तुम एक लाइन के होते हो तो कभी भर भर पेज । कभी तुम राजनीतिक कारण से होते हो तो कभी स्वास्थ्य के कारण से । कभी सलाह से तो कभी जनदबाव से । इसीलिए मैं तुम पर एक फ़िल्म बना रहा हूँ जिसका नाम होगा- तेरी मांग इस्तीफ़े से भर दूँ !
तुम्हारा, तुम्हें कभी न दे सकने वाला,
रवीश कुमार ' एंकर '
sensible, humourous n touching sir ji. Bechare istifey ka dard b khub bayan kiya aapne. :D
ReplyDeletecute :) latter
ReplyDeleteबेवफा लेकिन प्रिय :)
फिर एक फिल्म घोषणा :)
ख्याल रखा-कोई फाड़ न दे-digital इस्तीफा :)
कोई इस्तीफा बोलेगा तो अबकी मेरे चेहरे पे तो smile आ जाने वाला है :)
'अहिंसा प्रथमो धर्मं' 'अहिंसा परमो धर्मं'
ReplyDelete'सत्यम इदं धर्मं' 'धर्मं ज्ञ्यो सदाचार'
अर्थात
अहिंसा प्रथम धर्मं है
अहिंसा परम धर्मं है
सत्य ही धर्मं है
सदाचार को तू धर्मं जान
(यह चारों के चारों उपनिषद वाक्य है )
सत्य,अहिंसा,एकता की जरुरत जिस किसी राज्यकर्ता को होगी उसको Gandhiji की जरुरत तो होगी ही होगी :)
गांधी जयंती दिवस की शुभ कामनाएँ :)
शानदार ! … "देखना इस खींचतान में तुम्हें कोई फाड़ न दे" … हाहा
ReplyDeleteबड़ा क्यूट लैटर है जी :)
गाँधी जी को एक लेटर पेंडिंग है । देख तेरे हिंदुस्तान की क्या हालत हो गई बापू..
ReplyDeleteसब माँगत पर देय न कोई,
ReplyDeleteमन में मोर मुदित सब कोई।
परित्राणाय साघूनाँ।
ReplyDeleteHumours. Happy holiday
ReplyDeleteरवीश जी
ReplyDeleteआपकी बेबाकी का कायल हूँ । कभी कभी दुःख भी होता है इस बेबाकी से मुझे ।
आखिर मैं भी तो किसी पंथ को भीतर भीतर मानता हूँ ।
लेकिन फिर सहमत हो जाता हूँ आपसे ।
जाने क्यूँ नौ बजे कादम्बिनी जी को देखता हूँ तो निराश सा हो जाता हूँ । यद्यपि उनकी अपनी शैली है तरीका है बात कहने का ।
मने कि कह रहे हैं । ठीक है न । चलते रहिये । आदि आदि । ये सब अब सिर्फ वाक्य कहाँ रहे ?मुहावरे गढ़ दिए आपने ।
आप स्वस्थ रहें और इसी तरह लिखते बोलते रहे ।
इस्तीफ़ा तो जब चाहेंगे आप दे ही देंगे । है न ?
भवदीय
योगेश प्रताप सिंह
ग्राम हैदरपुर
पोस्ट मानापुर
तहसील पट्टी
जनपद प्रतापगढ़
उत्तर प्रदेश
230138
akhir me apne bhee vahi netalogo vali baat kah di na mangoge to bhee nahi dunga
ReplyDeletePeabhu durdin ke pahile aaja , ansuan pag ham dhoibe raama ......
ReplyDeleteBina fjihat koi nahi dene wala .
Bahut sunder hai sir ........
Sanjay Shukla
Amethi U.P.
Very nice sir aj apne kisi ko target nahi kiya hume khusi mili apka blog padh ke bus abhari hu apka sir
ReplyDeleteVery nice sir aj apne kisi ko target nahi kiya hume khusi mili apka blog padh ke bus abhari hu apka sir
ReplyDeletevery nice sir ji, shabad nahi hai aapni khushi ko batane k liye, kyonki sabhi chatpate shabad to aapne istemaal kar liye. thanks
ReplyDeleteI'm new to ur blog but, I'm ur great fan as an anchor. One thing I'm unable to understand why you use "ANCHOR" with your name? Is any story behind it?
ReplyDelete
ReplyDeleteइस्तीफा न हुआ फेविकोल का मजबूत जोड़ है छुटेगा नही ।
रवीश जी अब सब केहु कुछु ना कुछु माँगते बा सब दे दिहल जाइ त राजनीति मे माजा कइसे आई,
ReplyDeleteआ तब राजनीति किराना के दोकान हो जाइ भाई
रवीश जी, मै आपका ब्लॉग पढ़कर टिप्पणी करता हूँ उसे आप मिटा देते है?मैंने कभी असंसदीय भाषा का प्रयोग नही किया!मतलब आपको पाठको के भावनाओ का ख्याल नही,हम जैसे पाठक आपके साथ नही होते तो आप भी कादम्बनी जी की तरह वो शाकाल बाबा के जाल में ओझरा गए होते और देश में लाइव हो गए होते ,कभी तो हमें भी तहे दिल से शुक्रिया अदा करे,अनुरोध है प्रशसको का भी सम्मान करे
ReplyDeleteConversation started today
ReplyDelete3:47pm
Rahul Vaish
कुँए का मेढ़क बना देश का इलेक्ट्रॉनिक मीडियादेश के महाभ्रष्ट इलेक्ट्रॉनिक मीडिया (महाभ्रष्ट इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इसलिए क्यों की उसका उल्लेख मैं अपने पूर्व के ब्लॉग में विस्तारपूर्वक कर चूका हूँ अत: मेरे पूर्व के ब्लॉग का अध्यन जागरणजंक्शन.कॉम पर करे ) के उन न्यूज़ चैनलों को अपने गिरेबान में झाँक कर देखना चाहिए जो न्यूज़ चैनल के नाम के आगे ”इंडिया” या देश का नॉ.१ इत्यादि शब्दों का प्रयोग करते है. क्यों की इन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के कुँए के मेढक न्यूज़ चैनलों का राडार या तो एन.सी.आर. या फिर बीमारू राज्य तक सीमित रहता है. कुए के मेढ़क बने इन न्यूज़ चैनलों को दिल्ली का “दामिनी” केस तो दिख जाता है लेकिन जब नागालैंड में कोई लड़की दिल्ली के “दामनी” जैसी शिकार बनती है तो वह घटना इन न्यूज़ चैनलों को तो दूर, इनके आकाओं को भी नहीं मालूम पड़ पाती. आई.ए.एस. दुर्गा नागपाल की के निलंबन की खबर इनके राडार पड़ इसलिए चढ़ जाती हैं क्यों की वो घटना नोएडा में घटित हो रही है जहाँ इन कुँए के मेढक न्यूज़ चैनलों के दफ्तर है जबकि दुर्गा जैसी किसी महिला अफसर के साथ यदि मणिपुर में नाइंसाफी होती है तो वह बात इनको दूर-दूर तक मालूम नहीं पड़ पाती है कारण साफ़ है की खुद को देश का चैनल बताने वाले इन कुँए का मेढ़क न्यूज़ चैनलों का कोई संबाददाता आज देश उत्तर-पूर्व इलाकों में मौजूद नहीं है. देश का इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जिस तरह से न्यूज़ की रिपोर्टिंग करता है उससे तो मालूम पड़ता है की देश के उत्तर-पूर्व राज्यों में कोई घटना ही नहीं होती है. बड़े शर्म की बात है कि जब देश के सिक्किम राज्य में कुछ बर्ष पहले भूकंप आया था तो देश का न्यूज़ चैनल बताने वाले इन कुँए का मेढ़क न्यूज़ चैनलों के संबाददाताओं को सिक्किम पहुचने में २ दिन लग गए. यहाँ तक की गुवहाटी में जब कुछ बर्ष पहले एक लड़की से सरेआम घटना हुई थी तो इन कुँए के मेढक न्यूज़ चैनलों को उस घटना की वाइट के लिए एक लोकल न्यूज़ चैनल के ऊपर निर्भर रहना पड़ा था. इन न्यूज़ चैनलों की दिन भर की ख़बरों में ना तो देश दक्षिण राज्य केरल, तमिलनाडु, लक्ष्यद्वीप और अंडमान की ख़बरें होती है और ना ही उत्तर-पूर्व के राज्यों की. हाँ अगर एन.सी.आर. या बीमारू राज्यों में कोई घटना घटित हो जाती है तो इनका न्यूज़ राडार अवश्य उधर घूमता है. जब देश के उत्तर-पूर्व या दक्षिण राज्यों के भारतीय लोग इनके न्यूज़ चैनलों को देखते होंगे तो इन न्यूज़ चैनलों के द्वारा देश या इंडिया नाम के इस्तेमाल किये जा रहे शब्द पर जरुर दुःख प्रकट करते होंगे. क्यों की देश में कुँए का मेढ़क बने इन न्यूज़ चैनलों को हमारे देश की भौगोलिक सीमायें ही ज्ञात नहीं है तो फिर ये न्यूज़ चैनल क्यों देश या इंडिया जैसे शब्दों का प्रयोग करते है क्यों नहीं खुद को कुँए का मेढक न्यूज़ चैनल घोषित कर लेते आखिर जब ये आलसी बन कर देश बिभिन्न भागों में घटित हो रही घटनाओं को दिखने की जहमत ही नहीं उठाना चाहते. धन्यवाद. राहुल वैश्य ( रैंक अवार्ड विजेता), एम. ए. जनसंचार एवम भारतीय सिविल सेवा के लिए प्रयासरत फेसबुक पर मुझे शामिल करे- vaishr_rahul@yahoo.कॉम और Rahul Vaish Moradabad
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Rahul Vaish
कुँए का मेढ़क बना देश का इलेक्ट्रॉनिक मीडियादेश के महाभ्रष्ट इलेक्ट्रॉनिक मीडिया (महाभ्रष्ट इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इसलिए क्यों की उसका उल्लेख मैं अपने पूर्व के ब्लॉग में विस्तारपूर्वक कर चूका हूँ अत: मेरे पूर्व के ब्लॉग का अध्यन जागरणजंक्शन.कॉम पर करे ) के उन न्यूज़ चैनलों को अपने गिरेबान में झाँक कर देखना चाहिए जो न्यूज़ चैनल के नाम के आगे ”इंडिया” या देश का नॉ.१ इत्यादि शब्दों का प्रयोग करते है. क्यों की इन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के कुँए के मेढक न्यूज़ चैनलों का राडार या तो एन.सी.आर. या फिर बीमारू राज्य तक सीमित रहता है. कुए के मेढ़क बने इन न्यूज़ चैनलों को दिल्ली का “दामिनी” केस तो दिख जाता है लेकिन जब नागालैंड में कोई लड़की दिल्ली के “दामनी” जैसी शिकार बनती है तो वह घटना इन न्यूज़ चैनलों को तो दूर, इनके आकाओं को भी नहीं मालूम पड़ पाती. आई.ए.एस. दुर्गा नागपाल की के निलंबन की खबर इनके राडार पड़ इसलिए चढ़ जाती हैं क्यों की वो घटना नोएडा में घटित हो रही है जहाँ इन कुँए के मेढक न्यूज़ चैनलों के दफ्तर है जबकि दुर्गा जैसी किसी महिला अफसर के साथ यदि मणिपुर में नाइंसाफी होती है तो वह बात इनको दूर-दूर तक मालूम नहीं पड़ पाती है कारण साफ़ है की खुद को देश का चैनल बताने वाले इन कुँए का मेढ़क न्यूज़ चैनलों का कोई संबाददाता आज देश उत्तर-पूर्व इलाकों में मौजूद नहीं है. देश का इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जिस तरह से न्यूज़ की रिपोर्टिंग करता है उससे तो मालूम पड़ता है की देश के उत्तर-पूर्व राज्यों में कोई घटना ही नहीं होती है. बड़े शर्म की बात है कि जब देश के सिक्किम राज्य में कुछ बर्ष पहले भूकंप आया था तो देश का न्यूज़ चैनल बताने वाले इन कुँए का मेढ़क न्यूज़ चैनलों के संबाददाताओं को सिक्किम पहुचने में २ दिन लग गए. यहाँ तक की गुवहाटी में जब कुछ बर्ष पहले एक लड़की से सरेआम घटना हुई थी तो इन कुँए के मेढक न्यूज़ चैनलों को उस घटना की वाइट के लिए एक लोकल न्यूज़ चैनल के ऊपर निर्भर रहना पड़ा था. इन न्यूज़ चैनलों की दिन भर की ख़बरों में ना तो देश दक्षिण राज्य केरल, तमिलनाडु, लक्ष्यद्वीप और अंडमान की ख़बरें होती है और ना ही उत्तर-पूर्व के राज्यों की. हाँ अगर एन.सी.आर. या बीमारू राज्यों में कोई घटना घटित हो जाती है तो इनका न्यूज़ राडार अवश्य उधर घूमता है. जब देश के उत्तर-पूर्व या दक्षिण राज्यों के भारतीय लोग इनके न्यूज़ चैनलों को देखते होंगे तो इन न्यूज़ चैनलों के द्वारा देश या इंडिया नाम के इस्तेमाल किये जा रहे शब्द पर जरुर दुःख प्रकट करते होंगे. क्यों की देश में कुँए का मेढ़क बने इन न्यूज़ चैनलों को हमारे देश की भौगोलिक सीमायें ही ज्ञात नहीं है तो फिर ये न्यूज़ चैनल क्यों देश या इंडिया जैसे शब्दों का प्रयोग करते है क्यों नहीं खुद को कुँए का मेढक न्यूज़ चैनल घोषित कर लेते आखिर जब ये आलसी बन कर देश बिभिन्न भागों में घटित हो रही घटनाओं को दिखने की जहमत ही नहीं उठाना चाहते. धन्यवाद. राहुल वैश्य ( रैंक अवार्ड विजेता), एम. ए. जनसंचार एवम भारतीय सिविल सेवा के लिए प्रयासरत फेसबुक पर मुझे शामिल करे- vaishr_rahul@yahoo.कॉम और Rahul Vaish Moradabad
ज़ायदाद मांगी होती तो मिल जाती.... इस्तिफा.... ना, ना, ना जी.....
ReplyDeleteज़ायदाद मांगी होती तो मिल जाती.... इस्तिफा.... ना, ना, ना जी.....
ReplyDeletepriya ravishji aap ke blog ka ek pathak hu hume aapki shaili tatha bolne ki ada bahut pasand he twitter pe bhi aapko follow karta tha pata nahi kyu ab page hi nahi aa raha bahar haal aisi hi likhte rahi ye ga apko padke acha lagta shrota evam pathak thata kabhi kabhi prashansak
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